Wednesday, December 1, 2010

osho tajmahal

ताज महल को देखना


ताज महल को देखना
ताज महल को देखना

ताजमहल सूफी फ़क़ीरों की कल्‍पना है। बनवाया तो एक सम्राट ने, मगर जिन्‍होंने योजना दी, वे सूफी फकीर हैं। जिन्‍होंने निर्माण किया,वे भी सूफी फकीर है। इसलिए ताज महल को अगर तुम पूर्णिमा की रात घड़ी-दो घडी शांत बैठकर देखते रहो तो अपूर्व ध्‍यान लग जायेगा। सूफियों के हस्‍ताक्षर हैं उस पर। आकृति ऐसी है कि डूबा दे ध्‍यान में।
लाखों बुद्ध की प्रतिमायें बनीं, किसने बनाई? वह दुकानदारों का काम नहीं है। यह तकनीशियनों का काम भी नहीं है। ऐसी प्रतिमायें बुद्ध की बनी कि जिनके पास बैठ जाओ… पत्‍थर है, मगर पत्‍थर में इतना भर दिया, पत्‍थर में ऐसी आकृति दी, ऐसा रंग दिया, ऐसा रूप दिया, ऐसा भाव दिया, कि पत्‍थर के पास भी बैठ जाओ तो तुम्‍हारे भीतर कुछ थिर हो जाए।
जितना काम ले उतना ही वो सहयोगी होगा।
(ओशो—सहज योग)
ताज महल कब्र नहीं एक महल-
ताजमहल अगर आपने देखा है तो यमुना के उस पार कुछ दीवारें आपको उठी हुई दिखाई पड़ी होंगी। कहानी यह है कि शाहजहाँ न मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए,जैसा संगमरमर का ताजमहल है ऐसा अपनी कब्र के संगमूसा का काला पत्‍थर का महल वह यमुना के उस पार बना रहा था। लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया।
ऐसी कथा सदा से प्रचलित थी, लेकिन अभी इतिहासज्ञ ने खोज की है तो पता चला है कि वह जो उस तरफ दीवारें उठी खड़ी है। वह किसी बनने वाले महल दीवारें नहीं है। वह किसी बहुत बड़े महल की गिर चुका है। खंडहर है, पर उठती दीवारें और खंडहर एक से मालूम पड़ सकते है। एक नये मकान की दीवारें उठ रही है—अधूरी है, मकान बना नहीं है। हजारों सालों बाद तय करना मुशिकल हो जाएगा कि नये मकान की बनी दीवारें है या किसी बने हुए मकान की। जो गिर चूका—उसके बचे खुचे अवशोष है,खंडहर है।
पिछले तीन सौ सालों से यही समझा जाता था कि वह जो दूसरी तरफ महल खड़ा हुआ हे, वह शाहजहाँ बनवा रहा था, वह पूरा नहीं हो पाया। लेकिन अभी जो खोजबीन हुई है उससे पता चलता है। कि वह महल पूरा था। और न केवल यह पता चला है। वह महल पूरा था, बल्‍कि यह भी पता चलाता है कि ताजमहल शाहजहाँ ने कभी नहीं बनवाया। वह भी हिंदुओं का बहुत पुराना महल है, जिसको उसने सिर्फ कनवर्ट किया। जिसको सिर्फ थोड़ा सा फर्क किया। और कई दफा इतनी हैरानी होती है। कि जिन बातों को हम सुनने के आदी हो जाते है फिर उससे भिन्न‍ बात को हम सोचते भी नहीं।
ताज महल जैसी एक भी कब्र दुनिया में किसी ने नहीं बनवायी। कब्र ऐसी बनायी भी नहीं जाती। क्रब ऐसी बनायी ही नहीं जाती। ताजमहल के चारों तरफ सिपाहियों के खड़े होने के स्‍थान है। बंदूकें और तोप लगाने के स्‍थान है क्रबों की बंदूकें और तोपें लगाकर कोई रक्षा नहीं करनी पड़ती। वह महल है पुराना उसको सिर्फ कनवर्ट किया गया है। वह दूसरी तरफ भी एक पुराना महल है जो गिर गया, जिसके खंडहर शोष रह गए।
( ओशे–मैं कहता आंखन देखी)
दिन में ताज के दर्शन:
में हाई स्‍कूल के दिनों में ताज महल पहली बार देखने गया। हमारे हिंदी के अध्‍यापक श्री महाजन जी, वो मुझे बेहद प्‍यार करते थे। ताज महल को देखने के लिए अंदर जाते हुए उन्‍होंने अचानक मुझेसे कहां की तुम ताज को सीधा मत देखना, मेरे साथ नीची गर्दन करके चलना इधर उधर मत देखना। मेरे मन में कुछ कुतूहल जागा, कि ने जाने इस में क्‍या रहस्‍य है। ओर तो किसी बच्‍चे को उन्‍होंने ऐसा करने के लिए नहीं कहां, मुझे ही क्‍यों कहां। सो में उनके पीछे चल दिया। वो मुझे ताज महल के एक दम सामने वाली जगह पर ले गये और कहां। आंखों बंद कर लो और गहरी श्‍वास लो जब तक में नहीं कहुं आंखे न खोलना। में बैठ गया। पाँच मिनट बाद गहरी होती श्‍वास मंद से मंदतर होती गई। तब उन्‍होंने मुझे कहां कुछ न सोचना केवल देखना, और अपने अंदर के होना मात्रा से, सर्व सब से पूर्णता से। ऐसे देखना की कोई विश्‍लेषन न हो, की अच्‍छा है खराब है। बस देखना ओर देखने वाला एक हो जाए। सच आप को विश्वास नहीं होगा। ताज महल को देख कर मेरे विचार एक दम से रूक गये, मुझे लगा में किसी ओर ही लोक में चला गया। पूरा शरीर पुलकित हो गया। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्‍या रहा। में कौन हूं ये सब क्‍या है। सब कुछ पल भर के लिए मिट गया। ओर मेरी सलेट कोरी हो गई। उस पर जो लिखा था वेा धुल गया। एक नई जीवंतता मेरे रोये-रोये में भर गई। मानों किसी कुंवारी कली को किसी भ्रमर ने छू लिया हो। और धंटों मेरी आंखों से आंसू बहते रहे। ओर कुछ करने को या कुछ कहने को मन न करे। शब्‍द भी कोसो दुर चले गये। किसी अजांन व्‍यायखा के परे। शायद में वहां आधा घंटा बैठा रहा। मै ताज महल अंदर से नहीं देखा। एक कोने में आंखें बंद कर उन क्षणों को जीता रहा। मेरे मन,मस्‍तिष्‍क या शरीर में मानों शक्‍ति हीनहीं रही। की वो कुछ कार्य कर सके। उनकी सब उर्जा मानों खत्‍म हो गई हो। वो कुछ पल एकांत में रहना ताज को में आत्‍मसात कर गया। वो कहीं गहरे रेंगते मेरे प्रत्‍येक शरीर के अंग को लवलीन कर रहा था।
मुझे उस हालत में छोड़ कर महाजन सर और बच्‍चों के साथ चले गये। जब वापस आये तो मुस्कराते हुए मेरे पास खड़े हो कर मेंरी आंखो को देख कर मेरे चेहरे को देखाकर अंदर ही अनंदर मुग्‍ध हो रहे थे। में उन से लिपटकर रो पडा। शायद अमन अवस्था के वो मेरे पहला साक्षात्कार था। बाद में जब आशों का पढ़ा और ध्‍यान को समझा ओर किया तब वो बाते चलचित्र की भाति फिर स्‍मृति पटल पर तैरने लगी। महाजन सर ने अनजाने में वो अभुतपूर्व रस ध्‍यान का निर्वचार अवस्‍था का पिलाया वो फिर खत्‍म नहीं हुआ अंदर के तलों में धंसता रहा…..आज भी वह रूक लही नही रहा है। आज कहीं अपने पंखों पर बिठा कर यात्रा पर लिए ही जा रहा है। जिसका कोई रूकना कहीं पर नहीं है, चरेबेति….चरेवेति। जीवन के उन कोमल क्षणों में महाजन सर ने जो रस पीला दिया वो हीमेरे जीवन को अपने चारों ओर घेरे रहा। शायद गुरूकुलों में गुरू बाल पन में जो ध्‍यान का रस बच्‍चों को पिलाते थे वोबहुत ही किमती ओर कारगर होता था। वह एक प्रकार से शरीर ओर मन का एक हिस्‍सा हो जाता था, या शायद मांस मज्‍जा बन जीने लग जाता था। बिना जोड़े बिना बाधे एक अनंजानी डोर की की तरह। जिसे में कभी भी भूला नही पा रहा रहा हू ओर वो आज भी मेरे जीवन में प्रेम बन झरता रहेगा।
