मेरी मौत खुशी का वायस होगी ----------मिथिलेश
जिन्दगी जिन्दादिली को जान ए रोशन यहॉं
वरना कितने मरते हैं और पैदा होते जाते हैं।
क्रान्तिकारी रोशन सिंह का जन्म शाहजहॉंपुर जिले के नबादा ग्राम में हुआ था । यह गांव खुदागंज कस्बे से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर है। इनके पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह था। इस परिवार पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था। उन दिनों आर्य समाज द्वारा चलाए जा रहे देशहित के कार्यों से ठाकुर साहब का परिवार अछूता ना रहा। श्री जंगी सिंह के चार पुत्र ठाकुर रोशन सिंह, जाखन सिंह, सुखराम सिंह, पीताम्बर तथा दो लड़कियॉं थी । आपका जन्म 22 जनवरी को सन् 1892 को हुआ था। ठाकुर साहब काकोरी काण्ड के क्रान्तिकारियों में आयु में सबस बड़े तथा सबसे अधिक बलवान तथा अचूक निशानेबाज थे । असहयोग आन्दोलन में शाहजहॉंपुर तथा बरेली जिले के ग्रामिण क्षेत्र में उन्होने बड़े उत्साह कार्य किया। उन दिनों बरेली में एक गोली कांड हुआ था जिसमें उन्हें दो वर्ष की बड़ी सजा दी गई । वे उन सच्चे देशभक्तों में थे जिन्होने अपने खून की अन्तिम बूद भी भारत मॉं की भेंट चढ़ा दी । रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खॉं, राजेन्द्र लाहिड़ी की तरह वे भी बहुत साहसी और सच्चे देशभक्त थे। हिन्दी और उर्दू का अच्छा ज्ञान था । बरेली गोली काडं का सजा के बाद उनकी रामप्रसाद बिस्मिल से भेंट हुई जो उन दिनों बड़ी क्रान्तिकारी योजनाओं का खाका तैयार करने में लगे थे। रोशन सिंह के विचारों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बिस्मिल ने उन्हें भी अपने दल में शामिल कर लिया । क्षत्रिय होनेके कारण उन्हें तलवार, बन्दूक चलाने, कुश्ती और घुड़सवारी का भी शौक था। अचूक निशानेबाज थे। उनके साथी उन्हें भीमसेन कहा करते थे। ठाकुर रोशन सिंह के दो पुत्र चंन्द्रदेव सिंह तथा बृजपाल सिंह हुए। असहयोग आन्दोलन में भी ठाकुर साहब ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। काकोरी काण्ड में कुल चार डकैतियों को शामिल किया गया जिनमें अन्य डकैतियों मे ठाकुर रोशन सिंह ने बिस्मिल जी का साथ दिया था। काकोरी ट्रेन डकैती काण्ड के करीब डेढ़ महिनें बाद धरपकड़ शुरु हुई और आपको भी अन्य सहयोगियों के साथ गिरफ्तार करके लखनऊ जेल भेजा गया। जेल में क्रान्तिकारियों के साथ अच्छा व्यवहार न होने कारण आपने जेल में अनशन किया । करीब दो सप्ताह तक अनशन पर रहने के बाद भी आपके स्वास्थ्य पर कोई विपरीत असर नहीं पडा़। अंग्रेज सरकार ने उनकी हवेली को ध्वस्त करवा दिया और सारी स़म्पत्ति कुर्क करा ली थी।
अदालती निर्णय के अनुसार अंग्रेज जज हेमिल्टन ने आपको फॉंसी की सजा दी। अदालती निर्णय सुनते ही ठाकुर जी नें ईश्वर का ध्यान किया और ओम का उच्चारण किया। काकोरी केस के सम्बन्ध में वकीलों और उनके साथियों का ख्याल था कि ठाकुर साहब को ज्यादा सजा नहीं मिलेगी उनके यह विचार जानकर ठाकुर साहब को बहुत ठेस लगती थी वे बुत दुखी हो जाते थे। जब जज ने उन्हें भी फॉंसी की सजा सुनाई तो उनके साथी आश्चर्यचकित और दुखी नेत्रों से ठाकुर साहब की ओर देखने लगे परन्तु ठांकुर साहब चेहरा ठाकुरी चमक से खिल उठा। उन्होंने मुस्कुराते हुए फॉंसी की सजा पाए हुए अपने अन्य साथियों का आलिंगन करते हुए कहा क्यों भाई हमें छाड़कर आप अकेले जाना चाहते थे । उनके सभी साथियों ने उनकी वीरता पर गदगद होकर उनके चरण स्पर्श किए । फॉंसी के लिए उन्हें इलाहाबाद जेल भेज दिया गया था।
