*राधास्वामी!
25-01-2022-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:- ऋतु बसंत फूली जग माहीं । मन और सुरत चेत हरखाई ॥ १ ॥
दया मेहर राधास्वामी की परखी ।
कँवल कियारी अंतर निरखी ॥ २ ॥
धुन फुलवार खिली घट घट में ।
काल करम रहे थक खटपट में ॥ ३ ॥ मन चख रहा अमी रस प्याला ।
मगन हुआ घट खोला ताला ॥ ४ ॥ सुरत चली घर को अब दौड़ी ।
नभ पर चढ़ी पकड़ धुन डोरी ॥ ५ ॥
आगे चढ़ गुरु दरशन पाई । गरज गरज धुन मेघ सुनाई ॥ ६ ॥
सुन में जा धुन अक्षर पाई । मानसरोवर तीरथ न्हाई ॥ ७ ।। राधास्वामी दयाल मिले मोहि आई ।
आगे की फिर गैल लखाई ॥ ८ ॥ महाकाल का तोड़ा नाका ।
भँवरगुफा तक सतपुर झाँका ॥ ९ ॥
सत्तपुरुष के दरशन पाये । सत्त शब्द धुन बीन सुनाये ॥१० ॥
अलख अगम के पार अनामी ।
अमी सिंध में जाय समानी ॥११।।
महिमा राधास्वामी बरनी न जाई ।
दया करी मोहि अंग लगाई ॥१२।।
चरन कँवल में बासा दीन्हा ! न्यारा कर अपना कर लीन्हा ॥ १३ ॥
छिन छिन आरत करूँ बनाई ।
चरन सरन मैं दृढ़ कर पाई ॥१४ ॥
(प्रेमबानी-3-शब्द-5- पृ.सं.285,286)
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