पुण्यतिथि 31 जुलाई पर विशेष
तुम मुझे यू भुला ना पाओगे…………
तुम मुझे यू भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे। रफी साहब का गाया ये गीत आज उन की जिन्दगी पर कितना सही बैठता है। आज हिन्दुस्तान ही नही पूरी दुनिया में जहॉ जहॉ रफी साहब को सुना जाता है उन के चाहने वाले मौजूद है वो रहती दुनिया तक उन्हे और उन की आवाज को भुला नही सकते। मौहम्मद रफी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 कों अमृतसर के पास कौटला सुल्तान में हाजी अली मौहम्मद के घर हुआ था। इन की पैदाईश के कुछ दिन बाद ही इन का पूरा खानदान लाहौर(अब पाकिस्तान) के भाई दरवाजा के मौहल्ले में रहने चला गया। मौ0 रफी पिता हाजी अली मौहम्मद की छठी औलाद थे। एक दिन रफी साहब अपने बडे भाई की दुकान पर बैठे हुए बेंच को तबले की तरह अपने हाथो से बजाकर मस्ती में एक पंजाबी गीत गुनगुना रहे थे। इसे रफी साहब की बुलन्द किस्मत कहा जाये या उस छः साल के बच्चे की मीठी आवाज का जादू उधर से गुजर रहे एक संगीत के उस्ताद से रहा न गया और उन्होने रफी को गोद में उठाकर प्यार किया और रफी साहब के बडे भाई से बोले अरे ये किस का बच्चा है। रफी साहब के बडे भाई ने कहा उस्ताद ये मेरा छोटा भाई मौहम्मद रफी है। खुदा की कुदरत इस के पास तो कमाल का गला है इस की आवाज बहुत मीठी और सधी है एक दिन ये बच्चा संगीत जगत में खूब नाम रोशन करेगा।
अपने छोटे भाई की संगीत के उस्ताद के मुॅह से यू तारीफ सुन रफी साहब के बडे भाई का सीना गर्व से फूल गया और उन्होने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वो रफी को संगीत की तालीम जरूर दिलायेगे। रफी साहब के बडे भाई उन्हे लेकर उस जमाने के प्रसिद्ध
संगीतचार्य उस्ताद वहीद खॉ,उस्ताद जवाहर लाल के पास ले गये। इन उस्तादो ने पहले तो ना नुकर की पर जब रफी साहब की आवाज सुनी तो इन्होने इन्हे अपना शिष्य बना लिया। और रफी साहब मात्र तेरह साल की उम्र तक पहुॅचते पहुॅचते पक्के राग गाने लगे इस दौरान रफी साहब ने प्रसिद्व गजल गायक गुलाम अली के बडे भाई बरकत अली से क्लासिकी संगीत सीखा तो वही दूसरी तरफ रफी साहब को दिल्ली रेडियो के फिरोज निजामी साहब ने भी काफी दिनो तक संगीत की तालीम दी। जिस के चलते रफी साहब दिल्ली और लाहौर के रेडियो प्रोग्रामो में हिस्सा लेने लगे। रेडियो पर जो भी रफी साहब की आवाज सुनता वो उन की आवाज का दिवाना हो जाता।
यू तो फिल्मो में रफी साहब कि गायकी की शुरूआत कोरस गायकी से हुई इन्होने पुरानी फिल्म लैला मजनू और सन 1940 में बनी फिल्म ” पहले आप’’ में कोरस गये। सन 1942 में संगीतकार श्यामसुन्दर जी के निर्देशन में बन रही पंजाबी फिल्म “गुल बलोच’’ में महज 18 साल की उम्र में पहला गीत ” तेरी याद ने बहुत सताया’’ गया था। जिसे लोगो ने खूब पसन्द किया। सन 1943 में रफी साहब ने फिल्म
