एक राजा के राजमहल में एक नौकर था | उसकी चोरी करने की आदत थी | राजमहल में छोटी-मोटी चीजों पर अक्सर वह अपने हाथ की
सफाई दिखा ही दिया करता था | हालांकि
वह खुद तो छोटा चोर था पर उसकी दिली आकांक्षा थी कि उसका बेटा नामी चोर बने |
एसा चोर बने जिसकी चोरी की बाते चलें
| यही सोच उसने अपने बेटे को भी चोरी की
कला का प्रशिक्षण दिया कई सारे चोरी के गुर सिखाये | फिर भी उसे तसल्ली नहीं थी कि पता नहीं उसका बेटा
नामी चोर बन पायेगा या नहीं,क्योंकि वह खुद भी बूढ़ा हुआ जा रहा था | बेटा बड़ा हुआ तो वह भी राजमहल में बाप के साथ काम पर जाने लगा |
एक बार वह बूढ़ा चोर बीमार पड़ गया | खाट में पड़े पड़े भी उसे चैन नहीं,एकदम उदास | बेटे ने पूछा - "पिताजी आपको क्या दुःख है ? जो आप इतने उदास है |"
बूढ़े ने कहा - " बेटे मैं तो अब मृत्यु के करीब हूँ | मेरे मन की आकांक्षा थी कि तू बहुत बड़ा चोर बने ,तेरी चोरी की बाते वर्षों तक चले | मरने से पहले एक बार तुझे कोई नामी चोरी करते देख लेता तो मेरा जीवन सफल हो जाता |"
"बस इतनी सी बात | आप दुखी ना होयें | मैं आज ही राजा के पलंग के पायों के नीचे रखी सोने की ईंटे चुराकर आपको दिखाता हूँ |"
बेटे की बात सुनते ही बूढ़े चोर की आँखों में रौशनी चमक गयी | उसे अपनी बीमारी का भान ही नहीं रहा और वह उठ खड़ा हुआ बोला-" बेटा ! मैं भी साथ चलूँगा, तुझे इतनी बड़ी चोरी करते हुए आँखों से देखूंगा |"
दोनों बाप बेटे काला कम्बल ओढ़कर राजमहल की और चल दिए | रात्री के बारह बजे, बारह बजते ही महल की घडी ने चौबीस टंकारे बजाये | उन टंकारों के साथ साथ दीवार पर कीले ठोकता हुआ चोर का बेटा उनके सहारे महल पर जा चढ़ा | पीछे पीछे उसका बाप | दोनों महल में दाखिल हो गए और राजा के शयन कक्ष के पास पहुंचे | देखा मंद रौशनी में राजा पलंग पर सो रहा है पलंग के चारों
पायों के नीचे चार सोने की ईंटे पड़ी है | पलंग के पास एक व्यक्ति बैठा राजा को कहानी सुना रहा है और राजा नींद में ऊंघता हुआ हुंकारे दे रहा है |
चोर ने ऐसी सफाई से तलवार चलाई कि कहानी कहने वाली गर्दन टक से कट गयी और चोर खुद उसकी जगह बैठ नींद में उंघते राजा को कहानी सुनाने लगा -
" एक बार एक राजा के महल में एक चोर चोरी करने घुस आया | राजा सोते हुए कहानी सुन रहा था |"
राजा ने नींद में उंघते हुए हुंकारा दिया - "हूँ |"
चोर - " चोर ने राजा के कहानीकार का सर काट दिया फिर एक पैर काटा और राजा के पलंग के पाए के नीचे दे एक ईंट निकल ली |
राजा नींद में बोला - "फिर ?"
चोर- " फिर चोर ने दूसरा पैर काटा उसे पलंग के दुसरे पाए के नीचे लगाकर दूसरी सोने की ईंट निकाल ली |"
राजा ने फिर हुंकारा देते हुए कहा- " हूँ फिर ?"
चोर- " फिर चोर ने कहानीकार का एक हाथ काटा और पलंग के तीसरे पाए के नीचे दे तीसरी सोने की ईंट निकाल ली |"
राजा - "हूँ फिर ?"
चोर - "फिर चोर ने उसका दूसरा हाथ काटा पलंग के पाए के नीचे दे चौथी सोने की ईंट भी निकाल ली |"
राजा - फिर ?"
चोर - "फिर क्या राजा ! चारों सोने की ईंटे निकाल ली और ये गया चोर | जो करना है वो कर लेना |"
ये सुनते ही राजा एकदम से नींद से उठ खड़ा हुआ और चोर के पीछे भागा | चोर तो खिड़की से बाहर निकल चूका था पर उसका बाप जैसे निकलने लगा राजा ने पीछे से उसकी टाँगे पकड़ ली | अब राजा तो बूढ़े के पैर खेंचे और बेटा उसके हाथ | इसी खेंचतान में बूढ़ा अपने बेटे से बोला -" खेंचतान मत कर मारा जायेगा | मैंने तुझे बड़ी चोरी करते हुए देख लिया है अब मेरा जीवन सफल हो चूका है सो तूं मेरा सिर काटकर लेजा ताकि हम पकड़ में ना आये |"
चोर ने यही किया अपने बाप का सिर काट ले गया | धड़ राजा के पास रह गयी | राजा को बड़ा गुस्सा आया कि मेरे पलंग के पायों के नीचे दबी सोने की ईंटे चोर निकाल ले गया तो फिर जनता की तो हो गयी सुरक्षा |
दुसरे दिन बेटे ने तो चौराहे पर पोस्टर लगा दिया -" नगर में खापरियो चोर आ चूका है और जैसी आज करी वैसी कल भी करेगा |"
राजा ने अपने प्रधान व सामंतो से सलाह की - " कि चोर की धड़ का दाहसंस्कार कर देना चाहिए और श्मशान पर पहरा बिठा देना चाहिए क्योंकि अपने आपको बहादुर समझने वाला चोर इस बूढ़े चोर के सिर का दाहसंस्कार करने अवश्य आएगा |"
नगर कोतवाल ने धड़ का दाहसंस्कार कर श्मशान पर पहरा बिठा दिया | चोर ने फकीर का भेष बनाया, बहुत सा आटा लगाकर उसका उसमे बाप का सिर दबा एक मोटी बाटी बनायीं और श्मशान की और चल दिया,श्मशान में पहुँच बाटी को श्मशान की आग में सकने के लिए दबा दिया |
पहरे वालों ने टोका तो बोला - " मैं तो एक मस्त फकीर हूँ यहाँ अपनी बाटी सकने रुक गया,श्मशान की आग पर भी रोक है क्या ?"
