राधास्वामी!
07-02-2022-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
होली के दिन आये सखी । उठ खेलो फाग नई॥१॥ दया धार आये सतगुरु प्यारे । प्रेम का रंग बही॥२॥ भक्ति दान फगुआ दिया सब को ।
प्रीति जगाय दई।।३।।
बिरह गुलाल अबीर तड़प का ।
मन पर डाल दई॥४॥ उमँग रंग भर भर अब घट में।
गुरु पर छिड़क दई॥५॥ आओ सखी अब सोच न कीजे ।
चरनन लिपट रही॥६॥
दया दृष्टि अब सतगुरु डारी।
अंतर भीज रही।।७॥ दरशन करत हुई मतवारी।
सुध बुध बिसर गई।।८।। नैनन की पिचकार छुड़ावत । तिल में उलट गई॥९॥ सहसकँवल चढ़ जोत जगाई।
संख बजाय रही॥१०॥ लाल गुलाल रूप गुरु देखा । त्रिकुटी जाय रही॥११॥ चंद्र रूप लख निरखी गुफा। जहाँ मुरली बाज रही॥१२॥ सत्तलोक जाय पुरुष रूप लख ।
अचरज कौन कही॥१३॥ हंसन से मिल खेली होली।बीन बजाय रही ।।१४॥
प्रेम रंग की बरषा कीनी । अमृत धार बही ।।१५॥ अलख अगम से भेंटा करके।
राधास्वामी चरन पई॥१६॥ अचरज रूप निरख हिये दिरगन ।
छिन छिन रीझ रही॥१७॥
अद्भुत शोभा रूप अनूपा ।
निरखत मगन भई ॥१८॥ महिमा राधास्वामी बरनी न जाई ।
हिया जिया वार रही॥१९॥
ऐसी होली खेल राधास्वामी से।
अचल सुहाग लई।।२०।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-7- पृ.सं.297,298,299)
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