विकिपीडिया:चौपाल
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[संपादित करें]ऐसे लेखों का क्या किया जाये
नमस्कार प्रिय विकि मित्रों, उपरोक्त लिंक हिन्दी विकि पर उपस्थित १०००० अत्यंत छोटे लेखों को दर्शाता है। यह लेख अधिकतर बहुत पहले बर्बरता पर या अंग्रेजी शीर्षक पर या कई तो एक या दो शब्दों के एकदम निरर्थक बने हुए। हालाँकि हमारी हिन्दी विकि में कुल ५७००० के आस पास लेख है परन्तु आप देख सकते है कि इनमें १०००० -१५००० बिना किसी महत्त्वपूर्ण सूचना पर अधारित है। जिससे रेन्डम सर्च टेस्ट में हमारे प्रोजेक्ट की गलत छवि जाती है। अत: क्या ऐसे लेखों को हटा दिया जाये अथवा कोई अन्य विकल्प चुना जायें। कृपया सभी प्रबंधक एवं सक्रिय सदस्य इस विषय पर अपना सुझाव रखें--Mayur(Talk•Email) १३:४५, २९ नवंबर २०१० (UTC)
मेरे विचार से इनमें से जो लेख बिल्कुल ही व्यर्थ है या बर्बरता पर अधारित है उन्हे हमें हटा देना चाहिये, इसमें हमें लगभग २०००-३००० लेखों की क्षति होगी।--Mayur(Talk•Email) १४:१४, २९ नवंबर २०१० (UTC)
मेरा मयूरजी की बातों को पूरा समर्थन है। इस बात पर बहुत बार पहले भी आमराय बनाई जा चुकी है कि छोटे-छोटे बहुत से लेख बनाने से तो किसी विषय पर विस्तृत लेख बनाए जाने चाहिए फिर चाहे संख्या में कम ही क्यों न हों। ऐसे लेखों का भला क्या प्रायोजन जिससे पढ़ने वाला और चिढ़ जाए? दरसल इन लेखों में से अधिकतर पिछले वर्ष बनाए गए होंगे क्योंकि सभी लोग मिलकर हिन्दी दिवस तक लेखों को ५०,००० के पार पहुँचाना चाहते थे जिस कारण बहुत से ऐसे छोटे लेख बनाए गए। मेरे विचार से भी इन लेखों को हटाने का काम तुरन्त किया जाना चाहिए या फिर एक सदस्य समूह बनाकर इन लेखों के विस्तारीकरण और सुधारीकरण का काम किया जाना चाहिए क्योंकि लेख एकदम मिटाने से भी तो लेखों की संख्या में बहुत तीव्र गिरावट आएगी, हालांकि तब भी हम लोग सभी भारतीय भाषाओं के विकियों से आगे ही होंगे क्योंकि दूसरे सबसे बडे भारतीय भाषा के विकि, तेलुगू विकि पर अभी ४७,००० लेख भी नहीं हुए हैं। इसलिए जिन लेखों का विस्तार/सुधार सम्भव नहीं है उन्हें तो हटाया जाए लेकिन जिन्हें विस्तृत किया जा सकता है उन्हें किया जाए। यह मेरी राय थी। अन्य सदस्य भी अपनी राय रखें। रोहित रावत १०:४२, ३० नवंबर २०१० (UTC)
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- ये बात काफी सार्थक रहेगी, उन बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए जो मयूर ने कहे हैं। किन्तु इनमें से बहुत से लेख ऐसे भी हैं, जिन्हें किसी आलेख या निर्वाचित लेख बनाते हुए सहायक लेख, या लाल कड़ी को नीली करने हेतु बनाया गया होगा। और उन्हें हटाने से निर्वाचित लेख आदि में लाल कड़ियां आ सकती हैं। अतएव इस प्रकार से छटनी करनी चाहिये कि पहले प्रत्येक लेख को यहां क्या जुड़ता है, लिंक के द्वारा जुड़े हुए लेखों को देख कर यदि कहीं कोई अंतर न पड़ रहा हो, तभी हटाना चाहिये। हां बहुत से लेख तो ऐसे ही होंगे जैसे किजयचंद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, इंदिरा पाइंट एवं व्यवसाय प्रशासन में स्नातक, आदि। इन्हें तो एक सिरे से ही हटा देर्ना चाहिये। इन लेखों की सूची हेतु देखें: छोटे पन्ने। अधिकतम कार्य तो इससे ही सिद्ध हो जायेगा।--प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता ११:५६, ३० नवंबर २०१० (UTC)
- मेरे विचार से हमें हिन्दी विकि की गति बढने के साथ इन लेखों को हटाते रहना चाहिये मुझे विकिमीडीया के ही एक सदस्य ने यह सुझाव दिया कि हिन्दी विकि पर इस प्रकार के लेखों को हटाया जाये क्योंकि इससे हमारे प्रोजेक्ट की गलत छवि जाती है। हमारे विकि पर अब प्रतिमाह औसतन ७०० अच्छे लेख बन रहे वह भी बिना किसी बर्बरता वाले इनमें से २००-३०० लेखों का योगदान गुगल ट्रांसलेट उपकरण का प्रयोग करने वालों के होते है। अत: इस गति को ध्यान में रखकर हमें इन लेखों को हटाना चाहिये ताकिं हमारी हमारी लेख सांख्यकी पर कोई असर ना पड़े। अभी के लिये सबसे अच्छी बात यह है कि हमें हर माह ७०० अच्छी गुणवत्ता के लेख मिल रहे है।--Mayur(Talk•Email) १३:५७, ३० नवंबर २०१० (UTC)
- ये बात काफी सार्थक रहेगी, उन बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए जो मयूर ने कहे हैं। किन्तु इनमें से बहुत से लेख ऐसे भी हैं, जिन्हें किसी आलेख या निर्वाचित लेख बनाते हुए सहायक लेख, या लाल कड़ी को नीली करने हेतु बनाया गया होगा। और उन्हें हटाने से निर्वाचित लेख आदि में लाल कड़ियां आ सकती हैं। अतएव इस प्रकार से छटनी करनी चाहिये कि पहले प्रत्येक लेख को यहां क्या जुड़ता है, लिंक के द्वारा जुड़े हुए लेखों को देख कर यदि कहीं कोई अंतर न पड़ रहा हो, तभी हटाना चाहिये। हां बहुत से लेख तो ऐसे ही होंगे जैसे किजयचंद, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, इंदिरा पाइंट एवं व्यवसाय प्रशासन में स्नातक, आदि। इन्हें तो एक सिरे से ही हटा देर्ना चाहिये। इन लेखों की सूची हेतु देखें: छोटे पन्ने। अधिकतम कार्य तो इससे ही सिद्ध हो जायेगा।--प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता ११:५६, ३० नवंबर २०१० (UTC)
- मेरे विचार से इन लेखों को हटाने के बारे में सभी लोग सिद्धान्ततः सहमत होंगे। किन्तु किस प्रकार हटाया जाय, इस बारे में अलग-अलग सोच हो सकती है। मेरा विचार है कि-
- इन लेखों को एक साथ न हटाया जाय बल्कि शनैः-शनैः हटाया जाता रहे।
- प्रतिमास लगभग १००-२०० लेख हटाने का विचार ठीक रहेगा। इससे हिन्दी विकि के लेखों में एकाएक गिरावट नहीं दिखेगी बल्कि ऐसा दिखेगा कि लेखों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है।