पहरे वालों ने सोचा फकीर है,रोटी बाटी सेक लेगा तो अपना चला जायेगा,सकने दो |
आग में सिर दबाने के थोड़ी देर में सिर का भी दाहसंस्कार हो गया | तब फकीर बना चोर पहरेदारों के पास गया बोला -" आप मेरी बाटी का ध्यान रखना मैं नमक मिर्च लेकर आता हूँ |"
एसा कह चोर तो अपने घर आ गया | पहरे वालों ने देखा न तो फकीर आया न खपरिया चोर आया तो उन्होंने श्मशान की आग को जाकर देखा उन्हें बाटी के स्थान पर चोर का सिर जलता हुआ दिखाई दिया |
सुबह राजा को खबर पहुंची कि चोर ने तो पहरेदारों को बेवकूफ बना सिर का भी दाहसंस्कार कर दिया सो राजा ने कोतवाल को बुला डांटते हुए कहा कि- "जो सिर का दाहसंस्कार करने आ सकता है तो तीसरे दिन उसकी अस्थियाँ चुनने भी जरुर आएगा सो इस बार तुम खुद श्मशान पर पहरा देना और उसे पकड़ लेना |"
चोर तो खुद दिन में महल में ही रहता था ,राजा की बात सुनने के बाद उसने भी निश्चय कर लिया कि अपने बाप की अस्थियाँ चुनने वह जरुर जायेगा |
रात का अँधेरा होते ही चोर ने स्त्री वेश धारण कर एक आटे का लोथड़ा बना,उसे कपडे में लपेट गोद में ले जैसे बच्चे को लेते है ,साथ में लड्डुओं से भरी थाली ले की श्मशान की और चल पड़ा | पहरे पर तैनात खुद कोतवाल ने उसे रोका -
"तूं कौन है ? इस वक्त श्मशान में क्या करने जा रही है ?"
औरत ने हाथ जोड़कर बोला- " माई बाप ! बड़ी मुस्किल से भैरव देवता की मेहरबानी से मेरी गोद भरी है | इससे पहले मेरे चार बच्चे चलते रहे अब इसे नहीं खोना चाहती,श्मशान में भैरव को खुश करने का एक टोटका करना है | श्मशान की राख से सात कंकर इसके सिर पर फेरने है बस |"
एसा कह औरत ने लड्डुओं से भरी थाली पहरे वालों की और करदी | सभी पहरे वाले लड्डू खाने ले लग गए तब तक स्त्री वेश में चोर ने अपने बाप की अस्थियाँ चुन ली | आटे के लोथड़े को श्मशान में रख औरत कोतवाल के पास पहुंची -
" माई बाप ! छोरे को अभी वहीँ सुलाया है मैं पूरी श्मशान भूमि की परिक्रमा कर अभी आई |" कह चोर ने तो सीधा अपने घर का रास्ता पकड़ा |
उधर जब औरत बहुत देर बाद भी नहीं लौटी तो पहरे वालों ने श्मशान में जाकर देखा,बच्चे की जगह आटे का बनाया लोथड़ा पड़ा था | कोतवाल समझ गया वो औरत के वेश में खापरिया चोर ही था | पर अब क्या हो चोर ने तो कोतवाल की नाक ही काट दी |
सुबह राजा को खबर पहुंची | राजा बहुत गुस्सा हुआ | कोतवाल तो बेकार है इसे नौकरी से निकाल दो का हुक्म हो गया | और राजा ने अब अपने ख़ास सरदारों को बुला खापरिया चोर को पकड़ने के अभियान पर लगा दिया |
साँझ पड़ते ही राजा के सभी खास सामंत सरदार हाथों में नंगी तलवारें ले " खबरदार ,ख़बरदार करते हुए नगर की गलियों में चोर को पकड़ने हेतु पहरे पर निकले | चोर ने डाकोत (ज्योतिषी) का वेश बनाया हाथ में पोथी पत्रे लिए और पहरे वाले सरदारों के घर पहुंचा,औरते अपनी गृहदशा पूछने लगी तो ज्योतिषी बने चोर अपनी पोथी पलते हुए,कुछ सोचते हुए,गणना करने का नाटक करते हुए बताया कि - " आज आप लोगों के घर पर अनिष्ट होने वाला है ,एक डाकी(प्रेत)आकर उपद्रव करेगा |"
औरतों ने उसे रोकने का उपाय पूछा |
फिर पोथी देखने का नाटक करते हुए ज्योतिषी ने बाताया कि -" अपने घरों पर पत्थर जमा करलो,हाथों में डंडे रखना और सब चोकस होकर जागते रहना | अपने घरों को अन्दर से अच्छी तरह से बंद रखना और छतों पर चढ़ कर चौकसी करना | जैसे ही आधी रात को राख से लिपटे नंग,धडंग डाकी आये तो छत से पत्थरों की वर्षा कर देना, पत्थरों की मार पड़ेगी तो डाकी अपने आप वापस भाग जायेंगे |"
सरदारों की औरतों को इस तरह समझा कर चोर वापस आया और एक ठेले पर चूल्हा रख उस पर कड़ाही चढ़ा चौराहे पर आकर बैठ बड़े निकालने लगा | पहरे वाले सरदारों ने आकर धमकाया -
"इस वक्त बड़े निकालने का हुक्म नहीं है ,भाग यहाँ से वरना तेरे ये सारे बड़े हम फैंक देंगे |"
चोर हाथ जोड़ते हुए बोला -" बापजी ! फेंकिये मत, एक बार मेरे बनाये बड़े चखिए तो सही,कितने स्वाद है |" और कहते कहते चोर ने दोने भर कर सभी सरदारों के आगे कर दिए | सरदारों ने जैसे बड़े चखे तो वे इतने स्वादिष्ट थे कि बार बार मांग कर खूब छक कर खा गए |
बड़े खाते ही सरदारों को तो नशा होने लगा और वे नशे में बेहोश होने लगे | चोर ने बड़े में भांग मिला दी थी | जैसे ही वे बेहोश हुए चोर ने एक एक कर सबके कपडे उतार लिए और उनके शरीर पर राख मलदी | और खुद अपने घर जाकर सो गया |
काफी रात गए जब सरदारों की बेहोशी टूटी और होश आया और अपनी हालत देखि तो अपने घरों की और भागने लगे |
आगे औरते डाकियों से मुकाबले को सजी हुई बैठे थी,शरीर पर राख मले अपने मर्दों को घर की तरफ आते देख औरतों ने सोचा डाकी आ गए,ज्योतिषी ने सही बताया था | और वे पत्थर वर्षा कर उन पर टूट पड़ी किसी को घर में नहीं घुसने दिया | सुबह का उजाला होते ही सरदारों को लोगों ने पहचाना अरे ये तो जोरावरसिंह जी ,अरे ये पर्वतसिंह जी, ये दलपतसिंह जी,ये फालना सिंह जी आदि आदि |
सब को अपने अपने घरों में घुसे | शर्म से किसी ने राजा को मुंह नहीं दिखाया | कौनसे मुंह से राजमहल जाकर राजा से मुजरा करे ?
