2010 अलविदा: खु़शामदीद 2011
तनवीर जाफ़री
प्रत्येक वर्ष की भांति वर्ष 2010 भी आखिरकार हम सब को अलविदा कह गया और हमेशा की तरह हमने तमाम नई आशाओं व उ मीदों के साथ नववर्ष 2011 को खु़शामदीद कहा। बीता वर्ष अपने पीछे तमाम खट्टी-मीठी यादें, राजनैतिक, आर्थिक तथा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कई यादगार घटनाओं को इतिहास के पन्नों में दर्ज कर गया। वैसे तो गुजरा वर्ष 2010 पूरी दुनिया के लिए तमाम प्रमुख घटनाओं का केंद्र रहा। परंतु भारत वर्ष के लोगों के लिए गत् वर्ष का कुछ अलग ही महत्व रहा। भारत वर्ष के लिए बीता वर्ष केवल सकारात्मक परिणामों, रचनात्मक कार्यों तथा अच्छाईयों के लिए ही नहीं बल्कि घपलों, घोटालों, भ्रष्टाचार तथा कई विवादित एवं नकारात्मक घटनाओं का भी वर्ष गिना जाएगा।उदाहरण के तौर पर 2010 में पहली बार भारत वर्ष राष्ट्रमंडल खेल जैसे भव्य एवं अदभुत विशाल अंतरराष्ट्रीय आयोजन करने वाले देशों में शामिल हुआ। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन ने भारत वर्ष का नाम पूरी दुनिया में रौशन किया। इस आयोजन के माध्यम से देश ने यह भी साबित कर दिया कि यहां भी बड़े से बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन किया जा सकता है। वहीं इसी खेलआयोजन से जुड़े घपलों व घोटालों ने देश को शर्मसार करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार जहां सौ से अधिक पदक जीतकर हमारे खिलाड़ियों ने देश का नाम रौशन किया वहीं आयोजन के तुरंत बाद आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाड़ी को तथा इससे जुड़े और कई अधिकारियों को आयोजन में हुए घोटाले के संदेह में पदमुक्त कर तथा उनके विरुद्ध जांच करवाकर सरकार ने यह भी जता दिया कि इस महान आयोजन में सब कुछ ठीक नहीं था। इसी प्रकार देश ने संचार एवं सूचना के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित किए। केवल सकारात्मक ही नहीं बल्कि नकारात्मक भी। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला संचार विभाग का एक ऐसा जबरदस्त घोटाला बताया गया जिसमें 1 लाख 74 हजार करोड़ रूपये की बड़ी पूंजी का घोटाला किया गया। केंद्रीय संचार मंत्री ए राजा इस ऐतिहासिक घोटाले के’सिपहसालार’ बताए गए तथा उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटना पड़ा।
इसी तरह मुंबई में जहां कारगिल के शहीदों की विधवाओं के लिए आदर्श सोसाएटी नामक बहुमंजिला इमारत में शहीदों के परिजनों को फ्लैट आबंटित किए जाने की खबर सुनाई दी वहीं इसी आदर्श सोसायटी को लेकर इतनें बड़े घोटालों का पर्दांफाश हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। क्या सेना के सर्वोच्च अधिकारी, क्या मंत्री,क्या ताक़तवर नेता तो क्या इन सभी शक्तिशाली लोगों के रिश्तेदार सभी ने शहीदों के नाम आबंटित होने वाले इन फ्लैटस को हथियाने का प्रयास किया। आर्दश सोसायटी घोटाले के नाम से प्रसिध्द हुए इस भ्रष्टाचारी षड्यंत्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चौहान को अपने गरिमापूर्ण मुख्यमंत्री पद की क़ुर्बानी देनी पड़ी। उधर बिहार में हुए विधान सभा चुनावों में नीतीश कुमार ने अपनी सत्ता की दूसरी पारी शुरु कर बिहार की जनता की ओर से यह संदेश दिया कि जनता अब केवल विकास की बात ही करना व सुनना चाहती है। बीता वर्ष केवल नेताओं व अधिकारियों के लिए ही वरदान या अभिशाप साबित नहीं हुआ बल्कि वर्ष 2010 स्वयं को चौथा स्तंभ कहलाने वाले मीडिया के चरित्र पर भी सवालिया निशान लगा गया। जहां पूरे देश में पेड न्यूज जैसे अतिसंवेदनशील मामले ने मीडिया से जुड़े कई व्यवसायियों, मीडियाघरानों तथा पेशेवर अखबार मालिकों को शर्मिंदा किया वहीं नीरा राडिया जैसी कारपोरेट जगत की दलाल समझी जाने वाली महिला के साथ मीडिया जगत के कुछ दिग्गज लोगों की फोन वार्ता ने यह संकेत भी दिया कि सरकार व कारपोरेट जगत के बीच के दलालों की कड़ी में मीडिया भी एक अहम सहभागी है।