- किसी लेख को हटाने के पहले देख लिया जाय कि यदि उसी के संगत अंग्रेजी में कोई लेख हो, या उस नाम का लेख बाद में बनाना आवश्यक दिखे, तो उस लेख को हटाने के बजाय उसे अंग्रेजी लेख के इंतरविकि लिंक्स में जोड़ दिया जाय तथा उस हिन्दी लेख में दो-तीन वाक्य जोड़कर उसे बने रहने दिया जाय।
- ऐसे लेख जो अंठ-संठ नामों से हों या विध्वंसात्मक दिकें, उन्हें हटाने में प्राथमिकता दी जाय या तुरन्त हटा दिया जाय। -- अनुनाद सिंहवार्ता ०४:३९, १ दिसंबर २०१० (UTC)
[संपादित करें]Contribute Campaign-Fundraiser 2010
Hi everyone, I wanted to inform everyone about the ongoing Contribute campaign for this year's fundraiser. As part of the campaign, we want to drive up participation on the Indian language Wikipedias, We have created a page on Meta where we can discuss and brainstorm Ideas on what we can do to improve Indian Language Wikipedias. I would like to invite anyone who is interested in contributing to join in, and share their thoughts. Thank you. [१]Theo (WMF) १७:४९, ३० नवंबर २०१० (UTC)
[संपादित करें]कीबैक
दिनेशजी आपने कनाडा के इस प्रान्त के ध्वज और राज्यचिह्न से सम्बन्धित लेखों के नाम क्यों बदल दिए? आपने कीबैक के स्थान पर क्यूबेक कर दिया है। आपने शायद इस शब्द को देखकर इसका यह नाम हिन्दी में भी रख दिया है। दिनेशजी इस प्रान्त को फ़्रान्सीसी में, जो इस प्रान्त की प्रमुख भाषा है, कीबैक कहा जाता है, नाकि क्यूबेक जैसा आपने नाम रख दिया है। अङ्ग्रेज़ी में भी इसे कुइ'बैक कहा जाता है नाकि क्यूबेक और ज़रूरी नहीं कि हर बार विदेशी स्थानों के नाम अङ्ग्रेज़ी से लिए जाएं। इसलिए इस प्रान्त का सही नाम कीबैक होगा नाकि क्यूबेक। और दूसरी बात यह कि आपने बहुत से शब्दों को भी बदल दिया है जैसे अङ्ग्रेज़ी को अंग्रेज़ी कर दिया है। आपने जो शब्द लिखा है वह हिन्दी व्याकरण और मानकों के अनुसार सही नहीं है। हाँ यह बात सही है कि हिन्दी लिखने के सन्दर्भ में सरकार ने कैसे भी शब्द को लिख देने की छूट दे दी थी लेकिन मेरा प्रयास है कि मानकों के अनुसार भाषा लिखी जानी चाहिए फिर भले ही कोई शब्द लिखने में कितना ही अलग सा क्यों न दिखे। दरसल यहाँ पर फिर से मानकीकरण पर बहस आरम्भ हो सकती है। विश्व के बहुत से देशों ने अपनी-अपनी भाषाओं का मानकीकरन कर लिया है। यह तो बस हमारा ही अनोखा देश है जहाँ किसी चीज़ का मानकीकरण नहीं होता और जिसकी जो मन करता है लिखते रहता है। मेरे विचार से यह सही नहीं है क्योंकि शब्दों को अपने मन से लिखकर कम हिन्दी भाषा की उस सबसे बड़ी विशेषता को ही झुठला देते है जो यह है कि हिन्दी जैसी बोली जाती है वैसी लिखी जाती है या जैसी लिखी जाती है वैसी बोली जाती है। हाँ मैं किसी को मानक के अनुसार लिखने के लिए बाध्य नहीं कर रहा हूँ लेकिन मेरा मानना तो यह है कि किसी भाषा का विद्वान होने के लिए उस भाषा के व्याकरण और मानकों का आपको ज्ञान होना चाहिए। बल्कि हमें तो हिन्दी भाषियों को इस बात से अवगत कराना चाहिए कि हमारी भाषा कितनी वैज्ञानिक और सही है जिसमें वर्तनी और उच्चारण का कोई भ्रम नहीं है। इसलिए कृपया मानक के अनुसार लिखे गए शब्द को देखकर, जैसे अङ्ग्रेज़ी, यह न समझें कि यह गलत ढङ्ग से शब्द लिखा गया है। आशा करता हूँ कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। धन्यवाद। रोहित रावत १७:५६, ५ दिसंबर २०१० (UTC)
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- रोहित जी हो सकता है आप सही हों क्योंकि आप ने इन लेखों को बनाने से पहले शोध किया होगा पर एक बात मैं आपको बताना चाहता हूँ कि समय के साथ भाषा और लिपि दोनों मे परिवर्तन आता है आप जानते होंगे जब हम छोटे थे तो झ को भ के पीछे पूँछ लगा कर लिखते थे इसी तरह अ भी प्र की तरह लिखा जाता था पर जब हिन्दी के लिए लिपि का मानकीकरण किया गया तो इस तरह के सभी प्रयोग बंद हो गये आपने जैसे अङ्ग्रेज़ी लिखा है वो तरीका हिन्दी में अब मान्य नहीं है लेकिन नेपाली जैसी भाषाओं में अभी भी चलता है। हिन्दी में इसे अंग्रेजी या अंग्रेज़ी ही लिखा जाता है। जहां तक कीबैक या क्यूबेक का प्रश्न है तो आपको ज्ञात होना चाहिए कि हिन्दी में इसे सभी स्थानों पर क्यूबेक ही लिखा जाता है ना कि कीबैक। हो सकता है कि फ्रांसीसी में इसका उच्चारण कीबैक हो पर हमें इसके हिन्दी उच्चारण की चिंता करनी चाहिए ना कि फ्रांसीसी उच्चारण की। हिन्दी में छपने वाले सभी अखबार और पत्रिकायें क्यूबेक ही लिखती हैं इसका प्रमाण आपको गूगल सर्च से भी मिल सकता है। मेरे हिसाब से हमें वो नहीं लिखना चाहिए जो हमें सही लगता है बल्कि असल मे वो क्या है उसी को तरजीह देनी चाहिए। आशा करता हूँ कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। धन्यवाद।Dinesh smita १५:३७, ९ दिसंबर २०१० (UTC)
- मेरे विचार से इस समस्या का हल पुनर्निर्देशन करना है जैसे प्रबंधक एवं प्रबन्धक यह दोनों नाम ही प्रचलित है अत: दोनों में से एक पर पुनर्निर्देशन दिया जाना चाहिये। इसी प्रकार यदि कीबैक नाम से पहले से कोई लेख बना हुआ है तो क्यूबेक को उस पर पुनर्निर्देशित किया जा सकता है। इससे हर प्रकार के पाठकों को सहायता मिलेगी। शुद्ध हिन्दी एवं प्रचलित नाम दोनों का अपना अपना महत्त्व है शुद्ध हिन्दी से किसी भाषाविद् विद्वान पाठक को एवं प्रचलित नाम से समान्य पाठको को लेख खोजने में अत्यंत सुविधा रहेगी--Mayur(Talk•Email) १८:०९, ९ दिसंबर २०१० (UTC)
- मयूर जी आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं किंतु, ऐसा करने से करने पर भी हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि, अंतिम पुनर्निर्देशन हिन्दी का कोई मानक शब्द ही होना चाहिए ना कि कोई स्वविचारित शब्द।Dinesh smita ०७:४३, १० दिसंबर २०१० (UTC)
