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कुछ तो है कि हस्ती मिटाए नहीं मिटती | |||||||||
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लगता है कि हम अपने देश के बारे में शायद उतना नहीं जानते जितना देश के बाहर के लोग हमारे बारे में जानते हैं.
पौराणिक कथाओं के भगवान हनुमान की तरह हमें बार-बार अपनी ताकत का ज्ञान तब होता है, जब कोई दूसरा हमें बताता है. हम विश्व में लोकतंत्र के जनक ही नहीं बल्कि आज भी दुनिया के बड़े देशों में सबसे खुला और उदार देश हैं. इसका अनुमान हमें तब होता है जब चीन शांति के लिए नोबेल पुरस्कार के विजेता को इसकी भी इजाजत नहीं देता कि वह धरती का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार लेने के लिए जा सकें.
देश में हम एक-दूसरे से हमेशा सत्ता, व्यवस्था और समाज को कोसते नजर आते हैं. हम सफाई के लिए नगर प्रशासन को कोसते हैं, बिजली की कमी के लिए सरकार को. लेकिन अपने घर का कचरा सड़क पर फेंकने से पहले कभी नहीं सोचते. बिजली का बिल भरने में देरी और बिजली चुराने के बावजूद नियमित बिजली की अपेक्षा रखते हैं. लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना में राज्य को नागरिकों का सेवक तो बताया गया है लेकिन नागरिकों को भी नागरिक जवाबदेही का बोध होना जरूरी है.
जब कभी मैं विदेश जाता हूं तो मुझे अपने देश और अपने लोगों की इतनी तारीफ सुनने को मिलती है कि मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये किस भारत के बारे में बात कर रहे हैं. मैं तो जिस भारत को जानता हूं उसके बारे में हम खुद ऐसी बातें नहीं करते.
विदेश में लोग भारत के कुशल और अकुशल कामगारों के ही नहीं बल्कि यहां के डॉक्टर, इंजीनियर, आईटी पेशेवरों और वैज्ञानिकों की प्रतिभा के भी कायल हैं. दुनिया के अंकल सैम अमेरिका के राष्ट्रपति यों ही अपने देश में घूम-घूम कर नहीं कह रहे हैं, 'हमें खुद को इस तरह से तैयार करना होगा कि हम भारत का मुकाबला कर सकें.' कहां लोग अमेरिका को सामने रखकर बड़ा होने और विकसित होने की तैयारी करते थे और कहां आज भारतीय चुनौती दुनिया को परेशान कर रही है.
आज खुद अमेरिका का राष्ट्रपति अपने युवाओं से भारतीय बच्चों से ज्यादा प्रतिभावान और कुशल होने की अपील कर रहा है क्योंकि खुला बाजार सबके लिए खुला है. बाजार को बेहतरीन काम करने वाले लोग जहां से मिलेंगे वह वहीं से काम लेगा. ब्रिटेन ने हमें लगभग ढाई सौ सालों तक गुलाम रखा लेकिन आज वह भी हमारी प्रतिभा से सहमा हुआ है. कभी वीजा नियमों में कड़ाई होती है तो कभी वीजा का कोटा घटाया जाता है लेकिन इससे भारतीय नौजवानों का काफिला थमने वाला नहीं है.
भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का दूसरा बड़ा देश है तो जाहिर तौर पर हमारे पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार भी है. इस बाजार की पनाह पाने के लिए अमेरिका से लेकर फ्रांस और रूस से लेकर चीन तक भारत के साथ उसकी शर्तों पर बात कर रहे हैं. परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत न करने के बावजूद अमेरिका का भारत से असैनिक परमाणु करार करना भी संकेत देता है कि भारत की अहमियत कितनी बढ़ चुकी है और उसे नजरअंदाज कर पाना अब किसी भी महाशक्ति के लिए नामुमकिन है. भले ही वह सुरक्षा परिषद में वीटो की ताकत क्यों न रखता हो?
हमारे कॉरपोरेट सेक्टर ने इतने पेशेवर तरीके से काम किया है कि खत्म हो रहे दशक में दुनिया के दो सबसे बड़े सौदे भारतीय उद्योगपतियों ने किए. कोरस और जगुआर का अधिग्रहण दुनिया के कारोबारी नक्शे पर भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर का तिरंगा बनकर लहरा रहा है.
