प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
*मीराबाई कृष्णप्रेम में डूबी, पद गा रही थी , एक संगीतज्ञ को लगा कि वह सही राग में नहीं गा रही है!*
*वह टोकते हुये बोले: "मीरा, तुम राग में नहीं गा रही हो।*
*मीरा ने बहुत सुन्दर उत्तर दिया: "मैं राग में नहीं, अनुराग में गा रही हूँ।*
*राग में गाउंगी तो दुनियां मुझे सुनेगी*
*अनुराग में गाउंगी तो मेरा कान्हा मुझे सुनेगा।*
*मैं दुनियां को नही, अपने श्याम को रिझाने के लिये गाती हूँ।*
*रिश्ता होने से रिश्ता नहीं बनता,*
*रिश्ता निभाने से रिश्ता बनता है।*
*"दिमाग" से बनाये हुए "रिश्ते"*
*बाजार तक चलते है,,,!*
*"और "दिल" से बनाये "रिश्ते"*
*आखरी सांस तक चलते है,*.
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