Wednesday, July 13, 2011

पंजाबः दमन के खिलाफ जनता में उबाल



देश का पेट भरने वाला पंजाब इन दिनों आंदोलनों और बादल सरकार द्वारा दमन के लिए काफी चर्चा में है. राज्य पुलिस किसी भी तरह के आंदोलन और विरोध के स्वर को कुचलने के लिए सभी तरह के  हथकंडे अपना रही है. इसका खुलासा जनहस्तक्षेप द्वारा वहां भेजे गए बुद्धिजीवियों के एक दल ने किया. जांच दल में शामिल डी यू के प्रोफेसर डॉ. एन भट्टाचार्य, वरिष्ठ पत्रकार जसपाल सिंह सिद्धू एवं अनिल दूबे ने 17 अप्रैल से 20 अप्रैल तक पंजाब का दौरा किया. जांच दल ने गुरुदासपुर के खन्ना चमियारा, अमृतसर के भिंडी सैदा एवं अजनाला आदि गांवों के अलावा बटाला और मोगा ज़िलों का दौरा किया. पंजाब पिछले कई दशकों से हरित क्रांति के नायक, देश के अन्नदाता एवं बड़ी संख्या में एनआरआई तैयार करने वाले राज्य के रूप में जाना जाता रहा है, किंतु यही पंजाब अब एक नई करवट लेता दिखाई दे रहा है. जांच दल के अनुसार, राज्य में कर्मचारियों, छात्रों एवं किसानों के बीच एक नई हवा चल रही है. विद्युत कारपोरेशन का विभाजन हो या शिक्षण संस्थानों का निजीकरण, छात्रों को बस पास की मांग का मामला हो या ज़मीन पर किसानों के हक़ का, चारों तऱफ विरोध की हवा बहती दिखाई दे रही है. इन आंदोलनों को कुचलने के लिए पंजाब की गठबंधन सरकार एक ही तौर-तरीक़ा अपना रही है और वह है दमन का. सरकार सुरक्षाबलों के साथ-साथ धार्मिक एवं जातीय सेनाओं का भी इस्तेमाल कर रही है. खन्ना चमियारा गांव में एसपीजीसी की हथियारबंद टास्क फोर्स द्वारा फायरिंग कर दो किसानों को मौत के घाट उतार देने का मामला हो या फिर बीती 16 फरवरी को अमृतसर ज़िले के भिंडी सैदा गांव में भारतीय किसान यूनियन एकता उग्राही के कार्यकर्ता कामरेड साधु सिंह की हत्या का, सभी मामलों में स्थानीय पुलिस एवं अकाली- भाजपा गठबंधन के नेताओं एवं उनके समर्थकों की भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है. देश के अन्य भागों की तरह पंजाब में भी इस व़क्त ज़मीन का सवाल प्रमुख मुद्दा बना हुआ है. सामंत-पुराने जमींदार गांवों में भू-माफियाओं एवं कॉरपोरेट जगत और शहरों में राजनेताओं के इशारे पर बल प्रयोग द्वारा ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करते जा रहे हैं. गुरुदासपुर ज़िले के खन्ना चमियारा गांव के हरपाल सिंह ने बताया कि 12 सौ एकड़ कृषि भूमि यहां ज्वलंत मुद्दा है. पूर्व में यह ज़मीन गुरुद्वारों के महंतों की होती थी, जिन्हें ब्रिटिश शासन का समर्थन प्राप्त था. 1921 में महंतों के ख़िला़फ हुए आंदोलन के दौरान फायरिंग में बहुत से लोग मारे गए. उन दिनों अकाली दल ने गुरुद्वारों में सुधार का आंदोलन चलाया था. चूंकि यह ज़मीन बंजर और अनुपयोगी थी, इसलिए समझौते के तहत 70 वर्ष पूर्व इस ज़मीन को एसजीपीसी ने स्थानीय ग़रीबों एवं दलितों को बटाईदारी के तौर पर दे दिया. बाद में लोगों ने इस ज़मीन पर कड़ी मेहनत कर इसे उपजाऊ बना दिया. अब इसी ज़मीन पर एसजीपीसी की नज़रें टिक गई हैं. हरपाल सिंह ख़ुद एक बटाईदार हैं. उनका कहना है कि 70 वर्ष पूर्व हुए समझौते के तहत बटाईदारों को एसजीपीसी को कुछ किराया देना था और एसजीपीसी को प्राप्ति की रसीद देनी थी. इधर कुछ वर्षों से एसजीपीसी ने किराया लेना बंद कर दिया तो किसानों ने किराया स्थानीय प्रशासन के पास जमा करना शुरू कर दिया, क्योंकि पांच वर्ष तक किराया न देने पर किसान का हक़ समाप्त हो जाता है. गांव के सरपंच किसानों से अलग धार्मिक सोच रखने के कारण पैसा गुरुद्वारे में ही जमा कराते रहे, लेकिन रसीद