*राधास्वामी!
27-02-201122-
आज शाम सतसंग में पढा गया बचन-
कल से आगे:-(220)
-तात्पर्य यह कि कुछ रात तक ऐसी ही चहल - पहल रहती है और धीरे धीरे सब अपनी अपनी चादर ओढ़कर सो जाते हैं और सोने से पहले जो बातें सुनी थीं उन्हीं के सम्बन्ध में स्वप्न देखते हैं ।
अब सूर्य निकलने लगा है । पुरोहित जी स्नान करके अग्निकुण्ड में अन्न और दूसरी सामग्री की आहुतियाँ डालकर अग्नि - देवता की पूजा कर रहे हैं । पूजा से निवृत्त होकर वह शंख बजाते हैं । शंख की ध्वनि सुनकर सब स्त्री - पुरुष चौक पड़ते हैं । डेरे में हलचल मच जाती है । लोग नित्य - कृत्य से निवृत्त होने के लिए शीघ्रता कर रहे हैं ।
थोड़ी देर के बाद पुरोहित जी के चारों ओर बहुत से नवयुवक जमा हो जाते हैं । पुरोहित जी पात्र का बचा हुआ सब घी अग्निकुण्ड में उलट देते हैं । अग्नि पर घी के पड़ते ही एक बड़ी लाट ( ज्वाला ) निकलती है । उत्तरी हवा का झोंका आने से लाट का रुख दक्षिण की ओर हो जाता है । पुरोहितजी परिणाम निकालते हैं कि दक्षिण की ओर चलने के लिए आज्ञा हो रही है । कुछ देर बाद ज्वाला बुझ जाती है । धुँआ निकलता रहता है । धुँए का रुख दक्षिण की ओर है । पुरोहित जी अग्निकुण्ड सिर पर रखकर प्रस्थान करते हैं । सब मंडली पहले की तरह पीछे पीछे चलती है । सात दिन ऐसे ही यात्रा जारी रहती है ।
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश-भाग तीसरा-
परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!
🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿
No comments:
Post a Comment