Wednesday, December 29, 2010

राहुल गांधी = गायब हो रहा है राहुल गांधी का जादू!


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गायब हो रहा है राहुल गांधी का जादू!

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राजकुमारकांग्रेस महासचिव और पार्टी के युवराज माने जाने वाले राहुल गांधी का जादू बिहार विधानसभा में कहीं नहीं चला। इसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि प्रचार में दिन-रात एक करने के बाद भी कांग्रेस की सीटें, बढ़ने के बजाय और उल्टे घट गई। राहुल गांधी के चुनावी प्रचार का जादू 14 वीं लोकसभा चुनाव में सर-चढ़कर बोला था और इसके बाद देश के राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा छिड़ गई कि अब आगामी प्रधानमंत्री राहुल गांधी हो सकते हैं? इस तरह कई राज्यों में राहुल गांधी ने युवाओं को कांग्रेस से जोड़ने की नई तरकीब निकाली और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को जोड़ने के लिए हंट कार्यक्रम चलाया। साथ ही युवा कांग्रेस के पदाधिकारियों के चुनाव में पारदर्शिता लाने प्रयास किए गए। बीते साल तक लग रहा था कि राहुल गांधी आने वाले दिनों में कांग्रेस के नए सितारे होंगे, लेकिन बिहार चुनाव के नतीजे ने कांग्रेस के मुगालते को खत्म कर दिया होगा कि राहुल गांधी का जादू किसी भी राज्य में चल सकता है?
बिहार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़े और सभी 243 सीटों पर उम्मीद्वार खड़े किए। कांग्रेस आलाकमान तथा यूपीए प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी का कहना था कि बिहार में पार्टी नए सिरे से अपना जनाधार बनाएगी। इसी के साथ खुद सोनिया गांधी ने चुनाव की कई सभाएं कीं। साथ ही कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी दर्जनों सभाएं संबोधित की, लेकिन कांग्रेस के हितों की दृष्टि से देखें तो इन सभाओं में पहुंची हजारों की भीड़, वोटों में नहीं बदलीं। नतीजा यह रहा कि बिहार चुनाव में कांग्रेस दूर-दूर तक नहीं ठहरी। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें हासिल हुई थीं, लेकिन इस चुनाव में तो कांग्रेस प्रत्याशी हाथ मलते रह गए और पार्टी के खाते में केवल चार सीटें ही आ सकीं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि बिहार चुनाव के प्रचार शुरू होने के पहले कांग्रेस यह कह रही थी कि प्रदेश में विकास नहीं हुए और जो हुए वह केन्द्र सरकार की योजना की राशि से हुई। इन बातों के भावार्थ समझें तो यही कहा जा सकता है कि किसी तरह विपक्षी पार्टी विकास होने की बात मान रहे हैं, बिहार की जनता की सोच तो तरक्की की है और उन्हें उन बातों से क्या लेना-देना कि किस सरकार के फण्ड से विकास के कार्य हो रहे हैं। इसके इतर जनता को केवल विकास होते दिखना चाहिए।
बिहार चुनाव के परिणाम के अलावा कांग्रेस के हालात का जायजा लें तो कांग्रेस राज्य में जदयू-भाजपा गठबंधन के आगे कहीं नहीं ठहरी। चुनावी नतीजे आते ही वैसे भी यूपीए प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी ने यह कहा कि हम शून्‍य से शुरुआत करेंगे, लेकिन यहां एक बात सोचने पर विवश करता है कि पिछले बरस कांग्रेस की चुनावी जीत जारी रही और कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन यहां सवाल यही है कि आखिर इतनी माथा-पच्ची चुनाव में करने के बाद भी क्यों कांग्रेस की सीटों में इजाफा नहीं हुआ? ऐसे नतीजे की उम्मीद शायद सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा डा. मनमोहन सिंह को भी नहीं रही होगी, क्योंकि कांग्रेस के चुनावी इतिहास में इसे अब तक की सबसे बड़ी बदहाली कही जा सकती है, जो सीटें मिली हुई थीं उसे भी कांग्रेस नहीं बचा सकी।