ठाकुर साहब स्वतन्त्रता की लडाई को भी धर्म युद्व मानते थे। 13 सितम्बर 1927 को उन्होंने अपने एक मित्र को लिख था कि आप मेरे लिए हरगिज रंज न करे मेरी मौत खुशी का बायस होगी, हमारे शास्त्रों में लिखा है कि धर्म युद्व में मरने वालों की वही गति होती है जो तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों की हाती है। फॉंसी के एक सप्ताह पूर्व उन्होंने एक मित्र को पत्र भेजा था इसी से साहस और ईश्वर में विश्वास का अनुपात लगाया जा सकता है। इस सप्ताह के अन्दर ही मेरी फॉंसी होगी । प्रभु से प्रार्थना है कि वह आपके मोहब्बत का बदला दे , आप मुझ ना चीज के लिए हरगिज दुखी न हों मेरी मौत खुशी का वायस होगी।
दुनिया में पैदा होकर इन्सान अपने को बदनाम न करे। इसलिए मेरी मौत किसी प्रकार भी अफसास के लायक नहीं है। दो साल से मैं परिवार से और बच्चो से अलग हू। इस बीच वे सब मुझे कुछ भूल गए होंगे। किसी हद तक भूल जाना भी अच्छा है। तन्हाई में ईश्वर भजन का मौका खूब मिला।इससे मेरा मोह कुछ छूट गया और काई वासना बाकी नहीं रही। मेरा पूरा विश्वास है कि दूनिया की कष्टमयी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिंदगी व्यतीत करने के लिए जा रहा हू। फॉंसी से पहले रात ठाकुर साहब कुछ घण्टे सोए देर रात से ही ईश्वर भजन करते रहे। प्रातः निवृत्त होकर गीता का पाठ किया। प्रहरी के आते ही अपनी गीता हाथ में उठाई और फॉंसी की कोठरी को प्रसन्नता के साथ अन्तिम नमस्कार करके फॉंसी के तख्ते की ओर चल दिए। फॉंसी के तख्ते पर वन्दे मातरम् और ओम नाम को गुँजाते हुए भारत का ये नरनाहर अपने नश्वर शरीर को भारत की मिट्टी में मिल गया। आज ठाकुर साहब हमारे बीच नहीं है। परन्तु उनकी अमर आत्मा सजग प्रहरी की भॉंति देश के करोड़ो नवयुवको के दिल में भारत की समृद्वि और सुरक्षा की अलख युगों-युगों तक रहेगी। इलाहाबाद जेल के सामनें हजारों लोग भारत मॉं के इस सपूत की लाश को लेने के लिए खड़े थे। इलाहाबाद में ही भारत माता के इस बहादुर सपूत की अन्तिम संस्कार पूर्ण वैदिक रीति के साथ सम्पन्न हुआ ।
Wednesday, January 19, 2011
मनोरंजन बनाम अश्लीलता---------मिथिलेश
बाजारवाद वर्तमान समय में सर्वोपरी है । हमें सिर्फ लाभ होना चाहिए चाहे उसके बदले नैतिकता ही क्यों ना दाव पर हो । पूंजीवाद का ऐसा दौर भी आयेगा कभी सोचा ना था । मनोरंजन की शुरुआत की गई मानवजीवन से नीरसता दूर करने के लिए , बाद में इसका स्वरुप थोड़ा बदला । मनोरंजन के साथ.साथ इसका प्रयोग संदेश वाहक के रुप में भी किया जाने लगा । कहानी, नाटक कथा आदि इसके प्रमुख स्त्रोत रहे । धीरे-धीरे विज्ञान ने प्रगति की जिसके चलते सूचना तंत्र का मोह रुपी मकड़जाल घर-घर में पहुँच गया । विज्ञान की प्रगति प्रशस्ति के योग्य है, जिसकी प्रशंसा अवश्य होनी चाहिए लेकिन तब जब वह प्रगति हमारे सांस्कृतिक व पारिवारिक मूल्यों को विकास के पथ की ओर ले जाए ना कि पतन की ओर । आज मनोरंजन के नाम पर घर-घर में अश्लीलता परोसी जा रही है। 