संचार विभाग के 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच को लेकर सरकार ने लोक लेखा समिति (पीएसी)गठन कर दिया था। परंतु भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने संयुक्त संसदीय समिति(जेपीसी) बनाए जाने की मांग की। यह मांग इतनी बुलंद हुई कि देश के इतिहास में पहली बार संसद का 17 दिवसीय शीतकालीन सत्र पूरी तरह से विपक्ष के इसी शोर-शराबे की भेंट चढ़ गया। देश में पहले भी कई बार संसद की कार्रवाईयां कई-कई रोज के लिए बाधित हुई हैं परंतु पूरे सत्र का बर्बाद होना तथा इस पर करोड़ों रुपये का निरर्थक खर्च होना इस प्रकार पहली बार देखा गया। प्रसिद्ध लेखिका अरुंधती राय जहां तमाम राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की हकदार होने के नाते देश में जानी जाती हैं वहीं वर्ष 2010 में वह एक बड़े विवाद का कारण उस समय बनीं जबकि गत् वर्ष नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के साथ कश्मीर की तथाकथित आजादी के मुद्दे पर आयोजित एक सभा में न सिर्फ शिरकत की बल्कि अरुंधती राय ने उस सभा में सार्वजनिक रूप से यह तक कह दिया कि कश्मीर कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था। अरुंधती राय का यह वक्तव्य इतना विवादित हुआ कि दिल्ली पुलिस को भारी दबाव के चलते उनके तथा गिलानी के विरुद्ध राजद्रोह का मुकद्दमा तक दर्ज करना पड़ा।
नक्सली हिंसा तथा इसके विरुद्ध चलाए गए आप्रेशन ग्रीन हंट के लिए भी बीता वर्ष हमेशा याद किया जाएगा। नक्सली हिंसा के तांडव ने गत् वर्ष ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस तथा यात्रियों की एक बस में धमाके कर सैकड़ों लोगों की जान लेकर यह प्रमाण दे दिया कि उन्हें आम लोगों को मारने में भी कोई आपत्ति नहीं है। जबकि नक्सली हमले में सैकड़ों पुलिस कर्मी भी मारे गए। वर्ष 2010 के जाते-जाते छत्तीसगढ़ की अदालत ने एक और ऐसा निर्णय सुना डाला जिसकी परछाई न केवल वर्ष 2010 पर पड़ी बल्कि 2011 भी उस निर्णय की काली छाया से अछूता नहीं रहेगा और यह निर्णय था प्रसिद्ध समाजसेवी, चिंतक तथा डाक्टर विनायक सेन के विरुध्द आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने का। डा0 विनायक सेन को वामपंथी चिंतक माना जाता है। वे गरीबों के बीच कई दशकों से रहकर उनका मुफ्त दवा-इलाज करने का काम करते हैं तथा गरीबों, मजदूरों तथा समाज के शोषित वर्ग की परेशानियों को भलीभांति नजदीक से समझते हुए उनके पक्ष में समय-समय पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। वर्ष 2010 के बिदाई काल में डा0 विनायक सेन को अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाया जाना पूरे देश में एक गर्मागर्म बहस व चिंतन का मुद्दा बन गया। कुछ ताकतें जहां विनायक सेन को सुनाई जाने वाली सजा का समर्थन कर रही हैं वहीं गरीबों व शोषित समाज के पक्ष में सोचने वाला एक काफी बड़ा वर्ग उनको सुनाई जाने वाली सजा का जमकर विरोध भी कर रहा है।
कश्मीर वैसे तो लगभग प्रत्येक वर्ष किसी न किसी अच्छी या बुरी खबरों को लेकर सुंर्खियों में रहता है। परंतु गुजरा वर्ष 2010 कश्मीर के लिए पत्थरबाजी के वर्ष के रूप में अपनी कड़वी यादें छोड़ गया। 2 माह से अधिक समय तक पूरी कश्मीर घाटी भयंकर हिंसा की चपेट में रही। सुरक्षा बलों पर कई शहरों में सुनियोजित तरीके से संगठित अलगाववादी गिरोह के लोगों द्वारा पत्थरबाजियां की गईं। इस हिंसा चक्र में सौ से अधिक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। मसल-ए-कश्मीर को लेकर जहां इन्हीं सब कारणों के चलते अलगाववादी आंदोलन में तेजी आई वहीं केंद्र सरकार ने भी कश्मीर समस्या के समाधान की दिशा में एक अत्यंत महत्पूर्ण कदम उठाते हुए प्रसिद्ध पत्रकार दिलीप पड़गांवकर के नेतृत्व में एक तीन सदस्यीय मध्यस्थताकार समिति का गठन किया जो लगभग पूरे कश्मीर में घूम-घूम कर समाज के सभी वर्गों के लोगों से मिलकर उनके विचारों को सुनेगी तथा उनकी दु:ख तकलींफों व शिकायतों के अनुसार केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजेगी।
