Wednesday, August 17, 2022

अभिव्यक्ति या विरोध की यह कैसी आजादी? / पवन तिवारी

 मित्रों अभिव्यक्ति की आजादी और असहिष्णुता की बात करने वालों के साथ बाकायदा एक चर्चा सत्र होना चाहिए और उनसे उस चर्चा में उनके प्रश्नों के उत्तर के साथ कुछ निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर भी पूछे जाने चाहिए


1) आज तक 1004 लेखको को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है । 

2) जिसमे से 25 लेखको ने ही प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पुरस्कार लौटाने की बात की है ।जबकि कुछ न्यूज़ चैनल इसे दिखा ऐसे रहे है।जैसे कितनी बड़ी त्रासदी आ गयी हो । 

3) 25 लेखको में से भी केवल 8 ने ही पुरस्कार लौटाने के लिए अकादमी को चिठ्ठी लिखी है ।बाकि ने तो सिर्फ चैनलों के माध्यम से बात ही कही है लौटाने की ।जैसे धमका रहें हो। 

4) 8 में से भी केवल 3 ने ही 1 लाख रुपये का चेक लौटाया है जो पुरस्कार के साथ मिलता है । अब जरा ये जानने का प्रयास किया जाये के इस पुरस्कार को लौटाने का कारण क्या है । लेखको के अनुसार जबसे केंद्र में ये सरकार बनी है ।तब से देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा है । क्या ये सच है । देखते हैं ।

साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले लेखक तथा उनका सत्य ।


1) नयनतारा सहगल जवाहर लाल नेहरू की भांजी को पुरस्कार मिला 1986 में 

सवाल - क्या पुरस्कार पाने के 29 वर्षों में भारत में राम राज्य था । 1984 के दंगों में 2800 सिख मरे और केवल 2 साल बाद ही पुरस्कार मिला पर लौटाने के बजाय चुपचाप रख लिया ।

2) उदय प्रकाश को वर्ष 2010 में साहित्य पुरस्कार मिला

सवाल - वर्ष 2013 में डाभोलकर की हत्या के बाद पुरस्कार क्यों नहीं लौटाया ।

3) अशोक वाजपेयी को वर्ष 1994 में पुरस्कार मिला ।

सवाल - क्या वर्ष 1994 से वर्ष 2015 तक देश में राम राज्य था ।

4) कृष्णा सोबती को वर्ष 1980 में पुरस्कार मिला । 

 सवाल - वर्ष 1984 के सिख दंगो के वक़्त भावनाएँ आहत क्यों नहीं हुईं ।

5) राजेश जोशी को वर्ष 2002 में पुरस्कार मिला 

 सवाल - क्या इतने वर्षों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाये नहीं हुईं ।

आइये अब कुछ और तथ्य जानें ।

 वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2015 तक सांप्रदायिक हिंसा की 4346 घटनायें हुईं। मतलब वर्ष 2009 से लेकर प्रति दिन औसतन सांप्रदायिक हिंसा की 2 घटनाये हुईं। 

 वर्ष 2013 के मुज्जफरनगर दंगो में 63 लोगो की जान गयी। 

 वर्ष 2012 के असम दंगो में 77 लोग मारे गए ।

 वर्ष 1984 के सिख दंगो में 2800 लोग मारे गए थे ।

 वर्ष 1990 से कश्मीरी पंडितों की 95 प्रतिशत आबादी को कश्मीर छोड़ना पड़ा था ।करीब 4 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से निकाल दिया गया और उन्हें देश के अन्य शहरो में रहने को मजबूर होना पड़ा ।

 अगस्त 2007 हैदराबाद में लेखिका तस्लीमा नसरीन के साथ बदसलूकी की गयी । और उसके खिलाफ फतवा जारी किया गया । और कोलकाता आने से भी रोका गया ।

वर्ष 2012 सलमान रुश्दी को जयपुर आने नहीं दिया गया ।रुश्दी को वीडियो लिंक के जरिये भी बोलने नहीं दिया गया ।    एक लेखक या बुध्धिजीवी के दो अलग पैमाने कैसे हो सकते हैं.

इससे पता चलता है कि ''अभिव्यक्ति की आजादी और असहिष्णुता'' एक  सुनियोजित  मेगाइवेंट है.एक चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के लिए जो इनके अनुरूप नहीं है. ''जो इनके अनुरूप नहीं है'' बस एक मात्र कारण से ये इतना बड़ा मेगाइवेंट कर रहे हैं वास्तव में ये सरकार ही सबसे ज्यादा असहिष्णुता की शिकार है

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