Thursday, December 2, 2010

जनसँख्या पर चुप्पी ठीक नहीं

हहाती जनसँख्या पर चुप्पी ठीक नहीं

POPULATION SHOULD BE CONTROLLED ANYWAY
पिछली जनगणना के बाद जनसंख्या संबंधी आधिकारिक आँकड़े जारी किये गये, राजनीतिक दलों ने अपने-अपने नजरिये से इसे देखा और अपने हिसाब से व्याख्या की। ज्ञातव्य है कि भारत का क्षेत्रफल पूरे विश्व का लगभग सवा दो प्रतिशत हिस्सा है और आबादी में बीस प्रतिशत, सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या 6.6 अरब है जिसमें से 1.16 अरब से ज्यादा हमारे देश में निवास करती है। एक नजर आँकड़ों पर डाले जाने पर मालूम चलता है कि 20वीं शताब्दी के शुरुआत में अविभाजित भारत की जनसंख्या लगभग 24 करोड़ थी जो विभाजन के उपरान्त सन 1951 में बढ़कर 36 करोड़ हो गयी और सन 2000 में 100 करोड़ को पार कर गयी। सन 1901 में जहाँ एक वर्ग किमी में 77 लोग रहते थे वहीं सन 2000 में यह संख्या लगभग पाँच गुना अर्थात 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी पर पहुँच गयी। एक अनुमान के अनुसार भारत की 40 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे रह रहे हैं तथा अभी भी 35 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं। शिशु मृत्युदर लगभग 70 प्रति हजार है, और औसत प्रति व्यक्ति सालाना आय 15000/- रुपये है और 2300 व्यक्तियों पर मात्र एक चिकित्सक ही उपलब्ध है।
विगत सौ वर्षों में जनसंख्या मे चार गुना से अधिक वृद्धि हुई है जिसके विषय में कोई व्यक्ति गंभीरतापूर्वक विचार करना नहीं चाहता, प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी सरकार पर थोप देना चाहता है, यह बात सही है कि सरकार की भी इसमें एक महती भूमिका है और सरकार ने इस वृद्धि को रोकने हेतु कई योजनायें भी चलाई हैं, किन्तु अधिकतर योजनायें स्वैच्छिक प्रवृत्ति की होने के कारण ये योजनाएँ अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पा सकीं। जनसंख्या की इस असाधारण वृद्धि का कुपरिणाम यह हो रहा है कि लोग बढ़ते जा रहे हैं, कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है, जंगल कम होते जा रहे हैं, जहाँ कभी जंगल हुआ करते थे, जहाँ खेती होती थी, वहाँ सीमेन्ट और लोहे के जंगल खड़े हो रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। जोतें कम होती जा रही हैं, गरीब और गरीब होता जा रहा है।
जल-स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है, प्रदूषण की समस्या विकराल होती जा रही है। करोड़ों लोगों को पीने के शुद्ध पानी और सैनिटेशन जैसी मूलभूत सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं। यह बढ़ती हुई जनसंख्या का ही दुष्परिणाम है कि लोग रेलवे लाइनों, सड़कों के किनारे झुग्गियों में रहने को मजबूर हैं। बेरोजगारी इसी वृद्धि का एक और सर्वाधिक कुख्यात परिणाम है, क्या कोई भी सरकार इतनी बड़ी संख्या में सभी बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करा सकती है? कदापि नहीं। साथ ही अबाध रूप से बढ़ती जनसंख्या मँहगाई, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, अपराध और अपराधियों को भी जन्म देती है। एक अरब से ज्यादा जनसंख्या को मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना, रोजगार प्रदान करना, उन्हें सुरक्षा मुहैया कराना कोई हँसी-खेल नहीं है। बढ़ती हुई जनसंख्या का भयावह रूप कहीं भी देखा जा सकता है, किसी भी एक्सप्रेस ट्रेन में हजारों ऐसे यात्रियों को, जो टिकट लेकर एक सीट पाने के अधिकारी होते हैं, भेड़-बकरियों की तरह यात्रा करते हुए देखा जा सकता है।