“गॉव की गौरी’’ में पहला हिन्दी गीत गाया। रफी साहब की आवाज का जादू गॉव गॉव और शहर शहर में धूम मचाने लगा था। रफी साहब अपने भाई के साथ आस पास के इलाको में स्तागे शो करने जाते थे। एक बार वो जांलधर में प्रोग्राम दे रहे थे लोग रफी साहब की आवाज सुनकर दिवाने हुए जा रहे थे। ये वो प्रोग्राम था जहॉ से रफी साहब की किस्मत ने रफी साहब को दुनिया में आवाज का बादशाह बना दिया। इस प्रोग्राम में बम्बई से आये कई फिल्मी सितारे मौजूद थे जो रफी साहब कि आवाज के दिवाने हुए जा रहे थे। रफी साहब के उस्ताद संगीतकार फिरोज निजामी साहब ने 1947 में रफी साहब को फिल्म “जुगनू॔” में एक बडा मौका दिया। इस फिल्म में हीरो अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे इस फिल्म के एक गाने “वो याद दिलाने को रूमाल पुराना छोड गये’’ वाले गीत पर रफी साहब ने दिलीप साहब के साथ एक्टिंग भी कि थी। फिल्म जुगनू से गायकी के आकाश पर रफी साहब सचमुच जुगनू की तरह चमने लगे ” यहा बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है ,मौहब्बत कर के भी देखा मौहब्बत में भी धोखा है। रफी साहब द्वारा गाये इस दर्द भरे गाने ने तूफान मचा दिया। और रातो रात कुन्दन लाल सहगल, संगीतकार नौशाद, और दिलीप साहब की रफी साहब पहली पसन्द बन गये।
फिल्मी दुनिया में जिस के चाहने वाले ये लोग हो भला उस की कामयाबी को कौन रोक सकता था। ऐसा ही हुआ एक के बाद रफी साहब अमर गीतो के गायक बनते चले गये। गुरूदत्त की फिल्म के एक गाने ” जिन्हे नाज है हिन्द पर वो कहा है” को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बहुत रोये थे। वही फिल्म शहीद में गाये रफी साहब के गाने “वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो’’ को सुनकर दिलीप कुमार की बहन रोने लगी थी। फिल्म छोटे “नवाब’’ में महमूद का किरदार एक मंदबुद्वि बच्चे का था जो तोतला भी होता है इस फिल्म में रफी साहब द्वारा तुतला कर गाये गानो को जिस जिसने सुना है वो रफी साहब की काबलियत का कायल हुए बगैर नही रहा होगा। गुरूदत्त अभिनीत व निर्देशित फिल्म “चौहदवी का चॉद’’ के गाये गीत “चौहदवी का चॉद हो या आफताब हो ’’ के विषय में एक बहुत ही रोचक बात है जिसे बहुत ही कम लोग जानते होगे। “चौहदवी का चॉद हो या आफताब हो ’’ गाना जब रफी साहब ने रिकार्ड कराया तो गुरूदत्त को रफी साहब द्वारा गाया गया ये गाना पसन्द नही आया और उन्होने रफी साहब से इस गाने को दोबारा रिकार्ड करने को कहा रफी साहब ने भी हा कर दी पर मसरूफियत की वजह से रफी साहब इस गाने को दोबारा रिकार्ड नही कर पा रहे थे “चौहदवी का चॉद’’ की रिलीज लेट हो रही थी लिहाजा इस गाने को ऐसे ही फिल्म में डालकर फिल्म रिलीज कर दिया गया। बाद में रफी साहब द्वारा गाये “चौहदवी का चॉद’’ के इस रफ गाने॔॔चौहदवी का चॉद हो या आफताब हो ’’ के लिये उन्हे फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया।
रफी साहब के गाये गीतो को संगीत प्रेमियो ने यू ही अपने दिलो में जगह नही दी रफी साहब हर एक गाने को गाने के लिये अपनी जान निकालकर रख देते थे। कई गानो को गाने के लिये रफी साहब ने अपनी जान की बाजी तक लगा दी। न जाने कितने गीतो को रफी साहब ने अपना खून पिलाया। फिल्म “बैजू बावरा’’ के गाने “ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेंरे नाले’’ को रफी साहब ने इतनी मेहनत से गाया की आप के गले से खून आ गया था। वही फिल्म “मुगले आजम’’ के गीत ” जिन्दाबाद