1982 में एशियाड के दौरान बड़े-बड़े स्टेडियम बने। उन्ही के साथ भारत में रंगीन टेलीविजन आने लगे। पहले इनके दाम ज्यादा थे किंतु प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने की वजह से इनके दामों में अपार कमी आई और इनकी पहुँच घर-घर में हो गई । शुरूआती दौर में मात्र दो चैनल आते थे और रामायण,महाभारत जैसे महाग्रंथों पर आधारित धारावाहिको का प्रसारण होता था, तब मैं बहुत छोटा था, लोग बताते हैं कि जिस समय रामायण या महाभारत का प्रसारण होता था सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था , क्या हिंदू क्या मुस्लिम क्या ईसाई सब इंतजार में लगे रहते थे कि कब रामायण शुरु हो ।
कुकल्पनाओं पर आधारित धारावाहिकों, फिल्मों को तवज्जों दी जा रही है । धारावाहिको में महिलाओं को कुचक्र रचते हुए दर्शाया जा रहा है, फिल्मों में गालियां बकते हुए, जिससे नारी की भाव-संवेदना समर्पण की गरिमा एक ओर एवं विघटनकारी स्वरुप दूसरी ओर हावी हो रहा है। मनोरंजन के नाम पर जो कुछ परोसा जा रहा उससे हमें हैरानी नही होनी चाहिए कि अगर हम अपनी भारतीयता की पहचान खो दे । जरुरी है अश्लीलता को पाबंद किया जाए तथा ललित कलाओं को फिर से पुनर्जीवित कि जाए, टीवी और फिल्मों के माध्यम से सामाजिक नवचेतना का संचार किया जाए।
एक वह युग था और एक आज का दौर हैं । आज धारावाहिक, सिनेमा वह सब दिखा रहा है जो हमारे संस्कृति के विरुद्ध है । धारावहिकों, फिल्मों में खुले यौन संबंध , विवाह से पूर्व यौन संतुष्टि इन सबकी वकालत की जा रही है। सारा समाज ही गंदा नजर आ रहा है। अब जब भारत विकास के पथ पर अग्रसर है जाहिर सी बात है विकास का दौर हर क्षेत्र में चलेगा। अभी हाल ही में एक फ़िल्म आई नो वन किल्ड जेसिका फिल्म ने सारे रिर्काड तोड़ दिए फूहड़ता के। पहले फिल्मों में जब गालियां या कुछ अनुचित शब्दों का प्रयोग होता था तब बीप की आवाज आती थी लेकिन अब ये सूक्ष्म पर्दा भी ना रहा। हमारी युवा पीढ़ी अक्सर इन फिल्मों की नकल करने की कोशिश में रहती है । मनोरंजन के नाम पर टीवी और फिल्मों के माध्यम से जो कुछ परोसा जा रहा है उसपर स्वस्थ चिंतन अतिआश्यक हो गया है । आज की नवजात पीढ़ी समय से पहले जवान हो रही है , उसे हिंसा , अश्लीलता तथा फंटासी में ही चरम आनंद मिल रहा है। पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं घटी जो फिल्मों से प्रेरणा स्वरुप की गई । हमारा देश अपने संस्कृति अपने संस्कारो के लिए जाना जाता है। हमारे यहॉं की संस्कृति परिवारवाद पर टीकी है लेकिनपाश्चात्य सभ्यता के चोचलों ने इसे बाजारवाद ला बिठाया है । जहॉं टीवी पर धरावाहिको और रिएलिटी शो के माध्यम से सुंदरियों की खोज की जी रही है वहीं फिल्मों के माध्यम से लड़कियां पटाने के तौर तरीके सिखाए जा रहे हैं। वाजारवाद चारो तरफ छाया है , सेक्स ही सब कुछ रह गया बाकी सब गौण ।
कुकल्पनाओं पर आधारित धारावाहिकों, फिल्मों को तवज्जों दी जा रही है । धारावाहिको में महिलाओं को कुचक्र रचते हुए दर्शाया जा रहा है, फिल्मों में गालियां बकते हुए, जिससे नारी की भाव-संवेदना समर्पण की गरिमा एक ओर एवं विघटनकारी स्वरुप दूसरी ओर हावी हो रहा है। मनोरंजन के नाम पर जो कुछ परोसा जा रहा उससे हमें हैरानी नही होनी चाहिए कि अगर हम अपनी भारतीयता की पहचान खो दे । जरुरी है अश्लीलता को पाबंद किया जाए तथा ललित कलाओं को फिर से पुनर्जीवित कि जाए, टीवी और फिल्मों के माध्यम से सामाजिक नवचेतना का संचार किया जाए।
