देव सूर्यमंदिर की ऐतिहासिकता आज भी प्रासंगिक और चर्चित : सुरेश चौरसिया
देव सूर्यमंदिर की ऐतिहासिकता आज भी प्रासंगिक और चर्चित : सुरेश चौरसिया
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देव सूर्यमंदिर को लेकर अनेक गाथाएं प्रचलित है। विशालकाय देव सूर्यमंदिर त्रेतायुग से लेकर वर्तमान समय में भी अपनी आकर्षणता व कला के लिए दुनिया में विख्यात है, तो भक्तों के लिए मनोवांछित वरदान देनेवाला है। भगवान सूर्य इस मंदिर में अपने तीनों स्वरूपों ब्रह्मा, विष्णु व महेश के रूप में विराजमान हैं।
सूर्य मंदिर के पत्थरों में विजय चिन्ह व कलश अंकित हैं। ये विजय चिन्ह इस बात का प्रमाण माना जाता है कि शिल्प के कलाकार ने सूर्य मंदिर का निर्माण कर के ही शिल्प कला पर विजय प्राप्त की थी। देव सूर्य मंदिर के स्थापत्य से प्रतीत होता है कि मंदिर के निर्माण में उड़िया स्वरूप नागर शैली का समायोजन किया गया है। नक्काशीदार पत्थरों को देखकर भारतीय पुरातत्व विभाग के लोग मंदिर के निर्माण में नागर एवं द्रविड़ शैली का मिश्रित प्रभाव वाली वेसर शैली का भी समन्वय बताते हैं। मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल तथा अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही वहां अदभुद शिल्प कला वाली दर्जनों प्रतिमाएं हैं। मंदिर में शिव के जांघ पर बैठी पार्वती की प्रतिमा है। सभी मंदिरों में शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसलिए शिव पार्वती की यह दुर्लभ प्रतिमा श्रद्धालुओं को खासी आकर्षित करती है।
मंदिर के शिखर पर स्थापित स्वर्ण कलश की चमक आज भी फीकी नहीं पड़ी है। कहा जाता है कि कभी दो चोर स्वर्ण कलश को चुराने के लिए मंदिर पर चढ़ रहे थे, की मंदिर के आधे हिस्से पर पहुँचते ही पत्थर बन गए। जिसे लोग अंगुलियों से दिखाकर अपने परिजनों को बताते हैं।
देव में सूर्यकुंड से सूर्यमंदिर तक कितने ही भक्त लेट - लेट कर दंडवत करते लोग श्रद्धा से पहुंचते हैं और उनकी जयघोष वातावरण में गूंज उठता है।
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