बिहार चुनाव के परिणाम के बाद राहुल गांधी के नाम पर सिर चढ़कर बोलने वाले जादू की चर्चा राजनीति जानकारों के बीच खूब हो रही है, क्योंकि आने वाले साल में आधा दर्जन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसमें सबसे अहम है उत्तर प्रदेश्‍ा का चुनाव। भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश पर पार्टी की निगाहें इसलिए ज्यादा टिकी हुई हैं, क्योंकि बरसों से यहां कांग्रेस सत्ता में नहीं लौट सकी है। यही कारण है कि कांग्रेस की चिंता ज्यादा नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश के राय बरेली और अमेठी से श्रीमती सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी सांसद हैं। यहां कांग्रेस के कुछ बड़े नेता चुनाव जरूर जीत रहे हैं, मगर इससे कांग्रेस की हालत में कोई सुधार नहीं हो रही है। आगे होने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राहुल गांधी लगातार उत्तर प्रदेश के दौरे कर रहे हैं और दलितों के घरों में जाकर खाना खा रहे हैं। इस तरह लगता है राहुल गांधी की कोशिश सोश्‍ाल इंजीनियरिंग का फार्मूला आजमाने की भी है, जिसमें वे कुछ हद तक सफल भी हुए हैं, लेकिन क्या यह सब प्रयास वोट में बदल पायेंगे, क्योंकि बिहार विधानसभा के नतीजे ने कांग्रेस को फूंक-फूंककर कदम रखने पर मजबूर कर दिया है।
यह बात तो सही है कि कांग्रेस के पास फिलहाल सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सिवाय कोई और चेहरा नहीं है, जिसके नाम पर जनता से वोट मांगा जा सके, किन्तु सवाल यहां यही है कि कांग्रेस की चुनावी वैतरणी जब इन चेहरों के सहारे भी पार नहीं हो रही है तो आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कौन सी रणनीति अपनाएगी, यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस ने राहुल गांधी की छवि को भुनाने की कोशिश लगातार पीछे बीते चुनावों में की, लेकिन आखिर उनका जादू अब क्यों नहीं चल रहा है? हालांकि कई जानकार यह भी कह रहे हैं कि बिहार के राजनीतिक हालात अलग थे, जिसके कारण कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा, लेकिन प्रश्‍न यहां भी वही है कि उत्तर प्रदेश में कैसे चुनावी परचम फहरा पाएगी, क्योंकि बिहार जैसे हालात कांग्रेस का इस बड़े राज्य में भी है।
उत्तर प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस लंबे अरसे से दूर है, यही कारण है कि कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई। साथ ही कांग्रेस नेताओं में बिखराव का भी आलम है। कांग्रेस का प्रयास होगा कि आने वाले चुनावों में बिहार जैसा दोहराव न हो, जिससे पार्टी की फिर किरकिरी हो, क्योंकि केवल एक ही नतीजे के बाद जनता के मन में कांग्रेस की साख पर असर पड़ने संबंधी तमाम तरह की बातें चर्चा का विशय बना हुआ है। हालांकि यहां यह भी विचार करने की जरूरत है कि किस तरह केन्द्र में सुप्तप्राय हो गई कांग्रेस को सोनिया गांधी ने उबारा और लगातार दो बार यूपीए एलायंस की सरकार बनाने में सफल रहीं। लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के प्रचार तथा युवाओं को जोड़ने का लाभ भी कांग्रेस को मिला था। ऐसे में यह भी कयास लगाना गलत नहीं है कि कांग्रेस की सत्ता में लौटने की पूर्ण क्षमता है, भले ही वह मुश्किल हो, लेकिन नामुमकिन नहीं हो सकता। इसी आस को लेकर शायद कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी लगातार दौरे कर रहे हैं और युवा कार्यकर्ताओं समेत सभी वर्ग के लोगों से मिलकर थाह ले रहे हैं कि किस तरह कांग्रेस को सशक्‍त बनाया जाए और आने वाले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर कांग्रेस की सरकार बनाई जाए।
लेखक राजकुमार साहू इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार 

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