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Saturday, January 15, 2011
याद आते हैं वे लम्हे------------- मिथिलेश
याद आते हैं वे लम्हे
धीरे-धीरे पास आना तुम्हारा
हौले से कुछ कह जाना
कुछ दूर साथ चलना
कदम से कदम मिलाना
हया भरी आखों से
मुझको निहारना
फासले घटाना दर्मियां
मेरी आखों में
न जाने क्या तलाशना
और अचानक से दूर छिटक जाना
याद आते हैं वे लम्हे।।
हर बार न चाहते हुए भी
जाने के बहाने ढुढंना
जल्द ही मिलने का वादा करना
और अचानक से रास्ते
बदल लेना
मैं ठगा सा रह जाता
उस मोड़ पर
कदम जैसे कैद से हो जाते
कुछ पल की खुशियां जैसे
मायूसी के चादर तले ढक जाते
तुम्हारे मुड़ने का इन्तजार करना
उस हसीन एहसास को सहेजना
और
दूर कहीं ओझल हो जाना तुम्हारा
याद आते हैं वे लम्हे।
Thursday, January 6, 2011
सीबीआई की विश्वसनियता
देश की सबसे बड़ी जांच एंजेसि सीबीआइ की विश्वसनियता पर अब सवालिया निशान लगता दिख रहा है । एक के बाद एक सीबीआई ऐसे फैसले ले रही है जिससे लोगों में सीबीआई की विश्वसनियता कम होती जा रही है । आखिर जब दोषी को सजा सीबीआई ना दिला पाये तो जनता अपनी फरियाद कहां ले के जायेगी । सीबीआई पर उठते सवाल के मुख्यतः दो कारण है । पहला बहुचर्चित मामला आरुषि तलवार तथा दूसरा मामला बोफोर्स है । वर्तमान मे ये दो ऐसे मामले हैं जहाँ सीबीआई को मुंह की खानी पड़ी और चहुं ओर आलोचना झेलना पड़ रहा है । आरुषि कांड पर सीबीआइ ने हार मान ली है और केस को बंद करने तक का फरमान दे दिया है । सवाल यहीं उठता है सीबीआई की विश्वसनियता पर । अगर इसके तह तक जायें तो पता चलता है कि सीबीआई द्वारा बनाये गये क्लोजर रिपोर्ट और जांच पड़ताल से अभी इस मामले को बंद करने का कोई औचित्य ही नहीं है, क्योंकि जांच दल के अधिकारी अब भी इस काम पर लगे हुए है । सीबीआई का कहना है उनके पास अभी एसे कोई सबूत नहीं हैं जिससे वे दोषियों को सजा दिलवा पायें ।
अगर सीबीआई के पास पर्याप्त सबूत नहीं थे तो उन्होनें आरुषि के पिता को गिरफ्तार क्यों किया ? ये समझ के परे है तो क्या इसका ये अनुमान लगाया जाये कि सीबीआई अंधेरे में तीर मारकर दोषी को ढूंढने का काम कर रही है । शायद तब सीबीआई को इसकी भनक नहीं थी कि ये केस इतना पेचिदा हो जायेगा । उस समय जब राजेश तलवार की गिरफ्तारी हुई तो मीडिया में उन्हे कंलकित बाप कहा गया था , इन आरोपों का जिम्मेदार कौन है ?? क्या बिना जांच पड़ताल किए किसी पर इस तरह का घिनौना आरोप लगाना जायज है ? लेकिन क्या अब राजेश तलवार मान हानि का दावा पेश करंगे , अगर हाँ तो जांच कौन समिति करेगी ये भी मायने रखता है । सीबीआई ने न सिर्फ खूद की विश्वसनियता खोई आने वाले समय में खूद के वजूद को भी दाव पर लगा दिया है । सीबीआई का ये कोई पहला मौका नहीं है जब उसने क्लोजर रिपोर्ट लगाई हो । ऐसे और कई मामले रहे है जिसमे सीबीआई पूरी तरह से अपनी जांच प्रक्रिया में और दोषियों तक पहुंचने मे विफल रही है । अभी आरुषि केस के असफलता की सफलता खत्म भी नहीं हुई थी अचानक बोफोर्स मामला