बिहार का महापर्व छठ नवम्बर 12, 2008
छठ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश मे मनाया जाने वाला एक प्राचीन पर्व है। बिहार में तो इसे सबसे बड़े त्योहार के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती रही है। ऐसा माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत अंग देश (आधुनिक भागलपुर) के राजा कर्ण ने की थी। छठ सूर्य की उपासना का पर्व है। मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है। छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है: एक बार गर्मियों में, जिसे “चैती छठ” कहते हैं और एक बार दीपावली के करीब एक हफ़्ते बाद जिसे “कार्तिक छठ” कहते है। यह चैत और कार्तिक की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। “कार्तिक छठ” अधिक लोकप्रिय है। इसके दो कारण हैं- पहला, सर्दियों में वैसे भी उत्तर भारत में त्योहारों का माहौल रहता है और दूसरे, छठ में पर्व करने वालों को ३६ घंटे से भी अधिक लंबा उपवास (जिसमें पानी भी नहीं पिया जाता) रखना पड़ता है, जो कि गर्मियों कि तुलना में सर्दियों में आसान है।
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है। चार दिवसीय इस महापर्व की शुरूआत दिवाली के चौथे दिन से शुरू हो जाती है। व्रत की शुरूआत नहाय-खाय से होती है। पूजन सामग्री किसी कारण से जूठी न हो, इस कारण पूजन सामग्री को रखने के लिए घरों की सफाई की जाती है। अगर पूजन सामग्री जूठी या अपवित्र हो जाए तो पर्व खंडित हो जाता है और इसे अशुभ माना जाता है। नहाय-खाय के दिन से ही व्रतधारी जमीन पर सोते हैं। घर में सभी के लिए सात्विक भोजन बनता है। दूसरे दिन पूरे दिन उपवास कर चंद्रमा निकलने के बाद व्रतधारी गुड़ की खीर (रसिया) का प्रसाद खाते हैं। इसके साथ कद्दू (घीया) की सब्जी विशेषतौर पर खायी जाती है। स्थानीय बोलचाल में इसे कद्दू-भात कहते हैं। इस दिन आस-पड़ोस और रिश्तेदारों को भी विशेष तौर पर कद्दू-भात खिलाया जाता है। कद्दू-भात के साथ ही व्रतधारियों का 36 घंटे का अखंड उपवास शुरू हो जाता है। इस दौरान व्रतधारी अन्न और जल ग्रहण नहीं करते हैं। तीसरे दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को नदी व तालाब में खड़े होकर अर्ध्य देते हैं। चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को कंद-मूल व गाय के दूध से अर्ध्य देने के साथ ही यह व्रत सम्पन्न होता है। व्रतधारी व्रत संपन्न होने के बाद सबसे पहले प्रसाद स्वरूप ठेकुआ खाते हैं और उसके बाद अन्न ग्रहण करते हैं। सूर्य उपासना का महापर्व छठ मुख्य रूप से पति और पुत्र की लंबी उम्र के साथ-साथ सुख- समृद्धि के लिए किया जाता है। इस पर्व में सूर्य की आराधना की जाती है। छठ पूजा के नियम इतने कड़े हैं कि इस व्रत को करने से पहले तन-मन से महिलाओं को शुद्ध होना पड़ता है और घर की तमाम चीजों की साफ-सफाई की जाती है। जो लोग छठ पूजा की सामग्री खरीदने में असमर्थ होते हैं वे दूसरों से दान लेकर पूजन सामग्री खरीदते हैं। पूजन सामग्री गन्ना, ठेकुआ (मीठा पकवान), नारियल, गागल (टाभ), सरीफा, पानी वाला सिंघाड़ा, पत्ते वाला अदरक, आ॓ल, केला, सेब, संतरा, सुथनी, मूली, पत्ता वाला हल्दी, अनानास, पान का पत्ता, सुपाड़ी, अलता, साठी के चावल व चिड़वा, कोसी, दीया, ढकनी, सूप, दौउरा, चांदनी (नया कपड़ा) बिहार के लोग जहां भी गये अपने साथ छठ की परंपरा को भी ले गए। विभिन्न प्रदेशों और यहाँ तक की दूसरे देशों में रहने वाले बिहारी भी हर्षोल्लास से इस पर्व को मनाते हैं जिससे यह पर्व धीरे-धीरे दूसरे राज्यों में भी लोकप्रिय हो रहा है।
No comments:
Post a Comment