आज अपने प्रिय कवि में बात करेंगे कवियत्री तेजी ग्रोवर की। तेजी , भाषा की नयी मुहावरे गढ़ने वाली एक अच्छी कवियत्री होने के साथ एक कथा लेखिका,अनुवादक और चित्रकार हैं। उन्हें 1950 के बाद पैदा हुए पीढ़ियों में हिंदी कविता में एक महत्वपूर्ण आवाज के रूप में माना जाता है। उन्होंने ने हिन्दी में कई स्कैंडिनेवियाई एवं अन्य विदेशी और भारतीय लेखकों की रचनाओं का अनुवाद किया है।
कवियत्री तेजी ग्रोवर पारम्परिक बिम्बों के साथ फैंटसी और वास्तविकता के मिश्रण से सर्वथा एक नई मुहावरा गढ़ती हुइ कविता में अतित से शुरू कर वर्तमान के गलियों से होते हुए भविष्य की तरफ बढ़ती है। वह प्रेम के अतीन्द्रिय अनुभवों , समसामयिक विषयों और त्रासदियों को केवल वर्तमान नहीं वरण अतित और भविष्य के वरक्स भी देखने की कोशिश करती है और ऐसा करते हुए जन्म, मृत्यु और इससे इतर मानवीय चेतना के सुक्ष्म तरंगों को भी आत्मसात करतीं है।
जन्म 1955
जन्म स्थान पठानकोट, पंजाब, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
यहाँ कुछ अंधेरी और तीखी है नदी (1983), जैसे परम्परा सजाते हुए (1982), लो कहा साँबरी (1994)
जीवन परिचय
तेजी ग्रोवर
कविता संग्रह
यहाँ कुछ अंधेरी और तीखी है नदी / तेजी ग्रोवर
लो कहा साँबरी / तेजी ग्रोवर (1994)
अन्त की कुछ और कविताएँ / तेजी ग्रोवर (2000)
मैत्री / तेजी ग्रोवर
प्रतिनिधि कविताएँ
क्या मालूम है तुम्हें / तेजी ग्रोवर
नीलमणि मुख पोखर में खड़ा सूर्य / तेजी ग्रोवर
जिस भी सेमल की छीम्बी से उडती है वह / तेजी ग्रोवर
भाषा के साथ खेल सकते हो / तेजी ग्रोवर
तुमने एक फूल को देख लिया है / तेजी ग्रोवर
पूरा हो चुका चाँद / तेजी ग्रोवर
अभी टिमटिमाते थे / तेजी ग्रोवर
क्या यही मिला है / तेजी ग्रोवर
कभी वह उतरती है बिम्ब में / तेजी ग्रोवर
बेतरह आँख पोंछता है / तेजी ग्रोवर
मीलों-मील बँधी हुई धूप में / तेजी ग्रोवर
सरक आती है कान की प्याली में / तेजी ग्रोवर
ऊँघतीं हैं दोपहर की कच्ची डगार से / तेजी ग्रोवर
बहुरंगी छींट की खाल में / तेजी ग्रोवर
पर्वतों के नील से किसक रही है / तेजी ग्रोवर
मालूम नहीं इच्छा होती है जब / तेजी ग्रोवर
रात आई और अदृश्य में डूब गए / तेजी ग्रोवर
अपने फूलों की दहक से / तेजी ग्रोवर
क्षण के उस नामालूम अंश में / तेजी ग्रोवर
प्रतीक्षा करो या न करो / तेजी ग्रोवर
पगली
तेरे सपने में थोड़े हूँ पगली
मैं तो बैठा हूँ
टाट पर
सजूगर
अचार भरी उँगलियाँ चाटता हुआ
मैं टाट पर थोड़े हूँ पगली
झूलती खाट में
सो रहा हूँ तेरे पास
इतना पास
कि तेरा पेट गुड़गुड़ाया
तो मैंने सोचा मेरा है
भोर तक यहीं हूँ पगली
तू साँस छोड़ेगी
तो भींज उठेंगी मेरी कोंपलें
मेरी खुरदरी उँगलियाँ
नींद की रोई तेरी आँखों पर
काँप-काँप जाएँगी
और तू
झपकी भर नहीं जगेगी रात में
मैं जा रहा हूँ पगली
तेरे खुलने से पहले
उजास में घुल रही है मेरी आँख
छूना मटका तो मान लेना
मैं आया था
घोर अँधेरे तपते तीर की तरह आया था
रात भर प्यासा रहा। दो।
तेरे सपने में थोड़े हूँ पगली
मैं तो बैठा हूँ
टाट पर
सजूगर
अचार भरी उँगलियाँ चाटता हुआ
मैं टाट पर थोड़े हूँ पगली
झूलती खाट में
सो रहा हूँ तेरे पास
इतना पास
कि तेरा पेट गुड़गुड़ाया
तो मैंने सोचा मेरा है
भोर तक यहीं हूँ पगली
तू साँस छोड़ेगी
तो भींज उठेंगी मेरी कोंपलें
मेरी खुरदरी उँगलियाँ
नींद की रोई तेरी आँखों पर
काँप-काँप जाएँगी
और तू
झपकी भर नहीं जगेगी रात में
मैं जा रहा हूँ पगली
तेरे खुलने से पहले
उजास में घुल रही है मेरी आँख
छूना मटका तो मान लेना
मैं आया था
घोर अँधेरे तपते तीर की तरह आया था
रात भर प्यासा रहा।
बेतरहआंख पोछता है
________________
बेतरह आंख पोछता है
इस क्षण का ईश्वर
(आँसू
प्याज़ के?)
ऐश्वर्य में
उसे भी नहीं मालूम
वह भी नहीं जानता
प्रतीक्षा है वह
जिसकी प्रतीक्षा
होना अभी शेष है
शेष है
अभी इस नक्षत्र पर।
No comments:
Post a Comment