प्रकाशित : 05/30/2008
धर्म संस्कृति
एक पवित्र पुण्य स्थान जो इलाहाबाद के समीप है। यहां गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम होता है। इसलिए इसे प्रयाग-संगम भी कहते हैं। यहां बारह वर्ष में एक बार कुंभमेला लगता है। पुराणों के अनुसार इंद्र प्रयाग के रक्षक और प्रयाग वेद पुरुष की नासिका है। मत्स्यपुराण में इस स्तान का विस्तृत वर्णन है। यह प्रजापतिक्षेत्र है।
माघ मास में यहां भारत के समस्त तीर्थों का अधिवास है। सूर्य-पुत्री यमुना का यह चिरनिवास-स्थान है। यहां ललिता देवी का मंदिर तथा अक्षयवट हैं। यहां जल-रूप में बारह माधवों (शंख, पा, गदा, पद्मा, अनन्त, बिन्दु, मनोहर, असि, संकष्टहर, आदिवेणी, आदि और वेणी) का निवास माना जाता है। प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं। पुरूवरा की राजधानी प्रतिष्ठानपुर यहीं गंगा के उत्तरी तट पर था। भरद्वाज ऋषि का आश्रम यहीं पर था। प्रयाग-संगम-स्तान अश्वमेध फलदाता, स्वर्गप्रदाता सब कुछ है। महाभारत के अनुसार चतुर्वेदाध्ययन का पुण्य प्रयागसंगम से मिलता है।
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