इसी साल देखिए तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी, चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ और रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव भारत की राजकीय यात्रा पर आए. इन नेताओं ने भारत के साथ बड़े कारोबारी समझौते किए ताकि उन्हें बाजार मिले और भारत को उसके बाजार का वाजिब दाम. अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भले ही गोपनीय बातचीत में हमारी खिल्ली उड़ाई लेकिन भारत दौरे में बराक ओबामा ने सेंट्रल हॉल में कहा कि भारत विकासशील नहीं, विकसित देश है. ये हमारी ताकत है जिसे अमेरिका पहचान रहा है पर शायद हम नहीं.
आज दुनिया में ताकतवर वही है जिसकी अर्थव्यवस्था ताकतवर है. वैश्विक मंदी में जब दुनिया के कई बड़े बाजार धराशायी हो गए और नौकरियों के लाले पड़ गए तब भी भारत अपनी गति से बढ़ता रहा. भारत के मंदी से लगभग बेअसर रहने पर बड़े-बड़े देशों ने दांतों तले ऊंगलियां दबा लीं. बड़े-बड़े देश हमसे सीख रहे हैं कि कैसे बाजार को इस तरह तैयार किया जाए कि दूसरे देशों में अगर कोहराम मचे तो भी खुले बाजार के रहते उसका असर कम से कम हो. पिछले किसी भी दशक में भारत की विकास दर 7 फीसद से ज्यादा नहीं रही लेकिन इस दशक में हमारी विकास की दर 7 फीसद से ऊपर रही. विदेशी निवेशकों का भरोसा भी हमारे बाजार पर ही दिखा. भारतीय शेयर बाजार में इसी साल करीब 25 अरब डॉलर विदेशी निवेश आया है.
हम अपनी जड़ों को भूल रहे हैं. हल्दी का पेटेंट हम हार गए. बासमती का पेटेंट किसी और ने करा लिया. योग के पेटेंट पर किसी और की नजर है. हम अपनी जिन चीजों को भूल चुके हैं उसी में विदेशियों को फायदा नजर आ रहा है और वे उसमें निवेश कर रहे हैं, उसमें शोध कर रहे हैं और पैसे बना रहे हैं. एक चीज जो मुझे साफ तौर पर नजर आती है कि हमारे यहां एक चीज जो बदल नहीं पाई, वह है लालच और स्वार्थ. हमारे लिए कई बार खुद का फायदा, समाज और देश के फायदे पर भारी पड़ जाता है. विदेश में उसूल से कोई डिगता नहीं, कुछ भी लालच दे दीजिए वह टस से मस नहीं होगा. लेकिन हमारे तो बड़े-बुजुर्ग कहावत ही छोड़ गए हैं कि बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया. ये हमारी पूरी ताकत में दीमक की तरह लगा हुआ है जो हमें अंदर से कमजोर किए है.
प्रभु ईसा मसीह में 33 साल की उम्र में ही सच बोलने के लिए इतनी ताकत आ गई थी कि वे सूली पर चढ़ने को तैयार थे. हमारे यहां युवा हैं लेकिन युवा मन नहीं है. सच सुनना पसंद करने वाले लोग हैं लेकिन सच बोलने की हिम्मत नहीं है. हम दोहरा जीवन जीने को ज्यादा सुविधाजनक मानते हैं. दोहरा जीवन जीने वाला कोई आदमी हो या देश, वह सब कुछ से संपन्न रहने के बावजूद ताकतवर नहीं रह जाता. जब पहली बार मुझे गीता पढ़ने का मौका 1994 में मिला तब मैं दसवीं क्लास का छात्र था. गीता के दूसरे श्लोक में यह प्रसंग आता है कि दुर्योधन आचार्य द्रोण और भीष्म पितामह से पांडवों की जमकर प्रशंसा करता है. दुर्योधन बहुत दुर्जन था लेकिन उसके अंदर शत्रु की प्रशंसा करने वाला युवा मन था, वह हीनभावना से भरा हुआ नहीं था. मेरे कहने का मतलब यह है कि जो अपनी जीत के प्रति आश्वस्त न हो वह अपनी प्रशंसा तो करता है लेकिन सामने खड़े शत्रु की प्रशंसा नहीं करता. इतिहास के मुताबिक 5 हजार साल पहले महाभारत की लड़ाई लड़ी गई थी. 5 हजार साल बाद भी समाज में अच्छे लोग भी हैं और बुरे लोग भी. लेकिन तब से अब में जो अंतर आया है वह यह है कि आज का तथाकथित अच्छा आदमी भी गहरे तक हीनभावना से भरा हुआ है जबकि तब का तथाकथित बुरा आदमी इससे मुक्त था. भारत की ताकत उसकी सचाई में है और उसके लोगों को भी यह समझने की जरूरत है.
