कुछ धार्मिक प्रसंग i कृष्ण मेहता: (( दिव्य वृंदावन ))
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संतो की कृपा जिस पर हो जाए उसे फिर क्या नहीं मिल सकता,
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अकबर जैसे बादशाह पर कृपा हुई तो उसे दिव्य वृंदावन के स्वरुप का दर्शन हुआ.
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इसी तरह राजाराम बाघेल रीवा नरेश थे, एक बार वृंदावन आये संत को उन्होंने सेवा करते देखा..
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उन्होंने देखा कि, संत ठाकुर जी को भोग धरा रहे है. पानी रखने का करुआ, ठाकुर जी के भोजन का पात्र सब मिट्टी के बने है.
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ये देखकर वे सोचने लगे कि ठाकुर जी की सेवा में मिट्टी के पात्रो से होती है.
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इन्हें एक बार उपयोग करने के बाद दुबारा उपयोग भी नहीं कर सकते,
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वे उन पात्रो की महिमा नहीं जानते थे, कि ये पात्र कोई सामान्य मिट्टीसे नहीं बने है. ब्रजरज् से बने है.
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उन्होंने अपने मन की बात संत से कही.
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संत हँसने लगे, और बोले -ब्रजरज् पर हजारों चिंतामणि न्योछावर है इन्हें सामान्य मिट्टी का पात्र क्यों समझ रहे हो ?
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ये पात्र तुम्हारी नजर में सामान्य मिट्टी के पात्र होगे, हमें मिट्टी के पात्र नहीं लगते.
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जाके पिय ह्रदय में आवन,
मोहन राधा रानी अनुभव
प्रकट होत क्रीडा को,
मोद विनोद कहानी भगवद रसिक
अनेक महल की टहल मिले मनमानी,
परम करुआ ता में यमुना जी को पानी.
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अर्थात- जिसके ह्रदय में युगल सरकार विराजमान है, और हर पल उनका नित्य बिहार जिसके ह्रदय में प्रकट है,
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ऐसे रसिको को राधाप्यारी के महलन की टहल (सेवा) मिल जाती है, टहल ही नहीं मनमानी टहल, श्री महलन में जैसी भक्त चाहे वैसी टहल उसे मिल जाती है.
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और यहाँ का करुआ सामान्य नहीं है, ब्रज रज का करुआ है, और तिस पर भी उसमे यमुना जी का जल है.
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राजा तो राजा ही था और संत विरक्त रसिक है..
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राजा बोला -इस सेवक को सेवा मिलती तो सब पात्र सुवर्ण के बनवा देते हम पर भी कृपा हो जाती,
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संत ने दिव्य द्रष्टि दी तो अगले ही पल राजा क्या देखता है, भूमि रत्न जड़ित है, हर पात्र से तेज मणियों का प्रकाश निर्झरित हो रहा है.
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राजा की आँखे फटी की फटी रह गई, ऐसा एक भी रत्न और मणि उसके पूरे खजाने में भी नहीं था.
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राजा बोला बाबा, मुझे क्षमा कर दीजिये, इस दिव्य वृंदावन के दर्शन पाकर मै धन्य हो गया.
सभार :- “ब्रज रस धारा”
ll जय श्री राधे 💕कृष्णा... ...
[6/14, 04:59] Morni कृष्ण मेहता: हिंगलाज मंदिर (नानी मन्दिर)
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पाकिस्तान के लसबेला से अरब सागर से छूकर निकलता 150 किमी तक फैला रेगिस्तान। बगल में 1000 फीट ऊँचे रेतीले पहाड़ों से गुजरती नदी। बाईं ओर दुनिया का सबसे विशाल मड ज्वालामुखी। जंगलों के बीच दूर तक परसा सन्नाटा और इस सन्नाटे के बीच से आती आवाज 'जय माता दी'। इन्हीं रास्तों में है धरती पर देवी माता का पहला स्थान माने जानेवाले पाकिस्तान स्थित एकमात्र शक्तिपीठ *'हिंगलाज मंदिर'*।
अमरनाथ जी से ज्यादा कठिन है हिंगलाज की यात्रा...
