उत्तर प्रदेश के दस्यु प्रभावित इटावा जिले में वैसे तो एक समय खूंखार डाकुओं का बसेरा हुआ करता था लेकिन आज की तारीख में डाकू शब्द सुनने के लिये यहां के वाशिंदे तरस गये हैं। डाकुओं का खात्में ने लोगों के चेहरों की रोशनी को वापस लौटा दिया है, अब एक नई मुसीबत अजगरों के तौर पर सामने आती हुई देखी जा रही है। भले ही सांप का नाम सुनते ही लोगों का हलक सूख जाता हो, लेकिन भय या गुस्से में इटावा के लोगों ने वो काम नहीं किया जिससे वन अफसरों के सामने कोई मुसीबत आकर के खड़ी हो।
इटावा के लोगो ने शहरी या फिर ग्रामीण इलाकों मे निकलने वाले अजगरों को पकड़ने के बाद वन विभाग को सुपुर्द करवाया और जंगल में छुड़वाने में मदद की है। इटावा के लोगों में आये इस आश्चर्यजनक बदलाव को लेकर वन अफसर कहते हैं कि इटावा के लोग जागरूक हो गये हैं, इसी वजह से किसी भी अफसर को क्षति नहीं हुई। पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के सचिव डा.राजीव चौहान का कहना है कि इटावा में निकल रहे अजगरों को लेकर यह बात सामने आई है कि प्राकृतिक वास स्थलों के साथ छेड़छाड़ की वजह से ही अजगरों का निकलना जारी है। दूसरे इन दिनों हो रही बारिश की वजह से अजगरों के प्राकृतिवासों में पानी भर जाता है। इस कारण अजगरों को पानी के उपर आना पडता है और जब अजगर पानी के उपर आ जाता है तो जाहिर है कि लोगो में भय देख जा सकता है।
अजगर को संरक्षित श्रेणी एक में गिना जाता है। जिस ढंग से अजगरों के निकलने का सिलसिला जारी है उससे लोगों में भय का माहौल बना हुआ है। अभी तक इटावा में निकले अजगरों का साइज 5 फुट से लेकर 15 फुट तक रिकार्ड किया गया है, जिनका वजन 40 किलो तक आंका गया है। जिन इलाकों मे अभी तक अजगर निकले हैं वहां के लोगों ने वन विभाग के कर्मियों को बुलावा कर अजगरों को जंगलों मे छुड़वाया है। अजगरों में जहर नहीं होता है इसलिये अजगरों को पकड़ने मे कोई खास कठिनाई नहीं होती है। वन्य जीव विशेषज्ञ मान कर चलते हैं कि इटावा में अजगरों की तादात खासी है।
ऐसा माना जा सकता है कि इटावा के लोग वन्य जीवों के प्रति खासे चिंतित हैं, तभी तो यहां के लोग डर पैदा करने वाले अजगरों से भी कतई नहीं डरे हैं।
दस्यु गतिविधियों के लिए कुख्यात समझी जाने वाली चंबल घाटी के लोगों ने दस्यु गिरोहों की दहशत से निजात पाई ही थी कि अब घाटी में निकलने वाले अजगरों ने घाटी वासियों की दहशत और बढ़ा दी है। आबादी वाले क्षेत्रों में अजगरों के आ जाने के कारण यहां के वाशिंदों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित होने लगी है। अजगरों का खौफ यहां के लोगों में इस कदर बस गया है कि उन्होंने अपने जानवरों एवं बच्चों को भी गांव से बाहर भेजना बंद कर दिया है।
चंबल घाटी में बच्चों का बचपन घरों की चाहरदीवारी में कैद होकर रह गया है। खेलने-कूदने व धमाल मचाने की तमन्ना तो दिल में हिलोरे मारती हैं परंतु परिजनों की बंदिशें उनकी तमन्नाओं को दमन कर देतीं हैं। परिजनों की अपनी मजबूरी है। वह अपने लाड़लों को असमय खोना नहीं चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनके लाड़ले कहीं किसी जहरीले सांप अथवा अजगर की चपेट में न आ जाएं। बच्चे तो बच्चे बड़ों में भी दहशत इस कदर पसरी हुई है कि उन्हें दिन-रात सिर्फ सर्प और अजगर ही नजर आते हैं। आलम यह है कि सुकून से वह दो वक्त की रोटी भी नहीं खा सकते हैं। कब कहां अजगर सामने आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है।
करीब 2 साल पहले सहसो इलाके के अजीत की गढिया गांव में एक लड़की को अजगर ने निगलने की कोशिश की, जिसको लेकर गांव में लंबे समय तक दहशत बनी रही है। गौरतलब है कि इससे पहले घाटी के सधूपुरा में अजगर ने एक बकरी को अपना शिकार बनाया था। कचहरी शेरगढ़ में भी अजगर का निवाला बकरी ही बनी थी। लवेदी क्षेत्र के ग्राम टकरूपुर, बकेवर क्षेत्र के इकनौर में भी अजगर की दहशत ने ग्रामीणों को परेशानी में डाल दिया था। लोगों के भय का आंकलन इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अब अपने जानवरों को चराने भेजना तक भी बंद करा दिया है। इससे चंबल क्षेत्र के किसानों की फसलें भी बुरी तरह प्रभावित होने की संभावना है।