अदालती फैसलों की शृंखला में देश का सबसे विवादित व सबसे महत्वपूर्ण फैसला अर्थात् रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर भी इलाहाबाद उच्च न्ययायालय की लखनऊ पीठ ने अपना निर्णय सुना दिया। इस फैसले को भी अलग-अलग नजरों से देखा जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि अदालत ने यह निर्णय देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने तथा हिंदू व मुस्लिम दोनों ही समुदायों के मध्य और अधिक कड़वाहट न फैलने के दृष्टिगत् दिया। दूसरी ओर बाबरी मस्जिद के पैरोकार पक्ष का मानना है कि विवादित भूमि का मात्र तीसरा हिस्सा बाबरी मस्जिद के पक्ष में देने का फैसला सुनाकर उच्च न्यायालय ने उनके साथ नाइंसांफी की है। उधर दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी संगठन भी इस बात को लेकर अड़े हुए हैं कि वे विवादित भूमि केवल एक या दो तिहाई हिस्सा नहीं बल्कि पूरी की पूरी विवादित भूमि लेकर ही रहेंगे। बेशक उच्च न्यायालय के आदेश से कुछ समय के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद देश का सबसे संवेदनशील बन चुका यह मुद्दा अब दम तोड़ देगा। परंतु दोनों पक्षों के अड़ियल व जिद्दी रवैये से ऐसा प्रतीत नहीं होता। अब 2011 में इस दिशा में कुछ और परिणाम तब आते दिखाई देंगे जबकि सर्वोच्च न्यायालय इस संबंध में अपना निर्णय सुनाएगा।
अतिथि देवोभव: का उदघोष करने वाला हमारा देश निश्चित रूप से बीते वर्ष अपने अति विशिष्ट मेहमानों की मेहमान नवाजी में भी बेहद मसरूफ रहा। दुनिया की लगभग सभी पांच बड़ी हस्तियों के प्रमुख अर्थात् अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून, फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकाजी ,चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ तथा रूसी राष्ट्रपति दमित्री मैदवेदेव सहित और भी कई राष्ट्रों के प्रमुखों ने गत् वर्ष हमारे देश की मेहमाननवाजी कुबूल की। इन महाशक्तियों के लगातार भारत आगमन से यह बात भी प्रमाणित हो गई कि भारत अब दुनिया के उन देशों में नहीं है जिसकी अनदेखी की जा सके। और यह भी साबित हो गया कि भारत व्यापार तथा उद्योग जगत में जहां दुनिया के चंद गिने-चुने प्रमुख देशों में शामिल हो चुका है वहीं विश्व के सबसे बड़े बाजार के रूप में भी भारत की अपनी अलग पहचान है। यह भी प्रमाणित हुआ कि चाहे वह विदेशी पूंजी निवेश का मामला हो या परमाणु ईंधन अथवा तेल व गैस की खदानों का मुद्दा, इन सभी क्षेत्रों में भारत के बढ़ते कदम इस बात के सुबूत हैं कि भारत वर्ष अब तीसरी दुनिया का सबसे प्रमुख देश माना जा रहा है।
इन सभी बातों के बावजूद यह भी अपनी जगह पर सत्य है कि लाख तरक्क़ी व उपलब्धियों के बावजूद भारत व इंडिया के मध्य की खाई आज भी उसी प्रकार बरंकरार है जो पहले थी। लिहाजा नववर्ष के शुभ आगमन पर हम सभी भारतवासी यह प्रार्थना व उ मीद करेंगे कि वर्ष 2011 हम सभी भारत वासियों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए कल्याण, खुशहाली, अमन, शांति, भाईचारे तथा सौहार्द्र का संदेश लेकर आए। पूरी दुनिया से नफरत, वैमनस्य, बुराई, दुराचार, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, ग़रीबी, बदहाली, अराजकता तथा हिंसा का नाश हो। समाज का प्रत्येक वर्ग तरक्क़ी करे तथा हम सब में परस्पर सहयोग की भावना का विकास हो
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