राधास्वामी!
02-04-2022-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
देख जग का ब्योहार असार ।
करत रहा मन में नित्त विचार॥१॥
कौन घर से यह जिव आया ।
कौन याहि जग में भरमाया॥२॥
छोड़ जग फिर कहाँ जावेगा ।
करम का फल कहाँ पावेगा॥३॥
कौन है प्रेरक घट घट में ।
रहा छिप दीखे नहिं पट में॥४॥
कौन विधि होय मालिक राज़ी ।
कौन विधि मन इंद्री साधी॥५॥
खोज मैं कीना बहु भाँती ।
न आई मन को कहीं शांती॥६॥
भरम में फँस रहे पंडित भेष ।
बाँध रहे सब मिल पिछली टेक॥७॥
कोइ कोइ बिद्या में भरमान ।
करत पुरुषारथ आपा ठान।।८।।
न जानें को है निज करतार ।
रूप अपने का करत विचार॥९॥
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खोज उसका भी कुछ नहिं कीन ।
धारना पिंड रिदे में कीन।।१०॥
रहे अस मन आकाश समाय।
पता निज घर का कोइ नहिं पाय॥११॥
हुआ मन मेरा अधिक उदास ।
न आया उन बचनन विश्वास॥१२॥
भाग से प्रेमी जन मिले आय ।
पता गुरु संगत दीन बताय॥१३॥
उमँग कर सतसँग में आया ।
भेद निज घर का वहाँ पाया॥१४॥ सुरत और शब्द जोग की रीत ।
लखी और मन में भई परतीत॥१५॥ प्रेम सँग करता नित अभ्यास ।
देखता घट में परम बिलास॥१६॥
सुरत सतपुर से यहाँ आई ।
काल ने जग में भरमाई॥१७॥
शब्द की डोरी गह कर हाथ ।
उलट घर जावे सतगुरु साथ॥१८॥
*●●कल से आगे-(02-04-22)●●
होय कर जनम मरन से न्यार ।
अमर घर पावे सुक्ख अपार॥१९॥
चरन में गुरु के घर परतीत ।
बढ़ावे छिन छिन घट में प्रीत॥२०॥
नाम राधास्वामी हिरदे धार ।
कमावे सुरत शब्द की कार॥२१॥ कोई दिन अस करनी बन आय ।
मगन होय सुरत चरन रस पाय॥२२॥ चरन में बिनय करूँ हर बार ।
लेव मन सूरत मोर सुधार॥२३॥
दूत सँग भरमत दिन और रात ।
उठावत नित नित नये उतपात॥२४॥
दया की दृष्टी मो पर डाल ।
काट दो मन माया का जाल॥२५॥
हुआ मेरे मन में निश्चय आज।
करें मेरा राधास्वामी पूरन काज॥२६॥ जगाया राधास्वामी मेरा भाग ।
दिया मोहि चरन सरन अनुराग॥२७॥
उमँग कर आरत उन गाऊँ ।
चरन राधास्वामी नित ध्याऊँ॥२८॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-8- पृ.सं.345,346,347)*
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