पुरे नगर में खापरिये चोर की होशियारी की चर्चा होने लगी | खापरिये चोर ने तो नगर चौक पर फिर पोस्टर लगा दिया कि -" जैसी कल करी वैसी ही आज करूँगा |"
एक बार वह बूढ़ा चोर बीमार पड़ गया | खाट में पड़े पड़े भी उसे चैन नहीं,एकदम उदास | बेटे ने पूछा - "पिताजी आपको क्या दुःख है ? जो आप इतने उदास है |"
बूढ़े ने कहा - " बेटे मैं तो अब मृत्यु के करीब हूँ | मेरे मन की आकांक्षा थी कि तू बहुत बड़ा चोर बने ,तेरी चोरी की बाते वर्षों तक चले | मरने से पहले एक बार तुझे कोई नामी चोरी करते देख लेता तो मेरा जीवन सफल हो जाता |"
"बस इतनी सी बात | आप दुखी ना होयें | मैं आज ही राजा के पलंग के पायों के नीचे रखी सोने की ईंटे चुराकर आपको दिखाता हूँ |"
बेटे की बात सुनते ही बूढ़े चोर की आँखों में रौशनी चमक गयी | उसे अपनी बीमारी का भान ही नहीं रहा और वह उठ खड़ा हुआ बोला-" बेटा ! मैं भी साथ चलूँगा, तुझे इतनी बड़ी चोरी करते हुए आँखों से देखूंगा |"
दोनों बाप बेटे काला कम्बल ओढ़कर राजमहल की और चल दिए | रात्री के बारह बजे, बारह बजते ही महल की घडी ने चौबीस टंकारे बजाये | उन टंकारों के साथ साथ दीवार पर कीले ठोकता हुआ चोर का बेटा उनके सहारे महल पर जा चढ़ा | पीछे पीछे उसका बाप | दोनों महल में दाखिल हो गए और राजा के शयन कक्ष के पास पहुंचे | देखा मंद रौशनी में राजा पलंग पर सो रहा है पलंग के चारों
पायों के नीचे चार सोने की ईंटे पड़ी है | पलंग के पास एक व्यक्ति बैठा राजा को कहानी सुना रहा है और राजा नींद में ऊंघता हुआ हुंकारे दे रहा है |
चोर ने ऐसी सफाई से तलवार चलाई कि कहानी कहने वाली गर्दन टक से कट गयी और चोर खुद उसकी जगह बैठ नींद में उंघते राजा को कहानी सुनाने लगा -
" एक बार एक राजा के महल में एक चोर चोरी करने घुस आया | राजा सोते हुए कहानी सुन रहा था |"
राजा ने नींद में उंघते हुए हुंकारा दिया - "हूँ |"
चोर - " चोर ने राजा के कहानीकार का सर काट दिया फिर एक पैर काटा और राजा के पलंग के पाए के नीचे दे एक ईंट निकल ली |
राजा नींद में बोला - "फिर ?"
चोर- " फिर चोर ने दूसरा पैर काटा उसे पलंग के दुसरे पाए के नीचे लगाकर दूसरी सोने की ईंट निकाल ली |"
राजा ने फिर हुंकारा देते हुए कहा- " हूँ फिर ?"
चोर- " फिर चोर ने कहानीकार का एक हाथ काटा और पलंग के तीसरे पाए के नीचे दे तीसरी सोने की ईंट निकाल ली |"
राजा - "हूँ फिर ?"
चोर - "फिर चोर ने उसका दूसरा हाथ काटा पलंग के पाए के नीचे दे चौथी सोने की ईंट भी निकाल ली |"
राजा - फिर ?"
चोर - "फिर क्या राजा ! चारों सोने की ईंटे निकाल ली और ये गया चोर | जो करना है वो कर लेना |"
ये सुनते ही राजा एकदम से नींद से उठ खड़ा हुआ और चोर के पीछे भागा | चोर तो खिड़की से बाहर निकल चूका था पर उसका बाप जैसे निकलने लगा राजा ने पीछे से उसकी टाँगे पकड़ ली | अब राजा तो बूढ़े के पैर खेंचे और बेटा उसके हाथ | इसी खेंचतान में बूढ़ा अपने बेटे से बोला -" खेंचतान मत कर मारा जायेगा | मैंने तुझे बड़ी चोरी करते हुए देख लिया है अब मेरा जीवन सफल हो चूका है सो तूं मेरा सिर काटकर लेजा ताकि हम पकड़ में ना आये |"
चोर ने यही किया अपने बाप का सिर काट ले गया | धड़ राजा के पास रह गयी | राजा को बड़ा गुस्सा आया कि मेरे पलंग के पायों के नीचे दबी सोने की ईंटे चोर निकाल ले गया तो फिर जनता की तो हो गयी सुरक्षा |
दुसरे दिन बेटे ने तो चौराहे पर पोस्टर लगा दिया -" नगर में खापरियो चोर आ चूका है और जैसी आज करी वैसी कल भी करेगा |"
राजा ने अपने प्रधान व सामंतो से सलाह की - " कि चोर की धड़ का दाहसंस्कार कर देना चाहिए और श्मशान पर पहरा बिठा देना चाहिए क्योंकि अपने आपको बहादुर समझने वाला चोर इस बूढ़े चोर के सिर का दाहसंस्कार करने अवश्य आएगा |"
नगर कोतवाल ने धड़ का दाहसंस्कार कर श्मशान पर पहरा बिठा दिया | चोर ने फकीर का भेष बनाया, बहुत सा आटा लगाकर उसका उसमे बाप का सिर दबा एक मोटी बाटी बनायीं और श्मशान की और चल दिया,श्मशान में पहुँच बाटी को श्मशान की आग में सकने के लिए दबा दिया |
पहरे वालों ने टोका तो बोला - " मैं तो एक मस्त फकीर हूँ यहाँ अपनी बाटी सकने रुक गया,श्मशान की आग पर भी रोक है क्या ?"
