Wednesday, December 29, 2010

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Saturday, December 25, 2010

क्रिसक्रॉस क्रिसमस

घोर जाड़े में पड़ने वाले अकेले त्योहार क्रिसमस का ढोल-धम्मड़ और पटाखों वाला पंजाबी संस्करण आज रात हम सभी का इंतजार कर रहा है। इसे दुनिया भर में ईसा मसीह का जन्मदिन समझकर मनाया जाता है लेकिन इस बात को लेकर ईसाइयों के बीच आम सहमति ज्यादा पुरानी नहीं है।

क्रिसमस के मूल शब्द क्रिस्टे मास का क्रिस्टे एकबारगी क्राइस्ट से जुड़ा जान पड़ता है, लेकिन लैटिन में इसका अर्थ एक विशेषण- पवित्र- है। क्रिसमस, यानी पवित्र सभा। अभी दो सौ साल पहले तक ज्यादातर ईसाइयों के लिए इस पर्व का उल्लास चर्च की रस्मी एक सभा तक ही सीमित हुआ करता था, हालांकि इसे लेकर उनके बीच कुछ संदेह भी थे।

सन 312 में सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने ईसाई धर्म अपनाया और इसे रोमन साम्राज्य का राजधर्म घोषित किया। इसके 42 साल बाद सन 354 में एक रोमन सांसद फाउस्ट ने आम सभा में कहा कि प्रभु यीशु का जन्म दिन अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाना ठीक नहीं है। फिर इसी साल रोम के मुख्य पादरी बिशप लाइबेरियस ने इसके लिए स्थायी रूप से 25 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की।

रोमनों का पारंपरिक त्योहार ब्रूमा 25 दिसंबर को ही मनाया जाता था, जिसका ईसाइयत से कुछ भी लेना-देना नहीं था। ईसाइयों का बड़ा हिस्सा रोमन साम्राज्य की घोषणा के सैकड़ों साल बाद भी 25 दिसंबर को ईसा का जन्मदिन मानने को राजी नहीं हुआ क्योंकि उसे लगता रहा कि रोमनों ने अपना पगान (गैर-ईसाई) त्योहार उन पर थोपने के लिए जबर्दस्ती यह मान्यता बना दी है।

हल्ला-गुल्ला, मौज-मजे वाले अपने मौजूदा रूप में क्रिसमस की शुरुआत कहां से हुई, सेंटा क्लॉज, क्रिसमस ट्री और कैरल गाने की परंपराएं इसमें कहां और कब जुड़ती गईं, इसे लेकर स्थिति आज भी बहुत स्पष्ट नहीं है। बर्फ की चिकनी सतह पर स्लेज से चलने वाले सेंटा क्लॉज का यरूशलम जैसी गर्म जगह से भला क्या मेल हो सकता है?

खोजी लेखक जो पेरी ने हाल में अपनी किताब 'क्रिसमस इन जर्मनी' में काफी खोजबीन के बाद यह नतीजा निकाला है कि यह त्योहार दरअसल उन्नीसवीं सदी में जर्मनी की खोज है। नेपोलियन द्वारा युद्ध में पराजित होने के बाद जर्मन रियासतों को एक राष्ट्रीय पहचान की जरूरत थी। मार्टिन लूथर किंग द्वारा जर्मन में तुक के साथ अनूदित लूका रचित सुसमाचार की नए-नए छापाखानों में छपी प्रतियां उनके लिए इसका माध्यम बन गईं।

अपने आधुनिक रूप में क्रिसमस सबसे पहले 1820 के दशक में जर्मन कुलीनों और मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों के घरों में मनाया गया। क्रिसमस पर सरकारी छुट्टी घोषित किए जाने की परंपरा भी दुनिया में सबसे पहले जर्मनी में ही शुरू हुई। 1840 में जर्मनी से ही प्रिंस एलबर्ट ब्रिटेन में सबसे पहला क्रिसमस ट्री लेकर आए और लगभग इसी समय यह त्योहार यूरोप से आई एक नई रस्म के रूप में अमेरिका में भी धूमधाम से मनाया जाने लगा।

क्रिसमस कार्ड सबसे पहले 1880 के दशक में जर्मनी में बंटे थे। 12 रेंडियरों के साथ घूमने वाले दानी संत क्लॉज को ईसाइयत में नॉर्वे, स्वीडन आदि नॉर्डिक देशों का मौलिक योगदान माना जाता है, लेकिन क्रिसमस की रात उनका बच्चों के सिरहाने गिफ्ट रख जाना शायद जर्मन कल्पना की ही उपज है।

यहूदी त्यौहार हनुक्का का जोशोखरोश से मनाया जाना जर्मन क्रिसमस की प्रतिक्रिया थी। बाद में उन्हें इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। नाजियों ने इस त्यौहार का इस्तेमाल यहूदियों को और ज्यादा अलग-थलग करने और अपनी विचारधारा को लोकप्रिय बनाने में किया था। क्रिसमस ट्री की सजावट में स्वस्तिक के आकार वाली चकमक बत्तियां उनका मौलिक योगदान हैं। यह बात और है कि समय के साथ क्रिसमस की धूम बढ़ती गई जबकि नाजी अपनी विचारधारा समेत धूल में मिल गए।