- मेरा सभी प्रबुद्ध सदस्यों से आग्रह है कि इस मुद्दे पर मूक दर्शक ना बने रहें अपितु अपने विचार दें कि हमें इस मामले में क्या करना चाहिए? मुझे नहीं पता फ्रांसीसी (सबसे आम तरीका) को फ़्रांसीसी को फ़्रान्सीसी लिखने से क्या बदलेगा? जहां जर्मन जैसी भाषायें अपने शब्दों की वर्तनी को दुरुस्त कर रही हैं, अमेरिकन अंग्रेजी की वर्तनी, ब्रिटिश अंग्रेजी के मुकाबले अधिक सरल है, वहां हिन्दी को आज से 70 साल पुराने तरीके से लिखना कहां तक उचित है?Dinesh smita ०७:५८, १० दिसंबर २०१० (UTC)
- यदि ऐसा है तो अधिक प्रचलित नाम को अधिक महत्त्व देना चाहिये, क्योंकि विकिपीडीया का पहला मुख्य उद्देश्य ज्ञान का प्रसार करना है यदि वह ज्ञान शुद्ध भाषा में हो तो उसकी शोभा और निखर जाती है। हमारे देश में समस्त हिन्दी भाषियों में से लगभग .1% लोगो को ही शुद्धतम हिन्दी का ज्ञान होगा, बाकि ९९.९% लोग समान्य बोल चाल की हिन्दी पर चलते है। परन्तु हिन्दी के अस्तित्त्व को बचाय्रे रखने के लिये हमें हिन्दी के शुद्ध शब्दों का भी विकिपीडीया के द्वारा प्रचार करना चाहिये हाँ ये अवश्य ध्यान रखा जा सकता है कि वह शब्द कोई स्वविचारित शब्द न हो। इस प्रकार दोनों शुद्ध एवं अधिक प्रचार वाले शब्दों पर पुनर्निर्देशन देकर हम आम वर्ग एवं विद्वान वर्ग दोनों का हित कर सकते है।--Mayur(Talk•Email) १०:१७, १० दिसंबर २०१० (UTC)
- मेरा सभी प्रबुद्ध सदस्यों से आग्रह है कि इस मुद्दे पर मूक दर्शक ना बने रहें अपितु अपने विचार दें कि हमें इस मामले में क्या करना चाहिए? मुझे नहीं पता फ्रांसीसी (सबसे आम तरीका) को फ़्रांसीसी को फ़्रान्सीसी लिखने से क्या बदलेगा? जहां जर्मन जैसी भाषायें अपने शब्दों की वर्तनी को दुरुस्त कर रही हैं, अमेरिकन अंग्रेजी की वर्तनी, ब्रिटिश अंग्रेजी के मुकाबले अधिक सरल है, वहां हिन्दी को आज से 70 साल पुराने तरीके से लिखना कहां तक उचित है?Dinesh smita ०७:५८, १० दिसंबर २०१० (UTC)
- मयूर जी आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं किंतु, ऐसा करने से करने पर भी हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि, अंतिम पुनर्निर्देशन हिन्दी का कोई मानक शब्द ही होना चाहिए ना कि कोई स्वविचारित शब्द।Dinesh smita ०७:४३, १० दिसंबर २०१० (UTC)
- मेरे विचार से इस समस्या का हल पुनर्निर्देशन करना है जैसे प्रबंधक एवं प्रबन्धक यह दोनों नाम ही प्रचलित है अत: दोनों में से एक पर पुनर्निर्देशन दिया जाना चाहिये। इसी प्रकार यदि कीबैक नाम से पहले से कोई लेख बना हुआ है तो क्यूबेक को उस पर पुनर्निर्देशित किया जा सकता है। इससे हर प्रकार के पाठकों को सहायता मिलेगी। शुद्ध हिन्दी एवं प्रचलित नाम दोनों का अपना अपना महत्त्व है शुद्ध हिन्दी से किसी भाषाविद् विद्वान पाठक को एवं प्रचलित नाम से समान्य पाठको को लेख खोजने में अत्यंत सुविधा रहेगी--Mayur(Talk•Email) १८:०९, ९ दिसंबर २०१० (UTC)
- रोहित जी हो सकता है आप सही हों क्योंकि आप ने इन लेखों को बनाने से पहले शोध किया होगा पर एक बात मैं आपको बताना चाहता हूँ कि समय के साथ भाषा और लिपि दोनों मे परिवर्तन आता है आप जानते होंगे जब हम छोटे थे तो झ को भ के पीछे पूँछ लगा कर लिखते थे इसी तरह अ भी प्र की तरह लिखा जाता था पर जब हिन्दी के लिए लिपि का मानकीकरण किया गया तो इस तरह के सभी प्रयोग बंद हो गये आपने जैसे अङ्ग्रेज़ी लिखा है वो तरीका हिन्दी में अब मान्य नहीं है लेकिन नेपाली जैसी भाषाओं में अभी भी चलता है। हिन्दी में इसे अंग्रेजी या अंग्रेज़ी ही लिखा जाता है। जहां तक कीबैक या क्यूबेक का प्रश्न है तो आपको ज्ञात होना चाहिए कि हिन्दी में इसे सभी स्थानों पर क्यूबेक ही लिखा जाता है ना कि कीबैक। हो सकता है कि फ्रांसीसी में इसका उच्चारण कीबैक हो पर हमें इसके हिन्दी उच्चारण की चिंता करनी चाहिए ना कि फ्रांसीसी उच्चारण की। हिन्दी में छपने वाले सभी अखबार और पत्रिकायें क्यूबेक ही लिखती हैं इसका प्रमाण आपको गूगल सर्च से भी मिल सकता है। मेरे हिसाब से हमें वो नहीं लिखना चाहिए जो हमें सही लगता है बल्कि असल मे वो क्या है उसी को तरजीह देनी चाहिए। आशा करता हूँ कि आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। धन्यवाद।Dinesh smita १५:३७, ९ दिसंबर २०१० (UTC)
भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से रोहित जी का मत सही है किंतु भाषा समाज की संपत्ति है और एक सीमा के बाद भाषा के विपथन को अपवाद के रूप में व्याकरण और भाषा विज्ञान को मान्यता देनी ही होती है। दिल्ली विश्वविद्यालय में राष्ट्रभाषा के अंतर्गत स्नातक प्रथम वर्ष को पढ़ाई जाने वाली पुस्तक में प्रसिद्ध सांस्कृतिक विमर्शकार श्यामाचरण दूबे का एक निबंध है 'अस्मिताओं का संघर्ष'। उसमें भी कनाडा के क्यूबेक प्रांत का ही उल्लेख है। अनिरुद्ध वार्ता ०३:४२, ११ दिसंबर २०१० (UTC)
काफ़ी बाद में इस चर्चा में जुड़ रहा हूं, क्षमाप्रार्थी हूं। मेरा मत भी वही है, जो इस विषय पर बहुमत है। क्या सही है, और क्या शुद्ध है, इन दोनों में अंतर हो सकता है। शुद्ध का ज्ञान होना बहुत अच्छी बात है, किन्तु समय के साथ अद्यतन होते रहना चाहिये, यही विकास का परिचायक होता है, अन्यथा हम मैं को पुरानी हिन्दी फिल्मों की भांति बोलचाल में मैएं ही बोलते रहते। ऐसे ही आवो, जावूंगा, इत्यादि। हां अपभ्रंशों के स्थान पर सही शब्दों/मूल शब्दों को प्राथमिकता देनी चाहिये, किन्तु सभि तद्भवों के स्थान पर तत्सम नहीं चल सकते हैं। अतएव हमें अङ्ग्रेज़ी छोड़कर अंग्रेज़ी सरीखे शब्द सहृदयता सहित अपना लेने चाहिये।--प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता ११:४६, १४ दिसंबर २०१० (UTC)