पहरे वालों ने सोचा फकीर है,रोटी बाटी सेक लेगा तो अपना चला जायेगा,सकने दो |
आग में सिर दबाने के थोड़ी देर में सिर का भी दाहसंस्कार हो गया | तब फकीर बना चोर पहरेदारों के पास गया बोला -" आप मेरी बाटी का ध्यान रखना मैं नमक मिर्च लेकर आता हूँ |"
एसा कह चोर तो अपने घर आ गया | पहरे वालों ने देखा न तो फकीर आया न खपरिया चोर आया तो उन्होंने श्मशान की आग को जाकर देखा उन्हें बाटी के स्थान पर चोर का सिर जलता हुआ दिखाई दिया |
सुबह राजा को खबर पहुंची कि चोर ने तो पहरेदारों को बेवकूफ बना सिर का भी दाहसंस्कार कर दिया सो राजा ने कोतवाल को बुला डांटते हुए कहा कि- "जो सिर का दाहसंस्कार करने आ सकता है तो तीसरे दिन उसकी अस्थियाँ चुनने भी जरुर आएगा सो इस बार तुम खुद श्मशान पर पहरा देना और उसे पकड़ लेना |"
चोर तो खुद दिन में महल में ही रहता था ,राजा की बात सुनने के बाद उसने भी निश्चय कर लिया कि अपने बाप की अस्थियाँ चुनने वह जरुर जायेगा |
रात का अँधेरा होते ही चोर ने स्त्री वेश धारण कर एक आटे का लोथड़ा बना,उसे कपडे में लपेट गोद में ले जैसे बच्चे को लेते है ,साथ में लड्डुओं से भरी थाली ले की श्मशान की और चल पड़ा | पहरे पर तैनात खुद कोतवाल ने उसे रोका -
"तूं कौन है ? इस वक्त श्मशान में क्या करने जा रही है ?"
औरत ने हाथ जोड़कर बोला- " माई बाप ! बड़ी मुस्किल से भैरव देवता की मेहरबानी से मेरी गोद भरी है | इससे पहले मेरे चार बच्चे चलते रहे अब इसे नहीं खोना चाहती,श्मशान में भैरव को खुश करने का एक टोटका करना है | श्मशान की राख से सात कंकर इसके सिर पर फेरने है बस |"
एसा कह औरत ने लड्डुओं से भरी थाली पहरे वालों की और करदी | सभी पहरे वाले लड्डू खाने ले लग गए तब तक स्त्री वेश में चोर ने अपने बाप की अस्थियाँ चुन ली | आटे के लोथड़े को श्मशान में रख औरत कोतवाल के पास पहुंची -
" माई बाप ! छोरे को अभी वहीँ सुलाया है मैं पूरी श्मशान भूमि की परिक्रमा कर अभी आई |" कह चोर ने तो सीधा अपने घर का रास्ता पकड़ा |
उधर जब औरत बहुत देर बाद भी नहीं लौटी तो पहरे वालों ने श्मशान में जाकर देखा,बच्चे की जगह आटे का बनाया लोथड़ा पड़ा था | कोतवाल समझ गया वो औरत के वेश में खापरिया चोर ही था | पर अब क्या हो चोर ने तो कोतवाल की नाक ही काट दी |
सुबह राजा को खबर पहुंची | राजा बहुत गुस्सा हुआ | कोतवाल तो बेकार है इसे नौकरी से निकाल दो का हुक्म हो गया | और राजा ने अब अपने ख़ास सरदारों को बुला खापरिया चोर को पकड़ने के अभियान पर लगा दिया |
साँझ पड़ते ही राजा के सभी खास सामंत सरदार हाथों में नंगी तलवारें ले " खबरदार ,ख़बरदार करते हुए नगर की गलियों में चोर को पकड़ने हेतु पहरे पर निकले | चोर ने डाकोत (ज्योतिषी) का वेश बनाया हाथ में पोथी पत्रे लिए और पहरे वाले सरदारों के घर पहुंचा,औरते अपनी गृहदशा पूछने लगी तो ज्योतिषी बने चोर अपनी पोथी पलते हुए,कुछ सोचते हुए,गणना करने का नाटक करते हुए बताया कि - " आज आप लोगों के घर पर अनिष्ट होने वाला है ,एक डाकी(प्रेत)आकर उपद्रव करेगा |"
औरतों ने उसे रोकने का उपाय पूछा |
फिर पोथी देखने का नाटक करते हुए ज्योतिषी ने बाताया कि -" अपने घरों पर पत्थर जमा करलो,हाथों में डंडे रखना और सब चोकस होकर जागते रहना | अपने घरों को अन्दर से अच्छी तरह से बंद रखना और छतों पर चढ़ कर चौकसी करना | जैसे ही आधी रात को राख से लिपटे नंग,धडंग डाकी आये तो छत से पत्थरों की वर्षा कर देना, पत्थरों की मार पड़ेगी तो डाकी अपने आप वापस भाग जायेंगे |"
सरदारों की औरतों को इस तरह समझा कर चोर वापस आया और एक ठेले पर चूल्हा रख उस पर कड़ाही चढ़ा चौराहे पर आकर बैठ बड़े निकालने लगा | पहरे वाले सरदारों ने आकर धमकाया -
"इस वक्त बड़े निकालने का हुक्म नहीं है ,भाग यहाँ से वरना तेरे ये सारे बड़े हम फैंक देंगे |"
चोर हाथ जोड़ते हुए बोला -" बापजी ! फेंकिये मत, एक बार मेरे बनाये बड़े चखिए तो सही,कितने स्वाद है |" और कहते कहते चोर ने दोने भर कर सभी सरदारों के आगे कर दिए | सरदारों ने जैसे बड़े चखे तो वे इतने स्वादिष्ट थे कि बार बार मांग कर खूब छक कर खा गए |
बड़े खाते ही सरदारों को तो नशा होने लगा और वे नशे में बेहोश होने लगे | चोर ने बड़े में भांग मिला दी थी | जैसे ही वे बेहोश हुए चोर ने एक एक कर सबके कपडे उतार लिए और उनके शरीर पर राख मलदी | और खुद अपने घर जाकर सो गया |
काफी रात गए जब सरदारों की बेहोशी टूटी और होश आया और अपनी हालत देखि तो अपने घरों की और भागने लगे |
आगे औरते डाकियों से मुकाबले को सजी हुई बैठे थी,शरीर पर राख मले अपने मर्दों को घर की तरफ आते देख औरतों ने सोचा डाकी आ गए,ज्योतिषी ने सही बताया था | और वे पत्थर वर्षा कर उन पर टूट पड़ी किसी को घर में नहीं घुसने दिया | सुबह का उजाला होते ही सरदारों को लोगों ने पहचाना अरे ये तो जोरावरसिंह जी ,अरे ये पर्वतसिंह जी, ये दलपतसिंह जी,ये फालना सिंह जी आदि आदि |
सब को अपने अपने घरों में घुसे | शर्म से किसी ने राजा को मुंह नहीं दिखाया | कौनसे मुंह से राजमहल जाकर राजा से मुजरा करे ?
