पत्रकार सुरक्षा कानून' समय की मांग /
विजय केसरी
झारखंड प्रांत में पत्रकारिता का बहुत ही स्वर्णिम इतिहास रहा है। प्रांत के पत्रकारों ने जान की बाजी लगाकर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करने में अपनी महती भूमिका अदा की थी। झारखंड के पत्रकारों की जब भी प्रांत को उसकी जरूरत पड़ी, उन्होंने किसी भी तरह की आहुति देने में संकोच तक नहीं किया। आजादी से पूर्व आजादी के संघर्ष के लिए झारखंड के पत्रकार लगातार लिखते रहे थे । देश की आजादी के बाद, भारत की आजादी अक्षुण्ण कैसे रहे ? इस निमित्त झारखंड के पत्रकारों ने शानदार पत्रकारिता की, जो अनवरत जारी है । जब 25 जून, 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा हुई थी, झारखंड के पत्रकारों ने इमरजेनसी का एक स्वर में पुरजोर विरोध दर्ज किया था। सेंसरशिप के बावजूद झारखंड के अखबार इमरजेंसी के खिलाफ आग उगलते रहे थे । अखबार के संपादकों , प्रकाशकों और पत्रकारों को जिला प्रशासन द्वारा जेल में डाल दिए जाने की धमकी भी दी गई थी। इसके बावजूद झारखंड के पत्रकार झुके नहीं बल्कि और मुखर होकर लिखते रहे थे। लोकतंत्र की रक्षा के लिए झारखंड के पत्रकारों ने अपनी जान की बाजी तक लगा दी थी। लोकतंत्र के चौथा स्तंभ के रूप में पत्रकारिता को स्थान जरूर दिया जाता है, लेकिन इस स्तंभ के कामगार पत्रकारों की सुरक्षा के प्रति शासन - प्रशासन मौन क्यों है ? यह सबसे बड़ा हम सवाल है। विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका की सुरक्षा के प्रति आजादी के बाद से ही सरकार तटस्थ रही है, लेकिन लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता के कामगार पत्रकारों की सुरक्षा के प्रति इतनी उदासीनता क्यों ?
झारखंड अलग प्रांत निर्माण के मुद्दे पर झारखंड की पत्रकारिता की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। झारखंड अलग प्रांत लड़ाई के लिए नेताओं ने सड़क से लेकर सदन तक अपनी आवाजें बुलंद की थीं । झारखंड की पत्रकारिता ने झारखंड आंदोलन कर्मियों की आवाज को सरकार तक पहुंचाने में महती भूमिका अदा की थी । झारखंड से प्रकाशित होने वाले कई अखबारों ने झारखंड अलग प्रांत क्यों ? विषय को लेकर लंबे-लंबे लेख मालाओं को प्रकाशित कर आंदोलन को धार धार बनाया था। कई पत्रकार दिन रात एक कर झारखंड से जुड़े नेताओं के बयानों को प्रकाशित करने में लगे थे। जेल में बंद झारखंड अलग प्रांत के सिपाहियों की बातों को भी छाप रहे थे। लग रहा था कि ये कलम के सिपाही खुद झारखंड अलग प्रांत के एक सिपाही के रूप में तब्दील हो गए। इस तरह की रिपोर्टिंग करने में झारखंड के कई पत्रकारों को काफी जोखिम उठाना पड़ा था। तब लंबे संघर्ष के बाद झारखंड अलग प्रांत बन पाया था। प्रांत की सरकार को पत्रकारों की इस जोखिम भरे सेवा कों सदा स्मरण करना चाहिए। पत्रकार सुरक्षा कानून का निर्माण कर प्रांत की सरकार पत्रकारों पर हो रहे चौतरफा हमले को छतरी प्रदान कर सकती है।
हम सब नजरें दौड़ा कर देख लें , अच्छे से पड़ताल कर देख लें , देश के चौमुखी विकास में पत्रकारिता की भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। देश के किसी भी राज्य के चतुर्दिक विकास में प्रांतीय पत्रकारिता की अहम भूमिका होती है । प्रांतीय पत्रकारिता, राज्य सरकार को समाज के सच से रूबरू करवाती है। गांव के सड़क खराब हों अथवा गांव के प्राथमिक उपचार केंद्रों की स्थिति बद से बदतर हो गई हो, उसकी ताजी खबर अखबार ही सरकार तक पहुंचा पाती है। ऐसे एक नहीं, हजारों उदाहरण मिलेंगे, जब अखबारों ने अपनी खबर के माध्यम से सरकार का ध्यान आकृष्ट किया, तब संबंधित गड़बड़ी को ठीक करने का सरकारी फरमान जारी हो पाता है।
सरकारी विभागों में व्याप्त धांधली, लोक सेवकों की मनमानी, तानाशाही, लालफीताशाही के खिलाफ हमारे पत्रकार ही अपने पत्रों के माध्यम से मुखर हो पाते हैं। भू माफिया, जमीन घोटाला,कोल माफिया, दवा घोटाला, रिश्वतखोरी , मुनाफाखोरी, कालाबाजारी आदि मुद्दों पर हमारे पत्रकार अपनी जान को जोखिम में डालकर खबर को जन जन तक पहुंचाते रहते हैं । बदले में पत्रकारों को क्या मिलता है ? पत्रकारों को अपनी जान तक गंवानी पड़ जती है । समाज के इस सच को सामने लाने में हमारे वीर पत्रकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ा है। बदले में हम सब उन्हें क्या देते हैं ? यह बड़ा सवाल है । विचारणीय पक्ष यह है कि भारत का संविधान जिस प्रकार विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका से जुड़े लोगों की सुरक्षा की गारंटी मुहैया कराती है। पत्रकारों के प्रति मौन क्यों है ? पत्रकारों की सेवा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जान की बाजी लगाकर समाज के सच को लिखने वाले पत्रकारों की सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए । पत्रकारों को जो भी डराते हैं, धमकाते हैं, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए।
इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन एवं प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने महसूस किया कि देशभर के पत्रकारों की सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए , तभी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मजबूत व मुख्रर रह सकता है। देश के चतुर्दिक विकास के लिए पत्रकारिता का मुखर होना बहुत जरूरी है । भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष देश के लिए पत्रकारिता का स्वतंत्र और मजबूत होना बहुत जरूरी है। इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने पत्रकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर देशभर के पत्रकारों की उपस्थिति में एक महती सभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया कि पत्रकारों की सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए, इस निमित्त भारत सरकार से पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की मांग का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने केंद्र सरकार को पत्रकारों की सुरक्षा से संबंधित कानून बनाए जाने का एक मांग पत्र भी दिया ।साथ ही इंडियन जर्नलिस्ट्स ने अपने राज्य इकाइयों को यह भी निर्देश दिया कि अपने अपने प्रांत की सरकार से पत्रकार सुरक्षा कानून बनाए जाने की मांग रखें। इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने पत्रकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर यह बहुत ही बड़ा फैसला लिया है। पत्रकारों को धमकाने वाले, जान से मार देने की धमकी देने वाले ताकतवर लोगों पर लगाम लगेगा। भ्रष्टाचार का रास्ता अख्तियार कर सरकारी संपत्तियों पर डाका डालने वाले लोग जेल की सलाखों के पीछे नजर आएंगे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जो सपना देखा था कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचे, हमारे पत्रकार गण उस अंतिम व्यक्ति की आवाज को जन जन तक पहुंचा पाएंगे।
पत्रकार सुरक्षा कानून आज समाज के लिए जरूरी हो गया है। झारखंड में पत्रकार सुरक्षा कानून बनाए जाने की मांग दिन-ब-दिन जोर पकड़ती चली जा रही है। पिछले दिनों झारखंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के तत्वाधान मे विधानसभा के समीप पत्रकारों ने धरना दिया। आयोजित इस धरना कार्यक्रम में झारखंड के चौबीसों जिलों के पत्रकार गण काफी संख्या में सम्मिलित हुए। सभी पत्रकारों ने एक स्वर में झारखंड में शीघ्र पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग की । झारखंड जनरलिस्ट एसोसिएशन के तत्वधान में जब यह दो दिवसीय धरना चल रहा था, झारखंड विधान सभा भी चल रहा था । पत्रकारों की धरना की सूचना जब प्रांत के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्राप्त हुआ, तब उन्होंने दो विधायकों को धरना स्थल पर भेज कर यह आश्वासन दिया कि झारखंड में जल्द ही पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाएगा । राज्य सरकार के इस आश्वासन के बाद झारखंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने अपने दो दिवसीय धरना को स्थगित । पत्रकार सुरक्षा कानून बनाए के मुद्दे पर विधानसभा में विमर्श भी हुआ। झारखंड राज्य के पक्ष और विपक्ष दोनों चाहते हैं कि पत्रकार सुरक्षा कानून बने। उम्मीद है कि शीघ्र यह कानून विधानसभा से शीघ्र पारित हो जाएगा।
पत्रकार सुरक्षा कानून बनाए जाने की मांग पर झारखंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन पूरी तरह तटस्थ है। झारखंड जनरलिस्ट एसोसिएशन राज्य सरकार के आश्वासन के बाद ही अपना दो दिवसीय धरना को स्थगित किया है। अगर सरकार पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने में विलंब करती है, तो झारखंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन लोकतांत्रिक तरीके से धरना, प्रदर्शन के लिए स्वतंत्र होगा।
विजय केसरी,
(कथाकार स्तंभकार)
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301 ,
मोबाइल नंबर : 92347 99550.
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