- नोट:- निम्नलिखित वार्ता कुछ अधिक लम्बी है इसके लिए क्षमा चाहता हूँ।
सभी सदस्यों के विचार पढ़े। इस विष्य पर अपने-२ विचार रखने के लिए सभी सदस्यों का हार्दिक धन्यवाद। मैंने सदस्यों की राय को देखते हुए उपरोक्त लेख का नाम क्यूबेक कर दिया है। साथ ही में इस लेख से सम्बन्धित अन्य लेखों में भी बदलाव कर दिया है। मैं सभी सदस्यों की इस राय से सहमत हूँ लेकिन भाषा मानकीकरण के बारे में मेरी राय कुछ भिन्न है। दिनेशजी आपने यह तर्क दिया है कि फ़्रांसीसी को फ़्रान्सीसी लिखने से क्या बदलेगा? दिनेशजी आप ही ने यह भी सुझाया है कि मेरे हिसाब से हमें वो नहीं लिखना चाहिए जो हमें सही लगता है बल्कि असल मे वो क्या है उसी को तरजीह देनी चाहिए। यहाँ पर मैं एक बात स्पष्ट करना चाहता हूँ कि मैं वह नहीं लिख रहा था जो मुझे सही लगा बल्कि मैं तो वह लिख रहा था जो सही था। चलिए कीबैक या क्यूबेक विवाद पर मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि हमें अंग्रेज़ी या फ़्रान्सीसी उच्चारण पर नहीं अपितु हिन्दी उच्चारण के आधार पर लिखना चाहिए और इन दोनों ही भाषाओं में क्यूबेक का उच्चारण अलग-अलग है। इसके लिए मैंने कीबैक को बदलकर क्यूबैक कर दिया है।
लेकिन जो आपने दूसरा तर्क दिया है कि जिस प्रकार आजकल हिन्दी लिखी जा रही है हमें उसी प्रकार लिखनी चाहिए। तो इस सन्दर्भ मैं यह कहना चाहूँगा कि किसी भाषा को लिखने के बहुत से ढंग होते है, और जो भाषा जितनी व्यापक होती है वह उतनी ही विविध रूपों में पाई भी जाती है। फिर भी किसी भाषा का एक मानकीकृत रूप होता है जो उस भाषा के नियमों और व्याकरण को ध्यान में रखकर मानकीकृत माना जाता है। जैसे कि अङ्ग्रेज़ी, फ़्रान्सीसी, रूसी, स्पेनी, अरबी जैसी भाषाएँ बहुत से देशों में बोली जातीं है और इन भाषाओं के भी विविध स्वरूप पाए जाते हैं लेकिन यदि आप ध्यान दें तो आप पाएंगे कि इन भाषाओं का मानकीकरण किया जा चुका है। इसलिए अङ्ग्रेज़ी का वही स्वरूप मानक माना जाता है जो ब्रिटेन या अमेरिका में प्रचलित है। इसी प्रकार फ़्रान्स में बोली जाने वाली फ़्रान्सीसी ही मानक मानी जाती है और स्पेन में बोली जाने वाली स्पेनी, और इन देशों के निवासी अपनी-अपनी भाषाओं के नियमों का पालन भी करते है जैसे कि वे अपने-अपने देशों के अन्य नियमों का करते हैं। दिनेशजी आपने यह भी लिखा है हिन्दी में छपने वाले सभी अखबार और पत्रिकायें क्यूबेक ही लिखती हैं। तो आप यह बताइए कि किस अखबार और पत्रिका की हिन्दी मानक समझी जाए या किसके द्वारा बोली जा रही हिन्दी को मानक माना जाए? अब मैं आपको बताता हूँ कि फ़्रांसीसी को फ़्रान्सीसी लिखने से क्या बदलेगा?। जैसा कि आप जानते ही होंगे कि हिन्दी भाषा या देवनागरी लिपि में लिखित किसी भी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन भाषाओं में एक शब्द की केवल एक ही वर्तनी होती है। उस शब्द को जैसे लिखते हैं वैसे ही बोलते हैं और जैसे बोल्तए है वैसे ही लिखा भी जाता है। यानी कि हिन्दी में वर्तनी भ्रम तो होना ही नहीं चाहिए था। लेकिन मानकों का पालन न किए जाने के कारण आज हिन्दी में बहुत से शब्द (विशेषकर) बिन्दी वाले शब्दों की वर्तनी को लेकर बहुत भ्रम है। हिन्दी में आजकल ऐसे सभी शब्दों पर एक बिन्दी लगा दी जाती है। अब मैं आपसे और अन्य सदस्यों से यह प्रश्न पूछता हूँ कि उदाहरण के लिए खंडन को क्या पढूँगा? क्या मैं इसे खण्डन पढूँ या खम्डन? इसी प्रकार मैं अंग्रेज़ी को क्या पढूँ, अङ्ग्रेज़ी या अन्ग्रेज़ी या अम्ग्रेज़ी? यही बहुवर्तनीयता अन्य बिन्दी प्रयुक्त शब्दों के उच्चारण को लेकर भी हो सकती है। अब सदस्य कहेंगे कि भई यह बात तो कोई भी हिन्दी जानने वाला बता सकता है कि किस शब्द को क्या पढ़ना है। दरसल हम हिन्दी भाषियों ने यह मान लिया है कि जो भी हिन्दी जानता है उसे यह सब बातें अपने आप पता चल जाएङ्गी कि बिन्दी वाले शब्दों को कैसे उच्चारित करना हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। मुझे याद है जब हम लोग बचपन में हिन्दी सीखते थे तो मेरे मन में भी यह प्रश्न उठता था कि खंडन को खण्डन क्यों पढ़ा जाए खन्डन या खम्डन क्यों नहीं क्योंकि आधा न और म के लिए भी बिन्दी प्रयुक्त होती है। देनेशजी आप फ्रान्स और फ्रांस के उच्चारण के अन्तर को इन शब्दों के उच्चारण से समझ सकते हैं: फ़्रैंक औरफ़्रैन्क पहले वाले शब्द में बिन्दी का उच्चारण गले से हो रहा है और दूसरे में जीभ ऊपर के तालू से लग रही है। और वैसे भी यदि आप स्वयं भी उच्चारण करके देखें तो पाएंगे कि बिन्दी वाले शब्दों का उच्चारण करते समय जीभ मुंह के विभिन्न भागों को छूती है जैसे गङ्गा में केवल गला थोड़ी देर के लिए बन्द होता है और जीभ हवा में रहती है इसी प्रकार कञ्चन, खण्डन, द्वन्द, और कम्पन सभी में जीभ मुंह के अलग-अलग भागों को छूती है। यह तो रही बात क से म तक के अक्षरों की। अब जहाँ तक य से ह तक के अक्षरों की बात है तो इनके भी उच्चारण से स्पष्ट हो जाता है कि आधा न आएगा या आधा म जैसे फिलीपींस और फिलीपीन्स का उच्चारण अलग हैं। वैसे ही फ़्रांस और फ़्रान्स का उच्चारण भी भिन्न है एक नहीं।
