राधास्वामी!
05-01-2022-
आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-
बसी मेरे घट में गुरु परतीत । प्रीति की परखी अचरज रीति ॥ १ ॥
नाम गुरु लागा अति प्यारा । सुरत और शब्द जोग धारा ॥ २ ॥
करूँ मैं नित नित गुरु का संग ।
प्रेम गुरु लागा हिरदे रंग ॥ ३ ॥
तजी जग अभिलाषा सारी । भोग जग लागे सब खारी ॥ ४ ॥
दई सब माया ममता छोड़। लिया मन गुरु चरनन में जोड़ ॥ ५ ॥
बचन गुरु सुनत हुआ मन लीन ।
करम और भरम हुए सब छीन ॥ ६ ॥
जगत नित नई नई घट परतीत ।
बढ़त नित चरनन गहिरी प्रीति ॥ ७ ॥
संत सँग महिमा बरनी न जाय ।
मेहर से कोई बड़भागी पाय ॥ ८ ॥
*●●●●कल से आगे●●●●
मिला जिस जन को गुरु का संग ।
उड़न लागा छिन छिन माया रंग ॥ ९ ॥
लगे सब डरने घट के चोर । थका फिर काल करम का ज़ोर ।।१० ।। मेहर बिन नहिं होवे निरमल । करे कोई सतसँग नित चल चल ॥११ ॥ गुरू ने मेरा दीना भाग जगाय ।
खैंच निज चरनन लिया अपनाय ॥१२ ॥
मगन होय दरशन करता नित्त ।
चरन में धरता हित कर चित्त ॥१३ ॥ प्रेम अँग आरत लीन जगाय ।
गावता गुरु के सन्मुख आय।।१४ ।। शब्द धुन गरज रही घनघोर । सुरत मन चढ़ते घट में दौड़ ॥ १५ ॥
सरन राधास्वामी हिये सम्हार निरखती घट में सदा बहार ॥ १६ ॥ मेहर की दृष्टि कीनी पूर।
हुई मैं राधास्वामी चरनन धूर।।१७।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-22- पृ.सं.273,274,275)*
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