ए मौहब्बत तू जिन्दाबाद’’ गाने की रिकार्डिग पर उन्होने अपनी आवाज को इतना उठाया कि आप स्टूडियो में ही गाना गाते बेहोश हो गये थे। जिन लोगो ने रफी साहब को करीब से देखा है या उन के पास बैठ कर उन से गुफतुगू की है वो यह बात बखूबी जानते है कि रफी साहब बहुत ही धीरे से बोलते थे उन की बात उन के बहुत करीब बैठने वाला ही समझ सकता था। रफी साहब की गायकी का एक दिलचस्प पहलू और है एक तरफ जहॉ रफी साहब ने दिलीप कुमार, राज कुमार, अमिताभ बच्चन, राजेन्द्र कुमार गुरूदत्त,देव आन्नद आदि फिल्म स्टारो के लिये गीत गाये वही खुद पाश्र्व गायक किशोर कुमार को रफी साहब ने फिल्म “शरारत’’ और “कल्पना’’ में अपनी आवाज दी “कल्पना’’ के गीत ” मनमोरा बावरा’’ शास्त्री संगीत पर आधारित गीत होने के कारण किशोर दा इसे गा नही पा रहे थे लिहाजा किशोर दा के लिये रफी साहब ने ये गीत गाया जो किशोर दा पर फिल्माया गया।
रफी साहब ने अपने 56 साल के फिल्मी सफर में हर प्रकार के गीत गाये। संगीत पंडितो का कहना है कि हिन्दी फिल्मो में हर प्रकार के गीत गाने की क्षमता का प्रदशर्न सब से पहले मौहम्मद रफी ने ही किया था। रफी साहब को सन 1960 में पहला फिल्म फेयर अवार्ड “चौदवी का चॉद’’ फिल्म के टाईटल गीत के लिये के लिये दिया गया। दूसरा फिल्म फेयर अवार्ड फिल्म “ससुराल’’में गाये गीत ” तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर ना लगे’’ के लिये मिला। रफी साहब को तत्कालीन राष्ट्रपति डा0 राधा कृष्ण के हाथो सन 1965 में पदम श्री अवार्ड से नवाजा गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने इन्हे एक चॉदी का मेडल प्रदान किया। रफी साहब ने नौशाद, मदन मोहन, ओ0पी0नययर,शंकर जयकिशन, एस0डी0बर्मन, ऊषा खन्ना, कल्याण जी आन्नद जी,लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल,आर0डी0बर्मन, राजेश रोशन के संगीत निर्देशन में “आरजू’’, “बैजू बावरा’’, “धूल का फूल’’, “दो बदन’’ “काजल’’, “मेरे हमदम मेरे दोस्त’’,”राजा और रंक’’, “आप आये बहार आई’’, “गूंज उठी शहनाई’’, “संघर्ष ’’,”दीदार’’, “कोहेनूर’’ ,” यहूदी’’ ,”उडन खटोला’’ “कश्मीर की कली’’ “मेरे महबूब’’ “मेरे हुजूर’’ “कन्यादान’’ “गाईड’’ “काला पानी’’ “बाजार’’ “ताज महल’’ “छोटी बहू’’ “बहू बेगम’’ “बहमचारी’’ “दोस्ताना’’ “जब जब फूल खिले’’ “कर्ज’’ “शहनाई’’ ” धरमवीर॔’ “कतर्व्य’’आदि न जाने कितनी फिल्मो में अमर गीत गाये। रफी साहब ने अपनी इस छोटी सी किन्तु अमर जिन्दगी में सन 1940 से 1980 तक लगभग 28 हजार फिल्मी व गैर फिल्मी गीत लता मंगेशकर, मुकेश, किशोर दा, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर, आशा भौसले, गीता दत्त, आदि गायक गायिकाओ के साथ गाये। फिल्म “आस पास’’ में धर्मेन्द्र हेमा मालनी पर फिल्माया गीत ” तू कही आस पास है ए दोस्त’’ रफी साहब का गाया आखिरी गाना था। 31 जुलाई 1980 को आवाज का ये शहंशाह हमेशा हमेशा के लिये सो गया। आज रफी साहब की इस पुण्यतिथि पर यदि भारत सरकार रफी साहब को “भारत रत्न’’ देने का ऐलान कर दे तो ये स्वर्गीय रफी साहब को भारत सरकार और उन के तमाम चाहने वालो की ओर से उन्हे सच्ची श्रद्वाजंलि होगी।