नहीं दी जाती थी. अंतत: उन्हें ज़मीन खाली करने की नोटिस दे दी गई. 30 नवंबर 2009 को हथियारबंद एसजीपीसी टास्क फोर्स के 250 लोग विभिन्न गुरुद्वारों के प्रमुखों, अवतार सिंह मक्कड़, सचिव दिलमेध सिंह एवं कश्मीर सिंह के साथ ज़मीन खाली कराने के लिए खन्ना चमियारा गांव पहुंचे तो किसानों ने विरोध किया. इस पर टास्क फोर्स ने फायरिंग कर दी, जिसमें किसान बलविंदर और कश्मीर सिंह मारे गए और दर्जनों किसान घायल हो गए. टास्क फोर्स ने स़िर्फ बच्चों एवं महिलाओं को ही नहीं पीटा, बल्कि पालतू पशुओं को भी गोली मार दी. घंटों बाद ज़िले के पुलिस अधीक्षक मौक़े पर पहुंचे, तब तक टास्क फोर्स का तांडव जारी रहा. कीर्ति किसान यूनियन के नेतृत्व में किसान डटे रहे तो एसपी ने पुलिस संरक्षण में टास्क फोर्स के हमलावरों को सुरक्षित गांव से बाहर निकाल दिया. पुलिस ने किसानों की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की. भारी विरोध के बाद स़िर्फ 19 लोगों के  ख़िला़फ पुलिस ने स्वयं मामला दर्ज किया, 10 मुख्य आरोपियों को साफ छोड़ दिया गया. किसानों का कहना है कि जब-जब राज्य में अकाली दल सत्ता में आता है, तब-तब उन पर गाज गिरती है.
कासा एवं सरकंडों को साफ करके ज़मीन समतल कर दी गई है, जो अब उपजाऊ बन गई है. पूरे इलाक़े में 22 हज़ार किसान उस पर खेती कर रहे हैं. किसानों ने गदावरी पद्धति से इस पर खेती की है और वे सरकार को टैक्स भी देते रहे हैं, लेकिन ब्लॉक एवं तहसील प्रमुख किसानों से चालीस-पचास हज़ार रुपये प्रति एकड़ की मांग करते हैं, जिसके चलते अधिकांश किसान ज़मीन अपने नाम नहीं करा पा रहे हैं. इधर किसानों की फसलें नष्ट करने एवं जलाने की घटनाएं आम हो गई हैं. भू-स्वामियों, जिनमें विभिन्न दलों के स्थानीय नेता भी शामिल हैं, की नज़र इस ज़मीन पर है.
एक अन्य मामला भी जांच दल के सामने आया. रावी नदी के किनारे लगभग 8 किमी चौड़ी और 150 किमी लंबी कछार ज़मीन की पट्टी तैयार हो गई है, जो ख़ुद में एक बड़े किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि समेटे है. अपने बहाव के रुख़ में बदलाव करते हुए रावी नदी खिसकते-खिसकते पाकिस्तान की सीमा के समीप चली गई है. इस ज़मीन को किसानों ने खेती के लायक़ बना दिया है. कासा एवं सरकंडों को साफ करके ज़मीन समतल कर दी गई है, जो अब उपजाऊ बन गई है. पूरे इलाक़े में 22 हज़ार किसान उस पर खेती कर रहे हैं. किसानों ने गदावरी पद्धति से इस पर खेती की है और वे सरकार को टैक्स भी देते रहे हैं, लेकिन ब्लॉक एवं तहसील प्रमुख किसानों से चालीस-पचास हज़ार रुपये प्रति एकड़ की मांग करते हैं, जिसके चलते अधिकांश किसान ज़मीन अपने नाम नहीं करा पा रहे हैं. इधर किसानों की फसलें नष्ट करने एवं जलाने की घटनाएं आम हो गई हैं. भू-स्वामियों, जिनमें विभिन्न दलों के स्थानीय नेता भी शामिल हैं, की नज़र इस ज़मीन पर है. किसान भी संगठित हैं और विरोध कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप बीती 16 फरवरी को किसान नेता साधु सिंह की हत्या कर दी गई. किसानों के अनुसार, इस हत्या में शिरोमणि अकाली दल के पूर्व विधायक वीर सिंह लोकोके  का हाथ है, पर पुलिस लोकोके  को निर्दोष करार देने में जुटी है. किसानों द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट में पूर्व विधायक लोकेके, थानाध्यक्ष कुलविंदर सिंह, रसपाल सिंह एवं सर्वजीत सिंह को अभियुक्त बनाया गया था, लेकिन इनमें से किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई. जांच दल द्वारा पूछे जाने पर एसपी (ग्रामीण) ने कहा कि लोकेके