राधास्वामी!
04-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
प्रीति गुरु हिये में बसाय रही ।
नाम गुरु छिन छिन गाय रही॥१॥
बचन गुरु सुनत मनन कीना।
उलट घट माहि जतन कीना॥२॥
सुरत और शब्द भेद पाया।
रूप गुरु प्रेम सहित ध्याया॥३॥
जगत का थोथा है ब्योहार।
फँसा जो इसमें रह गया वार॥४॥
खोज सतगुरु का जो जन कीन।
चरन में भक्ती कर हुए लीन॥५॥
सोई जन उतरे भौजल पार।
मेहर राधास्वामी पाई सार॥६॥
भाग मेरा अचरज उठ जागा।
चरन गुरु धारा अनुरागा॥७॥
पड़ी थी जग में महा अचेत।
खेंच लिया चरनन में दे हेत॥८॥ *
●●कल से आगे-30-04-2022-●●
गुरू का जब से सतसँग कीन।
बचन सुन हुई मैं दीन अधीन॥९॥
भाव जग चित से दीना छोड़।
मोह माया का नाता तोड़॥१०॥
काल और करम लगे दुख देन।
देत नहिं सतसँग का सुख लेन॥११॥
रोग और भोग झुमाय रहे।
बिघन अस मोहि घुमाय रहे॥१२॥
भरम और संशय बहु भरमात।
काल गत कुछ नहिं बरनी जात॥१३॥
सरन मैं राधास्वामी दृढ़ करती।
भरोसा मन में दृढ़ धरती॥१४॥
मेहर बिन बस नहिं चाले मोर।
रही मैं गुरु चरनन चित जोड़॥१५॥
दया कर काटें राधास्वामी जाल।
काल मोहि कीना अति बेहाल॥१६॥
परम गुरु हूजे आज सहाय।
दुखन से लीजे बेग बचाय॥१७॥
बचन और दरशन पाऊँ सार।
गाऊँ गुन तुम्हरा बारम्बार॥१८॥
चरन में लीना तुमहिं लगाय।
बहुरि तुम आपहि करो सहाय॥१६॥
सुनो मेरी बिनती दीनदयाल।
दरस दे मुझको करो निहाल॥२०॥
शब्द की दीजे दृढ़ परतीत।
चरन में दृढ़ कर जोड़ूँ चीत॥२१॥
ध्यान गुरु रूप हिये धारूँ ।
रूप रस चाखत जिया वारूँ ॥२२॥
सुरत सँग घट में देख बहार।
जाऊँ तुम चरनन पर बलिहार॥२३॥
आरती हित से कर में धार।
प्रेम सँग गाऊँ तन मन वार॥२४॥
परम गुरु राधास्वामी हुए दयार।
काज किया पूरन किरपा धार॥२५॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-80- पृ.सं.377,378,379)*
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