Monday, January 3, 2011

( असली भारत


Wednesday, November 18, 2009

हिन्दी भाषा का विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में प्रयोग

आज के युग में तकनीकी शिक्षा क्षेत्र या तकनीकी सेवा क्षेत्र, हर जगह लोग अपनी मातृभाषा को छोड़कर अंग्रेजी को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। इस क्षेत्र से संबंधित बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिन्हें हिन्दी ठीक से नहीं आती। यह हमारे देश के सभ्यता और संस्कृति के लिए एक अशुभ संकेत है। जैसा की हम जानते हैं कि तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में सभी विषय अंग्रेजी भाषा में ही पढने होते हैं और तकनीकी शिक्षा पुरी करने के बाद बहुत सारे तकनीशियन ब्रेन ड्रेन की भावना के कारण अपनी मातृभूमि छोड़कर दूसरे देशों में जाकर नौकरी, शोधकार्य आदि करते हैं। अंग्रेजी भाषा के ज्यादा उपयोग के कारण, हम उनकी सभ्यता एवं संस्कृति के गुलाम बनते जा रहे हैं जिससे हमारी सभ्यता, संस्कृति पतन की ओर अग्रसर हो रही है। स्वामी विवेकानन्द, एक बहुत ही बड़े अध्यात्मिक पुरूष थे। उन्हें अंग्रेजी का बहुत अच्छा ज्ञान भी था पर वे समयानुसार ही उसका प्रयोग करते थे। उन्होंने कहा था –
“भारतवासियों अंग्रेजी सिखो, लेकिन अंग्रेजीयत मत सिखो”
लेकिन आज के समय में हम अंग्रेजी के साथ -२ अंग्रेजीयत भी सीखते जा रहे हैं। जिसका परिणाम यह है कि हम अपने देश की सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता को अपनाते जा रहे हैं। यदी हम तकनीकी क्षेत्र में रहते हुए भी अपनी मातृभाषा को सम्मान देते हैं तो ये हमारे लिये गर्व की बात होगी। तकनीकी क्षेत्र में रहकर यदी हम हिन्दी को भूल जायें तो सेवा क्षेत्र में हमें बहुत सी कठिनीइयों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि आज भी भारत की बहुत सी जनता हिन्दी ही जानती है और यदी हम तकनीकी क्षेत्र में सेवारत हैं तो ऐसे लोगों से वार्तालाप आदि में समस्या उत्पन्न हो सकती है। अगर हमारे देश के तकनीशियन जो दूसरे देशों में कार्य कर रहे हैं, हिन्दी में वार्तालाप आदि करें तो इससे हिन्दी के प्रचार-प्रसार को बढावा मिलेगा तथा दूसरे देशों के लोग भी हमारी भाषा से वाकिफ हो सकेंगे। हिन्दी भाषा का विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में प्रयोग के बहुत सारे फायदे हैं, इसके कुछ समस्यायें भी हैं और इन समस्यायों के समाधान भी हैं। अब एक-२ करके इन सभी पर नजर डालते हैं -
लाभ - तकनीकी क्षेत्र में जब भी हिन्दी के प्रयोग की बात चलती है,तो इसे स्वदेश, सभ्यता तथा संस्कृति से प्रेम के रूप में ज्यादा देखा जाता है। इसके प्रयोग से होने वाले अऩ्य लाभों की अनदेखी कर दी जाती है जो निम्न हैं –
१. सभी को समान अवसर। विज्ञान तथा तकनीक को कम समय में तथा आसानी से सीखा जा सकता है। र्वतमान समय में इस क्षेत्र में आगे बढने के लिये अंग्रेजी भाषा की जानकारी होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस पर अधिकार होना भी आवश्यक है। अतः विद्यार्थी एक लंबा समय अंग्रेजी भाषा को सीखने में ही लगा देते हैं। गॉवों में इस भाषा को सीखने के लिये उपयुक्त माहौल भी नहीं है, अतः ग्रामीण विद्यार्थियों को तो और भी परेशानी का सामना करना पड़ता है। समान्यतः विद्यार्थी इन विषयों को सीखने में जो क प्रकार की अरूचि दिखाते हैं,उसका एक कारण ये भी है। अगर विज्ञान एवं तकनीक की शिक्षा हिन्दी में दी जाऐ तो विद्यार्थियों के लिये ये विषय अधिक सुग्राह्य होंगे।
२. ग्रामीणों को तकनीक(मुख्य धारा) से जुड़ाव। महात्मा गाँधी ने कहा था की राष्ट्रभाषा का पद प्राप्त करने का अधिकार हिन्दी भाषा ही रखती है। यह बात उन्होंने इसलिये कही थी, क्योंकी अधिकांश भारतीय हिन्दी आसानी से लिख, बोल सकते हैं। अगर विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में हिन्दी का प्रयोग हो तो यह सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक आसानी से पहुँच सकती है। अभी भी ग्रामीण क्षेत्र तथा बहुसंख्यक आम जनता विज्ञान तथा तकनीक से नहीं जुड़ सका है, खासकर किसान वर्ग। विज्ञान तथा तकनीक से जुड़ने पर उनका जीवन स्तर ऊँचा होगा।
३. आत्मनिर्भरता
४. स्वाभिमान का बोध
५. तकनीकी क्षेत्र में हिन्दी के प्रयोग से भारतीय प्रतिभाओं के पलायन पर भी कुछ हद तक रोक लगाया जा सकता है। इसके जिते-जागते उदाहरण के तौर पे आप चीन को ले सकते हैं।
समस्यायें – तकनीकी क्षेत्र में हिन्दी के प्रयोग से बहुत सारे लाभ तो हैं, पर इस पहल की राह में अनेक समस्यायें भी हैं, जो इस प्रकार हैं -
