Saturday, July 9, 2011

शहादत से खिलवाड़ : नौ साल बाद भी राज्‍य सरकार ने नहीं ली कोई सुध

Written by NewsDesk Category: सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार Published on 04 July 2011
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सुलतानपुर। अट्ठासी बरस की जसीमुन निसां का जवान बेटा अदीब अनवर मुल्क की हिफाज़त करते हुए सरहद पर दुश्‍मनों की गोलियों का शिकार बन करीब नौ बरस पहले मौत की आगोश में पहुंच गया। लेकिन आज भी मां जसीमुन के माथे पर न कोई शिकन है और न ही चेहरे पर दुःख व ग़म के भाव बल्कि शहीद अदीब की मां जसीमुन निसां फक्र के साथ कहतीं हैं कि उनके बेटे ने उनके दूध की लाज रख ली। हां शहीद की मां जसीमुन को यदि किसी चीज़ की तकलीफ है तो वह यह कि उनके बेटे की शहादत से खिलवाड़ किया गया। जसीमुन निसां की माने तो शहीद अदीब की शहादत के बाद केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से श्‍ाहीद के परिवार को मदद दिलाये जाने की लम्बी डींग अवश्‍य हांकी गई लेकिन उक्त दोनों ही सरकारों की सहायता रुपी घोषणाएं अमली जामा नहीं पहन सकीं। खासकर राज्य सरकार शहीद के परिवार के हक में हर मोर्चे पर फेल रही।

रविवार को एक खास बातचीत के दौरान वर्ष 2002 में बाघा बार्डर पर शहीद हुए जनपद के आमकोल निवासी अदीब अनवर की 88 वर्षीय मां जसीमुन निसां ने जो दास्तां सुनाई उससे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। शहीद की मां ने बताया कि उसके बेटे अदीब ने जिस घड़ी देश के लिये कुर्बानी देते हुए शहादत पाई उसकी उम्र सिर्फ 20 बरस थी। जसीमुन का बेटा अदीब सेना में सहायक अभियन्ता के पद पर तैनात था। जसीमुन निसां का कहना है कि
अदीब
अदीब की फाइल फोटो
जिस घड़ी अदीब की शहादत की खबर उसके पैतृक गांव पहुंची तो कुछ लमहों के लिये तो वह यह समझ ही नहीं पाई कि उनकी कोख से जन्मा अदीब इस तरह से ख्याति पाएगा। खैर,  उसकी लाश आने के बाद मां ने उसे देखकर विदा कर दिया। वह भी तब जबकि जवान बेटे के सिर सेहरा बंधने का अरमान वह सजोये बैठी थीं। जसीमुन निसां ने बताया कि जहां उनका बेटा देश के नाम पर मर मिटकर उनको ढेरों खुशियां दे गया,  वहीं उसकी शहादत के बाद परिवार को मदद के नाम पर केन्द्र व राज्य की सरकारों ने उन पर दुःख का पहाड़ तोड़ डाला। तत्कालीन केन्द्र सरकार की ओर से परिजनों को मिलने वाली दस लाख की रक़म में से परिजनों को साढ़े सात लाख की रक़म मुहैया करा दी
जसीमुन
जसीमुन निसां
गई वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से शहादत के नौ बरस बीतने के बाद भी शहीद के परिजनों को एक फूटी कौड़ी भी अब तक नहीं दी गई। यही नही बल्कि सेना के कमान अधिकारी द्वारा जारी किये गये पत्र को संज्ञान में लिया जाय तो 113 सैन्य अभियन्ता दल केयर ऑफ 56ए0पी0ओ0 के पत्र सं0 1305/02/01 में साफ दर्शाया गया है कि राज्य सरकार शहीद के नामिनी को 10 लाख एक्स ग्रेसिया के रुप में देगी। इसके अलावा शहीद के परिवार को राज्य सरकार से मिलने वाले लाभ के बाबत निदेशालय सैनिक कल्याण एवं पुर्नावास के हवाले से लिखा गया है कि शहीद के परिवार के एक व्यक्ति को नौकरी या एक पेट्रोल पम्प आवंटित कराया जाय। जानकर आपको भी हैरत होगी कि तत्कालीन मुस्लिम हितैषी सरकार से लेकर वर्तमान सरकार के हुकमरानों में से किसी एक ने यह सुविधा शहीद के परिजनों को उपलब्ध कराने की जहमत नहीं की।
यही नही पत्र में यह भी लिखा गया है कि शहीद के परिजनों को 10 बीघा खेती योग्य ज़मीन भी राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराया जाय ताकि शहीद के परिजनों का गुज़र बसर चल सके। अब सवाल यह खड़ा होता है कि इन नौ बरसों में सूबे के अन्दर दो दलों की सरकारें आईं। एक सरकार मुल्ला मुलायम की तो दूसरी सरकार जो चल रही है, जिसका नारा सर्वजन को न्याय दिलाने का है। शहादत पाने वाला श्‍ाहीद कोई गैर नहीं बल्कि मुस्लिम समाज से उसका ताल्लुक था। आखिर मुल्ला मुलायम का मुस्लिम प्रेम उस समय कहां खो गया था, और वर्तमान में सर्वजन की सरकार से सवाल यह है कि एक शहीद के परिजनों को उसके बेटे की शहादत पर सर्वजन के हित में यही सिला मिलना चाहिये जो की नौ बरसों से दिया जा रहा है?  ऐसे कई अनसुलझे सवाल हैं जिनका जवाब किसी के पास नहीं है।
सुल्‍तानपुर से असगर नकी की रिपो

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