नये साल की शुरुआत हम इसी प्रतिबद्धता और शपथ के साथ करें कि अपने जीवन में दोहरापन खत्म करेंगे. आपका नया साल मंगलमय हो. कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी/ सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़मां हमारा.
देश में हम एक-दूसरे से हमेशा सत्ता, व्यवस्था और समाज को कोसते नजर आते हैं. हम सफाई के लिए नगर प्रशासन को कोसते हैं, बिजली की कमी के लिए सरकार को. लेकिन अपने घर का कचरा सड़क पर फेंकने से पहले कभी नहीं सोचते. बिजली का बिल भरने में देरी और बिजली चुराने के बावजूद नियमित बिजली की अपेक्षा रखते हैं. लोक कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना में राज्य को नागरिकों का सेवक तो बताया गया है लेकिन नागरिकों को भी नागरिक जवाबदेही का बोध होना जरूरी है.
जब कभी मैं विदेश जाता हूं तो मुझे अपने देश और अपने लोगों की इतनी तारीफ सुनने को मिलती है कि मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये किस भारत के बारे में बात कर रहे हैं. मैं तो जिस भारत को जानता हूं उसके बारे में हम खुद ऐसी बातें नहीं करते.
विदेश में लोग भारत के कुशल और अकुशल कामगारों के ही नहीं बल्कि यहां के डॉक्टर, इंजीनियर, आईटी पेशेवरों और वैज्ञानिकों की प्रतिभा के भी कायल हैं. दुनिया के अंकल सैम अमेरिका के राष्ट्रपति यों ही अपने देश में घूम-घूम कर नहीं कह रहे हैं, 'हमें खुद को इस तरह से तैयार करना होगा कि हम भारत का मुकाबला कर सकें.' कहां लोग अमेरिका को सामने रखकर बड़ा होने और विकसित होने की तैयारी करते थे और कहां आज भारतीय चुनौती दुनिया को परेशान कर रही है.
आज खुद अमेरिका का राष्ट्रपति अपने युवाओं से भारतीय बच्चों से ज्यादा प्रतिभावान और कुशल होने की अपील कर रहा है क्योंकि खुला बाजार सबके लिए खुला है. बाजार को बेहतरीन काम करने वाले लोग जहां से मिलेंगे वह वहीं से काम लेगा. ब्रिटेन ने हमें लगभग ढाई सौ सालों तक गुलाम रखा लेकिन आज वह भी हमारी प्रतिभा से सहमा हुआ है. कभी वीजा नियमों में कड़ाई होती है तो कभी वीजा का कोटा घटाया जाता है लेकिन इससे भारतीय नौजवानों का काफिला थमने वाला नहीं है.
भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का दूसरा बड़ा देश है तो जाहिर तौर पर हमारे पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार भी है. इस बाजार की पनाह पाने के लिए अमेरिका से लेकर फ्रांस और रूस से लेकर चीन तक भारत के साथ उसकी शर्तों पर बात कर रहे हैं. परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत न करने के बावजूद अमेरिका का भारत से असैनिक परमाणु करार करना भी संकेत देता है कि भारत की अहमियत कितनी बढ़ चुकी है और उसे नजरअंदाज कर पाना अब किसी भी महाशक्ति के लिए नामुमकिन है. भले ही वह सुरक्षा परिषद में वीटो की ताकत क्यों न रखता हो?
हमारे कॉरपोरेट सेक्टर ने इतने पेशेवर तरीके से काम किया है कि खत्म हो रहे दशक में दुनिया के दो सबसे बड़े सौदे भारतीय उद्योगपतियों ने किए. कोरस और जगुआर का अधिग्रहण दुनिया के कारोबारी नक्शे पर भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर का तिरंगा बनकर लहरा रहा है.
इसी साल देखिए तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी, चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ और रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव भारत की राजकीय यात्रा पर आए. इन नेताओं ने भारत के साथ बड़े कारोबारी समझौते किए ताकि उन्हें बाजार मिले और भारत को उसके बाजार का वाजिब दाम. अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भले ही गोपनीय बातचीत में हमारी खिल्ली उड़ाई लेकिन भारत दौरे में बराक ओबामा ने सेंट्रल हॉल में कहा कि भारत विकासशील नहीं, विकसित देश है. ये हमारी ताकत है जिसे अमेरिका पहचान रहा है पर शायद हम नहीं.
