: *राधास्वामी!
21-01-2022-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:- सरन राधास्वामी हिये धारी । शब्द धुन लागी घट प्यारी ॥ १ ॥ उमँग मन घट में नित चढ़ता ।
प्रेम गुरु चरनन नित बढ़ता ॥ २ ॥
निरख अस लीला हरपत मन ।
परख गुरु लीला फूलत तन ॥ ३ ॥
भई मम हिरदे अस परतीत ।
जाउँ घर काल करम दल जीत ॥ ४ ॥
मेहर गुरु कस कस गाऊँ मैं । चरन पर वलि बलि जाऊँ मैं ॥ ५ ॥
संग गुरु क्या महिमा कहना ।
प्रेम रस नित घट में पीना ॥ ६ ॥ संग कोइ बड़भागी पावे।
चरन मेन छिन छिन मन लावे ॥ ७ ॥
प्रेम से गुरु सेवा धावे।
सुरत नभ चढ़ धुन रस पावे ॥ ८ ॥
●●●●कल से आगे●●●●
कटे सब काल करम के जाल ।
मिटें सब धरम भरम के ख़्याल ॥९॥
सुफल होय दुरलभ नरदेही ।
चित्त से परम पुरुष सेई।।१० ।।
होयँ जब परसन गुरु स्वामी ।
करें अस दया अंतरजामी ॥११ ।।
करूँ मैं बिनती राधास्वामी से।
लगाओ मुजको चरनन से।।१२।।
संग मोहि दीजे पास बुलाय ।
मगन रहूँ नित तुम महिमा गाय ॥ १३ ॥ पिरेमी जन सँग देख बिलास ।
हिये में दिन दिन बढ़त हुलास ।।१४।। प्रेम सँग आरत नित करहूँ ।
चरन राधास्वामी हिये धरहूँ ।।१५।।
करो पूरी अभिलाषा मेरी।
हुई मैं निज चरनन चेरी।।१६।।
दया अस राधास्वामी अब कीजे ।
नित्त सँग चरनन में दीजे ॥ १७ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-39- पृ.सं.288,289)
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