भारत की पहचान उसका वैदिक ज्ञान है। भारत की पहचान आत्मचेतना के क्षेत्र में और बाह्य क्षेत्र में देवत्व जगाने वाली उसकी वैदिक विद्या है। ज्ञान कैसे होता है? ज्ञान को जगाने के लिए कहीं बाहर नहीं भटकना पड़ता है। ज्ञान तो भीतर ही होता है और भीतर से ही जागृत होता है। ज्ञान आत्मचेतना को जागृत करने से होता है। आत्मचेतना अन्तर्मुखी होने से जागती है। जितना अन्तर्मुखी होंगे, उतनी ही चेतना जागृत होगी और उतना ही उसमें ज्ञान जागृत होगा। चेतना जागृत होने से कुछ कठिन नहीं रह जाता है। चेतना के समग्रता में जागृत होते ही किसी भी क्षेत्र के कार्य की सम्पूर्ण सोच, विचार और क्षमता जागृत हो जाती है। चेतना की सम्पूर्ण जागृति से बुद्धि सही दिशा में, समग्रता में संचालित होने लगती है।

चेतना कैसे जागृत होती है?

चेतना जागृत होती है वैदिक विधानों को, दैवी-शक्तियों को जगाने वाले विधानों को अपनाने से। हम देखते आ रहे हैं कि लोक में, गांव-गांव में, जहां-कहीं भी, जिस किसी में भी चेतना की जागृति है, वह वैदिक विधानों, दैवी शक्तियों को जगाने वाले विधानों को अपनाये रखने के कारण ही है।
इसलिए अपनी भारतीय ज्ञान परम्परा में आत्मचेतना को दैवी सत्ता में जागृत करने को अहम् बताया गया है। आत्मचेतना के दैवी सत्ता में, भावातीत सत्ता में, परम व्योमन की सत्ता में, ब्रह्म की सत्ता में जागृत होने से सारे कार्य देवी-देवता अपने हाथों में ले लेते हैं। भावातीत सत्ता में जागृत-चेतना में संकल्प लेने मात्र से सारे कार्य देवी-देवता स्वयं करने लगते हैं और जिस कार्य को स्वयं दैवी शक्तियों का सहयोग प्राप्त हो, उसके सफल होने में कोई शंका नहीं रह जाती। दैवी सत्ता, ब्राह्मी सत्ता में जागृत कार्य सुफलदायी होता ही होता है। आधुनिक विकास के चलते आजकल देखने में आ रहा है कि सारे कार्य मनुष्य कृत बुद्धि द्वारा ही संचालित हो रहे हैं। मनुष्य कृत बुद्धि से किसी भी कार्य में पूर्ण सफलता नहीं मिलती। मनुष्य कृत बुद्धि से विधान तो बनाये जा सकते हैं, लेकिन संविधान नहीं बनाया जा सकता। संविधान तो प्रकृति का होता है, प्राकृतिक नियमों का होता है, दैवी सत्ता का होता है, ब्रह्म का होता है। जब मनुष्य की चेतना प्रकृति की, प्राकृतिक नियमों, दैवी सत्ता, ब्रह्म की सत्ता से पोषित होती है अर्थात् सृष्टि के संविधान से संचालित होती है तो मनुष्य कृत बुद्धि, मनुष्य कृत संविधान स्वयं सफलतापूर्वक चलने लगता है।
इसलिए किसी भी कार्य की सफलता-असफलता हमारी चेतना के स्तर पर निर्भर करती है, क्योंकि कोई भी कार्य चेतना के स्तर पर ही होता है। जैसा चेतना का स्तर होगा, वैसा ही कर्म होगा। भौतिक क्षेत्र का कोई भी कार्य चेतना पर छाये अज्ञान के कारण ही गड़बड़ा जाता है।

चेतना कैसे गुणवान हो?

उस पर छाये अज्ञान को कैसे हटाया जाये? इसका उत्तर अपनी वेद विद्या बताती है। आधुनिक विज्ञान भी अब इस तथ्य को स्वीकार कर चुका है कि भारत के लोक-जीवन में जो भी देवी-देवताओं की शक्ति की मान्यता है, वह मनुष्य शरीर में ही मौजूद है।
यह तथ्य अब वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि जितने भी अपने देवी-देवता हैं, उनकी जो गुण शक्ति है, वह हमारे शरीर के विभिन्न भागों में उपस्थित है और वेद-विज्ञान के जो अपने सिद्धान्त हैं, विधान हैं, इनको अपने भीतर जागृत करने की ही तकनीकें हैं। भारतीय लोक-जीवन में स्थापित मान्यता कि ईश्वर मनुष्य के ही भीतर है, अब वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है।