पुरे नगर में खापरिये चोर की होशियारी की चर्चा होने लगी | खापरिये चोर ने तो नगर चौक पर फिर पोस्टर लगा दिया कि -" जैसी कल करी वैसी ही आज करूँगा |"
चोर की चतुराई : राजस्थानी कहानी, भाग- 2
भाग १ से आगे
जब खापरिया चोर ने राजा के सभी खास सरदारों की भी अच्छी तरह से आरती उतरवा दी तो राजा का और गुस्सा आया राजा ने अपने मंत्रियों से कहा -
" ये चोर तो रोज चोट पर चोट किये जा रहा है अब इसे पकड़ना बहुत जरुरी हो गया है | वैसे कांटा निकालने के लिए काटें की ही जरुरत पड़ती है इसलिए इसे पकड़ने के जिम्मेदारी चोरों को ही देते है,चोर चोर की हर हरकत से वाकिफ होता है इसलिए राज्य के सभी चोरों को इकठ्ठा कर इसके पीछे लगा देते है वे इसे पकड़ने में जरुर कामयाब होंगे |"
नगर के सभी नामी चोरों को राजभवन में बुलाया गया और उन्हें खापरिया चोर को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गयी | चोरों ने राजा से अर्ज किया -
" महाराज ! हमें एक ऊंट व एक नौलखा हार दिलवाया जाय |"
राजा ने उनकी मांग मंजूर करदी |
शाम होते ही ऊंट के गले में नौलखा हार पहनाकर चोरों ने ऊंट को नगर में खुला विचरण करने के लिए छोड़ दिया और उससे कुछ दुरी बनाकर खुद चलने लगे इस घोषणा के साथ कि-
" असल चोर है तो इस ऊंट के गले से नौलखा हार निकालकर ले जाय |"
खापरिया तो वहीँ था उसे तो सब पता होता था कि अब ये क्या करने वाले है सो उसने दिन में ही अपने घर में ऊंट को काट कर दफ़नाने जितना एक गड्ढ़ा पहले ही खोद लिया | जैसे ही रात हुई वह चोरों द्वारा छोड़े ऊंट के पीछे हो लिया | आगे बाजार में एक जगह एक बाजीगर अपना खेल दिखा रहा था | खापरिये ने बाजीगर से कहा-
" कोई एसा चमत्कारी तमाशा दिखा कि देखने वाले भ्रमित हो जाये तो तुझे रूपये पचास दूंगा |"
बाजीगर तमाशा दिखाते हुए बोला -" मर्द को औरत बना दूँ ,चींटी को हाथी बना दूँ ,कोई कहे तो खापरिये चोर को पकडवा दूँ........................|"
बाजीगर की ऐसी चमत्कारिक बाते सुन चोरों का दल भी खड़ा होकर सुनने लगा तब तक खापरिये चोर ऊंट को अगवा कर अपने घर ले गया,पहले बाहर आकर ऊंट के पैरों के निशान मिटा दिए और बाद में घर जाकर ऊंट के गले से नौलखा हार निकाल,ऊंट को काट उस गड्ढे में दफना दिया |
सुबह चोरों का दल अपना मुंह लटकाकर राजा के आगे हाजिर हुआ, उनके साथ न तो ऊंट था,न नौलखा हार और खापरिये का तो पता ही नहीं |
खापरिये चोर ने तो नगर चौराहे पर फिर पोस्टर लगा दिया -" जैसी कल करी वैसी ही आज करूँगा |"
राजा ने चोरों के दल को भगा दिया और अपने प्रधान को बुलाकर कहा - " प्रधान जी ! आज रात आप पहरे पर जाएँ और चोर को पकड़ कर हाजिर करे नहीं तो आपकी प्रधानी गयी समझो |"
रात को प्रधान जी खुद घोड़े पर बैठ गस्त पर निकले | आगे बढे तो देखा एक बुढ़िया इतनी रात गए हाथ चक्की से रोते हुए दलिया दल रही है | प्रधान जी ने बुढ़िया से पूछा -
" इतनी रात गए तूं ये दलिया किसके लिए दल रही है और रो क्यों रही है ?"