१. अंग्रेजी भाषी बनने पर ज्यादा प्रतिष्ठा पाने का भ्रम।
२. हिन्दी में पर्याप्त अध्ययन सामग्री का अनुउपलब्धता और जो कुछ अध्ययन सामग्री उपलब्ध है उनमें भी अंग्रजी के तकनीकी शब्दों का अनुवाद कुछ इस तरह से किया गया है कि भाषा कुछ ज्यादा ही कठीन हो गई है।
३. हिन्दी में पढाने वाले योग्य शिक्षकों का अभाव। चूकि ये शिक्षक भी लंबे समय से अंग्रजी में ही इन विषयों को पढाते आ रहे हैं तथा उन्होंने भी इन सभी विषयों की शिक्षा अंग्रजी में ही प्राप्त की है, अतः हिन्दी में पढाना उनके लिये भी परेशानी का सबब है।
४. हिन्दी में शिक्षा देने वाले पर्याप्त शिक्षण संस्थाओं का अभाव।
५. ज्यादतर कंपनीयाँ बहुराष्ट्रीय इसलिये तत्कालीन समय में हिन्दी में तकनीकी शिक्षा प्राप्त लोगों के लिये रोजगार की समस्या। कंपनियाँ अंग्रजी में तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वालों को ही नियुक्त करती हैं ऐसे में हिन्दी माधयम से शिक्षा प्राप्त करने वालों के लिये एकमात्र विकल्प सरकारी नौकरियाँ ही होती हैं जिन्हे प्राप्त करने के लिये पहले से ही मारामारी चल रही होती है।
६. स्वस्थ मानसिकता तथा दृढ इच्छाशक्ति का अभाव। अभिभावकों तथा विद्यार्थियों में यह बीमार मानसिकता घर कर गई है कि हिन्दी में शिक्षा प्राप्त करना अंग्रजी के मुकाबले हीन है। समाज भी हिन्दी में तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वालों को कमतर ही आँकता है, भले ही वह कितना भी तेज व कुशल क्यों न हो।
सुझाव – अतः तकनीकी क्षेत्र में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिये एक स्वस्थ मानसिकता के साथ प्राथमिक स्तर से ही प्रयास करने की आवश्यकता है। जैसे कि –
१. तकनीकी क्षेत्रों में हिन्दी का व्यापक इस्तेमाल।
२. हिन्दी भाषा में तकनीकी पुस्तकों या शोध पत्रों का लेखन एवं कुशल अनुवादकों की बड़ी संख्या में व्यवस्था जिससे कि वो तकनीकी पुस्तकों का सरल हिन्दी भाषा में अनुवाद कर सकें, अनुवाद करते वक्त इस बात का खास ध्यान रखा जाय की भाषा क्लिष्ट ना हो यानी सुग्राह्य हो। अखिल भारतीय तकनीकी परिषद् ने ऐसे अनुवादकों को प्रोत्साहित करने के लिये धन की भी व्यवस्था की है। हिन्दी भाषा में इन विषयों को लिखने का हमारा मकसद इसे साधारण जनता तक पहुँचाना है।
३. हिन्दी भाषा में शोध कार्य करने वालों के शोध कार्यों को समान्य जनता तक पहुँचाने के लिये हिन्दी भाषा में प्रतिष्ठित शोध पत्रिका का होना अतिआवश्यक है, ताकि यदी कोई हिन्दी में अपने शोध पत्र लिखता है तो उसका मुद्रण आसानी से हो सके।
४. हिन्दी में तकनीकी शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों तथा योग्य शिक्षकों के एक बड़े खेप की व्यवस्था करना। निजी शिक्षण संस्थान व्यवसायीक नजरिया अपनाये हुए हैं, वे अधिक से अधिक विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिये उन्हें विदेशी कंपनियों में नौकरी का प्रलोभन देते हैं जिसके लिए अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्राप्त करना जरूरी है। अतः वो अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा देते हैं। सरकार को ही हिन्दी में तकनीकी शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों तथा शिक्षकों की व्यवस्था करनी होगी। ये शिक्षण संस्थान उन विद्यार्थियों के लिये वरदान साबित होंगे जिन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिन्दी में प्राप्त की है और उच्च शिक्षा की आकांक्षा रखते हैं। यही नहीं ऐसे शिक्षण संस्थान तकनीकी कौशल प्रदान करने वाले कार्यक्रमों को ग्रामीण स्तर पर चलाकर, गॉवों को तकनीकी शिक्षा से जोड़ने में निश्चिय ही मदद कर सकते हैं।
५. तकनीकी एवं अतकनीकी सभी शिक्षण संस्थाओं में हिन्दी का एक अनिवार्य विषय लागु करना, साथ ही साथ हिन्दी के विभिन्न प्रतियोगिताओं (जैसे कि निबन्ध एवं कविता लेखन, भाषण प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता इत्यादी) एवं कार्यक्रमों का आयोजन ताकि तकनीकी क्षेत्रों में शिक्षारत एवं कार्यरत लोगों को हिन्दी का अच्छा ज्ञान हो और उनकी इसमें रूचि भी बनी रहे।
६. तकनीकी जगत को हिन्दी में कामकाज करनेवालों के लिये रोजगारपरक बनाना ताकि इन शिक्षण संस्थानों में पढने वाले विद्यार्थीयों को उचित रोजगार मिल सके।
७. हिन्दी में कामकाज करनेवालों को हिन्दी में ही संसाधन तथा अधिकाधिक सुविधा मुहैया कराना।
८. देश की समृद्धी एवं विकास के लिये दृढ संकल्प लेना।

