16 वर्ष लंबे केला युद्ध का अंत
यूरोपीय संघ ने केला आयात करने पर लगने वाले टैक्स पर एक समझौता किया है जिसका मतलब है कि दुनिया का सबसे लंबा व्यापार विवाद समाप्त हो सकेगा.
लातिनी अमरीका के अनेक देश बड़े केला उत्पादक हैं और इस आयात कर में कमी होने से उन्हें यूरोपीय संघ के देशों में केला भेजने पर कम टैक्स देना होगा.
अफ्रीकी और कैरीबियाई देशों से जो केला यूरोपीय संघ के देशों में आयात किया जाता है उस पर कोई टैक्स नहीं देना होता है. नए समझौते का मतलब है कि लातिनी अमरीकी देशों का केला भी अब यूरोपीय बाज़ार की कीमतों का सामना कर सकेगा.
विशेषज्ञों ने अनुमान व्यक्त किया है कि इस समझौते के बाद लातिनी अमरीकी देशों से केले का जो आयात होगा उसकी बदौलत केले के मूल्यों में 12 प्रतिशत तक कमी आ सकती है.
इस समझौते से केले के आयात कर में 176 यूरो प्रति टन से कटौती करके इसे 148 यूरो पर लाया जाएगा. उसके बाद अगले सात वर्षों के दौरान इस आयात कर में और भी कटौती की जाएगी जिसे अंततः 114 प्रति टन पर लाया जाएगा.
यूरोपीय संघ के विभिन्न व्यापार प्रतिनिधियों ने इस संधि पर मंगलवार, 15 दिसंबर को जिनेवा में हस्ताक्षर किए हैं.
यूरोपीय संघ के अध्यक्ष होज़े मैनुअल बरोज़ो ने इस अवसर पर कहा, "मैं बेहद प्रसन्न हूँ कि हमने आख़िरकार केला विवाद का हल निकाल लिया है और यह हल ऐसा समझौता है जो सभी पक्षों को स्वीकार्य है. एक बहुप्रणाली व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए यह समझौता बहुत महत्वपूर्ण है."
क़रीब 16 वर्ष पहले यूरोपीय संघ ने केले के आयात पर कर लगाया था और तभी से इस केला युद्ध की शुरूआत हुई थी. अब विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस समझौते से दुनिया का यह सबसे पुराना कारोबारी युद्ध समाप्त हो सकेगा लेकिन गहराई से देखें तो इस विवाद की जड़ें यूरोपीय औपनिवेशवाद से भी कहीं दूर तक जाती हैं.
विवाद की जड़
1975 में पूर्व कैरीबीयाई देशों को यूरोपीय देशों में केला निर्यात करने की काफ़ी छूट दी गई थी. बीबीसी के यूरोपीय व्यापार मामलों के संवाददाता नाइजेल कैस्सिडी का कहना है कि इस व्यवस्था के पीछे विचार ये था कि पूर्व यूरोपीय औपनिवेशिक देशों को अपने बूते पर ही और बिना किसी विदेशी सहायता के आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलना चाहिए.
लेकिन लातिनी अमरीकी देशों, जिनमें अमरीका भी शामिल है, की लंबे समय से ये शिकायत रही है कि यह व्यवस्था पक्षपाती है, हालाँकि अमरीका केले का कोई ख़ास उत्पादन नहीं करता है.
इसी रुख़ की हिमायत विश्व व्यापार संगठन ने भी करते हुए कहा था कि लातिनी अमरीकी देशों से यूरोपीय देशों में केले के आयात पर कर लगाने की व्यवस्था ग़ैरक़ानूनी है.
बहरहाल, इस नए समझौते से अफ्रीका, कैरीबीयाई और प्रशांत क्षेत्र के देशों में केला उत्पादकों को कुछ नुक़सान हो सकता है जो अभी तक यूरोपीय संघ के देशों में केला निर्यात करने पर कोई टैक्स नहीं अदा करते हैं.
इनमें से बहुत से ऐसे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था केला निर्यात पर बड़े पैमाने पर निर्भर करती है और ये देश यूरोपीय बाज़ारों तक अपना केला पहुँचाने में यूरोपीय संघ की कर माफ़ी पर टिके होते हैं.
यूरोप का केला बाज़ार दुनिया भर में सबसे बड़ा है, यानी यूरोपीय देशों में केले की सबसे ज़्यादा खपत होती है. यूरोपीय बाज़ारों में वर्ष 2008 में 55 लाख टन फलों का आयात किया गया था.
