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किसन बाबूराव हज़ारे (जन्म: 15 जून, 1937),
भारत के एक प्रसिद्ध
गांधीवादी विचारधारा के
सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अधिकांश लोग उन्हें
अन्ना हज़ारे (
मराठी: अण्णा हज़ारे) के नाम से ही जानते हैं। सन् १९९२ में उन्हें
पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
सूचना के अधिकार के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे। साफ-सुथरी छवि वाले हज़ारे,
भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये प्रसिद्ध हैं।
जन लोकपाल विधेयक
को पारित कराने के लिये अन्ना ने १६ अगस्त २०११ से आमरण अनशन आरम्भ किया
है, जिसे जनता से अपार समर्थन मिल रहा है जिससे घबराकर भारत सरकार भी उनकी
मांगों पर विचार करने को राजी हो गयी है।
अन्ना हज़ारे का जन्म 15 जून, 1937 को
महाराष्ट्र के
अहमदनगर के
भिंगार गांव के एक किसान परिवार में हुआ था । उनके पिता का नाम बाबूराव हज़ारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हज़ारे था।
[1]
उनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे। दादा फौज में। दादा की
तैनाती भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पुरखों का गांव अहमद नगर जिले में ही
स्थित
रालेगन सिद्धि
में था। दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया। अन्ना
के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई
ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। परिवार पर कष्टों का बोझ देखकर
वह दादर स्टेशन के बाहर एक फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रुपये की पगार
में काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने
दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल
होने की अपील पर अन्ना 1963 में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के
रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली तैनाती पंजाब में हुई। 1965 में
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हज़ारे खेमकरण सीमा पर तैनात थे। 12
नवंबर 1965 को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक
मारे गए।
[2]
इस घटना ने अन्ना की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने
सेना में १३ और वर्षों तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी
हुई। १९७५ में जम्मू में तैनाती के दौरान सेना में सेवा के १५ वर्ष पूरे
होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। वे पास के गाँव रालेगन
सिद्धि में रहने लगे और इसी गाँव को उन्होने अपनी सामाजिक कर्मस्थली भी बना
लिया।
१९६५ के युद्ध में मौत से साक्षात्कार के बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्होंने
स्वामी विवेकानंद
की एक पुस्तक 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' देखा और खरीद लिया। इसे पढ़कर उनके
मन में भी अपना जीवन समाज को समर्पित करने की इच्छा बलवती हो गई। उन्होंने
महात्मा गांधी और विनोबा भावे की पुस्तकें भी पढ़ीं। 1970 में उन्होंने
आजीवन अविवाहित रहकर स्वयं को सामाजिक कार्यों के लिए पूर्णतः समर्पित कर
देने का संकल्प कर लिया।
मुम्बई पदस्थापन के दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। वे वहाँ
चट्टान पर बैठकर गांव को सुधारने की बात सोचा करते थे। १९७५ में स्वैच्छिक
सेवा निवृत्ति लेकर रालेगन आकर उन्होंने अपना सामाजिक कार्य प्रारंभ कर
दिया। इस गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी। अन्ना ने गांव वालों
को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित
किया और ख़ुद भी इसमें योगदान दिया। अन्ना के कहने पर गांव में जगह-जगह
पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की
गई।
[3]
उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी और अपनी पेंशन का
सारा पैसा गांव के विकास के लिए समर्पित कर दिया। वे गांव के मंदिर में
रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते
हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां
से चारा, दूध आदि जाता है। यह गांव आज शांति ,सौहर्द एवं भाईचारे की मिसाल
है।
[संपादित करें] महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन १९९१
१९९१ में अन्ना हज़ारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ
'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की। ये
मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अन्ना ने उन पर आय
से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत
कोशिश की, लेकिन अंतत: उसे दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर
को हटाना ही पड़ा।
[4]
घोलाप ने अन्ना के खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा दायर दिया। अन्ना अपने आरोप
के समर्थन में न्यायालय में कोई सबूत पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने
की जेल हो गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत
के बाद छोड़ दिया। एक जाँच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को
निर्दोष बताया। लेकिन अन्ना हज़ारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी
भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए।
[संपादित करें] सूचना का अधिकार आंदोलन १९९७-२००५
1997 में अन्ना हज़ारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई
के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया। 9 अगस्त, 2003 को मुंबई के आजाद
मैदान में ही अन्ना हज़ारे आमरण अनशन पर बैठ गए। 12 दिन तक चले आमरण अनशन
के दौरान अन्ना हज़ारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन
मिला। आख़िरकार 2003 में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के एक मज़बूत
और कड़े मसौदे को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन
का रूप ले लिया। इसके परिणामस्वरूप 12 अक्टूबर 2005 को भारतीय संसद ने भी
सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया।
[5]
अगस्त 2006, में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ
अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। इसके
परिणामस्वरूप, सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया।
[संपादित करें] महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन 2003
2003 में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों; सुरेश
दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर
उनके ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र
सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से
त्यागपत्र दे दिया। आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्हें
भी त्यागपत्र देना पड़ा।
[1]
[संपादित करें] लोकपाल विधेयक आंदोलन २०११
देखें मुख्य लेख
जन लोकपाल विधेयक आंदोलन जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी यह आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में ५ अप्रैल २०११ को समाजसेवी
अन्ना हज़ारे एवं उनके साथियों के
जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ, जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता
अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी
किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील
प्रशांत भूषण,
आदि शामिल थे। संचार साधनों के प्रभाव के कारण इस अनशन का प्रभाव समूचे
भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने
भारत सरकार
से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी
माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु
मनमोहन सिंह
के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और
इसकी उपेक्षा की। इसके परिणामस्वरूप शुरु हुए अनशन के प्रति भी उनका रवैया
उपेक्षा पूर्ण ही रहा। किंतु इस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर भारत सरकार
ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और १६ अगस्त तक
संसद
में लोकपाल विधेयक पारित कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए
मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल
के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हज़ारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि १६
अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई। १६ अगस्त को सुबह साढ़े सात
बजे जब वे अनशन पर जाने के लिए तैयारी कर रहे थे, उन्हें दिल्ली पुलिस ने
उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया। उनके टीम के अन्य लोग भी गिरफ्तार कर
लिए गए। इस खबर ने आम जनता को उद्वेलित कर दिया और वह सड़कों पर उतरकर
सरकार के इस कदम का अहिंसात्मक प्रतिरोध करने लगी। दिल्ली पुलिस ने अन्ना
को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। अन्ना ने रिहा किए जाने पर दिल्ली से
बाहर रालेगाँव चले जाने या ३ दिन तक अनशन करने की बात अस्वीकार कर दी।
उन्हें ७ दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। शाम तक
देशव्यापी प्रदर्शनों की खबर ने सरकार को अपना कदम वापस खींचने पर मजबूर कर
दिया। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया। मगर
अन्ना अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। बिना किसी शर्त के अनशन करने की अनुमति
तक उन्होंने रिहा होने से इनकार कर दिया। 17 अगस्त तक देश में अन्ना के
समर्थन में प्रदर्शन होता रहा। दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोग
डेरा डाले रहे। 17 अगस्त की शाम तक दिल्ली पुलिस रामलीला मैदान में और 7
दिनों तक अनशन करने की इजाजत देने को तैयार हुई। मगर अन्ना ने 30 दिनों से
कम अनशन करने की अनुमति लेने से मना कर दिया. उन्होंने जेल में ही अपना
अनशन जारी रखा। अन्ना को राम्लीला मैदान मै १५ दिन कि अनुमति मिलि,और अब १९
अगस्त से श्री अन्ना राम लीला मेदान मै जन लोकपाल बिल के लिये आनशन जारी
रखने पर दृढ़ है| आज २४ अगस्त तक तीन मुद्दओ पर सरकार से सहमति नही बन पायी
है| अनशन का आज दसवाँ दिन है | आज 26 अगस्त है फिर भी सरकार अन्ना जी का
अन्शन समापत नही करवा पाए |
[संपादित करें] व्यक्तित्व और विचारधारा
गांधी की विरासत उनकी थाती है। कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर
गांधी टोपी और बदन पर खादी है। आंखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक
दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। महात्मा गांधी के बाद अन्ना हज़ारे ने
ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया
है। इसके जरिए उन्होंने भ्रष्ट प्रशासन को पद छोड़ने एवं सरकारों को
जनहितकारी कानून बनाने पर मजबूर किया है। अन्ना हज़ारे को आधुनिक युग का
गान्धी भी कहा जा सकता है अन्ना हज़ारे हम सभी के लिये आदर्श है ।
अन्ना हज़ारे गांधीजी के ग्राम स्वराज्य को भारत के गाँवों की समृद्धि
का माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि ' बलशाली भारत के लिए गाँवों को
अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से
वितरित न हो पाने का कारण रहा गाँवों को केन्द्र में न रखना.
व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के
गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया, और एक गाँव से
आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण
के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध
आचार-विचार, निष्कलंक जीवन व त्याग की भावना विकसित करने व निर्भयता को
आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान
किया है।
- समाचार एवं लेख
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यह लेख एक उचित लेख है। ये हिन्दी विकिपीडिया पर ज्ञानकोष की शैली के अनुरुप लेखो में से एक है। |
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