लेकिन जो आपने दूसरा तर्क दिया है कि जिस प्रकार आजकल हिन्दी लिखी जा रही है हमें उसी प्रकार लिखनी चाहिए। तो इस सन्दर्भ मैं यह कहना चाहूँगा कि किसी भाषा को लिखने के बहुत से ढंग होते है, और जो भाषा जितनी व्यापक होती है वह उतनी ही विविध रूपों में पाई भी जाती है। फिर भी किसी भाषा का एक मानकीकृत रूप होता है जो उस भाषा के नियमों और व्याकरण को ध्यान में रखकर मानकीकृत माना जाता है। जैसे कि अङ्ग्रेज़ी, फ़्रान्सीसी, रूसी, स्पेनी, अरबी जैसी भाषाएँ बहुत से देशों में बोली जातीं है और इन भाषाओं के भी विविध स्वरूप पाए जाते हैं लेकिन यदि आप ध्यान दें तो आप पाएंगे कि इन भाषाओं का मानकीकरण किया जा चुका है। इसलिए अङ्ग्रेज़ी का वही स्वरूप मानक माना जाता है जो ब्रिटेन या अमेरिका में प्रचलित है। इसी प्रकार फ़्रान्स में बोली जाने वाली फ़्रान्सीसी ही मानक मानी जाती है और स्पेन में बोली जाने वाली स्पेनी, और इन देशों के निवासी अपनी-अपनी भाषाओं के नियमों का पालन भी करते है जैसे कि वे अपने-अपने देशों के अन्य नियमों का करते हैं। दिनेशजी आपने यह भी लिखा है हिन्दी में छपने वाले सभी अखबार और पत्रिकायें क्यूबेक ही लिखती हैं। तो आप यह बताइए कि किस अखबार और पत्रिका की हिन्दी मानक समझी जाए या किसके द्वारा बोली जा रही हिन्दी को मानक माना जाए? अब मैं आपको बताता हूँ कि फ़्रांसीसी को फ़्रान्सीसी लिखने से क्या बदलेगा?। जैसा कि आप जानते ही होंगे कि हिन्दी भाषा या देवनागरी लिपि में लिखित किसी भी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन भाषाओं में एक शब्द की केवल एक ही वर्तनी होती है। उस शब्द को जैसे लिखते हैं वैसे ही बोलते हैं और जैसे बोल्तए है वैसे ही लिखा भी जाता है। यानी कि हिन्दी में वर्तनी भ्रम तो होना ही नहीं चाहिए था। लेकिन मानकों का पालन न किए जाने के कारण आज हिन्दी में बहुत से शब्द (विशेषकर) बिन्दी वाले शब्दों की वर्तनी को लेकर बहुत भ्रम है। हिन्दी में आजकल ऐसे सभी शब्दों पर एक बिन्दी लगा दी जाती है। अब मैं आपसे और अन्य सदस्यों से यह प्रश्न पूछता हूँ कि उदाहरण के लिए खंडन को क्या पढूँगा? क्या मैं इसे खण्डन पढूँ या खम्डन? इसी प्रकार मैं अंग्रेज़ी को क्या पढूँ, अङ्ग्रेज़ी या अन्ग्रेज़ी या अम्ग्रेज़ी? यही बहुवर्तनीयता अन्य बिन्दी प्रयुक्त शब्दों के उच्चारण को लेकर भी हो सकती है। अब सदस्य कहेंगे कि भई यह बात तो कोई भी हिन्दी जानने वाला बता सकता है कि किस शब्द को क्या पढ़ना है। दरसल हम हिन्दी भाषियों ने यह मान लिया है कि जो भी हिन्दी जानता है उसे यह सब बातें अपने आप पता चल जाएङ्गी कि बिन्दी वाले शब्दों को कैसे उच्चारित करना हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। मुझे याद है जब हम लोग बचपन में हिन्दी सीखते थे तो मेरे मन में भी यह प्रश्न उठता था कि खंडन को खण्डन क्यों पढ़ा जाए खन्डन या खम्डन क्यों नहीं क्योंकि आधा न और म के लिए भी बिन्दी प्रयुक्त होती है। देनेशजी आप फ्रान्स और फ्रांस के उच्चारण के अन्तर को इन शब्दों के उच्चारण से समझ सकते हैं: फ़्रैंक औरफ़्रैन्क पहले वाले शब्द में बिन्दी का उच्चारण गले से हो रहा है और दूसरे में जीभ ऊपर के तालू से लग रही है। और वैसे भी यदि आप स्वयं भी उच्चारण करके देखें तो पाएंगे कि बिन्दी वाले शब्दों का उच्चारण करते समय जीभ मुंह के विभिन्न भागों को छूती है जैसे गङ्गा में केवल गला थोड़ी देर के लिए बन्द होता है और जीभ हवा में रहती है इसी प्रकार कञ्चन, खण्डन, द्वन्द, और कम्पन सभी में जीभ मुंह के अलग-अलग भागों को छूती है। यह तो रही बात क से म तक के अक्षरों की। अब जहाँ तक य से ह तक के अक्षरों की बात है तो इनके भी उच्चारण से स्पष्ट हो जाता है कि आधा न आएगा या आधा म जैसे फिलीपींस और फिलीपीन्स का उच्चारण अलग हैं। वैसे ही फ़्रांस और फ़्रान्स का उच्चारण भी भिन्न है एक नहीं।
अब आपका एक अन्य तर्क है कि जो चीज़ प्रचलित हो उसे करना चाहिए। यानी कि आप कहना चाहते हैं कि यदि गलत हिन्दी लिखी जा रही है तो गलत ही सही मान लिया जाए? हमारे देश में तो वैसे भी किसी नियम-कानून, मानक को मानने का रिवाज़ नहीं के बराबर है जैसे कि यहाँ लोगों को सीटबेल्ट या हेलमेट (हेलमेट मैंने गूगल अनुवाद से लिया है) पहनने में कष्ट होता है, तो क्या सीटबेल्ट पहनने का नियम अमान्य घोषित कर दिया जाए? जब लोग उनकी अपनी ही सुरक्षा के लिए बनाए गए नियमों को ताक पर रख देते हैं तो भाषा को सही रूप में लिखना तो बहुत दूर की कौड़ी है। गङ्गा (सही) को गंगा (गलत) लिख देने से हाथ-पैरों को अधिक कष्ट नहीं देना पढ़ता इसलिए हमारे देश में आज हर नियम कानून ताक पर रख दिया जाता है कि जी हाथ-पैरों को अधिक कष्ट न देना पढ़े क्योंकि सीटबेल्ट या हेलमेट पहनने के लिए जो थोड़ा हाथ हिलाने पढ़ेंगे उससे अपार कष्ट होगा। अब भले ही गङ्गा शब्द दिखने में कितना ही अजीबोगरीब क्यों न दिखाई दे वह है तो सही वर्तनी न? गंगा को में गन्गा या गम्गा क्यों नहीं पढ़ सकता? दरसल इस सन्दर्भ में मुझे एक बहुत ही रोचक किस्सा याद आ गया है। आपने Nike कम्पनी का नाम सुना होगा? इसका उच्चारण क्या होता है? इसका उच्चारण है नाइकी। लेकिन बहुत से लोग इसे नाइक भी पढ़ते हैं। जैसे बाइक या काइट को पढ़ा जाता है क्योंकि लिखने में तो सारे एक जैसे हैं। इसी प्रकार do को डू पढ़ते हैं। तो इसी आधार पर go को क्षमा कीजिए गू पढ़ा जाना चाहिए। तो आ गया न उच्चारण दोष। यानि कि केवल २६ रोमन अक्षर जान लेने से आप अङ्ग्रेज़ी का कोई शब्द नहीं पढ़ सकते हैं। कदाचित इसीलिए देवनागरी लिपि को सन्सार की सबसे वैज्ञानिक लिपि माना जाता है क्योंकि इसमें शब्दों के उच्चारण के अनुसार ही वे लिखे जाते हैं और किसी नए हिन्दी सीख रहे व्यक्ति को केवल देवनागरी लिपि पढ़ना आना चाहिए वह कोई भी शब्द पढ़ सकता है। तो फिर क्यों हम लोग अपनी भाषा को लिखो कुछ, बोलो कुछ वाली भाषाओं का स्वरूप दे रहे हैं? यदि सारे हिन्दी भाषी मानक के अनुसार हिन्दी लिखें तो वर्तनी भ्रम की तो कोई गुंजाइश ही नहीं रहेगी।
