*राधास्वामी!
20-01-2022-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-
सरन राधास्वामी हिये धारी ।
शब्द धुन लागी घट प्यारी ॥ १ ॥
उमँग मन घट में नित चढ़ता । प्रेम गुरु चरनन नित बढ़ता ॥ २ ॥
निरख अस लीला हरपत मन ।
परख गुरु लीला फूलत तन ॥ ३ ॥
भई मम हिरदे अस परतीत ।
जाउँ घर काल करम दल जीत ॥ ४ ॥
मेहर गुरु कस कस गाऊँ मैं ।
चरन पर वलि बलि जाऊँ मैं ॥ ५ ॥
संग गुरु क्या महिमा कहना ।
प्रेम रस नित घट में पीना ॥ ६ ॥
संग कोइ बड़भागी पावे। चरन मेन छिन छिन मन लावे ॥ ७ ॥
प्रेम से गुरु सेवा धावे।
सुरत नभ चढ़ धुन रस पावे ॥ ८ ॥
कटे सब काल करम के जाल ।
मिटें सब धरम भरम के ख़्याल ॥९॥
सुफल होय दुरलभ नरदेही । चित्त से परम पुरुष सेई।।१० ।।
होयँ जब परसन गुरु स्वामी ।
करें अस दया अंतरजामी ॥११ ।।
करूँ मैं बिनती राधास्वामी से।
लगाओ मुजको चरनन से।।१२।।
संग मोहि दीजे पास बुलाय ।
मगन रहूँ नित तुम महिमा गाय ॥ १३ ॥
पिरेमी जन सँग देख बिलास ।
हिये में दिन दिन बढ़त हुलास ।।१४।।
प्रेम सँग आरत नित करहूँ । चरन राधास्वामी हिये धरहूँ ।।१५।।
करो पूरी अभिलाषा मेरी।
हुई मैं निज चरनन चेरी।।१६।।
दया अस राधास्वामी अब कीजे ।
नित्त सँग चरनन में दीजे ॥ १७ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-39- पृ.सं.288,289)**
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