तुम मुझे यू भुला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे। रफी साहब का गाया ये गीत आज उन की जिन्दगी पर कितना सही बैठता है। आज हिन्दुस्तान ही नही पूरी दुनिया में जहॉ जहॉ रफी साहब को सुना जाता है उन के चाहने वाले मौजूद है वो रहती दुनिया तक उन्हे और उन की आवाज को भुला नही सकते। मौहम्मद रफी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 कों अमृतसर के पास कौटला सुल्तान में हाजी अली मौहम्मद के घर हुआ था। इन की पैदाईश के कुछ दिन बाद ही इन का पूरा खानदान लाहौर(अब पाकिस्तान) के भाई दरवाजा के मौहल्ले में रहने चला गया। मौ0 रफी पिता हाजी अली मौहम्मद की छठी औलाद थे। एक दिन रफी साहब अपने बडे भाई की दुकान पर बैठे हुए बेंच को तबले की तरह अपने हाथो से बजाकर मस्ती में एक पंजाबी गीत गुनगुना रहे थे। इसे रफी साहब की बुलन्द किस्मत कहा जाये या उस छः साल के बच्चे की मीठी आवाज का जादू उधर से गुजर रहे एक संगीत के उस्ताद से रहा न गया और उन्होने रफी को गोद में उठाकर प्यार किया और रफी साहब के बडे भाई से बोले अरे ये किस का बच्चा है। रफी साहब के बडे भाई ने कहा उस्ताद ये मेरा छोटा भाई मौहम्मद रफी है। खुदा की कुदरत इस के पास तो कमाल का गला है इस की आवाज बहुत मीठी और सधी है एक दिन ये बच्चा संगीत जगत में खूब नाम रोशन करेगा।
अपने छोटे भाई की संगीत के उस्ताद के मुॅह से यू तारीफ सुन रफी साहब के बडे भाई का सीना गर्व से फूल गया और उन्होने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वो रफी को संगीत की तालीम जरूर दिलायेगे। रफी साहब के बडे भाई उन्हे लेकर उस जमाने के प्रसिद्ध
संगीतचार्य उस्ताद वहीद खॉ,उस्ताद जवाहर लाल के पास ले गये। इन उस्तादो ने पहले तो ना नुकर की पर जब रफी साहब की आवाज सुनी तो इन्होने इन्हे अपना शिष्य बना लिया। और रफी साहब मात्र तेरह साल की उम्र तक पहुॅचते पहुॅचते पक्के राग गाने लगे इस दौरान रफी साहब ने प्रसिद्व गजल गायक गुलाम अली के बडे भाई बरकत अली से क्लासिकी संगीत सीखा तो वही दूसरी तरफ रफी साहब को दिल्ली रेडियो के फिरोज निजामी साहब ने भी काफी दिनो तक संगीत की तालीम दी। जिस के चलते रफी साहब दिल्ली और लाहौर के रेडियो प्रोग्रामो में हिस्सा लेने लगे। रेडियो पर जो भी रफी साहब की आवाज सुनता वो उन की आवाज का दिवाना हो जाता।
यू तो फिल्मो में रफी साहब कि गायकी की शुरूआत कोरस गायकी से हुई इन्होने पुरानी फिल्म लैला मजनू और सन 1940 में बनी फिल्म ” पहले आप’’ में कोरस गये। सन 1942 में संगीतकार श्यामसुन्दर जी के निर्देशन में बन रही पंजाबी फिल्म “गुल बलोच’’ में महज 18 साल की उम्र में पहला गीत ” तेरी याद ने बहुत सताया’’ गया था। जिसे लोगो ने खूब पसन्द किया। सन 1943 में रफी साहब ने फिल्म
