*राधास्वामी!
27-04-22-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
अरे मन क्यों नहिं धारे गुरु ज्ञान।।टेक।।
सत चेतन घट माहिं विराजे ।
तू बाहर जड़ सँग भरमान॥१॥
निज घर तेरा अगम अपारा।
तू रहा जग सँग यहाँ भुलान।।२।।
धन औ मान पाय बहु फेला।
तिरिया सूथ सँग मेल मिलान।।३।।
जग की हालत नित उठ देखे ।
कोई न ठहरे सभी चलान॥४॥
फिर फिर बिरधी चाहे यहाँ की ।
ऐसा मूरख समझ न लान॥५॥
कभी जाग्रत कभी सुपन अवस्था।
गहिरी नींद में कभी सुलान॥६॥
इन हालों में नित प्रति बरते ।
परख न लावे अजब सुजान॥७॥
मद माता भोगन में राता।
मोह जाल में रहा फँसान॥८॥
करता की रचना नित देखे।
तौ भी उसका खोज न आन॥९॥
परगट है क़ुदरत का खेला।
यह पोथी कभी पढ़ी न पढ़ान॥१०॥
खान पान में बैस बितावत।
मरने की कभी सुद्ध न लान॥११॥
काम क्रोध और लोभ लहर में ।
बहत रहे निस दिन अनजान॥१२॥
जो कोइ बचन चितावन कारन।
कहे तो उससे रूसें आन॥१३।।
साध संत हुए जिव हितकारी।
परमारथ की राह लखान॥१४॥
शब्द भेद दे जुगत बतावें ।
सुरत चढ़ावें अधर ठिकान॥१५॥
जनम मरन की फाँसी काटें।
काल करम से सहज बचान॥१६॥
तिनका बचन सुने नहिं चित दे।
सोचे न अपनी लाभ और हान॥१७॥
संत संग नाता नहिं जोड़े।
सतसँग में नहिं बैठे आन॥१८॥
कुटुंब जगत का मोह न छोड़े।
क्योंकर पावे नाम निशान॥१९॥
जीव हुआ लाचार जगत में ।
निरबल निरधन निपट अजान।।२०।।
जब लग मेहर न होवे धुर की।
संत मता कस माने आन॥२१॥
राधास्वामी दया करें जिस जन पर।
संत चरन में वही लगान॥२२॥
प्रीति लाय नित करे साध सँग।
सुरत शब्द की कार कमान॥२३॥
शब्द शब्द रस पिये अधर चढ़।
सतगुरु का हिये घर कर ध्यान॥२४॥
दया हुई कारज हुआ पूरा।
राधास्वामी चरन समान॥२५॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-27-
पृ.सं.370,371,372,373)*
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