प्रशासनिक अधिकारियों अथवा चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों के पास सिर्फ सतर्कता बरतने की अपील के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वन अफसर बताते हैं कि ग्रामवासी घर से निकलने से पहले सतर्कता बरतें और सुबह-शाम विशेष रूप अलर्ट रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा जहरीले सांपों का खतरा भी चंबलवासियों के लिए कम नहीं हैं। सोसायटी फॉर कंजर्वेसन ऑफ नेचर के सचिव डा. राजीव चैहान बताते हैं कि घाटी के यमुना तथा चंबल क्षेत्र के मध्य तथा इन नदियों के किनारों पर सैकड़ों की संख्या में अजगर हैं। हालांकि इन अजगरों की कोई तथ्यात्मक गणना नहीं की गई है। वह बताते हैं कि इसके अलावा यहां के लोगों के लिए जहरीले सांपों का भी खतरा लगातार बना रहता है। बरसात के मौसम में जहरीले सांपों में कोबरा, करैत तथा वाइसर जैसे सांपों के विचरण से जान का खतरा हो सकता है।
सोसायटी फॉर कंजर्वेसन ऑफ नेचर के सेक्रेटरी एवं वन्य जीव विशेषज्ञ डा. राजीव चौहान बताते हैं कि अजगरों के शहरी क्षेत्र में आने की प्रमुख वजह यह है कि जंगलों के कटान होने के कारण इनके प्राकृतिक वास स्थल समाप्त होते जा रहे हैं। जंगलों में जहां दूब घास पाई जाती है, वहीं यह अपने आशियाने बनाते हैं। अब जंगलों के कटान के कारण दूब घास खत्म होती जा रही है। इसके अलावा अजगर अपने वास स्थल उस स्थान पर बनाते हैं, जहां नमी की अधिकता होती है परंतु जंगलों में तालाब खत्म होने से नमी भी खत्म होती जा रही है।
चंबल के वाशिंदे बताते हैं कि देश की आजादी के बाद वह लगातार कुख्यात दस्यु गिरोहों के खौफ से जूझते रहे हैं। इन डकैतों के संरक्षण के नाम पर पुलिस की दहशत भी हमने झेली है, परंतु जब पुलिस ने दर्जनों कुख्यात दस्यु सरगनाओं को मार दिया अथवा समर्पण करने को मजबूर कर दिया तो अब अजगर सहित जहरीले सांपों की दहशत से निजात मिलने की संभावनाएं कम ही नजर आ रहीं हैं। जानकार बताते हैं कि बरसात के मौसम में जहरीले सांप तथा अजगर अपने-अपने बिलों से निकल कर स्वंच्छंद विचरण करते हैं और ऐसे में यदि इनके सामने कोई आ जाए तो यह उस पर हमलावर रूख अपना लेते हैं। चंबल क्षेत्र में अब तक दर्जनों लोगों सांप के काटने से अपनी जिंदगी खो चुके हैं।
अजगर के बारे में जानकार बताते हैं कि अजगर एक संरक्षित जीव है परंतु इसके संरक्षण के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकारें कोई नीति नहीं बना रहीं हैं। जिला वन अधिकारी सुर्दशन सिंह बताते हैं कि हिंदुस्तान में सुडूल-वन प्रजाति के अजगरों की संख्या काफी कम हैं। इस प्रकार के अजगरों के सरंक्षण के लिए सरकारों को शीघ्र ही एक नीति बनानी पड़ेगी। वे बताते हैं कि अजगर एक संरक्षित प्राणी है। यह मानवीय जीवन के लिए बिलकुल खतरनाक नहीं है परंतु सरीसृप प्रजाति का होने के कारण लोगों की ऐसी धारणा बन गई और इसकी विशाल काया के कारण लोगों में अजगर के प्रति दहशत फैल गई है।
वे बताते हैं कि हिंदुस्तान में इस प्रजाति के अजगरों की संख्या काफी कम है, यही कारण है कि इन्हें संरक्षित घोषित कर दिया गया है परंतु इसके बावजूद इनके संरक्षण के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकार ने कोई योजना नहीं की है। वह बताते हैं कि जंगलों के कटान के कारण दूब घास नष्ट होती जा रही है इसके लिए अब जंगलों में दूब घास बढ़ाने के लिए अध्ययन किया जाएगा। हालांकि वह स्वीकारते हैं कि विलुप्तता के कगार पर पहुंचते जा रहे इन अजगरों के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकारों को कोई न कोई शीघ्र ही योजना तैयार करनी होगी अन्यथा अजगर जैसा जीव किताबों में ही सिमट कर रह जाएगा।
इटावा से दिनेश शाक्य की रिपोर्ट.
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