कुछ मित्रों के साथ जब हम सपरिवार ताजमहल देखने गये। तब वही प्रकिया हमने दोबारा दोहराई, वो मित्र तो ताज महल को पहले भी देख चुके थे। फिर भी वो इतने गद-गद ओर अभीभुत हो हो गये की जैसे इससे पहले उन्‍होंने ताज महल को देख ही न हो, ओर आज पहली बार उसे देख रहे है। उन की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है। क्‍या हम वो पूर्ण ओर सही कभी नहीं देख पाते जब तक हम पूर्ण ओर आपने सौंद्रय को कहीं छु न ले। अभी कुछ दिन पहले हिमालय की शांत ओर एकांत घाटियों में जाना पड़ा, तब वहां के ऊंचे चिढ ओर देवदार के वृक्षों के बीच सेजब हवा बहता तो ऐसा प्रतित होता मानों पास ही कहीं नदी कल-कल कर बह रही है। ओर उन देवदार के वृक्षों की विशालता के संग ध्‍यान की एक अलग ही गहराई महसूस हुई। तबएक विचार मेरे मस्‍तिष्‍क मे कोंधा…..वृक्ष तो दुख सुख; को सहता महसुस होता है। वह बढ़ता, फल फूल देता, जीता मरता भी दिखाई देता है। इस के संग साथ में जब मन इतना शांत हो जाता है, मात्र उस की निरविचार अवस्‍था के कारण या उसकी पूर्णता के कारण। अगर हम पत्‍थर को देख या उस के संग रह कर ध्‍यान करे तो कैसा लगेगा। अपने देखा जैनों के सब तिर्थि खुशक ओर ऊंचे निरजन पहाड पर है, या अजंता ओर दुसरी घुफाओं को निर्मित करने वाले इस रहस्‍य को जानते होंगे। ओर अगर पत्‍थर को एक आकार दे दिया जाये। जैसे बुद्ध का शांत ओर थिर प्रतिमा तो फिर तो सोने पर सुहागे वाली बात हो गई। ओर जब हम उसे एकटक बेठ कर मात्रा देखे तो उसका प्रतिबिंम्‍ब हमारे अचेतन पर पंतिबिंम्‍बित होने लगेगा। ओर हमारा शरीर भी उन्‍हीं तत्‍वों से निर्मित है जिस से पत्‍थर, धीरे-धीरे एकदिन हम थिर ओर शांत शरीर को देखते हुए चेतन ओर स्‍थुल को अलग अलग देखा जा सकता है। ताज महल का आकार ओर गुम्‍मद निर्दोश है। इतना पूर्ण की पूरी दूनियां में किसी भी इमारत मे देखने को नहीं मिलेगा। ओर जब हम किसी पूर्ण को देखते है तो हम पूर्ण होना शुरू हो जाते है। गुरू को देखाना भी उसी प्रक्रिया का एक हिस्‍सा है। क्‍योंकि गुरू भी अब पूर्ण हो गया है। उस से होकर वो पूर्ण झांक रहा हे। उस मित्र न बाद में मुझे एक पत्र लिखा ओर कहा की इतना सुंदर, अभूतपूर्व ताज हो सकता है मैं सोच भी नहीं सकता। ओर वेा मित्र ताज महल को फिर देखने के लिए अंदर भी नहीं गये थे, मुझसे बिना मिले अपने और घर चले गये। शायद उन्‍हें लगा कि अब इतनी खूबसूरती के बाद कुछ देखने को मन नहीं करता। आप भी जब कभी दिन में जाए तो उसे इसी तरह देखने की कोशिश करना शायद आपको भी कुछ अभूतपूर्व

1 comment:

  1. Anamisharan is a best hindi blog to increase your dharmik Knowledge. and know more about - religious stories,History, sociel problem, releted. and this blog is about Tajmahal ki kahani.

    ReplyDelete

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...