आज दुनिया में ताकतवर वही है जिसकी अर्थव्यवस्था ताकतवर है. वैश्विक मंदी में जब दुनिया के कई बड़े बाजार धराशायी हो गए और नौकरियों के लाले पड़ गए तब भी भारत अपनी गति से बढ़ता रहा. भारत के मंदी से लगभग बेअसर रहने पर बड़े-बड़े देशों ने दांतों तले ऊंगलियां दबा लीं. बड़े-बड़े देश हमसे सीख रहे हैं कि कैसे बाजार को इस तरह तैयार किया जाए कि दूसरे देशों में अगर कोहराम मचे तो भी खुले बाजार के रहते उसका असर कम से कम हो. पिछले किसी भी दशक में भारत की विकास दर 7 फीसद से ज्यादा नहीं रही लेकिन इस दशक में हमारी विकास की दर 7 फीसद से ऊपर रही. विदेशी निवेशकों का भरोसा भी हमारे बाजार पर ही दिखा. भारतीय शेयर बाजार में इसी साल करीब 25 अरब डॉलर विदेशी निवेश आया है.
हम अपनी जड़ों को भूल रहे हैं. हल्दी का पेटेंट हम हार गए. बासमती का पेटेंट किसी और ने करा लिया. योग के पेटेंट पर किसी और की नजर है. हम अपनी जिन चीजों को भूल चुके हैं उसी में विदेशियों को फायदा नजर आ रहा है और वे उसमें निवेश कर रहे हैं, उसमें शोध कर रहे हैं और पैसे बना रहे हैं. एक चीज जो मुझे साफ तौर पर नजर आती है कि हमारे यहां एक चीज जो बदल नहीं पाई, वह है लालच और स्वार्थ. हमारे लिए कई बार खुद का फायदा, समाज और देश के फायदे पर भारी पड़ जाता है. विदेश में उसूल से कोई डिगता नहीं, कुछ भी लालच दे दीजिए वह टस से मस नहीं होगा. लेकिन हमारे तो बड़े-बुजुर्ग कहावत ही छोड़ गए हैं कि बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया. ये हमारी पूरी ताकत में दीमक की तरह लगा हुआ है जो हमें अंदर से कमजोर किए है.
प्रभु ईसा मसीह में 33 साल की उम्र में ही सच बोलने के लिए इतनी ताकत आ गई थी कि वे सूली पर चढ़ने को तैयार थे. हमारे यहां युवा हैं लेकिन युवा मन नहीं है. सच सुनना पसंद करने वाले लोग हैं लेकिन सच बोलने की हिम्मत नहीं है. हम दोहरा जीवन जीने को ज्यादा सुविधाजनक मानते हैं. दोहरा जीवन जीने वाला कोई आदमी हो या देश, वह सब कुछ से संपन्न रहने के बावजूद ताकतवर नहीं रह जाता. जब पहली बार मुझे गीता पढ़ने का मौका 1994 में मिला तब मैं दसवीं क्लास का छात्र था. गीता के दूसरे श्लोक में यह प्रसंग आता है कि दुर्योधन आचार्य द्रोण और भीष्म पितामह से पांडवों की जमकर प्रशंसा करता है. दुर्योधन बहुत दुर्जन था लेकिन उसके अंदर शत्रु की प्रशंसा करने वाला युवा मन था, वह हीनभावना से भरा हुआ नहीं था. मेरे कहने का मतलब यह है कि जो अपनी जीत के प्रति आश्वस्त न हो वह अपनी प्रशंसा तो करता है लेकिन सामने खड़े शत्रु की प्रशंसा नहीं करता. इतिहास के मुताबिक 5 हजार साल पहले महाभारत की लड़ाई लड़ी गई थी. 5 हजार साल बाद भी समाज में अच्छे लोग भी हैं और बुरे लोग भी. लेकिन तब से अब में जो अंतर आया है वह यह है कि आज का तथाकथित अच्छा आदमी भी गहरे तक हीनभावना से भरा हुआ है जबकि तब का तथाकथित बुरा आदमी इससे मुक्त था. भारत की ताकत उसकी सचाई में है और उसके लोगों को भी यह समझने की जरूरत है.
नये साल की शुरुआत हम इसी प्रतिबद्धता और शपथ के साथ करें कि अपने जीवन में दोहरापन खत्म करेंगे. आपका नया साल मंगलमय हो. कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी/ सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़मां हमारा.
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