Monday, August 29, 2022

❤️❤️कृष्ण 🙏🙏 / ओशो

 कृष्ण जैसे व्यक्ति किसी काम के लिए नहीं जीते।

निश्चित ही जिस रास्ते वे गुजरते हैं उस रास्ते पर अगर कांटे पड़े हों तो हटा देते हैं। यह भी उनके आनंद का हिस्सा है। लेकिन कृष्ण उस रास्ते से कांटों को हटाने के लिए नहीं निकले थे। निकले थे और कांटे पड़े थे तो वे हटा दिए हैं।

जिंदगी हमारे हाथों में है। और कृष्ण जैसे लोगों के तो बिलकुल हाथों में है। वे जैसे जीना चाहते हैं, वैसा ही जीते हैं। न कोई समाज, न कोई परिस्थिति, न कोई बाहरी दबाव उसमें कोई फर्क ला पाता है। उनका होना अपना होना है।

कृष्ण कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आऊंगा।

यह वही व्यक्ति कह सकता है, जो परम स्वतंत्र हो। आप तो नहीं कह सकते कि जब-जब ऐसा होगा, मैं आऊंगा। आप यह भी नहीं कह सकते कि अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं नहीं आऊंगा। हमारा आना बंधा हुआ आना है। लंबे कर्मों का बंधन है हमारा।

कृष्ण भलीभांति जानते हैं कि मारने से कुछ मरता नहीं। दुष्ट का अंत तभी होता है जब उसे साधु बनाया जा सके, और कोई उपाय नहीं। मारने से दुष्ट का अंत नहीं होता। इससे सिर्फ दुष्ट का शरीर बदल जाएगा, और कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। दुष्ट का अंत एक ही स्थिति में होता है, जब वह साधु हो जाए।

समस्त जीवन का नाम विष्णु है।

विष्णु के अवतार का मतलब यह नहीं है कि विष्णु नाम के व्यक्ति राम में हुए, फिर कृष्ण में हुए, फिर किसी और में हुए। नहीं, विष्णु नाम की ऊर्जा राम में उतरी, कृष्ण में उतरी, सब में उतरती है, उतरती रहेगी।

शंकर नाम की ऊर्जा है, उसे विदा देती रहेगी।

कृष्ण के ओंठों पर बांसुरी संभव हो सकी, क्योंकि वह लंबी धारा में अपने को छोड़े हुए आदमी हैं।

नदी जहां ले जाती है, जाने को राजी हैं।

अगर मथुरा के घाट से छूट गया सब तो द्वारका में घाट बन जाएगा, हर्ज क्या है? 

अनाग्रहशील व्यक्तित्व का वह लक्षण है।


#कृष्ण_जन्माष्टमी_की_शुभकामनाएं🙏

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