बुढ़िया बोली- "अन्नदाता ! गरीब लाचार बुढ़िया हूँ | खापरिया चोर के घोड़े के लिए दाना दल रही हूँ | क्या करूँ हुजुर रोज वह चोर मुझे अपने घोड़े के लिए दाना दलने हेतु दे जाता है,मेहनत के पुरे पैसे भी नहीं देता ,मना करती हूँ तो धमकाता है |"
खापरिये चोर का नाम सुनते ही प्रधान जी चेहरा चमक उठा सोचा आज आसानी से खापरिये को पकड़ लूँगा | लगता है मेरे पहले जितने लोग पहरे पर निकले सब नालायक थे | और प्रधान जी ने बुढिया से कहा -
" माई ! मैं इस राज का प्रधान हूँ | खापरिये ने तुझे भी तंग कर रखा है आज मुझे यहाँ कहीं छिपा कर बैठा दे और खापरिया के आते ही इशारा कर देना मैं उसे पकड़ लूँगा |"
बुढ़िया बोली- " छिपने से वह आपके पकड़ में नहीं आने वाला,कहीं भाग गया तो | इसलिए आप एक काम करो मेरे कपड़े पहन यहाँ खुद दलिया दलने बैठ जावो,जब खापरिया दाना लेने आये तो झटके से उसे पकड़ लेना |"
प्रधान जी के बुढ़िया की बात जच गयी वे बुढ़िया के कपड़े पहन खुद दाना दलने बैठ गए | उधर खापरिया प्रधान जी कपड़े व घोड़ा लेकर छू मंतर हो गया |और प्रधान जी को हाथ की चक्की पिसते-पिसते सुबह हो गयी,न तो खापरिया आया न बुढ़िया नजर आई,न प्रधान जी के कपड़े व घोड़ा दिखाई दिया | तब प्रधान जी को आभास हुआ कि खापरिया उन्हें भी बेवकूफ बना गया | बेचारे प्रधान जी तो पानी-पानी हो गए,प्रधानी गयी सो अलग |
प्रधान जी की असफलता की बात सुन राजा को बड़ा क्रोध आया कहने लगा - " सब हरामखोर है,सबको फ्री का खाने की आदत पड़ गयी इतने लोगों को पहरे पर लगाया कोई भी उस चोर को पकड़ नहीं पाया ,अब तो मुझे ही कुछ करना होगा |"
और रात पड़ते ही खुद राजा शस्त्रों से लेश हो घोड़े पर चढ़ नगर में पहरे पर निकला | खापरिये तो दिन में महल में ही रहता था सो राजा द्वारा उठाये जाने वाले हर कदम का उसे पता होता था |
शस्त्रों से सज्जित राजा रात्री में पहरा देते हुए तालाब पर धोबी घाट की और गया तो देखा एक धोबी पछाट-पछाट कर कपड़े धो रहा है | राजा ने पास जाकर धोबी से पूछा-
" तू कौन है ? और इतनी रात गए कपड़े क्यों धो रहा है ?"
"हुजुर मस्ताना धोबी हूँ | आपकी रानियों के कपड़े धो रहा हूँ |
" तो आधी रात को क्यों धो रहा है ?" राजा ने पूछा |
हुजुर अन्नदाता ! रानियों की पोशाकों पर हीरे जड़े रहते है दिन में यहाँ भीड़ रहती है कोई एक आध हिरा चुरा ले जाए तो | इसलिए रात को धोता हूँ पर हुजुर इतनी रात गए आप यहाँ अकेले ?"
"खापरिया चोर को पकड़ने |" राजा ने उत्तर दिया |
धोबी बोला - "महाराज ! खापरिया तो रोज यहाँ आता है,मेरे साथ बातें करता है ,हुक्का पीता है | उसे पकड़ना है तो आप एक काम करे , उस पेड़ के पीछे छुप कर बैठ जाए ,खापरिया आते ही मैं उसे बातों में उल्झाऊंगा और आप आकर उसे एकाएक झटके से पकड़ लेना |"
राजा के बात जच गयी और वो एक पेड़ की ओट में छिपकर बैठ गए | अँधेरी रात थी,कुछ देर बाद राजा को किसी के पैरों की आहट सुनाई दी ये आवाज धोबी की और जा रही थी | राजा समझ गया कि हो न हो खापरिया आ गया है सो वह चौकन्ना हो गया |
उधर धोबी ने बोलना शुरू किया -" आ खापरिया आ | आ हुक्का पीते है बैठ |"
राजा ने खापरिया का जबाब भी सुना - " हाँ भाई मस्तान धोबी ! ला हुक्का पीला फिर चलता हूँ ,जैसी कल प्रधान जी में करी वैसी आज राजा के साथ भी करनी है |"
इतना सुनते ही राजा को क्रोध आया और वह तलवार ले सीधा खापरिया की और दौड़ा | राजा के दौड़ते ही धोबी ने एक काली हांडी तालाब में फैंक दी और राजा से बोला -
" महाराज ! पकड़िये खापरिया तो पानी में कूद गया और तैर कर भाग रहा है |"
राजा भी तुरंत पानी में कूद गया उसे आगे आगे तैरती जा रही काली हांडी सिर जैसी लग रही थी | राजा तैरते हुए हांफते हांफते हांडी के पास पहुंचा और हांड़ी पर तलवार का वार किया,तलवार के वार से हांडी के फूटते ही राजा को समझ आ गयी कि खापरिये ने उसके साथ भी चोट कर दी है | राजा पानी से बाहर आया तो धोबी गायब और उसका घोड़ा भी | राजा को तो काटो तो खून नहीं |और राजा मन ही मन बड़ा शर्मिंदा हुआ |
दुसरे दिन राजा दरबार में आकर बैठा और अपने दरबारियों से खापरिये चोर की तारीफ़ करने लगा - " जो भी चोर हो तो एसा ही हो | बेशक वह चोर है पर है बहुत होशियार और बहादुर | ऐसे होशियार व्यक्ति से मैं मिलना चाहता हूँ पर वह पकड़ में तो आएगा नहीं, पर बेशक मुझे कुछ भी करना पड़े मुझे उसे देखना जरुर है | कुछ भी बहादुरी तो दुश्मन की भी सराहनी पड़ती है | और ये चोर तो अपने हुनर में उस्ताद है |"
और राजा ने हुक्म दे दिया -" यदि खापरिया सुन रहा है या यह खबर उस तक पहुँच जाय तो वह हमारे दरबार में हाजिर हों | उसके लिए सभी गुनाह माफ़ किये जाते | यही नहीं एक बार वह आकर मेरे सामने हाजिर हो जाए तो उसे इनाम में दस गांवों की जागीर भी दी जाएगी |"
इतने में ही राजा के नौकरों में से एक राजा के आगे आकार खड़ा हुआ -" अन्नदाता ! लाख गुनाह माफ़ करने का वचन दे तो खापरिये को अभी लाकर आपके सामने हाजिर कर दूँ |"
"वचन दिया |"
"तो ये खापरिया मैं आपके चरणों में खड़ा हूँ हुजुर |"
मैं कैसे मानू कि तुम ही खापरिया हो ?" राजा ने कहा |
"हुजुर ! मेरे साथ राज के आदमी मेरे घर भेज दीजिये,जब सारा सामान आपको नजर करदूं तब मान लेना |"
राजा ने अपने आदमी उसके घर भेजे ,खापरिये ने सोने की चारों इंटे,नौलखा हार सभी लाकर राजा के नजर कर दिया |