एक बार फिर सामने आ गया । सीबीआई ने इस जांच को भी बंद करने का फैसला ले लिया है । ये मामला इतना ज्यादा खिंच चुका है कि मैं इसपर ज्यादा कुछ कह नही कह पाऊंगा , शायद जब ये मामला उजागर हुआ होगा तब मेरी उम्र खेलने-कूदनें वाली रही होगी , इससे आप अंदाजा लगा सकते है । मीडिया में आई रिपोर्टों के अनुसार आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण इस सौदे में तबरीबन ४१ करोड़ रुपये की दलाली खाए जाने की बात कही गई है । सीबीआई का कहना है विन चड्ढा अथवा उसके वारिस को दलाली की रकम का टैक्स चुकता करना चाहिए जबकि सीबीआई के पास इसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है ।
केरल में 1992 में एक नन सिस्टर अभया की हत्या हो गई थी, जिसकी जांच सीबीआई को सौंपी गईं। सबूतों के अभाव का हवाला देकर एजेंसी ने चार बार इस मामले को बंद करने की कोशिश की, लेकिन अदालत ने हर बार जांच जारी रखने का आदेश दिया।आखिरकार 17 सालों बाद जून 2009 को सीबीआइ ने इस मामले तीन आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जिनपर अदालत में सुनवाई चल रही है।
इसी तरह सीबीआई ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव ललित वर्मा के खिलाफ जन्म की तारीख के हेरफेर के मामले में अगस्त 2005 में दिल्ली की तीसहजारी विशेष अदालत में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। अदालत ने इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया। आखिरकार सीबीआई ने आगे मामले की जांच की और एक साल के भीतर ही ललित वर्मा के खिलाफ सबूतों के साथ चार्जशीट दाखिल कर दी ।
पिछले कुछ सालो के दौरान जिस तरह से सीबीआई असफल हो रही हे उकसे विश्वसनियता पर सवालियां निशान लगना लाजीमि है । आखिर जब देश की सबसे बड़ी जांच एंजेसि इस तरज असफल होगी तो जनता किससे न्याय की उम्मीद करे । जरुरत है सीबीआई को अपने काम के प्रति पारदर्शिता लाने की जिससे वह एक बार फी लोगो के विस्वास पटल पर हो ।
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Sunday, December 26, 2010
नारी उत्थान में निहित भारत विकास-------------मिथिलेश दुबे
नारी के महान बलिदान योगदान के कारण ही भारत प्राचीन में समपन्न और विकसित था . प्राचीन काल में नर-नारी के मध्य कोई भेद नहीं था और नारियां पुरुषों के समकक्ष चला करती थी फिर चाहे वह पारिवारिक क्षेत्र हो या धर्म , ज्ञान विज्ञानं या कोई अन्य , सर्वांगीण विकास और उत्थान में नारी का योगदान बराबर था . नारी न सिर्फ सर्वांगीण विकास में सहायक थी पुरुष को दिशा और बल भी प्रदान करती थी . भारत के विकास में नारी योगदान अविस्मरणीय है. शायद इनके योगदान बिना भारत के विकास का आधार ही न खड़ा हो पता . इतिहास में भी नारी का लम्बा हस्तकक्षेप रहा . प्राचीन भारत को जो सम्मान मिला उसके पीछे नारियों का सहयोग व सहकार कि भावना सन्निहित रही है .वर्तमान समय में भले ही नारी शिक्षा का अवमूल्यन हो रहा हो , अन्धानुकरण के उफान पर भले ही उसकी शालीनता , मातृत्वता को मलीन और धूमिल किया गया हो परन्तु प्राचीन भारत में ऐसा नहीं था . तब चाहे कोई क्षेत्र हो , ज्ञान का हो या समाज का हो, नारी को समान अधिकार प्राप्त थे . नर-नारी को समान मानकर समान ऋषिपद प्राप्त था .