लोकल ट्रेनों में, रिजर्वेशन काउन्टरों पर, रोजगार के लिये भर्ती दफ्तरों पर लगी हुई कतारें, महानगरों में पीने के पानी के लिये लगी हुई लाइनें, राशन की दुकानों पर लगी हुई कतारें, बेरोजगारों की संख्या में भयावह वृद्धि, अमीर और गरीब के बीच बढ़ता हुआ अंतर, मामूली रकम के लिये होने वाली हत्यायें, भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार की घटनाओं में इजाफा, बेरोजगारों का शोषण, अनैतिक व्यापार को बढ़ावा, मँहगाई में असामान्य वृद्धि, पर्यावरण में प्रदूषण, भूख से लोगों का मरना, करोड़ों लोगों का बेघर होना इत्यादि इसी अविश्वसनीय जनसंख्या वृद्धि का ही दुष्परिणाम है।चूँकि हमारे यहाँ की अधिकतर जनता हर काम के लिये स्वत: आगे न बढ़कर हर काम के लिये सरकार का मुँह ताकती है और उसके पास किसी भी नीति को बनाने का न तो कोई हक है और न लागू कराने के लिये कोई हथियार, अत: सरकार को अब जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण के लिये कुछ कठोर कदम उठाने होंगे।
जनसंख्या नियंत्रण के परिणाम भी तुरन्त प्रकट नहीं होंगे, यदि वर्तमान समय में जनसंख्या नियंत्रण हेतु प्रभावी कदम उठाये जाते हैं व जनसंख्या वृद्धि को नकारात्मक दिशा में लाने के प्रयास किये जाते हैं तो उनका सुफल 20-25 साल बाद ही दिखाई देगा। रही बात स्वैच्छिक रूप से जनसंख्या को नियन्त्रित करने की तो स्वैच्छिक रूप से यहाँ वी0डी0आई0एस0 जैसी योजनाएँ ही सफल हो सकती हैं, न कि जनसंख्या नियन्त्रण की। रामचरित मानस में एक जगह कहा भी गया है कि “भय बिन होय न प्रीत’, और यह उक्ति आज भी प्रासंगिक है। कोई भी नियम, कानून, प्रथा, परम्परा तब तक अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकती जब तक कि उसमें दण्डात्मक प्रावधान न हो, यदि ऐसा होता तो शायद ‘राज्य’ नामक संस्था की स्थापना ही नहीं होती। जनसंख्या नियन्त्रण के लिए एक प्रभावी कानून बनाना अत्यन्त आवश्यक है, जिसमें लोगों को स्वैच्छिक रूप से अपने परिवार को सीमित रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाये, परिवार के आकार का निर्धारण किया जाये, इस निर्धारित सीमा से अधिक बड़ा परिवार होने पर उस परिवार पर कुछ कर लगाने का, कुछ शास्ति लगाने का और कुछ दंडात्मक प्रावधानों को लागू करने का विकल्प कानून में रखना चाहिए।
सीमित परिवार रखने वालों को बस-रेल किराये में छूट, बैंकों में जमा धनराशि पर अतिरिक्त ब्याज, कर्ज लेने पर वरीयता व वापसी में ब्याज में रियायत, व्यापार-उद्योगों के लाइसेंसों में प्राथमिकता, उच्च शिक्षा में छात्र-वृत्ति इत्यादि जैसे कदम उठाए जा सकते हैं, जबकि इसके विपरीत परिवार के बड़ा होने पर सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं में कटौती की जा सकती है, कुछ कर लगाये जा सकते हैं तथा इसी प्रकार के कुछ अन्य कदम उठाए जा सकते हैं। प्रथम दृष्टया ये कदम कुछ कठोर व अलोकप्रिय लग सकते हैं, लेकिन भारत के समग्र हित को ध्यान में रखते हुये ऐसे कदम उठाना नितान्त अपरिहार्य हो गया है।
सरकार को यह भी चाहिए कि परिवार नियोजन के विरुद्ध कतिपय वर्गों में फैली हुई भ्रान्तियों, पूर्वाग्रहों को दूर करे। एक छोटी सी बात जो लोगों को समझ में नहीं आती कि किसी विशेष जाति या धर्म में पैदा होना किसी भी व्यक्ति के बस की बात नहीं है, जाति या धर्म का निर्धारण पैदा होने वाला शिशु नहीं करता, बल्कि उस की जाति या धर्म का निर्धारण इस से होता है कि उसके माता-पिता किस जाति या किस धर्म के हैं या मानने वाले हैं। अत: किसी धर्म विशेष से संबंधित होने के कारण परिवार का विरोध करना तर्क-संगत नहीं है, हालाँकि इन समुदायों के अत्यल्प लोगों ने परिवार नियोजन को इस विरोध के बावजूद भी अपनाया है।
अत: भारत की बेरोजगारी, गरीबी, भ्रष्टाचार जैसी विकराल समस्याओं के प्रभावी निराकरण हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि को काबू किया जाये, और इस के लिये ऐसा कानून बनाया जाये जिसमें जातीय या धार्मिक आधार पर किसी भेदभाव की संभावना न हो। इसके साथ ही स्वयंसेवी गैर-सरकारी संस्थानों की मदद से “पल्स पोलियो अभियान’ की तरह एक जन चेतना अभियान चलाया जाये जिससे कि सामान्य जनता इस जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों को समझ सके व जागरुक होकर स्वयं को और भारत को समृद्ध बना सके।

No comments:

Post a Comment

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...