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तमोगुणी मनुष्य सबसे अधिक बंधन में रहता है। उसमें महत्त्वाकांक्षा नहीं होती और जो भी थोड़ा-सा उसे मिल जाए उससे वह संतुष्ट रहता है। उसमें आत्म-नियंत्रण नहीं होता इसलिए वह सदा परिस्थितियों के अधीन होकर जीता है। स्वतंत्र चिंतन न कर पाने के कारण वह सदा मानसिक बंधन में भी रहता है। हमारे बीच अनेक मान्यताएँ केवल इसलिए चली आ रही हैं कि किसी ने उनके बारे में प्रश्न उठाने का सोचा ही नहीं। अधिकतर धार्मिक मान्यताएँ केवल इसलिए सैकड़ों - हज़ारों वर्षों तक चलती रहती हैं कि धर्मों के अनुयायी अपनी तामसिक मनोवृत्तिा के कारण उनके बारे में सोचना ही नहीं चाहते। शारीरिक आलस्य के समान मानसिक आलस्य भी मनुष्य को दास बनाता है।
प्रकृति के ये तीन गुण निरन्तर परिवर्तनशील रहते हैं। आज तमोगुण के प्रभाव के कारण आलसी रहनेवाला मनुष्य कल रजोगुण के प्रबल हो जाने पर चंचल प्रकृति का हो सकता है। दूसरी ओर बहुत लालची और क्रूर स्वभाव का व्यक्ति सत्त्वगुण के प्रभाव में आकर सर्वथा शान्त और अहिंसक जीवन बिताने लग सकता है। अपने ही अन्दर हम देखते हैं कि प्रयास करने पर भी हमारा चित्ता कभी एक जैसी अवस्था में नहीं रहता। कभी हमारे अन्दर आलस्य प्रबल होता है तो कभी हमारा मन बहुत चंचल हो उठता है।
साथ ही, कभी - कभी अप्रत्याशित रूप से गहरी शांति की अनुभूति भी हमें होती है। यह सब प्रकृति के गुणों में परिवर्तन के कारण होता है।
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