वैदिक ऋचाओं की द्रष्टा के रूप में सरमा , अपाला, शची , लोवामुद्रा , गोधा ,विस्वारा आदि ऋषिकाओं का आदरपूर्वक स्थान था .यही नहीं सर्वोच्य सप्तऋषि तक अरुंधती का नाम आता है. नर और नारी में भेद करना पाप
समझा जाता है . इसी कारण हमारे प्राचीन इतिहास में इसे अभेद मन जाता रहा है.ब्रह्मा को लिंग भेद से परे और पार मन जाता है . ब्रह्मा के अव्यक्त एवं अनभिव्यक्त स्वरुप को सामन्य बुद्धि के लोग समझ सके इसीलिए ब्रह्मा ने स्वयं को व्यक्त्त किया तो वे नर और नारी दोनों के रूप में प्रकट हुए . नर के रूप को जहाँ परमपुरुष कहा गया वाही नारी को आदिशक्ति परम चेतना कहा गया . नर और नारी में कोई भेद नहीं हैं . केवल सतही भिन्नता है और यही भ्रम नारी और पुरुष के बिच भेद कि दीवार खड़ी करती है. शास्त्रों में ब्रह्मा के तीनों रुपों को जहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा गया तो वहीं नारियों को आदिशक्ति, महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली कहा गया । देवासुर संग्राम में जब देवताओं को पराजय का मुँह देखना पड़ा था तब देवीशक्ती के रुप में देवताओं की मदद करना तथा राक्षसों को पराजित करना अध्यात्म-क्षेत्र में नारी को हेय समझने वाली मान्यता को निरस्त करती है ।
नारी शक्ति के बिना भगवान शिव को शव के समान माना जाता है । पार्वती के बिना शंकर अधुरे हैं । इसी तरह विष्णु के साथ लक्ष्मी, राम के साथ सीता को हटा दिया तो वह अधूरा सा लगता है । रामायण से अगर सीता जी को हटा दिया तो वह अधूरा सा लगता है । द्रोपदी, कुंती गांधारी का चरित्र ही महाभारत को कालजयी बनाता है अन्यथा पांडवो का समस्त जीवन बौना सा लगता । नारी कमजोर नहीं है, अबला नहीं है, वह शक्ति पर्याय है । देवासुर संग्राम में शुंभ निशुंभ, चंड-मुंड, रक्तबीज, महिषासुर आदि आसुरी प्रोडक्ट को कुचलने हेतु मातृशक्ति दुर्गा ही समर्थ हुई । इसी तरह अरि ऋषि की पत्नी अनुसूइया ने सूखे-शुष्क विंध्याचल को हरियाली से भर देनें के लिए तपश्चर्या की और चित्रकूट से मंदाकिनी नदी को बहने हेतु विवश किया । यह घटना भागीरथ द्वारा गंगावतरण की प्रक्रिया से कम नहीं मानी जा सकती ।
साहस और पराक्रम के क्षेत्र में भी नारी बढी-चढी़ । माता सीता उस शिवधनुष को बड़ी सहजता से उठा लेती जिसे बड़े-बड़े योद्धा नहीं उठा पाते थे । इनके अलावा नारियां वर्तमान समय में भी विभिन्न क्षेत्रों, जैसे-- प्रशासनिक क्षत्र में किरण वेदी , खेल में सानिया नेहवाल, सानिया मिर्जा, झूल्लन गोस्वामी, राजनीति में सोनिया गांधी, प्रतिभा देवी सिंह पाटील, मीरा कुमार, विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला, सुनिता विलियम्स, आदि सभी अपने क्षेत्रों में अग्रणी रही हैं और भारत स्वाभीमान को बढ़ाया है ।
इस तरह ऐसे बहुत से प्रमाण हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि भारत के विकास के लिए आदर्शवादी नारियों ने अपनी क्षमता योग्यता का योगदान दिया । समाज में नारी के विकास के लिए समुचित व्यवस्थाएं की जाए । नारी के
विकास से ही भारत अपनी प्रतिष्ठा, सम्मान, गौरव को पुनः प्राप्त कर सकता है ।
आभार ----अलग-अलग किताबों से पढ़ा गया किरदारों के बारे में
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