हिन्दी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों जैसे की नेपाल, पाकिस्तान, फिजि, मॉरिशस, सुरीनाम, त्रिनिदाद, टोबागो और गुयाना इत्यादि में भी बोली जाती है। बोलने वालों की संख्या के आधार पर हिन्दी, चाइनीज और अंग्रेजी बाद तीसरे पायदान पर है। अंग्रेजी और हिन्दी बोलने वालों की संख्या में बहुत ही कम का अंतर है, यहाँ तक की कुछ ही समय पहले हिन्दी दूसरे पायदान पे थी। इन सब के बावजुद भी आज हम उनके लिये स्रोत हैं और वे मंजिल। पर क्या हम उनके लिये मंजिल नही बन सकते ? हमारे पास उम्दा संसाधन है, हम एक बहुत ही बड़ा बाजार भी हैं और आज के दौर में दुनियाँ उन्हीं के पिछे जाती है जिनके पास ये सब हों,फिर हम क्यों इसका फायदा उठाने में असफल हो रहे हैं ? कोकाकोला, जोकि एक विदेशी कंपनी है, के विज्ञापन “ये दिल मांगे मोर” में “दिल मांगे” इसीका जीता-जागता उदाहरण है। विदेशी लोग सदा से ही हिन्दी में उपलब्ध हमारे पुस्तकों का अध्ययन कर अपने अनुसंधान कार्य को नयी दिशा देते रहे हैं और अपने समाज को समृद्ध करते रहे हैं। इसके लिए वे हमारे पुस्तकों का अपने भाषा चाहे वो अंग्रेजी, फ्रेंच या जर्मन हो में अनुवाद करते रहे हैं। परन्तु हमने एक भेड़-चाल आरंभ कर दी है, वो भी उनके पीछे जो हमारे कारण ही समृद्ध हैं।
इसका कारण कोई और नहीं बल्कि हम खुद ही हैं। आजादी के ६०-६२ बर्षों बाद भी हम हिन्दी को अपने ही देश में वो स्थान नहीं दिला सके हैं जिसकी वो वास्तव में हकदार है। वोट बैंक के लिये हम हर साल १-२ नयी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसुची में शामिल करावा देते हैं और हमारी हिन्दी अपने भाग्य पे आँसु बहाने को मजबुर हो जाती है। हिन्दी को उसका खोया हुआ स्थान दिलाने के लिये हमें आज के युवा पीढी में इसके प्रति सम्मान की भावना जगानी होगी, जोकी अंग्रेजी के छलावे के आगे लुप्तप्राय हो रही है। इसे रोजगार प्रदत बनाना होगा और ये तभी संभव है जब हिन्दी को तकनीकि शिक्षा का मुख्य अंग बनाया जाय साथ ही साथ हमारे अनुसंधान कार्य भी इसी में हों। rafter.com, bhasaindia.com जैसे नये विकसीत वैबसाइटें ईनटरनेट के क्षेत्र में हिन्दी को व्यवहारिक भाषा बनाने की तरफ लोगों का ध्यान आर्कषित करने का सफल प्रयास कर रहे हैं। www.raftar.com, जो की हिन्दी से पुरी तरह से जुड़ी हुई (Integrated), भारत की पहली खोज यंत्र (Search Engine) मानी जा रही है एवं प्रबोधक (Monitor) में ही कुंजापटल (Key-Board) मुहैया करा रही है। साथ ही साथ यह तत्कालीक मुख्य समाचार, सजीव क्रिकेट जगत के अंक (Score) इत्यादि भी मुहैया कराती है। जब अमेरीका अपने लोगों के हिन्दी एवं चाइनीज सीखने को बाध्य कर रहा है तब हमलोग भारत में ही विदेशी भाषाओं की तरफ ज्यादा क्यों झुके हुए हैं ? समय आ चुका है जब हम अपने सर्वथा महत्वपूर्ण राजभाषा के महत्व को समझे और इसके पतन को रोकें और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने का प्रयास करें।
जय हिन्द

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