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भगवान का साक्षात तेज पुंज
*🥉श्रीमद्भगवद्गीता🥉*
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*✍️सुशर्मा एक घोर पापी व्यक्ति था. वह हमेशा भोग-विलास में डूबा रहता. मदिरा और मांसाहार इसी में जीवन बिताता. एक दिन सांप काटने से उसकी मृत्यु हो गई.*
*उसे नरक में यातनाएं झेलीं और फिर से पृथ्वी पर एक बैल के रूप में जन्म लिया.*
*अपने मालिक की सेवा करते बैल को आठ साल गुजर गए. उसे भोजन कम मिलता लेकिन परिश्रम जरूरत से ज्यादा करनी पड़ती.*
*एक दिन बैल मूर्च्छित होकर बाजार में गिर पड़ा. बहुत से लोग जमा हो गए. वहां उपस्थित लोगों में से कुछ ने बैल का अगला जीवन सुधारने के लिए अपने-अपने हिस्से का कुछ पुण्यदान करना शुरू किया.*
*✍️उस भीड़ में एक वेश्या भी खड़ी थी. उसे अपने पुण्य का पता नहीं था फिर भी उसने कहा उसके जीवन में जो भी पुण्य रहा हो उसका अंश बैल को मिल जाए.*
*बैल मरकर यमलोक पहुंचा. बैल के हिस्से में जमा पुण्य का हिसाब-किताब होना शुरू हुआ तो एक बड़े आश्चर्य की बात हुई. ऐसे आश्चर्य की बात जिसके बारे में यदि धरतीलोक पर किसी व्यक्ति को कहो तो विश्वास ही न करें.*
*बैल के हिस्से में सर्वाधिक पुण्य उस वेश्या का दान किया हुआ आया था. उसी वेश्या के किए पुण्यदान के कारण बैल को नर्कलोक से मुक्ति हो गई.*
*इतना ही नहीं उसी पुण्यफल से पृथ्वी लोक का भोग करने के लिए मानव रूप में जन्म देकर भेजा गया. उसके पुण्य इतने थे कि विधाता ने उससे पृथ्वीलोक पर जाने से पहले उसकी इच्छा भी पूछी. ऐसा सौभाग्य करोड़ों में किसी-किसी धर्मात्मा को ही मिलता है.*
*इंसान के रूप में जाने से पहले बैल ने मांगा- हे परमात्मा आप मुझे मानवरूप में पृथ्वी पर भेजने का जो उपकार कर रहे हैं उससे मैं धन्य हो गया हूं. अब आपसे और क्या मांगू. बैलयोनि में मेरा जन्म मेरे पूर्व के कर्मों के दंडस्वरूप ही रहा होगा. इसलिए मैं चाहता हूं कि मनुष्य रूप में जाकर मैं उन कर्मों में न पडूं जो मेरा भावी खराब करेंगे. मनुष्य रूप में इसकी आशंका सर्वाधिक है.*
*परमात्मा ने पूछा- तो बताओ मैं तुम्हारा कैसे प्रिय करूं, अपनी एक इच्छा बताओ*
*👉उसने मांगा- मुझे बस वह क्षमता प्रदान करें कि मुझे पूर्वजन्म की समस्त बातें स्मरण रहें. उनका स्मरण करके मैं कर्मों से भटकने से स्वयं को रोक सकूंगा. बस इतनी सी कृपा और कर दे.*
*✍️परमात्मा ने उसकी इच्छा स्वीकार ली और उसे वह योग्यता प्रदान कर दी. पृथ्वीलोक पर आने के बाद उसे पूर्वजन्म स्मरण थे इसलिए उसने सबसे पहले उपकार का फल चुकाने का निर्णय किया.*
*पृथ्वी पर आकर उसने उस वैश्या को तलाशना शुरू किया जिसके पुण्य से उसे मुक्ति मिली थी. आखिरकार उसने उस वैश्या को खोज ही निकाला.*
*उसने वेश्या को सारी बातें बताई और फिर पूछा- देवी! आप धन्य हैं. आपके कर्म तो सबसे नीच कर्मों में आते हैं फिर भी आपके पास इतना संचित पुण्य कैसे था, यह घोर आश्चर्य की बात है. मैं जानना चाहता हूं कि कौन सा पुण्य आपने मुझे दान किया था?*
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*वेश्या ने एक तोते की ओर इशारा करके कहा- वह तोता प्रतिदिन कुछ पढ़ता है. उसे सुनकर मेरा मन पवित्र हो गया. वही पुण्य मैंने तुम्हें दान कर दिया था.*
*सुशर्मा के आश्चर्य का तो कोई अंत ही रहा. एक स्त्री ने उस पुण्यफल का दान किया जिसके बारे में उसे पता तक नहीं है और वह पुण्य इतना प्रभावी है कि उसकी अधम योनि ही बदल गई.*
*उसने तोते को आदरपूर्वक प्रणाम किया और उसके ज्ञान का रहस्य पूछा. तब तोते ने अपने पूर्वजन्म की कथा सुनाई.*
*तोता बोला- पूर्वजन्म में मैं विद्वान होने के बावजूद अभिमानी था और सभी विद्वानों के प्रति ईर्ष्या रखता था. उनका अपमान और अहित करता था.*
*मरने के बाद मैं अनेक लोकों में भटकता रहा. फिर मुझे तोते के रूप में जन्म मिला लेकिन पुराने पाप के कारण बचपन में ही मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई.*
*मैं रास्ते में कहीं अचेत पड़ा था. तभी दैवयोग से वहां से कुछ ऋषि-मुनि गुजरे. मुझे इस अवस्था में देखकर उन्हें दया आई और मुनि मुझे साथ उठा लाए.*
*आश्रम में लाकर मुझे एक पिंजरे में वहां रख दिया जहां विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती थी.*
*मैंने वहां गीता का पूरा ज्ञान सीखा. सुनते-सुनते गीता का प्रथम अध्याय मुझे कंठस्थ हो गया. इससे पहले कि मैं अन्य अध्याय सीख पाता एक बहेलिये ने वहां से चुराकर इन देवी को बेच दिया.*
*मैं अपने स्वभाववश इनको प्रतिदिन गीता के श्लोक सुनाता रहता हूं. वही पुण्य इन्होंने आपको दान किया और आप मानवरूप में आए.*
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*श्रीहरि ने लक्ष्मीजी से कहा है- देवी जो गीता पढ़ता या सुनता है उसे भवसागर पार करने में कोई कठिनाई नहीं होती.*
*गवान ने श्रीमद्भगवद्गीता के विभिन्न अध्यायों को अपने शरीर का अंग मानते हुए बताया है कि गीता में साक्षात उनका वास है।*
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