16 वर्ष लंबे केला युद्ध का अंत
यूरोपीय संघ ने केला आयात करने पर लगने वाले टैक्स पर एक समझौता किया है जिसका मतलब है कि दुनिया का सबसे लंबा व्यापार विवाद समाप्त हो सकेगा.
लातिनी अमरीका के अनेक देश बड़े केला उत्पादक हैं और इस आयात कर में कमी होने से उन्हें यूरोपीय संघ के देशों में केला भेजने पर कम टैक्स देना होगा.
अफ्रीकी और कैरीबियाई देशों से जो केला यूरोपीय संघ के देशों में आयात किया जाता है उस पर कोई टैक्स नहीं देना होता है. नए समझौते का मतलब है कि लातिनी अमरीकी देशों का केला भी अब यूरोपीय बाज़ार की कीमतों का सामना कर सकेगा.
विशेषज्ञों ने अनुमान व्यक्त किया है कि इस समझौते के बाद लातिनी अमरीकी देशों से केले का जो आयात होगा उसकी बदौलत केले के मूल्यों में 12 प्रतिशत तक कमी आ सकती है.
इस समझौते से केले के आयात कर में 176 यूरो प्रति टन से कटौती करके इसे 148 यूरो पर लाया जाएगा. उसके बाद अगले सात वर्षों के दौरान इस आयात कर में और भी कटौती की जाएगी जिसे अंततः 114 प्रति टन पर लाया जाएगा.
यूरोपीय संघ के विभिन्न व्यापार प्रतिनिधियों ने इस संधि पर मंगलवार, 15 दिसंबर को जिनेवा में हस्ताक्षर किए हैं.
यूरोपीय संघ के अध्यक्ष होज़े मैनुअल बरोज़ो ने इस अवसर पर कहा, "मैं बेहद प्रसन्न हूँ कि हमने आख़िरकार केला विवाद का हल निकाल लिया है और यह हल ऐसा समझौता है जो सभी पक्षों को स्वीकार्य है. एक बहुप्रणाली व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए यह समझौता बहुत महत्वपूर्ण है."
क़रीब 16 वर्ष पहले यूरोपीय संघ ने केले के आयात पर कर लगाया था और तभी से इस केला युद्ध की शुरूआत हुई थी. अब विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस समझौते से दुनिया का यह सबसे पुराना कारोबारी युद्ध समाप्त हो सकेगा लेकिन गहराई से देखें तो इस विवाद की जड़ें यूरोपीय औपनिवेशवाद से भी कहीं दूर तक जाती हैं.
विवाद की जड़
1975 में पूर्व कैरीबीयाई देशों को यूरोपीय देशों में केला निर्यात करने की काफ़ी छूट दी गई थी. बीबीसी के यूरोपीय व्यापार मामलों के संवाददाता नाइजेल कैस्सिडी का कहना है कि इस व्यवस्था के पीछे विचार ये था कि पूर्व यूरोपीय औपनिवेशिक देशों को अपने बूते पर ही और बिना किसी विदेशी सहायता के आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिलना चाहिए.
लेकिन लातिनी अमरीकी देशों, जिनमें अमरीका भी शामिल है, की लंबे समय से ये शिकायत रही है कि यह व्यवस्था पक्षपाती है, हालाँकि अमरीका केले का कोई ख़ास उत्पादन नहीं करता है.
इसी रुख़ की हिमायत विश्व व्यापार संगठन ने भी करते हुए कहा था कि लातिनी अमरीकी देशों से यूरोपीय देशों में केले के आयात पर कर लगाने की व्यवस्था ग़ैरक़ानूनी है.
बहरहाल, इस नए समझौते से अफ्रीका, कैरीबीयाई और प्रशांत क्षेत्र के देशों में केला उत्पादकों को कुछ नुक़सान हो सकता है जो अभी तक यूरोपीय संघ के देशों में केला निर्यात करने पर कोई टैक्स नहीं अदा करते हैं.
इनमें से बहुत से ऐसे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था केला निर्यात पर बड़े पैमाने पर निर्भर करती है और ये देश यूरोपीय बाज़ारों तक अपना केला पहुँचाने में यूरोपीय संघ की कर माफ़ी पर टिके होते हैं.
यूरोप का केला बाज़ार दुनिया भर में सबसे बड़ा है, यानी यूरोपीय देशों में केले की सबसे ज़्यादा खपत होती है. यूरोपीय बाज़ारों में वर्ष 2008 में 55 लाख टन फलों का आयात किया गया था.
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