राधास्वामी!
06-04-2022-
प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
सुनत गुरु महिमा जागी प्रीति ।
छोड़ दई मन ने जग की रीति॥१॥
भजत गुरु नाम मिला आनंद ।
सुनत गुरु शब्द कटे भौ फंद॥२॥
भटक में बहु दिन गये बीते । बस्तु नहिं पाई रहे रीते॥३॥
भेख और पंडित डाला जाल ।
हुए सब माया सँग पामाल॥४॥
भरम रहे आप अँधेरे माहिं ।
अटक रह काल करम की छाँह॥५॥
पुजावे सब से नीर पखान।
न पाई सतपद की पहिचान॥६॥
भरमते सब जिव चौरासी ।
कटै नहिं कबहीं जम फाँसी॥७॥
घटाया उन सँग भाग अपना ।
सहें नित करमन सँग तपना॥८॥
हुई मौपै अचरज दया अपार ।
लिया मोहि राधास्वामी आप निकार।।९।।
भेद निज घर का समझाया।
शब्द का मारग दरसाया।।१०।।
●●●●कल से आगे●●●●
सुनाये बचन गहिर गंभीर। छुटाई तन मन की अब पीर।।११।।
करम और भरम दिये छुटकाय।
भक्ति गुरु दीनी हिये बसाय।।१२।।
चरन में गुरु के बढ़ती प्रीति। धार लई मन ने भक्ति रीति।।१३।।
सुरत मन अटके गुरु चरना।
गावती छिन छिध गुरु महिमा।।१४।।
सरन गुरु लागी अब प्यारी । उतर गई पोट करम भारी॥१५॥
करूँ गुरु आरत चित्त सम्हार ।
चरन पर राधास्वामी जाउँ बलिहार।।१६।।
हुआ मेरे चित में दृढ़ बिस्वास।
करें गुरु पूरन मेरी आस॥१७॥
दया कर देहैं चरन में बास।
करूँ मैं उन सँग नित्त विलास॥१८॥
परम गुरु राधास्वामी किरपा धार ।
सरन दे मोहि उतारा पार॥१९॥
सहसदल देखूँ जोति सरूप ।
निरखती त्रिकुटी चढ़ गुरु रूप॥२०॥
सुन्न में सुनती सारँग सार ।
भँवर में मुरली धुन झनकार॥२१॥
सत्तपुर पहुँची लगन सुधार ।
पुरुष का दरशन किया सम्हार।।२२।।
गई फिर अलख अगम के धाम ।
परम गुरु मिले अरूप अनाम।।२३।।
आरती उन चरनन में धार ।
लिया मैं अपना जनम सुधार॥२४॥
मेहर राधास्वामी बरनी न जाय।
दिया मोहि सहजहि पार लगार।।२५।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-69- पृ.सं.352,353,354,355)
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