Friday, November 26, 2010

प्रेम से ज्यादा कमिटमेंट मांगती है जिंदगी

कृष्ण को राधा से प्यार था, लेकिन जब वे गोकुल छोड़कर गए तो फिर लौटकर नहीं आए। बाद में उन्होंने बहुत सी शादियां कीं और आठ तो उनकी पटरानियां थीं। राधा का नाम उनकी ब्याहताओं में नहीं था, न ही इस बात की कोई जानकारी है कि लड़कपन के उस दौर के बाद फिर कभी राधा से उनकी मुलाकात भी हुई या नहीं। लेकिन आज भी अपने यहां प्रेम का श्रेष्ठतम रूप राधा और कृष्ण के संबंध को ही माना जाता है।

सवाल यह है कि प्यार क्या एक ही बार होता है। क्या इसमें जुए या सट्टे जैसी कोई बात है, जो कभी एक ही बार में लग जाता है तो कभी हजार कोशिशों के बाद भी नहीं लगता।

कई लोग सोचते रह जाते हैं कि वह एक ही बार वाला कब होगा, पता नहीं कभी होगा भी या नहीं। उसे खोजने की कोशिश में ट्रायल एंड एरर में जुटे रहते हैं, जब तक बस चले और उमर साथ दे। लेकिन जिन्हें सालोंसाल यह लगता रहता है कि वे जीवन में एक ही बार होने वाले प्यार में हैं, वे भी जिंदगी का ग्राफ बदलने के साथ खुद को उसमें जकड़ा हुआ महसूस करते हैं और पहला मौका मिलते ही उससे जान छुड़ाने की कोशिश करते हैं। रिश्तों का इस तरह दरकना तकलीफदेह होता है।

वे किसलिए दंडित हैं? आखिर उनका दोष क्या है? प्रेम कमिटमेंट मांगता है। दोनों तरफ से कुछ-कुछ छोडऩे की गुजारिश करता है। लेकिन जिंदगी अक्सर प्रेम से ज्यादा कमिटमेंट मांगती है। पहले शायद कुछ कम से भी काम चल जाता रहा हो, लेकिन अब तो वह सर्वस्व मांगने लगी है। जरा सी चूक और डोर पकड़ में आते-आते रह गई। ऐसी नाकामियों का ठीकरा भी प्रेम के सिर फोड़ा जाता है। लगता है, ऐसी किचकिच से तो अच्छा था नाकामी में ही खुश रह लेते। बाकी जिंदगी के लिए झोली में कुछ अच्छी यादें तो होतीं।

अपने यहां लड़की और लड़के के लिए एक-दूसरे से प्रेम करना आसान कभी नहीं रहा। इसके लिए उन्हें बाकायदा एक जंग लडऩी पड़ती थी और ज्यादातर जगहों पर आज भी लडऩी पड़ती है। महानगरों में हालात कुछ बदले हैं, लेकिन इससे प्रेम करना आसान नहीं हुआ है। जब लड़कियां करियर-कांशस नहीं थीं, तब प्यार में घर से बागी हुआ लड़का कहीं झाडग़्राम में जाकर किरानी बाबू हो जाता था और भागी हुई लड़की उसके लिए रोटियां पकाने लगती थी। अब लड़के की जिंदगी उसे खदेड़कर बेंगलूर या बोस्टन ले जाती है तो लड़की को बड़ौदा या बर्लिन की राह पकडऩी होती है।

जिंदगी ढर्रे पर आते ही पुराने प्यार की तड़प उठती है। सात समंदर पार से लोग सब कुछ छोड़-छाड़कर दोबारा करीब आ जाते हैं। लेकिन उसके फैसले तय करने वाली जो ताकतें उन्हें दूर ले गई होती हैं, वे प्रेम कहानी के सुखद दि एंड के बाद भी अपना काम करती रहती हैं। ऐसे में बेहतर क्या होगा? प्रेम के लिए अपने व्यक्तित्व को ठहरा लेना या जिंदगी की जरूरतों के मुताबिक अपने प्रेम और बाकी रिश्तों को पारिभाषित करना। ज्यादा नैतिक क्या होगा?

प्रेम एक ही बार होता है, ऐसा मानते हुए शाश्वत प्रेम के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देना या पुराने रिश्तों के प्रति शुभकामना रखते हुए नए रिश्तों के लिए दिल के दरवाजे खोल देना?

शाश्वत प्रेम असंभव नहीं, लेकिन वह आपसे बहुत ज्यादा मांगता है। और अगर आप उसे अपना सब कुछ सौंप दें तो भी उसके होने के लिए कई सारे संयोगों की जरूरत पड़ती है। लेकिन कृष्ण की तरह बिना किसी से कोई छल किए जिस प्रेम को छोड़कर आप आगे बढ़ जाते हैं, उसकी भी एक अलग शाश्वतता होती है।

बिना कुछ खोने का गम या कुछ पाने की लालसा के, दिल पर कोई बोझ लिए बगैर, बिछडऩे के अरसे बाद अपने प्रिय को भरा-पूरा और खुश देखना भी सच्चे प्यार की एक नियामत है- भले ही यह निस्संगता हासिल करने के लिए आपको दूसरे, तीसरे या चौथे प्रेम से ही क्यों न गुजरना पड़ा हो।

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