'नेम प्लेट'
चर्चित कथाकार क्षमा शर्मा का कहानी संग्रह नेम प्लेट स्त्री के मन की खिड़कियां खोलता है। यह स्त्री के मन के बदलाव, उसके भीतर की उथल पुथल और धीरे धीरे साहसी हो जाने की अविरल कथा है। दादी मां के बटुए में जहां लडक़ी के दुनिया में न आने के लिए तमाम तरह के प्रयोजन हैं, छद्म हैं, वह अगली सदी की एक लडक़ी तक आते आते समाप्त हो जाते हैं। आदर्शवाद और उपयोगितावाद की छड़ी बहस में आदर्शवादी अपना मूल्यांकन करता है। वह यह सोचता है कि हर किसी व्यक्ति के लिए आदर्श की अपनी परंपरा है आपके विचार से किसी का प्रभावित होना जरूरी नहीं है।
इन कहानियों में एक बात बार बार रेखांकित होती है वह है पुरूष द्रारा स्त्री को बार बार ठगा जाना। उसे अपनी वस्तु समझना। और ऐसा एकाधिकार रखना जैसे वह उसके पिंजरे में बंद हो वह चाहे तो फडफ़ड़ाए, वह चाहे तो आवाज करे। और अगर वह न चाहे तो उसके होने तक का अहसास न हो। जैसे स्त्री उसके कोट में लगा रुमाल हो जिसे सब देखें। कहानियों में पुरुष का यह अहं भाव स्त्री के बार-बार आड़े आता है पर हर बार स्त्री उसे ऐसे झटक देती है जैसे उसकी साड़ी पर अभी अभी कोई कीड़ा गिरा हो। हंसी शब्द को लेखिका बहुत ही प्रतीकात्मक तरीके से व्यक्त करती हैं। जोर से हंसी में कई दंभ ध्वस्त हो जाते हैं। यह हंसी हर कहानी में है। हंसकर बात टाल दी जैसी अभिव्यंजना तो कई बार पढऩे को मिलती है पर हंसकर किसी के दंभ को चकनाचूर कर देना और रिश्ते के अर्थ और गरिमा के साथ न्याय करना अपने आप में एक नया प्रयोग है। छद्मधारी पुरुष को कहानी में आई नायिकाएं ऐसी पट्खनी देती हैं कि दूध का जला छांछ को भी फूंकफूंक कर पीने लगे।
प्रेम की कोमल भावनाओं के अलावा गंदगी जैसी कहानियां भी है जो कामकाजी और गैरकामकाजी स्त्री की सोच के अंतर को प्रकट करती हैं। बूढ़ी औरत का दर्द है तो फादर जैसी कहानी में पिता के न होने के क्या अर्थ हो सकते हैं इसका भी विश्लेषण है। यह बहुत सुंदर कहानी है। इस संग्रह की सबसे खूबसूरत कहानी है बेघर। एक तरफ प्रेम की भावना जो किसी भी बंधन को नहीं मानती और उसको पाने के लिए हर रिश्ते को झुठला देती है। हर किसी से मुंह मोड़ लेती है पर प्रेम को नहीं खोती। लेकिन उसको पा लेने के बाद वह खुद को इतने सारे बंधनों में जकड़ लेती है अपने भीतर इतने सारे बदलाव लाती है कि यह सोच पाना कठिन हो जाता है कि इसका असली रूप यह है या फिर वह जो 25 साल तक उसने जिया। असली रूप कौन सा है। प्रेम को बचाए रखने और मेरा निर्णय सही था को दूसरों के सामने साबित करने के लिए आखिरकार कितना बदलाव लाती है एक स्त्री। सिर्फ इसीलिए ताकि यह समाज मुंह न खोल सके। न उस स्त्री के सामने और न ही उसके परिजनों के सामने। कितने सारे डर समा जाते हैं एक स्त्री के मन में। पर पुरुष.. उसका प्रेम, उसकी भावनाएं सिर्फ और सिर्फ स्त्री की देह टटोलती हैं। और उस देह के लिए वह फिर से अपना संसार बसा लेता है।
नेम प्लेट इस संग्रह की महत्वपूर्ण कहानी है। यह एक ऐसे लडक़े की कहानी है जिसकी दोस्त बनने के लिए हर लडक़ी एक मुकाबला करती है। वह हर समय लड़कियों से घिरा रहता है और लड़कियों को उससे कोई डर नहीं है। उसे भी मालूम है कि वह लड़कियों में कितना चर्चित है। इसीलिए वह किसी लडक़ी की किसी बात को गंभीरता से नहीं लेता पर वह यह जताने की कोशिश करता है कि वह उनके प्रति बहुत गंभीर है। लेकिन कहानी अंत में आकर निर्मला पर ऐसे टिकती है कि बस आप हैरान रह सकते हैं एक अजीब सी हंसी आपको पूरे दिन गुदगुदा सकती है।
लेखिका- क्षमा शर्मा
कहानी संग्रह- नेम प्लेट
मूल्य -80 रुपये
प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन
नई दिल्ली
स्त्री के अलग अलग रूपों को व्यक्त करती और कुछ नया सोचने को विवश करती यह कहानियां एक ताजगी लिए हुए हैं। एक लडक़ी से लेकर प्रौढ़ होती स्त्री के मन के खिड़कियों पर यह एकाएक प्रवेश कर जाती है। जिसमें विराधोभास भी है, पर प्रेम भी है। नानी और पोती हो या सास बहू विचारों में भले अलग हो और हो सकता है कि विचार के स्तर पर दोनों एक दूसरे को पसंद न करते हो पर संवेदना के स्तर पर इतना जुड़े हैं कि पोती कमरे में सिर्फ इसीलिए ताला लगा देती है कि कहीं उसकी नानी फिर से खो न जाए।
बहू अपनी सारी बातें कह देने के बाद भी अपनी भावी सास को चुंबन देती है। बच्ची अपने पागल दोस्त के लिए रोटी रखती है। और एक मां कभी नहीं चाहती कि उसके बच्चे को कोई कहे न्यूड का बच्चा। एक बुजुर्ग को परिवार से बेदखल कर देने के बाद एक लडक़ी ही अपने घर ले आती है उसके लिए वह अनमोल है जो न उसका पति है न बाप। न कोई रिश्ता। फिर भी एक चीज है वह है संवेदना। हमें इसी संवेदना की तलाश है यह संवेदना चाहे आदर्श की चाशनी में डूबी हो या फिर आधुनिकता की चम्मचों में लिपटी हो। क्योंकि संवेदना विहीन समाज से किसी को कुछ भी नहीं मिलेगा।
डॉ. अनुजा भट्ट नोएडा, उत्तर प्रदेश
संपर्क : anujabhat@gmail.com
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