और मानकीकरण के सन्दर्भ में जो सबसे महत्वपूर्ण तर्क है वह यह कि आज के कम्प्यूटर और अन्तरजाल युग में जहाँ ऑनलाइन यान्त्रिक अनुवाद ज़ोरों पर है, एक मानकीकृत भाषा को ही किसी दूसरी भाषा में सही ढङ्ग से अनुवादित किया जा सकता है। क्या आपने कभी सोचा है कि गूगल अनुवाद पर अङ्ग्रेज़ी, जर्मन, फ़्रान्सीसी, रूसी, स्पेनी इत्यादि भाषाओं का एक-दूसरे में और से अनुवाद इतना अच्छा क्यों होता है? क्योंकि यह सभी भाषाएं मानकीकृत हैं और इन देशों के लोग उन भाषा नियमों का पालन करते भी हैं। किसी अन्य भाषा से हिन्दी में या हिन्दी से अनुवाद एकदम हास्यास्पद और निरर्थक होता है। उसका कारण यह है कि गूगल का अनुवाद इञ्जन भी भ्रमित हो जाता होगा कि किस स्वरूप में अनुवाद करूं क्योंकि मानक तो है नहीं (दरसल हैं तो लेकिन उनका पालन नहीं किया जाता) और जिनका पालन किया जाता है उनका कोई स्वरूप निर्धारित नहीं हैं क्योंकि स्वरूप मानक का होता है मनमानी का नहीं। फिर वही बिन्दी वाली बात आ गई न कि गूगल इञ्जन सोचेगा कि मैं ruin का अनुवाद खण्डर करूं, खंडर, खम्डर, या खन्डर। हालांकि अभी खंडर शब्द आता है। अब कोई हिन्दी सीख रहा जापानी या कोरियाई भी खंडर देखकर यह सोचेगा कि इसका उचारण क्या होगा क्योंकि भले ही उसे देवनागरी की समझ हो लेकिन यह तो वर्तनी के उच्चारण की अस्पष्टता हो गई है। तो लगता है कि अब देवनागरी लिपि की भाषाओं के लिए भी आईपीए जैसी कोई पद्यति निकालनी होगी जैसी रोमन लिपि पर आधारित भाषाओं के लिए है क्योम्कि उन भाषाओं में शब्दों के उच्चारण और लेखन में कोई मेल नहीं है। लिखो कुछ और पढ़ो कुछ। दरसल देवनागरी लिपि और इसपर आधारित भाषाओं की सबसे बड़ी वैज्ञानिकता यही है कि इन भाषाओं में किसी शब्द की केवल एक ही वर्तनी हो सकती है और उसे वैसे ही पढ़ा भी जाता है। इसलिए फ़्रान्स और फ़्रांस में बहुत अन्तर है, वर्तनी का भी और उच्चारण का भी भले ही दोनों एक ही देश को सम्बोधित करते हों। आप संयुक्त और सन्युक्त का उच्चारण करके देखिए बात कुछ स्पष्ट हो जाएगी हालाङ्कि इस मामले में संयुक्त सही माना जाता है। इसी प्रकार सन्सद और संसद तथा सन्सार और संसार के उच्चारणों में भी बहुत अन्तर है। सन्सद में न स्पष्ट रूप से उच्चारित हो रहा है और जीभ ऊपर के दाँतों से लग रही है जबकि संसद में न कुछ अस्पष्ट सा है और गले से उच्चारित हो रहा है। इसलिए सन्सद और संसद व्याकरणिक रूप से एक नहीं हैं भले ही उनका उपयोग एक ही वस्तु के सन्दर्भ में किया जाता हो।
ये कुछ बारीकिया हैं भाषा-विज्ञान की। हालांकि मैं किसी को बाधित नहीं कर रहा हूँ मानक के अनुसार लिखने के लिए क्योंकि जिन लोगों ने ये लेख पढ़ने हैं वो भी मानकों से अनभिज्ञ हैं। लेकिन फिर भी मेरा प्रयास यह है कि मानक भाषाई स्वरूप बचा के रखा जाना चाहिए। और इसके लिए यह तर्क बिल्कुल कहीं नही ठहरता कि प्रचलित वस्तु को ही सही माना जाए जैसा मैंने आपको बताया कि कैसे हमारे देश में अन्य नियमों, मानकों इत्यादि की भी अनदेखी होती है। लेकिन अनदेखी किये जाने के कारण वे बातें अमान्य या गलत तो नहीं हो जातीं? नियम तो फिर भी अपने स्थान पर रहता ही है। और जहाँ तक आपने यह एक और बात कही है कि कैसे अपने बचपन में हम लोग अ को प्र जैसा लिखते थे। तो यह सुधार भी द्विअर्थतता के निवारण हेतु किया गया था।
कृपया कोई भी सदस्य मेरे द्वारा लिखी बातों को अन्यथा न ले। मैंने अपने केवल विचार लिखे हैं और मैं किसी पर कोई दोषारोपंण नहीं कर रहा हूँ। सदस्य अपने हिन्दी लिखने के वर्तमान ढङ्ग को जारी रखें। हिन्दी विकिपीडिया का एक सदस्य होने के नाते मैंने अपने विचार प्रस्तुत किए थे। फिर भी यदि किसी सदस्य को मेरी बातों से ठेस पहुँची हो तो मैं क्षमा चाहूँगा। धन्यवाद। रोहित रावत १५:००, १४ दिसंबर २०१० (UTC)
भारत और उसके निवासियों की तारीफ हमलोग वाली भाषा में करने से अनेक सुविधाएं मिल जाती है। लेकिन गाँव के एक स्कूल में पढ़ाए गए, हजारों साल पहले लिखे गए संस्कृत व्याकरण के कुछ नियम जो हिंदी व्याकरण में भी शामिल हैं, मेरा आज भी मार्गदर्शन करते हैं। अनुस्वार का उच्चारण उसके बाद वाले अक्षर के वर्ग के अंतिम अक्षर के अनुरूप होता है। इसी कारण मुझे गंगा, चंचल, खंडन, चंदन और अंबर के सही उच्चारण पढ़ने में कभी मुश्किल नहीं आई। बाद में मैने देखा कि मानकीकरण के लिए आयोजित संगोष्ठियों में भी इसी नियम को मान्यता मिली हुई है। अनिरुद्ध वार्ता १८:००, १४ दिसंबर २०१० (UTC) देवनागरी के मानकीकरण की कोशिशों के पीछे की अपनी कहानी है। इसलिए उसके कुछ नीतियों को स्वीकार एवं कुछ को बेकार करने के लिए हिंदी जाति आलसी और नियमों के उल्लंघन का आदी समाज के रूप में पहचाने जाने योग्य नहीं है। हिंदी को सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि कहना वास्तव में एक आत्ममुग्धता की स्थिति है किंतु इसी में यह भी निहित है कि प्रचलित हिंदी व्याकरण के ठोस एवं मानक आधार पर दृढ़ है। अनिरुद्ध वार्ता ०४:५६, १५ दिसंबर २०१० (UTC)
रोहित जी, लगता है आपने बहुत ही भावुक होकर तथ्य दिये हैं शायद इसीलिए हिन्दी के लिए अपनायी मानक नागरी लिपि के नियम आपके ध्यान से उतर गये हैं। जिस प्रकार हिन्दी का कोई भी शब्द ड़ या ढ़ से शुरु नहीं हो सकता उसी प्रकार अनुस्वार (बिन्दु) के नियम के अनुसार जिस भी व्यंजन से पहले इसे प्रयोग किया जाता है तो उसी व्यंजन के अनुसार यह ङ, ञ, ण, न या फिर म की ध्वनि देती है। किसी एक व्यंजन के लिए यह दो प्रकार की ध्वनि नहीं दे सकती. जिस प्रकार खंडन में क्योंकि यह ड से पहले प्रयोग की जा रही है इसलिए यह ण की ध्वनि देती है वहीं चंपा में यह ध्वनि बदलकर म की हो जाती है क्योंकि इसका प्रयोग प से पहले किया जा रहा है।
कृपया नीचे अनुस्वार प्रयोग के नियम देखें.
