प्रकाशन :रविवार, 28 अगस्त 2011 kgxbj
कुंवर बैचेन
कुंवर बैचेन
कुँवर बेचैन
जो हृदय-तल में छुपा था,
वह उमड़कर प्यार आया।
श्वास हर प्रश्वास में तुम
धड़कनों की प्यास में तुम,
नयन के द्वारे तुम्हीं हो
हृदय के आवास में तुम।
हाथ में जैसे किसी के
कीमती उपहार आया,
तुम मिले तो ज्वार आया।
खुशबुओं में घुल गए तुम
फूल से खिल-खुल गए तुम,
ज्योति के पूरे गगन में
धूप जैसे धुल गए तुम।
एक उजला दिन हमारी
जिंदगी के द्वार आया,
तुम मिले तो ज्वार आया।
क्यों न तन-मन को सजाऊँ
क्यों न नाचूँ क्यों न गाऊँ,
दूर तक डुबकी लगाऊँ
क्यों न जल में भीग जाऊँ।
युग-युगों के बाद
मोहक प्रीति का त्योहार आया,
तुम मिले तो ज्वार आया।
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