*रा धा स्व आ मी!*
*प्रस्तुति - नवल किशोट प्रसाद / कुसुम रानी सिन्हा
*08-03-23-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-आज प्रात:काल से आगे:-*
*(17.5.31-आदित्य)*
*अमृतसर से एक सतसंगी ने एक गुरुमुखी इश्तहार भेजा है। जिससे जाहिर होता है कि अकाली सिख सरदार सावन सिंह के खिलाफ़ ज़बरदस्त प्रोपेगण्डा कर रहे हैं इस माह के आखिर में यह लोग व्यास सतसंग के मुक़ाबिल (समान) अपना तीसरा दीवान या जलसा मुनअक़िद (आयोजित) करेंगे जिसमें मास्टर आत्मासिंह साहब व बाबा बसाखा सिंह साहब तक़रीरें (व्याख्यान) करेंगे। वैसे अकाली भाई जो चाहें सो कहें लेकिन अगर बनजरे इन्साफ़ (न्याय की दृष्टि से) देखा जावे तो सरदार सावन सिंह साहब उन्हीं का काम कर रहे हैं। क्योंकि वह मुतलाशी (जिज्ञासु) सिखों को रा धा स्व आ मी मत की असली तालीमे कुलाह (शीर्ष की शिक्षा) से रोककर ग्रन्थ साहब की पूजा व बाहरमुखी रस्मियात (रीतियों) की टेक में लगा रहे हैं। सरदार साहब का अगर क़सूर है तो इस क़दर कि वह सिखों की सब कार्रवाइयां करते हुये वक़्तन-फवक़्तन (समय समय से) स्वामी जी महाराज की मुक़द्दस (पवित्र) पुस्तक का पाठ करते हैं और स्वामीजी महाराज को सन्त मानते हैं। मगर अकाली भाइयों के इस क़दर भड़कन दिखलाने के लिये यह काफ़ी वजह नहीं है क्योंकि नामधारी सिख भी तो दस गुरु साहबान के अलावा गुरुओं में एतकाद (विश्वास) रखते हैं और उन्हें कुछ नहीं कहा जाता। मालूम होता है कि ब्यास के सतसंग की रौनक बढ़ रही है और आसपास के मवाजियात (गाँवों) में रहने वाले अकालियों से यह रौनक बर्दाश्त नहीं होती है।*
No comments:
Post a Comment