- [क ख ग घ ङ] अङ्गद, पङ्कज, शङ्कर या अंगद, पंकज, शंकर
- [च छ ज झ ञ] अञ्चल, सञ्जय, सञ्चय या अंचल, संजय, संचय
- [ट ठ ड ढ ण] कण्टक, दण्ड, कण्ठ या कंटक, दंड, कंठ
- [त थ द ध न] अन्त, मन्थन, चन्दन या अंत, मंथन, चंदन
- [प फ ब भ म] कम्पन, सम्भव, चम्बल या कंपन, संभव, चंबल
Dinesh smita ०६:४३, १५ दिसंबर २०१० (UTC)
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- रोहित जी ने बड़ा ही सार गर्भित वार्ता अंश दिया है। शायद काफी मेहनत की होगी, किन्तु उनकी बातें अक्षरशः सही हैं, हां इनका निष्कर्ष जरा अलग निकाल लिया है, जिसे बाद में अनिरुद्ध एवं दिनेश जी ने सही किया है। सीधी सी बात है, कि गूगल अनुवाद भी और कोई भी हिन्दी सीखने वाला, ये नियम या रखे जो ऊपर दिनेश जी ने बतायें हैं, तो उसे अनुस्वार हेतु विभिन्न आधे अक्षर नहीं लिखने होंगे। मात्र एक अनुस्वार और उसके बाद आने वाला अक्षर निर्ह्दारित करेगा कि उस अनुस्वार को कैसे ढ़ा जाये।
- वैसे भि शायद गञ्गा, गण्गा, गन्गा, गम्गा आदि को बोलना सरल नहीं होता, बल्कि गङ्गा ही सरलतम लगेगा। इसी प्रकार डण्डा को डम्डा, डञ्डा आदि बोलना सरल नहीं है, जितना कि डण्डा है। तो बस हो गया निर्धारण कि आगे आने वाले अक्षर के वर्ग का अंतिम अक्षर ही बोला जायेगा। इसमें इतनी मुश्किल क्या है। हम बोल तो वैसे ही रहे हैं, मात्र लिपि को सरल किया जा रहा है।--प्रशा:आशीष भटनागर वार्ता ११:४७, १६ दिसंबर २०१० (UTC)
- काफि लम्बे समय बाद चौपाल पर एक ज्ञानवर्धक चर्चा हुई है। मेरे विचार से बहुवर्तनी शब्दों का पुनर्निर्देशन करना पाठको की दृष्टि से सही रहेगा क्योंकि इससे विभिन्न प्रकार की वर्तनियों का ज्ञान रखने वाले पाठकों लेख खोजने में परेशानी नहीं होगी।--Mayur(Talk•Email) १३:१५, १६ दिसंबर २०१० (UTC)
- पुनर्निर्देशन से संबंधित नीतियाँ तय करते समय मानक देवनागरी के नियमों का यथायोग्य पालन किया जाना चाहिए। अर्थात् गङ्गा को गंगा की ओर पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिए। भाषाविदों की भाषा के सरलता की ओर अग्रसर होने की प्रवृत्ति को जीवित भाषा की प्रकृति के रूप में पहचाने जाने को स्वीकार करें तो भी अनुस्वार संबंधी मानकीकरण समिति की कम-से-कम यह शिफारिश तो उपयुक्त लगती है और इसलिए यह स्वीकृत भी हुई है। कुबेरनाथ राय के शब्दों के सहारे कहुँ तो सरलता के साथ समृद्धि भी आवश्यक है। किंतु इसके लिए लिपि को क्लिष्ट बनाने के बजाय हमें नए और आवश्यक शब्दों के निर्माण की ओर ध्यान देना चाहिए। और इसके लिए भारत के संविधान की धारा 351 सचमुच अनुकरणीय है। यद्यपि उसका उल्लंघन उसी संविधान के अनुसार बनाई गई समितियों ने निर्ममतापूर्वक किया है।अनिरुद्ध वार्ता ०४:१३, १७ दिसंबर २०१० (UTC)
- वैसे दिनेश जी द्वारा दिए गए अनुस्वार संबंधी नियम बच्चों के अथवा आरंभिक हिंदी सीखने वालों के काम आने वाले नियम है। इसके सहारे अंश, संसद, संशय, अंय, आदि शब्दों में अनुस्वार के रूप की व्याख्या नहीं होती। इसके लिए नागरी की मूल प्रकृति, उच्चारण के अनुसार लिखे जाने की प्रवृत्ति ही काम आती है, जिसका इशारा रोहित जी ने ऊपर किया है। किंतु महाण वैयाकरण पाणिणी के व्याकरण की उत्तराधिकारीणी, कम-से कम उच्चारण के मामले में तो पूर्णतः, हिंदी भाषा में कुछ भी, अवैज्ञानिक और यादृच्छिक लगे भले, है नहीं। अनिरुद्ध वार्ता ०४:१३, १७ दिसंबर २०१० (UTC)
- हाँ ऐसा अवश्य किया जाना चाहिये, बहुवर्तनिय शब्दों में से व्याकरण की दृष्टि से सबसे शुद्ध वर्तनी पर लेख को रखना चाहिये एवं अन्य वर्तनियों को उस पर पुनर्निर्देशित किया जाना चाहिये, इससे पाठकों को शुद्धतम वर्तनी का अभ्यास भी होगा--Mayur(Talk•Email) ०४:३७, १७ दिसंबर २०१० (UTC)
- रोहित जी ने बड़ा ही सार गर्भित वार्ता अंश दिया है। शायद काफी मेहनत की होगी, किन्तु उनकी बातें अक्षरशः सही हैं, हां इनका निष्कर्ष जरा अलग निकाल लिया है, जिसे बाद में अनिरुद्ध एवं दिनेश जी ने सही किया है। सीधी सी बात है, कि गूगल अनुवाद भी और कोई भी हिन्दी सीखने वाला, ये नियम या रखे जो ऊपर दिनेश जी ने बतायें हैं, तो उसे अनुस्वार हेतु विभिन्न आधे अक्षर नहीं लिखने होंगे। मात्र एक अनुस्वार और उसके बाद आने वाला अक्षर निर्ह्दारित करेगा कि उस अनुस्वार को कैसे ढ़ा जाये।
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[संपादित करें]उत्पात नियंत्रक
हिन्दी विकि पर मैनें एक नया सदस्य समूह उत्पात नियंत्रक बनाया है जिसके सदस्य किसी पृष्ठ को हटाने का अधिकार रखते है इसके साथ साथ इनके पास रोलबैक अधिकार भी होता है। इस सदस्य ग्रुप में समस्त विशिष्ट/वरिष्ठ सदस्यों को रखा गया है। आशा है कि अब बर्बरता एवं उत्पात वाले पन्नों को हताने में तेजी आयेगी--Mayur(Talk•Email) १४:४७, ६ दिसंबर २०१० (UTC)
मयूर जी! आपके अच्छे काम यदि निर्दोष भी रहें तो निस्संदेह स्थिति और भी बेहतर होगी। अब इस सदस्य समूह को ही देखइए। वरिष्ठ सदस्य में 8 सदस्य हैं और इसमें 7। फिर सभी वरिष्ठ सदस्य इस समूह के सदस्य कैसे हुए! वैसे इसका पता भी तभी चला जब एक हटाने योग्य पृष्ठ को हटाने की कोशिश की। अनिरुद्ध वार्ता ०३:५०, १७ दिसंबर २०१० (UTC)
