Friday, July 22, 2011

Atul Sharma 21 July 03:04 ये आखिरी बार नहीं है कि जब तू मुझे अपने दामन में समेटे है और मैं तेरी दीवारों में अपना अक्स ढूंढ रहा हूँ मुझे फिर से तेरे आँगन के आगोश में आना होगा इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद मिलेगी मेरी रूह तब तेरी रूह से और तलाशेगी मेरा बचपन तेरे हर ज़र्रे में मुमकिन है कि तब तेरी ये दहलीज़ मुझसे मेरा दस्तखत ना मांगे मुझे एक बार फिर से इसे फांदना होगा इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद आज मेरे बेदखल हो जाने पर शायद तेरे दरवाज़े पर कोई हलचल ना हो आऊँगा जब मैं अर्थी पर सनसनी हर दर पर होगी मेरे तुझमें दख्ल पर कोई रोक तो ना होगी इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद तेरी छत पर बरसते घन मुझको भिगो ना पायेंगे ना मुझको ढूंढ पायेंगे तेरे रौशनदानों से छन कर आते उजाले ना छुपा पाने का मुझको तेरे अंधेरों में दम होगा तेरे हर बंधन से मैं एक दिन आज़ाद हूँ जैसे इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद कुछ ख्याल "अतुल" की कलम से..

ये आखिरी बार नहीं है 
कि जब तू मुझे अपने दामन में समेटे है
और मैं तेरी दीवारों में अपना अक्स ढूंढ रहा हूँ 
मुझे फिर से तेरे आँगन के आगोश में आना होगा
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद

मिलेगी मेरी रूह तब तेरी रूह से 
और तलाशेगी मेरा बचपन तेरे हर ज़र्रे में
मुमकिन है कि तब तेरी ये दहलीज़ मुझसे मेरा दस्तखत ना मांगे 
मुझे एक बार फिर से इसे फांदना होगा
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद

आज मेरे बेदखल हो जाने पर शायद
तेरे दरवाज़े पर कोई हलचल ना हो
आऊँगा जब मैं अर्थी पर सनसनी हर दर पर होगी
मेरे तुझमें दख्ल पर कोई रोक तो ना होगी
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद

तेरी छत पर बरसते घन मुझको भिगो ना पायेंगे
ना मुझको ढूंढ पायेंगे तेरे रौशनदानों से छन कर आते उजाले
ना छुपा पाने का मुझको तेरे अंधेरों में दम होगा 
तेरे हर बंधन से मैं एक दिन आज़ाद हूँ जैसे
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद 

कुछ ख्याल "अतुल" की कलम से.........: - इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद.....
ankahekhayal.blogspot.com
Atul Sharma21 July 03:04
ये आखिरी बार नहीं है
कि जब तू मुझे अपने दामन में समेटे है
और मैं तेरी दीवारों में अपना अक्स ढूंढ रहा हूँ
मुझे फिर से तेरे आँगन के आगोश में आना होगा
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद

मिलेगी मेरी रूह तब तेरी रूह से
और तलाशेगी मेरा बचपन तेरे हर ज़र्रे में
मुमकिन है कि तब तेरी ये दहलीज़ मुझसे मेरा दस्तखत ना मांगे
मुझे एक बार फिर से इसे फांदना होगा
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद

आज मेरे बेदखल हो जाने पर शायद
तेरे दरवाज़े पर कोई हलचल ना हो
आऊँगा जब मैं अर्थी पर सनसनी हर दर पर होगी
मेरे तुझमें दख्ल पर कोई रोक तो ना होगी
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद

तेरी छत पर बरसते घन मुझको भिगो ना पायेंगे
ना मुझको ढूंढ पायेंगे तेरे रौशनदानों से छन कर आते उजाले
ना छुपा पाने का मुझको तेरे अंधेरों में दम होगा
तेरे हर बंधन से मैं एक दिन आज़ाद हूँ जैसे
इस जहाँ से मेरी रुखसती के बाद

कुछ ख्याल "अतुल" की कलम से..

1 comment:

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