मुठ्ठी खोलो और बंधन मुक्त हो जाओ
प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
*एक बार एक संत अपनी कुटिया में शांत बैठे थे, तभी उन्हें कुछ शोर सुनाई दिया जा कर देखा तो एक बंदर ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था.*
*उसका एक हाथ एक घड़े के अंदर था और वह बंदर अपना हाथ छुड़ाने के लिए चिल्ला रहा था.*
*संत को देख वह बंदर संत से आग्रह करने लगा - महाराज कृपया कर के मुझे इस बंधन से मुक्त करवाए.*
*संत ने बंदर को कहा - तुमने घड़े के अंदर हाथ डाला तो वह आसानी से उसमे चला गया....*
*परन्तु अब इसलिए बाहर नहीं निकल रहा है क्यूंकी तुमने अपने हाथ में लड्डू पकड़ा हुआ है जो कि उस घड़े के अंदर है, अगर तुम वह लड्डू हाथ से छोड़ दो तो तुम आसानी से मुक्त हो सकते हो.*
*बंदर ने कहा - महाराज, लड्डू तो मैं नहीं छोड़ने वाला, अब आप मुझे बिना लड्डू छोड़े ही मुक्त होने की कोई युक्ति सुझाए.*
*संत मुस्कुराए और कहा - या तो लड्डू छोड़ दो अन्यथा तुम कभी भी मुक्त नही हो सकते.*
*हज़ार कोशिशों के बाद बंदर को इस बात का एहसास हुआ कि बिना लड्डू छोड़े मेरा हाथ इस घड़े से बाहर नही निकल सकता और मैं मुक्त नही हो सकता.*
*आख़िरकार बंदर ने वो लड्डू छोड़ा और सहजता से ही उस घड़े से मुक्त हो गया.*
*यह कहानी सिर्फ़ उस बंदर की ही नहीं बल्कि आज के हर उस इंसान की है जो की उस घड़े में (संसार में) फँसा बैठा है.*
*लड्डू (संसारिक वस्तुओं) को छोड़ना भी नहीं चाहता और उस घड़े (84 के फेरे से) से मुक्त भी होना चाहता है.*
*संत (सदगुरु) ने समझानें का कार्य कर दिया..... .अब किसे कब समझ आए और वह कब मुक्त होगा यह उसकी अपनी समझ है।*
*मंगलमय रात्रि*
*स्नेह वंदन*
No comments:
Post a Comment