**राधास्वामी! 06-01-2022-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:- चरन गुरु बसे हिये में आय ।
सरन गुरु गही उमँग मन धाय ॥ १ ॥
स्वामी का दरश लगा प्यारा । हुआ घट अंतर उजियारा ॥ २ ॥
सुनत गुरु बचन हिया उमँगाय ।
प्रेम और प्रीति लगी अधिकाय ॥ ३ ॥ हुई अब मन में दृढ़ परतीत । सुरत में धरी शब्द की प्रीति ॥ ४ ॥
भाग मेरा जागा अब भारा । मिला राधास्वामी सतसँग सारा ॥ ५ ॥
शब्द का भेद अनूप अपार । दिया मोहि गुरु ने किरपा धार ॥ ६ ॥
सुरत मेरी कीनी गुरु ने सार । छुड़ाया करम भरम गुब्बार ॥ ७ ॥
देव और देवी नहिं पूजूँ।
प्रेम रँग गुरु चरनन भीजूँ ॥ ८ ॥
बरत और तीरथ छोड़ दिये ।
चरन गुरु दृढ़ कर पकड़ लिये ॥९ ॥ पढ़ें सब पंडित बेद पुरान । भेद नहिं पावें रहें अजान ॥१० ॥
गाऊँ कस राधास्वामी मेहर अपार ।
सरन दे किया मोर उपकार ॥११ ॥
काल मत भूल रहा संसार । लिया मोहि गुरु ने सहज निकार ॥१२ ॥
प्रीति मेरे हिये में धर दीनी । प्रेम रँग सुरत हुई भीनी ॥१३ ॥
शब्द घट सुनति सुरत लगाय ।
छाँट धुन घंटा निरत जगाय ॥१४ ॥ आरती घट में नित करता ।
गगन चढ़ गुरु मूरत लखता ॥ १५ ॥
सुन्न चढ़ भँवरगुफा धावत ।
लोक सत गाऊँ सतगुरु आरत ॥१६ ॥
अलख और अगम चरन परसें ।
सुरत मन निज करके हरषे ।।१७ ।।
चरन राधास्वामी निरख निहार
आरती गाऊँ उनकी सार ॥ १८ ॥
दया जस राधास्वामी मोपै कीन ।
कही नहिं जाय सुरत हुई लीन ॥ १९ ॥
(प्रेमबानी-1-शब्द-23- पृ.सं.275,276,277)**
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