शायद भूलवश में कुछ वरिष्ठ सदस्यों को इसमें जोडना भूल गया, कोई बात नहीं अब सभी वरिष्ठ सदस्यों को इसमें जोड़ दिया गया है। आपके इस बिंदु को ध्यान दिलाने हेतु धन्यवाद --Mayur(Talk•Email) ०४:०५, १७ दिसंबर २०१० (UTC)
[संपादित करें]साँचा:एशिया के राष्ट्रगान
- इस साँचे में कुछ सहायता की आवश्यकता है। इसमें जो सबसे नीचे की पट्टी है जिसमें मैंने (१)- कुछ भाग यूरोप में (२)- कुछ भाग अफ़्रीका में लिखा हुआ है उसका रंग अभी हल्का सलेटी है। क्या कोई उपाय है जिससे इस पट्टी का रंग भी आसमानी नीला हो जाए जैसा एशिया के राष्ट्रगान जहाँ पर लिखा है उस पट्टी का है? मैंने अभी कुछ लिखा तो है लेकिन रंग नीला होने के बजाए वह ही प्रदर्शित हो जाता है। किसी तकनीकी रूप से कुशल सदस्य की आवश्यकता है और रंग पूरी पट्टी का नीला चाहिए। यदि न भी हो पाए तो कोई बात नहीं। नीली पट्टी हो जाने से साँच और अच्छा दिखता, बस। अन्यथा साँचे की कार्यात्मकता में कोई परेशानी नहीं हैं। धन्यवाद। रोहित रावत१५:३५, १९ दिसंबर २०१० (UTC)
- Done, मैनें आपके कहे अनुसार उस पट्टी का रंग आसमानी कर दिया है, आप चाहे तो कोई और रंग भी भर सकते है।--Mayur(Talk•Email) १८:१५, १९ दिसंबर २०१० (UTC)
- मयूरजी आपकी सहायता के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। रोहित रावत १८:०९, २१ दिसंबर २०१० (UTC)
- Done, मैनें आपके कहे अनुसार उस पट्टी का रंग आसमानी कर दिया है, आप चाहे तो कोई और रंग भी भर सकते है।--Mayur(Talk•Email) १८:१५, १९ दिसंबर २०१० (UTC)
[संपादित करें]उपनिषद
मयूर जी के हाल ही में बनाए हुए विभिन्न उपनिषदों के लेखों में एक समान गलतियाँ हैं जो किसी मशीनी प्रक्रिया का परिणाम लगती है। शायद इसे मशीनी रूप से ठीक किया जा सके। उदाहरण के लिए उपनिषदों में बाह्य सूत्र दो बार दिया गया है। और ये बिल्कुल एक ही हैं। पुस्तक परिचय देने वाला साँचा जो प्रायः सबसे उपर लगता है, इन उपनिषद संबंधि लेखों में विवरण के नीचे आया है। यदि इन्हें यांत्रिक रूप से ठीक किया जा सके तो मानव श्रम की जो हिंदी विकिया को वैसे भी अल्प मात्रा में उपलब्ध है, काफी बचत होगी। अनिरुद्ध वार्ता १८:४०, २० दिसंबर २०१० (UTC)
Done-मेरा कार्य अभी चल ही रहा था कि इतनें में आपका संदेश चौपाल पर देखा, उपरोक्त गलतियों से अवगत कराने के लिये धन्यवाद। हाँ अभी के लिये इन गलतियों को सुधार दिया गया है। परन्तु ज्ञानसंदूक की स्थिति मशीनी तौर पर सबसे ऊपर नहीं की जा सकती, इसके लिये इन लेखों को हटाकर बनाना पड़ेगा, परन्तु बाह्य सूत्र को सही कर दिया गया है जो एक मुख्य कमी थी। --Mayur(Talk•Email) १९:१५, २० दिसंबर २०१० (UTC)
[संपादित करें]हिन्दी विकि ५८००० के पार
हिन्दी विकि के ५८००० से अधिक का आकड़ा छुने पर समस्त सक्रिय सदस्यों को बधाइयाँ। इन बार एक हजार का आकड़ा छुने में सबसे अधिक सहायक अनुनाद जी, रोहित रावत एवं गुगल अनुवादक प्रशंसा के पात्र है। इसके साथ साथ मुख्य पृष्ठ समाचार विभाग को नियमित रुप से आधुनिक बनाने के लिये अनिरुद्ध जी भी प्रशंसा के पात्र है। वैसे यूनानी विकि हिन्दी विकि के अत्यंत पास पहुँच गया है अत: हमें हमारे लेखों की गति तेज करनी होगी वह भी गुणवत्ता बनाये हुए इसलिये मैनें आज कुछ नये ९० लेख बनाकर मशीनी परीक्षण किये यदि सदस्यों को यह पैटर्न पसन्द आता है तो इस प्रकार के लगभग १००० लेख बनाने की सामग्री मेरे पास है। हिन्दी विकि पर लेख निर्माण की गति अत्यंत धीमी हो चुकी है अत: हमें अधिक से अधिक सक्रिय सदस्यों की आवश्यकता है। अभी के लिये अच्छी बात यह है कि हिन्दी विकि की गहराई भी ३० हो गयी है जो अभी तक की हिन्दी विकि की अधिकतम प्राप्त की गयी गहराई है।--Mayur(Talk•Email) १९:२८, २० दिसंबर २०१० (UTC)
सबको बधाी हो। किंतु उन्नीस-बीस का फ़र्क मिटाने के लिए हिंदी विकिया ने जो ऐतिहासिक भूलें कर ली हैं उनसे सबक लेते हुए ही आगे की दिशा तय करनी चाहिए। मैं बेकार के पृष्ठों को हटाने का कार्य कर रहा हूँ। इस कारण संभव है हम युनानी विकिया से पीछे रहें किंतु विकिया के पृष्ठ खोलकर किसी के निराश होने एवं झुंझलाने की गुंजाइश भी जरूर कम होगी। अनिरुद्ध वार्ता २०:३३, २० दिसंबर २०१० (UTC)
शायद मैं एक बात पहले स्पष्ट करना भूल गया कि इन छोटे पृष्ठों को हटाने से हिन्दी विकि की लेख संख्या नहीं घटेगी क्योंकि यह छोटे लेख कुल लेख संख्या में गिने नहीं जाते अत: इन्हे निर्विवादित रुप से हटाया जा सकता है। जो लेख कम से कम ५ किलो बाइट्स के आसपास हो तथा कोई साँचा या चित्र के साथ हो वहीं लेख कुल लेख संख्या में गिने जाते है।--Mayur(Talk•Email) ०७:२१, २१ दिसंबर २०१० (UTC)
[संपादित करें]पुनर्निर्देशित कर दें
जनतंत्र, प्रजातंत्र, गणतंत्र को लोकतंत्र की ओर पुनर्निर्देशित कर दें। अनिरुद्ध वार्ता २०:२६, २० दिसंबर २०१० (UTC)
[संपादित करें]मुल्य वार्ता
मुल्य वार्ता क्या होती हे ?
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