राजा ने अपने वचन के मुताबिक उसे माफ़ कर दिया और साथ ही दस गांवों की जागीर भी ये कहते हुए दी कि - " कभी चोरी मत करना अपनी दक्षता का इस्तेमाल सही कामों में करना |
उपरोक्त कहानी बचपन में अपने दादीसा से सुनी थी पर स्मृति में पूरी कहानी याद नहीं थी,पिछले दिनों जब यही कहानी रानी लक्ष्मीकुमारी जी द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखी पढ़ी तो बचपन में सुनी यह कहानी ताजा हो गयी |
जब खापरिया चोर ने राजा के सभी खास सरदारों की भी अच्छी तरह से आरती उतरवा दी तो राजा का और गुस्सा आया राजा ने अपने मंत्रियों से कहा -
" ये चोर तो रोज चोट पर चोट किये जा रहा है अब इसे पकड़ना बहुत जरुरी हो गया है | वैसे कांटा निकालने के लिए काटें की ही जरुरत पड़ती है इसलिए इसे पकड़ने के जिम्मेदारी चोरों को ही देते है,चोर चोर की हर हरकत से वाकिफ होता है इसलिए राज्य के सभी चोरों को इकठ्ठा कर इसके पीछे लगा देते है वे इसे पकड़ने में जरुर कामयाब होंगे |"
नगर के सभी नामी चोरों को राजभवन में बुलाया गया और उन्हें खापरिया चोर को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गयी | चोरों ने राजा से अर्ज किया -
" महाराज ! हमें एक ऊंट व एक नौलखा हार दिलवाया जाय |"
राजा ने उनकी मांग मंजूर करदी |
शाम होते ही ऊंट के गले में नौलखा हार पहनाकर चोरों ने ऊंट को नगर में खुला विचरण करने के लिए छोड़ दिया और उससे कुछ दुरी बनाकर खुद चलने लगे इस घोषणा के साथ कि-
" असल चोर है तो इस ऊंट के गले से नौलखा हार निकालकर ले जाय |"
खापरिया तो वहीँ था उसे तो सब पता होता था कि अब ये क्या करने वाले है सो उसने दिन में ही अपने घर में ऊंट को काट कर दफ़नाने जितना एक गड्ढ़ा पहले ही खोद लिया | जैसे ही रात हुई वह चोरों द्वारा छोड़े ऊंट के पीछे हो लिया | आगे बाजार में एक जगह एक बाजीगर अपना खेल दिखा रहा था | खापरिये ने बाजीगर से कहा-
" कोई एसा चमत्कारी तमाशा दिखा कि देखने वाले भ्रमित हो जाये तो तुझे रूपये पचास दूंगा |"
बाजीगर तमाशा दिखाते हुए बोला -" मर्द को औरत बना दूँ ,चींटी को हाथी बना दूँ ,कोई कहे तो खापरिये चोर को पकडवा दूँ........................|"
बाजीगर की ऐसी चमत्कारिक बाते सुन चोरों का दल भी खड़ा होकर सुनने लगा तब तक खापरिये चोर ऊंट को अगवा कर अपने घर ले गया,पहले बाहर आकर ऊंट के पैरों के निशान मिटा दिए और बाद में घर जाकर ऊंट के गले से नौलखा हार निकाल,ऊंट को काट उस गड्ढे में दफना दिया |
सुबह चोरों का दल अपना मुंह लटकाकर राजा के आगे हाजिर हुआ, उनके साथ न तो ऊंट था,न नौलखा हार और खापरिये का तो पता ही नहीं |
खापरिये चोर ने तो नगर चौराहे पर फिर पोस्टर लगा दिया -" जैसी कल करी वैसी ही आज करूँगा |"
राजा ने चोरों के दल को भगा दिया और अपने प्रधान को बुलाकर कहा - " प्रधान जी ! आज रात आप पहरे पर जाएँ और चोर को पकड़ कर हाजिर करे नहीं तो आपकी प्रधानी गयी समझो |"
रात को प्रधान जी खुद घोड़े पर बैठ गस्त पर निकले | आगे बढे तो देखा एक बुढ़िया इतनी रात गए हाथ चक्की से रोते हुए दलिया दल रही है | प्रधान जी ने बुढ़िया से पूछा -
" इतनी रात गए तूं ये दलिया किसके लिए दल रही है और रो क्यों रही है ?"
बुढ़िया बोली- "अन्नदाता ! गरीब लाचार बुढ़िया हूँ | खापरिया चोर के घोड़े के लिए दाना दल रही हूँ | क्या करूँ हुजुर रोज वह चोर मुझे अपने घोड़े के लिए दाना दलने हेतु दे जाता है,मेहनत के पुरे पैसे भी नहीं देता ,मना करती हूँ तो धमकाता है |"
खापरिये चोर का नाम सुनते ही प्रधान जी चेहरा चमक उठा सोचा आज आसानी से खापरिये को पकड़ लूँगा | लगता है मेरे पहले जितने लोग पहरे पर निकले सब नालायक थे | और प्रधान जी ने बुढिया से कहा -
" माई ! मैं इस राज का प्रधान हूँ | खापरिये ने तुझे भी तंग कर रखा है आज मुझे यहाँ कहीं छिपा कर बैठा दे और खापरिया के आते ही इशारा कर देना मैं उसे पकड़ लूँगा |"
बुढ़िया बोली- " छिपने से वह आपके पकड़ में नहीं आने वाला,कहीं भाग गया तो | इसलिए आप एक काम करो मेरे कपड़े पहन यहाँ खुद दलिया दलने बैठ जावो,जब खापरिया दाना लेने आये तो झटके से उसे पकड़ लेना |"
प्रधान जी के बुढ़िया की बात जच गयी वे बुढ़िया के कपड़े पहन खुद दाना दलने बैठ गए | उधर खापरिया प्रधान जी कपड़े व घोड़ा लेकर छू मंतर हो गया |और प्रधान जी को हाथ की चक्की पिसते-पिसते सुबह हो गयी,न तो खापरिया आया न बुढ़िया नजर आई,न प्रधान जी के कपड़े व घोड़ा दिखाई दिया | तब प्रधान जी को आभास हुआ कि खापरिया उन्हें भी बेवकूफ बना गया | बेचारे प्रधान जी तो पानी-पानी हो गए,प्रधानी गयी सो अलग |
प्रधान जी की असफलता की बात सुन राजा को बड़ा क्रोध आया कहने लगा - " सब हरामखोर है,सबको फ्री का खाने की आदत पड़ गयी इतने लोगों को पहरे पर लगाया कोई भी उस चोर को पकड़ नहीं पाया ,अब तो मुझे ही कुछ करना होगा |"
और रात पड़ते ही खुद राजा शस्त्रों से लेश हो घोड़े पर चढ़ नगर में पहरे पर निकला | खापरिये तो दिन में महल में ही रहता था सो राजा द्वारा उठाये जाने वाले हर कदम का उसे पता होता था |
शस्त्रों से सज्जित राजा रात्री में पहरा देते हुए तालाब पर धोबी घाट की और गया तो देखा एक धोबी पछाट-पछाट कर कपड़े धो रहा है | राजा ने पास जाकर धोबी से पूछा-
" तू कौन है ? और इतनी रात गए कपड़े क्यों धो रहा है ?"
