राधास्वामी!
शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
सरन गुरु महिमा चित्त बसाय।
सुरत मन निस दिन चरनन धाय।।१।।
चरन गुरु दृढ़ परतीत सम्हार।
प्रीति हिये बढ़ती दिन दिन सार॥२॥
चरन राधास्वामी आसा धार।
जिऊँ मैं निस दिन चरन अधार॥३॥
हिये में राधास्वामी बल धारूँ।
दया ले काल करम जारूँ॥४॥
भरोसा राधास्वामी हिरदे धार।
मौज गुरु हर दम रहूँ निहार॥५॥
निरख कर चलती मन की चाल।
परख कर काटूँ माया जाल॥६॥ सहज में छोड़ँ क्रोध और काम।
जपूँ नित हिये में राधास्वामी नाम॥७॥
लोभ और मोह बिसार दई।
अहँग तज छोड़ी मानभई॥८॥
●●कल से आगे-●●
दया राधास्वामी लेकर साथ।
काल और मन का कूटूँ माथ॥९॥
परख कर पकड़ गुरु बचना।
चाल मन माया नित तजना॥१०॥
डरत रहूँ सतगुरु से हर दम।
चरन में राखूँ चित कर सम॥११॥
गुरु की आज्ञा सिर पर धार।
चलूँ नित बचन बिचार बिचार॥१२॥
गाऊँ उन महिमा दिन और रात।
करूँ उन सेवा तन मन साथ॥१३॥
शुकर कर हिरदे से हर बार।
चरन पर जाऊँ नित बलिहार॥१४॥
उमँग कर नित आरत करती।
प्रेम राधास्वामी हिये भरती॥१५॥
●●कल से आगे-21-04-22-●●
पिरेमी जन सँग गाऊँ राग।
बढ़त मेरे दिन दिन हिये अनुराग॥१६॥
मेहर राधास्वामी छिन छिन पाय।
ध्यान गुरु चरनन रहूँ समाय॥१७॥
शब्द धुन बजती नभ की ओर।
गगन चढ़ गई रैन हुआ भोर॥१८॥
चाँदनी खिली सुन्न के माहिं।
भँवर चढ़ मिटी काल की दायँ॥१६॥
सुनी धुन बीना सतपुर जाय।
मगन हुई दरशन सतपुर्ष पाय॥२०॥
अलख चढ अगम से कीना प्यार।
अनामी पुरुष किया दीदार॥२१॥
परख कर सुरत शब्द निज धार।
करूँ गुरु आरत जाउँ बलिहार॥२२॥
दया राधास्वामी कीन अपार।
हुई मस्तानी रूप निहार॥२३॥
बेद नहिं जाने यह घर बार।
रहे सब जोगी ज्ञानी वार।।२४।।
दिया मेरा राधास्वामी भाग जगाय ।
मगन हुई मैं यह निज घर पाय॥२५॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-76- पृ.सं.367,368,369,370)*
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