सिफत राधास्वामी नाम की
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राधास्वामी नाम, सिफत(तारीफ, गुण,प्रशंसा, महिमा)करूँ इस नाम की।
सुनो कान दे आन,भिन्न भिन्न वर्णन करूँ।।
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सिफत पहली
पाँच अक्षर आये हिन्दी मे।
जबाँ(भाषा) फारसी अक्षर दस मे।।
पाँच शब्द का भेद बतावें।
दस मुकाम को ले पहुँचावे।।
राधास्वामी नाम पाँच शब्दो का भेद बताता है और सुरत को चढा़ कर दस स्थानों पर पहुँचाता हैं।
{पाँच शब्दो से मतलब (१) सहस-दल कँवल (२)त्रिकूटी,(३)सुन्न,(४)भँवरगुफा व(५) सत्तलोक के शब्दों से है।
संतो ने माया की निर्मलता और मलिनता के मुवाफिक सुरत के उतार के दर्जे मुकर्रर किये है। इन दर्जा को स्थान या मुकाम कहते है। नीचे से गिनने पर यह दस स्थान यह है:
★१) सहसदल कँवल
★२)बंक नाल
★३)त्रिकूटी
★४)सुन्न
★५)महासुन्न
★६)भँवरगुफा
★७)सत्तलोक
★८)अलख लोक
★९)अगम लोक
★१०)राधास्वामी धाम।
सिफत दूसरी
एक सिफत यह वर्ण बताई।
सिफत दुसरी खुल कर गाई।।
राधा धुन(गूँज) का नाम सुनाऊँ।
स्वामी शब्द भेद बतलाऊँ।।
धुन और शब्द एक कर जानो।
जल तरंग सम भेद न मानो।।
◆मैने राधास्वामी नाम का एक गुण तो ऊपर बता दिया है।अब दुसरा गुण विस्तार से बताता हूँ। शब्द 'स्वामी' है व उसकी धुन 'राधा' है। जिस तरह जल और उसकी तरंग में कोई अंतर नहीं होता है, दोनों एक ही है, इसी प्रकार शब्द और उसकी धुन एक ही है, दोनों में कोई फर्क नहीं है।
सिफत तीसरी
सिफत तीसरी करूँ बखाना।
सुनो चित्त से देकर काना।।
राधा प्रित लगावन हारी।
स्वामी प्रीतम नाम कहा री।।
यह भी सिफत बताय दई री।
राधास्वामी सुरत शब्द गाया री।।
◆ अब तीसरा गुण बताता हूँ । चित्त देकर सुनो। स्वामी प्रितम है और 'राधा' उसकी 'प्रेमी' यानी उनसे प्रेम करने वाली है। राधास्वामी ने सुरत शब्द का भेद वर्णन कर दिया है। राधास्वामी नाम की सिफत भी बता दी है।
सिफत चौथी
●राधा आदि सुरत का नाम। स्वामी आदि शब्द निज धाम।।
सुरत शब्द और राधास्वामी।
दोनो नाम एक कर जानी।।
सुरत शब्द संग करे बिलास।
यों राधा स्वामी ढिग(पास)बास।।
राधास्वामी दो कर जान।
होयँ एक सतलोक ठिकान।।
●★कुल्ल मालिक के निज धाम का आदि शब्द ही स्वामी है।इसी प्रकार आदि शब्द से जो धार निकली वह 'आदि सुरत' ही राधा है।जिस वक्त कि प्रथम जहूर कुल मालिक का हुआ तो पहले शब्द हुआ। वही शब्द 'स्वामी' यानी कुल् का मालिक है और जो आवाज यानी धार कि उस शब्द से निकली, उसी का नाम 'आदि सुरत' है।
(सार उपदेश राधास्वामी, बचन ३५)सुरत और शब्द और राधास्वामी नाम यह दोनो एक ही हैं। जैसे सुरत ओर शब्द एक दुसरे से अभिन्न है, एक दुसरे में समाये हुए है ऐसे ही राधा व स्वामी मे भेद नहीं है। पर जैसे सुरत और शब्द अलग अलग भी है वैसे ही रिधा और स्वामी भी अलग अलग है। जहाँ जहाँ कि धार ने ठहर कर मंडल बनाया और रचना की, शब्द प्रकट हुआ और उसकी धारा नीचे उतरी। अतःसुरत और शब्द अलग अलग यानी दो भिन्न है वैसे ही राधा और स्वामी भी है। किन्तु सतलोक में दोनों एक हो गए है यानी उस शब्द और धार का नाम भी " राधास्वामी" हो ..है। होय एक सत्तलोक ठिकान। इसीलिए 'सतपुरुष राधास्वामी' भी बोलते है।
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