“गॉव की गौरी’’ में पहला हिन्दी गीत गाया। रफी साहब की आवाज का जादू गॉव गॉव और शहर शहर में धूम मचाने लगा था। रफी साहब अपने भाई के साथ आस पास के इलाको में स्तागे शो करने जाते थे। एक बार वो जांलधर में प्रोग्राम दे रहे थे लोग रफी साहब की आवाज सुनकर दिवाने हुए जा रहे थे। ये वो प्रोग्राम था जहॉ से रफी साहब की किस्मत ने रफी साहब को दुनिया में आवाज का बादशाह बना दिया। इस प्रोग्राम में बम्बई से आये कई फिल्मी सितारे मौजूद थे जो रफी साहब कि आवाज के दिवाने हुए जा रहे थे। रफी साहब के उस्ताद संगीतकार फिरोज निजामी साहब ने 1947 में रफी साहब को फिल्म “जुगनू॔” में एक बडा मौका दिया। इस फिल्म में हीरो अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे इस फिल्म के एक गाने “वो याद दिलाने को रूमाल पुराना छोड गये’’ वाले गीत पर रफी साहब ने दिलीप साहब के साथ एक्टिंग भी कि थी। फिल्म जुगनू से गायकी के आकाश पर रफी साहब सचमुच जुगनू की तरह चमने लगे ” यहा बदला वफा का बेवफाई के सिवा क्या है ,मौहब्बत कर के भी देखा मौहब्बत में भी धोखा है। रफी साहब द्वारा गाये इस दर्द भरे गाने ने तूफान मचा दिया। और रातो रात कुन्दन लाल सहगल, संगीतकार नौशाद, और दिलीप साहब की रफी साहब पहली पसन्द बन गये।
फिल्मी दुनिया में जिस के चाहने वाले ये लोग हो भला उस की कामयाबी को कौन रोक सकता था। ऐसा ही हुआ एक के बाद रफी साहब अमर गीतो के गायक बनते चले गये। गुरूदत्त की फिल्म के एक गाने ” जिन्हे नाज है हिन्द पर वो कहा है” को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बहुत रोये थे। वही फिल्म शहीद में गाये रफी साहब के गाने “वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो’’ को सुनकर दिलीप कुमार की बहन रोने लगी थी। फिल्म छोटे “नवाब’’ में महमूद का किरदार एक मंदबुद्वि बच्चे का था जो तोतला भी होता है इस फिल्म में रफी साहब द्वारा तुतला कर गाये गानो को जिस जिसने सुना है वो रफी साहब की काबलियत का कायल हुए बगैर नही रहा होगा। गुरूदत्त अभिनीत व निर्देशित फिल्म “चौहदवी का चॉद’’ के गाये गीत “चौहदवी का चॉद हो या आफताब हो ’’ के विषय में एक बहुत ही रोचक बात है जिसे बहुत ही कम लोग जानते होगे। “चौहदवी का चॉद हो या आफताब हो ’’ गाना जब रफी साहब ने रिकार्ड कराया तो गुरूदत्त को रफी साहब द्वारा गाया गया ये गाना पसन्द नही आया और उन्होने रफी साहब से इस गाने को दोबारा रिकार्ड करने को कहा रफी साहब ने भी हा कर दी पर मसरूफियत की वजह से रफी साहब इस गाने को दोबारा रिकार्ड नही कर पा रहे थे “चौहदवी का चॉद’’ की रिलीज लेट हो रही थी लिहाजा इस गाने को ऐसे ही फिल्म में डालकर फिल्म रिलीज कर दिया गया। बाद में रफी साहब द्वारा गाये “चौहदवी का चॉद’’ के इस रफ गाने॔॔चौहदवी का चॉद हो या आफताब हो ’’ के लिये उन्हे फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया।
रफी साहब के गाये गीतो को संगीत प्रेमियो ने यू ही अपने दिलो में जगह नही दी रफी साहब हर एक गाने को गाने के लिये अपनी जान निकालकर रख देते थे। कई गानो को गाने के लिये रफी साहब ने अपनी जान की बाजी तक लगा दी। न जाने कितने गीतो को रफी साहब ने अपना खून पिलाया। फिल्म “बैजू बावरा’’ के गाने “ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेंरे नाले’’ को रफी साहब ने इतनी मेहनत से गाया की आप के गले से खून आ गया था। वही फिल्म “मुगले आजम’’ के गीत ” जिन्दाबाद ए मौहब्बत तू जिन्दाबाद’’ गाने की रिकार्डिग पर उन्होने अपनी आवाज