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करीब 2 लाख साल पुराने इस मंदिर में पिछले जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस मंदिर में नवरात्रि में गरबा से लेकर कन्या भोज तक सब होता है।
देवी के *51 शक्तिपीठों* में से एक हिंगलाज मंदिर में नवरात्रि का जश्न करीब-करीब भारत जैसा ही होता है। कई बार इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है कि ये मंदिर पाक में है या भारत में।
- हिंगलाज मंदिर जिस स्थान में है वो पाकिस्तान के सबसे बड़े हिंदू बाहुल्य इलाकों में से एक है। पूरे नवरात्रि यहां 3 किमी में मेला लगता है। दर्शन के लिए आनेवाली महिलाएं गरबा नृत्य करती हैं। पूजा-हवन होता है। कन्या खिलाई जाती हैं। माँ के भजनों की गूँज दूर-दूर सुनाई देती है।
- कुल मिलाकर हर वो आस्था देखने को मिलती है जो भारत में नवरात्रि पूजा के दौरान होती है।
नवरात्रि में हो जाती है साल भर के खर्चे के बराबर कमाई।
- हिंगलाज मंदिर आनेवाले भक्तों की संख्या का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि नवरात्रि के 9 दिनों में यहाँ के लोग अपने साल भर के खर्चे के बराबर कमा लेते हैं।
- मंदिर के प्रमुख पुजारी महाराज *श्री गोपाल गिरी जी* का कहना है कि नवरात्रि के दौरान भी मंदिर में हिंदू-मुस्लिम का कोई फर्क नहीं दिखता है। कई बार पुजारी-सेवक मुस्लिम टोपी पहने दिखते हैं। तो वहीं मुस्लिम भाई देवी माता की पूजा के दौरान साथ खड़े मिलते हैं। इनमें से अधिकतर *बलूचिस्तान-सिंध* के होते हैं।
- हर साल पड़ने वाले 2 नवरात्रों में यहाँ सबसे ज्यादा भीड़ होती है। करीब 10 से 25 हजार भक्त रोज़ माता के दर्शन करने हिंगलाज आते हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश और पाकिस्तान के आस-पास के देश प्रमुख हैं।
- चूंकि, हिंगलाज मंदिर को मुस्लिम *'नानी बीबी की हज'* या *पीरगाह* के तौर पर मानते हैं, इसलिए पीरगाह पर अफगानिस्तान, इजिप्ट और ईरान जैसे देशों के लोग भी आते हैं।
*शिवजी* की पत्नी *माता सती* का सिर कटकर गिरने से बना *'हिंगलाज'*
हिन्दू धर्म, शास्त्रों और पुराणों के मुताबिक, सती के पिता राजा दक्ष अपनी बेटी का विवाह भगवान शंकर से होने से खुश नहीं थे। क्रोधित दक्ष ने बेटी का बहुत अपमान किया था। इससे दुखी सती ने खुद को हवनकुंड में जला डाला। इसे देखकर शंकर के गण ने राजा दक्ष का वध कर दिया था। घटना की खबर पाते ही शंकरजी दक्ष के घर पहुँचे। फिर सती के शव को कंधे पर उठाकर क्रोध में नृत्य करने लगे। शंकरजी को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से सती के 51 टुकड़े कर दिए। ये टुकड़े जहाँ-जहाँ गिरे, उन 51 जगहों को ही देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। टुकड़ों में से सती के शरीर का पहला हिस्सा यानी सिर *'किर्थर पहाड़ी'* पर गिरा, जिसे आज *हिंगलाज* के नाम से जानते हैं। इसी पहले हिस्से यानी सिर के चलते *पाकिस्तान* के *हिंगलाज मंदिर* को धरती पर माता का पहला स्थान कहते हैं।
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[6/14, 05:13] Morni कृष्ण मेहता: अगर आप बहुत सारे ज्योतिषीय उपायों को करने के बाद भी संघर्ष से मुक्त नही हुए, मनोकामना पूर्ण नही हो रही, प्यार मे निष्फलता मिल रही है, धनार्जन हो नही रहा है, तो यह उपाय आप एक साल तक किजिए ।
आपकी जो भी उम्र हो उतनी लौंग की एक माला बनाइए सफेद या काले धागे मे। यह माला आप दक्षिण मुखी हनुमानजी को पहनाऐं। हर मंगलवार और शनिवार को।
यह एक साल तक करते रहिए तो लंबे समय से चली आ रही हर परेशानी से निश्चित मुक्ति मिलेगी और भविष्य मे ठोस सफलता भी प्राप्त करोगे।
दो हफ्ते मे अच्छे परिणाम मिल जाएंगे।
।।ॐ नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।।
[6/14, 05:24] Morni कृष्ण मेहता: जय श्री राम
शबरी बोली - यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो राम तुम यहाँ कहाँ से आते
राम गंभीर हुए
कहा, भ्रम में न पड़ो माता
राम क्या रावण का वध करने आया है ?
अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से वाण चला भी कर सकता है
राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है माता, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था
जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं, यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है
राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है
राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतिक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं
शबरी एकटक राम को निहारती रहीं
राम ने फिर कहा- राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता
राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए
राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है
राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय और खर-दूषणो का घमंड तोड़ा जाये
और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं
शबरी की आँखों में जल भर आया था
उसने बात बदलकर कहा - कन्द खाओगे राम ?
राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं माता"
शबरी अपनी कुटिया से झपोली में कन्द ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया
राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा - मीठे हैं न प्रभु ?
यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ माता
बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है
शबरी मुस्कुराईं, बोली - "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम, गुरुदेव ने ठीक कहा था"
🌺सियापति रामचन्द्र की जय🌺
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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