के ख़िला़फ कोई सबूत नहीं है. पुलिस का रवैया यह है कि किसान कार्यकर्ता सुखसा सिंह की न्यायिक हिरासत में मौत के बाद भी कोई जांच-पड़ताल नहीं की गई. रावी नदी के किनारे स्थित यह ज़मीन अमृतसर, गुरदासपुर एवं तरनतारन आदि ज़िलों में है, लेकिन संघर्ष की शुरुआत अमृतसर के पिंदाऔलख से हुई. यहां काम कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि 15 हज़ार रुपये प्रति एकड़ की दर किसानों के लिए बहुत ज़्यादा है. ऐसे में सरकार धनराशि कम करे या इसे किस्तों में अदा करने की अनुमति दे. कृति किसान यूनियन के मास्टर मालविंदर सिंह के अनुसार, राज्य सरकार कोई नीति नहीं बना रही है, इससे क्षेत्र में असंतोष फैल रहा है. जांच दल ने छात्रों औैर छात्र नेताओं से भी संपर्क किया. छात्रों में सरकार और पुलिस को लेकर खासा आक्रोश है. आंदोलन का मुद्दा छात्रों के लिए रियायती पास का है. पंजाब ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन छात्रों को रियायती पास देता है, लेकिन राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन का निजीकरण कर दिया हैै और निजी बसें छात्रों को पास की अनुमति नहीं दे रही हैं. इसे लेकर मोगा ज़िले के  छात्रों ने आंदोलन छेड़ा था. कई बार प्रशासन के साथ छात्रों की वार्ता भी हुई, पर परिणाम शून्य रहा. उल्टे कई छात्र नेताओं को जेल भेज दिया गया. छात्रों ने बताया कि पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरमुख सिंह मान, लखवीर सिंह, बलजीत सिंह, निर्मल सिंह, हरजिंदर कुमार एवं बलजीत जेल में हैं. पुलिस ने 11 छात्रों के ख़िला़फ नामजद एफआईआर दर्ज कर रखी है. आईटीआरई के निजीकरण के ख़िला़फ भी छात्र आंदोलित हैं. 30 मार्च को छात्रों ने प्रदर्शन किया तो पुलिस ने लाठीचार्ज के बाद नौ छात्र नेताओं को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया. विरोधस्वरूप छात्रों ने 26 अप्रैल को पूरे पंजाब में रैली निकाल कर प्रदर्शन किया. राजेंद्र  सिंह, धर्मेंद्र सिंह एवं जसविंदर कौर ने बताया कि पूरा ट्रांसपोर्ट सिस्टम मुख्यमंत्री बादल के परिवार के पास है. इतना ही नहीं, मोगा स्थित महिला आईटीआई के आधे परिसर में सरकार ने पुलिस लाइन बना दी है, जहां पुलिस ने छात्राओं का पढ़ना-लिखना दूभर कर रखा है. पूरे पंजाब में ख़ास बात यह देखी जा रही है कि किसानों, कर्मचारियों एवं छात्रों की समस्याएं अलग-अलग होने के बावजूद सभी तबके के लोग एकजुट हो रहे हैं. नवां शहर में बिजली कर्मचारियों के समर्थन में वकीलों के संगठन डेमोक्रेटिक लायर्स फोरम, किसान संगठन और छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया. बिजली कर्मचारियों के समर्थन में आए छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार करके थाने में उनकी जमकर पिटाई की और कपड़े उतरवा कर अपमानित किया. आईएफटीयू नेता गुरमीत सिंह बखतपुरा पर पुलिस ने जानलेवा हमला किया. बीते 15 मार्च को पुलिस ने रात के व़क्त बखतपुरा के घर पर छापा मारा. उसी दौरान यह 24 वर्षीय नेता दो मंजिला मकान से नीचे गिर गया. गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद पुलिस ने न तो ख़ुद उन्हें अस्पताल भेजा और न ही जाने दिया, बल्कि उल्टे गुरमीत सिंह को हथकड़ी और लगा दी गई. गुरमीत फाउंडरी आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे. सूत्रों का कहना है कि गुरमीत के ख़िला़फ यह पुलिसिया कार्रवाई स्थानीय विधायक एवं ट्रांसपोर्टर जगदीश राज साहनी के इशारे पर की गई.

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