को इतना उठाया कि आप स्टूडियो में ही गाना गाते बेहोश हो गये थे। जिन लोगो ने रफी साहब को करीब से देखा है या उन के पास बैठ कर उन से गुफतुगू की है वो यह बात बखूबी जानते है कि रफी साहब बहुत ही धीरे से बोलते थे उन की बात उन के बहुत करीब बैठने वाला ही समझ सकता था। रफी साहब की गायकी का एक दिलचस्प पहलू और है एक तरफ जहॉ रफी साहब ने दिलीप कुमार, राज कुमार, अमिताभ बच्चन, राजेन्द्र कुमार गुरूदत्त,देव आन्नद आदि फिल्म स्टारो के लिये गीत गाये वही खुद पाश्र्व गायक किशोर कुमार को रफी साहब ने फिल्म “शरारत’’ और “कल्पना’’ में अपनी आवाज दी “कल्पना’’ के गीत ” मनमोरा बावरा’’ शास्त्री संगीत पर आधारित गीत होने के कारण किशोर दा इसे गा नही पा रहे थे लिहाजा किशोर दा के लिये रफी साहब ने ये गीत गाया जो किशोर दा पर फिल्माया गया।
रफी साहब ने अपने 56 साल के फिल्मी सफर में हर प्रकार के गीत गाये। संगीत पंडितो का कहना है कि हिन्दी फिल्मो में हर प्रकार के गीत गाने की क्षमता का प्रदशर्न सब से पहले मौहम्मद रफी ने ही किया था। रफी साहब को सन 1960 में पहला फिल्म फेयर अवार्ड “चौदवी का चॉद’’ फिल्म के टाईटल गीत के लिये के लिये दिया गया। दूसरा फिल्म फेयर अवार्ड फिल्म “ससुराल’’में गाये गीत ” तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर ना लगे’’ के लिये मिला। रफी साहब को तत्कालीन राष्ट्रपति डा0 राधा कृष्ण के हाथो सन 1965 में पदम श्री अवार्ड से नवाजा गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने इन्हे एक चॉदी का मेडल प्रदान किया। रफी साहब ने नौशाद, मदन मोहन, ओ0पी0नययर,शंकर जयकिशन, एस0डी0बर्मन, ऊषा खन्ना, कल्याण जी आन्नद जी,लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल,आर0डी0बर्मन, राजेश रोशन के संगीत निर्देशन में “आरजू’’, “बैजू बावरा’’, “धूल का फूल’’, “दो बदन’’ “काजल’’, “मेरे हमदम मेरे दोस्त’’,”राजा और रंक’’, “आप आये बहार आई’’, “गूंज उठी शहनाई’’, “संघर्ष ’’,”दीदार’’, “कोहेनूर’’ ,” यहूदी’’ ,”उडन खटोला’’ “कश्मीर की कली’’ “मेरे महबूब’’ “मेरे हुजूर’’ “कन्यादान’’ “गाईड’’ “काला पानी’’ “बाजार’’ “ताज महल’’ “छोटी बहू’’ “बहू बेगम’’ “बहमचारी’’ “दोस्ताना’’ “जब जब फूल खिले’’ “कर्ज’’ “शहनाई’’ ” धरमवीर॔’ “कतर्व्य’’आदि न जाने कितनी फिल्मो में अमर गीत गाये। रफी साहब ने अपनी इस छोटी सी किन्तु अमर जिन्दगी में सन 1940 से 1980 तक लगभग 28 हजार फिल्मी व गैर फिल्मी गीत लता मंगेशकर, मुकेश, किशोर दा, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर, आशा भौसले, गीता दत्त, आदि गायक गायिकाओ के साथ गाये। फिल्म “आस पास’’ में धर्मेन्द्र हेमा मालनी पर फिल्माया गीत ” तू कही आस पास है ए दोस्त’’ रफी साहब का गाया आखिरी गाना था। 31 जुलाई 1980 को आवाज का ये शहंशाह हमेशा हमेशा के लिये सो गया। आज रफी साहब की इस पुण्यतिथि पर यदि भारत सरकार रफी साहब को “भारत रत्न’’ देने का ऐलान कर दे तो ये स्वर्गीय रफी साहब को भारत सरकार और उन के तमाम चाहने वालो की ओर से उन्हे सच्ची श्रद्वाजंलि होगी।
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