"हुजुर मस्ताना धोबी हूँ | आपकी रानियों के कपड़े धो रहा हूँ |
" तो आधी रात को क्यों धो रहा है ?" राजा ने पूछा |
हुजुर अन्नदाता ! रानियों की पोशाकों पर हीरे जड़े रहते है दिन में यहाँ भीड़ रहती है कोई एक आध हिरा चुरा ले जाए तो | इसलिए रात को धोता हूँ पर हुजुर इतनी रात गए आप यहाँ अकेले ?"
"खापरिया चोर को पकड़ने |" राजा ने उत्तर दिया |
धोबी बोला - "महाराज ! खापरिया तो रोज यहाँ आता है,मेरे साथ बातें करता है ,हुक्का पीता है | उसे पकड़ना है तो आप एक काम करे , उस पेड़ के पीछे छुप कर बैठ जाए ,खापरिया आते ही मैं उसे बातों में उल्झाऊंगा और आप आकर उसे एकाएक झटके से पकड़ लेना |"
राजा के बात जच गयी और वो एक पेड़ की ओट में छिपकर बैठ गए | अँधेरी रात थी,कुछ देर बाद राजा को किसी के पैरों की आहट सुनाई दी ये आवाज धोबी की और जा रही थी | राजा समझ गया कि हो न हो खापरिया आ गया है सो वह चौकन्ना हो गया |
उधर धोबी ने बोलना शुरू किया -" आ खापरिया आ | आ हुक्का पीते है बैठ |"
राजा ने खापरिया का जबाब भी सुना - " हाँ भाई मस्तान धोबी ! ला हुक्का पीला फिर चलता हूँ ,जैसी कल प्रधान जी में करी वैसी आज राजा के साथ भी करनी है |"
इतना सुनते ही राजा को क्रोध आया और वह तलवार ले सीधा खापरिया की और दौड़ा | राजा के दौड़ते ही धोबी ने एक काली हांडी तालाब में फैंक दी और राजा से बोला -
" महाराज ! पकड़िये खापरिया तो पानी में कूद गया और तैर कर भाग रहा है |"
राजा भी तुरंत पानी में कूद गया उसे आगे आगे तैरती जा रही काली हांडी सिर जैसी लग रही थी | राजा तैरते हुए हांफते हांफते हांडी के पास पहुंचा और हांड़ी पर तलवार का वार किया,तलवार के वार से हांडी के फूटते ही राजा को समझ आ गयी कि खापरिये ने उसके साथ भी चोट कर दी है | राजा पानी से बाहर आया तो धोबी गायब और उसका घोड़ा भी | राजा को तो काटो तो खून नहीं |और राजा मन ही मन बड़ा शर्मिंदा हुआ |
दुसरे दिन राजा दरबार में आकर बैठा और अपने दरबारियों से खापरिये चोर की तारीफ़ करने लगा - " जो भी चोर हो तो एसा ही हो | बेशक वह चोर है पर है बहुत होशियार और बहादुर | ऐसे होशियार व्यक्ति से मैं मिलना चाहता हूँ पर वह पकड़ में तो आएगा नहीं, पर बेशक मुझे कुछ भी करना पड़े मुझे उसे देखना जरुर है | कुछ भी बहादुरी तो दुश्मन की भी सराहनी पड़ती है | और ये चोर तो अपने हुनर में उस्ताद है |"
और राजा ने हुक्म दे दिया -" यदि खापरिया सुन रहा है या यह खबर उस तक पहुँच जाय तो वह हमारे दरबार में हाजिर हों | उसके लिए सभी गुनाह माफ़ किये जाते | यही नहीं एक बार वह आकर मेरे सामने हाजिर हो जाए तो उसे इनाम में दस गांवों की जागीर भी दी जाएगी |"
इतने में ही राजा के नौकरों में से एक राजा के आगे आकार खड़ा हुआ -" अन्नदाता ! लाख गुनाह माफ़ करने का वचन दे तो खापरिये को अभी लाकर आपके सामने हाजिर कर दूँ |"
"वचन दिया |"
"तो ये खापरिया मैं आपके चरणों में खड़ा हूँ हुजुर |"
मैं कैसे मानू कि तुम ही खापरिया हो ?" राजा ने कहा |
"हुजुर ! मेरे साथ राज के आदमी मेरे घर भेज दीजिये,जब सारा सामान आपको नजर करदूं तब मान लेना |"
राजा ने अपने आदमी उसके घर भेजे ,खापरिये ने सोने की चारों इंटे,नौलखा हार सभी लाकर राजा के नजर कर दिया |
राजा ने अपने वचन के मुताबिक उसे माफ़ कर दिया और साथ ही दस गांवों की जागीर भी ये कहते हुए दी कि - " कभी चोरी मत करना अपनी दक्षता का इस्तेमाल सही कामों में करना |
उपरोक्त कहानी बचपन में अपने दादीसा से सुनी थी पर स्मृति में पूरी कहानी याद नहीं थी,पिछले दिनों जब यही कहानी रानी लक्ष्मीकुमारी जी द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखी पढ़ी तो बचपन में सुनी यह कहानी ताजा हो गयी |
कहीं से भी कॉपी पेस्ट किया कंटेंट आपके ब्लॉग की गूगल की नजर में रैंकिंग घटाता है अत: सहाल है कि कॉपी पेस्ट से बचें !
ReplyDeleteआज जब गूगल हिंदी ब्लोग्स पर विज्ञापन दे रहा है तब तो कॉपी पेस्ट से दूर रहना ही हितकर है !!