Sunday, August 6, 2023

बचन 1931


*रा-धा-स्व-आ-मी                                                            

 06-08-2023- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे:-

(17-9-31- बृहस्पत)-


 एक मुस्लमान मुतलाशी (जिज्ञासु) ने लिखा है कि उसने मुसम्मम (पक्का)इरादा कर लिया है कि सतसंग का उपदेश हासिल (प्राप्त) करे लेकिन  वह इस्लाम के उसूल (सिद्धांत) पर पाबन्द (आबद्ध ) भी रहना चाहता है और नीज (और भी) जियाफ़तों (दावतों) में गोश्त वगैरा मम्नूआत (वर्जित वस्तुओं) के इस्तेमाल के लिये बरीयत (क्षमा) का ख़्वाहिशमन्द (इच्छुक) है। यह कैसे हो सकता है? इस्लाम जो पैगम्बर साहब ने सिखलाया उस पर अगर कोई कारबन्द (बाध्य) रहे तो जल्द ही खरा सतसंगी बन जाये लेकिन खुदगर्ज (स्वार्थी ) मुल्लाओं का चलाया हुआ इस्लाम दूसरी ही तरफ ले जाता है।

किसी का यह उम्मीद करना कि जियाफ़तों के मजे भी मिलें और रूहानियत (आध्यात्मिकता ) के लुत्फ़ (आनन्द) भी, लाहासिल (व्यर्थ ) है। इस वक्त पर तीन शेर बेसाख्ता (तुरन्त ) खयाल में आये इसलिये लिख लिये जाते हैं-आशिक मिजाज (प्रेमी स्वभाव ) दिल को न दुनिया से काम है दुनिया के रंग व लुत्फ़ से उल्फत (प्रेम) हराम (वर्जित ) है जाहिद (जितेन्द्रिय) की चाल और है आबिद (उपासक) की और ही खुदबी(अहंकारी) ब खुशखिराम (मटक कर चलने वाला) का आशिक़ न नाम है -*

*(2) जाहिद के हाथ दाना (मनका) है आबिद है तिहीदस्त (खाली हाथ) जेआशिक़ के दोनों हाथ में गुल रंग (गुलाब के रंग का) जाम (प्याला) है- (3 ) सतसंगी की चाल सच्चे आशिक या प्रेमी की है। जाहिद अपनी तस्बीह (सुमिरनी-माला) के दाने हाथ में पकड़े है और आबिद हाथ आस्मान की तरफ करके दुआएं मांगता है। प्रेमी जन सच्चे मालिक की मोहब्बत के जाम भर भर कर पीता है। जिनके दिल में जज्बये- इश्क (प्रेम भावना ) मौजूद नहीं है। अगर वह किसी वजह से सतसंग में शरीक (सम्मिलित ) भी हो गये तो क्या? सतसंग के लुत्फ़ से तो क़तई बेबहरा (वंचित )हैं।                                                               एक और मौके पर तीन शेर खयाल में आये थे जो हस्बे हाल (समयानुसार ) हैं इसलिये उन्हें भी दर्ज कर लिया जाता है। वह शेर मंसूर के मुंह में डालने का इरादा था। जब मंसूर सूली पर चढ़ रहा था उस वक्त उसके एक दोस्त ने कुछ सवालात किये। इन अशआर में सवाल व जवाब दोनों मौजूद हैं-चेह बाशद इश्क ऐ मंसूर!बाहक़ बकरदन जाने खुद पैवस्ता बाहक- (1)(ऐ मंसूर ! परमात्मा के साथ प्रेम क्या है-अपनी सुरत को परमात्मा के साथ एकाकार करना)-* 

*चेह बाशद सब ऐ मंसूर! फ़रमा सुपुर्दन जाने खुद दर दस्ते मौला-(ऐ मंसूर! बता धैर्य क्या है- स्वंय को मालिक के हाथ में सौंप देना-मौज पर निर्भर करना)- (2) चेह बाशद शुक्र बाहक़ व सताइश निहादन जाने खुद दर खाके पाइश-(मालिक के प्रति कृतज्ञता और स्तुति क्या है- स्वंय को उनके पाँव की धूल में-विनम्रता पूर्वक रख देना)-(3)* 


*क्रमशः--------------*  


*🙏🏻 रा-धा-स्व-आ-मी 🙏🏻*



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