Saturday, December 4, 2010

छत्तीसगढ़ पर्यटन

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भारत का नियाग्रा - चित्रकोट जलप्रपात

शुक्रवार, १ मई २००९


राज्य बनने के लिहाज से छत्तीसगढ़ को अस्तित्व में आए महज चार साल ही हुए हैं लेकिन पर्यटन की प्रचुर संभावनाएं इस आदि राज्य में पौराणिक काल से बनी हुई हैं। धार्मिक, पुरातत्व और नैसर्गिक संपदा के राज्य में बस्तर से लेकर सरगुजा तक नयनाभिराम पर्यटन स्थलों की लंबी सूची के बावजूद छत्तीसगढ़ देश के पर्र्यटन मानचित्र पर अपनी जगह नहीं बना सका है और अब राज्य बन जाने के बाद भी जो प्रयास हो रहे हैं वे नाकाफी माने जाते हैं।
भारत का सबसे बड़ा जलप्रपात (भारत का नियाग्रा) होने का दर्जा बस्तर के चित्रकोट जलप्रपात को हासिल है। सभी मौसम में आप्लावित रहने वाला यह वाटरफॉल पौन किलोमीटर चौड़ा और 90 फीट ऊंचा है। खासियत यह है कि बारिश के दिनों में यह रक्तिम लालिमा लिए हुए होता है तो गर्मियों की चांदनी रात में यह झक सफेद दूधिया नजर आता है। अलग-अलग मौकों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएं गिरती हैं। बस्तर के ही एक अन्य जलप्रपात की खासियत यह मानी गयी है कि देश का सबसे ऊंचा जलप्रपात भी यहां है।
यह जल प्रपात है तीरथगढ़ का जलप्रपात जो कि 300 फीट गहराई तक चट्टानों के हारे कहीं झरने तो कहीं प्रपात के रूप में बहता है। बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से 30 किलोमीटर दूर यह जलप्रपात कांकेर नदी पर स्थित है जिसकी आसपास में धाक है और स्थानीय सैलानियों की यह खास पसंद है। जलप्रपात के नजदीक जाने से पहले ही इसकी कल-कल करती नाद सैलानी को तन-मन भिगोने के लिए बाध्य कर देती है। जल प्रपात में प्रागैतिहासिक काल का एक जलकुंड है जिसमें 200 सीढ़ियों से उतरकर करीब 70 फीट जलराशि में स्नान का रोमांच उठाने वाले भी साजो-सामान सहित पहुंचते हैं। इस जलकुंड का पानी सौ फीट नीचे गिरता है और एक ताल में तब्दील हो जाता है। इसी जलप्रपात के समीप कांकेर जलप्रपात भी काफी खूबसूरत है। इसकी ऊंचाई 20 फीट है और स्वच्छ जलधारा बहती है। यहां के आकर्षण का केंद्र हैं- भैंसादर्हा घाटी में प्राकृतिक रूप से विचरण करते मगरमच्छ।
बस्तर में ही मंड़वा जलप्रपात, रानी दरहा जलप्रपात, गुप्तेश्वर, मलाजकुंडम, चर्रे-मुर्रे झरना, खुरसेल, हाथी दरहा, चित्रधारा, बोग्तुम, मल्गेर इंदुल और पुलपाड़ इंदुल जलप्रपात भी काफी प्रसिध्द हैं। यहां वाटर स्पोर्टस की प्रचुर संभावनाएं हैं और ट्रैकिंग की भी।
बस्तर से बहने वाली इंद्रावती नदी का सतधारा जलप्रपात की जबलपुर के भेड़ाघाट से तुलना होती है। बारसूर के पास यह जलप्रपात सात धाराओं में तब्दील होकर पर्यटक का मन बांध लेता है। यह धाराएं- बोधधारा, कपिलधारा, पांडवधारा, कृष्णधारा, शिवधारा, बाणधारा और शिवचित्र धारा कहलाती हैं।
कोरबा जिले में वैसे तो एनटीपीसी का काफी नाम है, लेकिन कटघोरा-अम्बिकापुर मार्ग पर घने जंगलों में स्थित केन्दई जलप्रपात का नजारा काफी खूबसूरत है। यहां पहाड़ी नदी से कल-कल करती अपार जलराशि दो सौ फीट नीचे गिरती और एक सुंदर जलप्रपात की सृष्टि करती है। पास स्थित विशाल शिलाखंड पर खड़े होकर पर्यटक घंटों तक जलप्रपात को निहारते रहते हैं। नीचे उतरने के लिए रास्ता भी बना है जिससे जलप्रपात के नजदीक पहुंचा जा सकता है। जशपुर जिले में रानीदाह जलप्रपात और राजपुरी जलप्रपात, दमेरा जलप्रपात, सरगुजा-कोरिया जिले में रक्सगण्डा जलप्रपात, अमृतधारा और कोण्डली जलप्रपात, भेड़िया पत्थर जलप्रपात, बेनगंगा जलप्रपात, रायगढ़ जिले में रामझरना भी स्थानीय सैलानियों की खास पसंद हैं लेकिन प्राय: सभी जलप्रपातों में एक बात समान है कि यहां ढांचागत सुविधाएं पाषाणयुगीन ही चली आ रही हैं और यह सभी प्राकृतिक तौर पर विकसित हुए हैं। इन्हें देखने के लिए कहीं कोई चढ़ावा नहीं चढ़ाना पड़ता है और साथ में कोई स्थानीय जानकार हो व पास में एक वाहन तो जलप्रपातों में किल्लोल करती गरजती-बरसती प्रकृति के बिल्कुल समीप जा कर लुत्फ उठाया जा सकता है। बहुत सी किवदंतियां भी इन प्राकृतिक झरों के साथ जनमानस में रची-बसी हैं। मसलन, रायगढ़ जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर प्रसिध्द दर्शनीय स्थल रामझरना के बारे में यह प्रसिध्द है कि सावन माह में इस कुंड में स्नान करने से त्वचा संबंधी रोग-दोष दूर हो जाते हैं। इसकी वैज्ञानिक वजह यह मानी जाती है कि इस झरने का जल पहाड़ियों की सैकड़ों जड़ी-बूटी की झाड़ियों के बीच से बहकर स्वयं में काफी रोगप्रतिरोधक क्षमता हासिल कर लेता है। क्षेत्र में आयुर्वेदिक औषधियां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।
जलप्रपात और जलाशय पर्यटन में दिलचस्पी रखने वालों के लिए धमतरी (रायपुर से 70 किलोमीटर) का गंगरेल जलाशय एक आकर्षक टूरिस्ट स्पॉट बन चुका है। गंगरेल बांध में लाखों क्यूसेक पानी जमा करके रखा जाता है। इसे काफी व्यवस्थित तरीके से विकसित किया गया है। पानी के नीचे एक गुफा भी बनायी गयी है और आसपास पिकनिक स्पॉट विकसित किया गया है। नगरी ब्लॉक से 20 किलोमीटर दूर सुरम्य पर्वतमाला से घिरा सोंढूर जलाशय पौराणिक काल से प्रसिध्द है। हाल में इसे विकसित किया गया है। उल्लेख आता है कि मेचका पर्वत सप्तऋषियों में से एक महर्षि मुचकुंद की तपोभूमि रहाहै, इसलिए यहां बसे गांव का नाम मेचा पड़ गया।

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