पुराने किस्से
बीस साल तक दुनिया-जहान में तमाम धकापेल कारपोरेट नौकरियां करने के बाद मार्च की एक रात सिड कपूर को उसकी अंतरात्मा का टेलीफोन आया. सिड यानी सिद्धार्थ कपूर हर रात की तरह उस रात भी एक बड़ी पार्टी से पूरी तरह टुन्न होकर लौटा था. अमूमन वह घर आकर सोने से पहले एक लार्ज और खींचता था पर पार्टी में परोसे गए भोजन ने पेट में वायु का ऐसा प्रचंड अतिरेक उत्पन्न किया कि उसे दिल का दौरा पड़े होने का खौफ हुआ. बच्चे उसने पैदा नहीं किये थे और बिड यानी उसी की जैसी कारपोरेटी उसकी बीवी बृंदा कम्पनी मीटिंग के लिए शंघाई गई हुई थी. सिड ने पड़ोस में रहने वाले डाक्टर दोस्त को फोन कर के घर बुलाया जिसने उसके सीने पर लम्बे समय तक आला फेरने के बाद एसिडिटी की दवा की डबल डोज दे कर आश्वस्त किया कि हार्ट अटैक नहीं पड़ा था. दारू पर हाथ हल्का रखने की दोस्ताना राय भी दी गई अलबत्ता डाक्टर खुद टाइट था.
डाक्टर के जाने के आधे घंटे बाद उसे आराम तो हुआ अलबत्ता नींद नहीं आई. वह निद्रा-अनिद्रा के बीच डोल रहा था जब अंतरात्मा का टेलीफोन आया जिसने उसे सूचित किया कि दुनिया नश्वर है, समय कम बचा है और जिन्दगी का पूर्णभूसीकरण हो चुकने से पहले उसने कुछ करना चाहिए. इस टेलीफोन के बाद उसकी अंतरात्मा उसके कन्धों पर स्थापित हो गयी और अगले तीन दिनों तक उसे इस कुछ के बारे में गंभीर विचार करने को कोंचती रही. परिणाम यह हुआ कि बीवी के वापस इंडिया लौटने से पहले ही उसने एक हफ्ते की छुट्टी ली और गाड़ी-ड्राइवर उठाकर रामगढ़-मुक्तेश्वर की तरफ निकल पड़ा.
कुमाऊं की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक रामगढ़-मुक्तेश्वर के इलाके के बारे में उसने स्कूल के जमाने के अपने कुछ दोस्तों से सुन रखा था. इन दोस्तों और उनके कुछ दोस्तों ने वहां छुट्टियां बिताने के वास्ते बंगले और कॉटेज बनवा रखे थे. सिड चाहता तो इनमें से किसी एक को टेलीफोन कर इलाके के बारे में जरूरी सूचनाएं मांग सकता था लेकिन अंतरात्मा ने ऐसा करने को उसकी कायरता बताया और कहा कि जो करना है खुद अपने बूते पर करना है.
हल्द्वानी-काठगोदाम से आगे बढ़ते ही गाड़ी में एसी चलाने की जरूरत नहीं रही. सिड हैरान होकर याद करने लगा इंडिया में वह आख़िरी बार कब बगैर एसी के रहा था. अब उसने रास्ते भर दिखाई दे रहे दृश्यों पर ध्यान देना शुरू किया – छोटे-छोटे ढाबों में धरी हुई पकौड़ी-रायते की परातें, घास-लकड़ी के बड़े-बड़े गठ्ठर लादे सड़क पर कहीं से कहीं जाती औरतें-लड़कियां, स्कूल से घर लौट रहे बच्चे-बच्चियां जिनमें से कई के पैरों में घिसी हुई चप्पलें भर थीं, बेहद गरीब दिखाई देने वाले दुकानों के बाहर स्टूलों पर बैठे ताश खेलते आदमी और अगल-बगल के जंगल में खिले हुए बुरांश के चटख लाल फूलों के गुच्छों की अनूठी बहार.
दो घंटे बाद मुक्तेश्वर के एक बड़े होटल में चेक-इन करने तक सिड कपूर और उसकी अंतरात्मा ने मिल कर सिड के भविष्य की योजना का मोटा-मोटा खाका तय कर किया था. दिल्ली-गुड़गांव का नर्क छोड़ कर वह इसी इलाके में बस जाएगा, घर बनाएगा और गरीब पहाड़ी बच्चों-औरतों के लिए कुछ करेगा.
कुछ करना हमारे देशवासियों का सबसे प्रिय शगल है. जिस-जिससे कुछ नहीं हो पाता वह देश-समाज के लिए कुछ करना चाहता है. अमेरिका में बैठा हुआ खाया-अघाया एक थर्ड-जेनरेशन कुमाऊनी आप्रवासी यूट्यूब पर बेडू पाको सुनकर अपने इलाके के लिए कुछ करने की उद्दाम आकांक्षा से तड़पने लगता है. महंगे शराबखानों-वेश्यालयों में अपने जीवन और धन का बड़ा हिस्सा इन्वेस्ट कर चुके हर सफल जुगाड़ू पापी के पास देश की ग्रामीण महिलाओं की तरक्की के लिए ऐसी-ऐसी योजनाएं होती हैं जिन्हें सुनकर धरती को बनाने वाला विधाता भी कृतज्ञता से झुक जाता है. हर हफ्ते शैम्पेन ब्रेकफास्ट पार्टी करने वालीं, प्रादा-गुच्ची से नीचे के ब्रांड पर थूक देने वाली बुढ़ाती सोशलाइट महिलाओं के पास वीमेन एमपावरमेंट के नायाब नुस्खे होते हैं. वे विलेज वीमेन से थोक में कढ़ाई-सिलवाई करवा कर ‘स्ट्री’ नाम से इंटरनेशनल ऐपरेल ब्रांड बनाकर फ्रांस-स्पेन की अपने ही जैसी महिला ग्राहकों को पटाने की हर संभव फिराक में रहती हैं. संक्षेप में हमारा देश, देश के लिए कुछ करने की इच्छा में दिन-रात मरे जा रहे महामनाओं से अटा पड़ा है. देश का दुर्भाग्य है उनकी सेवाओं का पर्याप्त इस्तेमाल करने को आज तक कुछ भी नहीं किया गया.
सिड कपूर इन महात्माओं जैसा नहीं था. उसके कंधे पर सतत लदी रहने वाली उसकी अंतरात्मा गवाह थी सिड कपूर वाकई पहाड़ के लिए कुछ करना चाहता था. मुक्तेश्वर के उस होटल में बोतल-भोजन के बाद बिस्तर पर लेटे हुए वह देर तक चीड़ की लकड़ी से बनी कमरे की छत पर पर निगाह डाले कुछ करने की असंख्य-अनंत योजनाओं के बारे में सोचता रहा. वह सोच-विचार करता जाता और हैरान होता जाता कि अपने भीतर बैठी अपनी ही अंतरात्मा से वह किस कदर बेखबर था, जिसने उसके जीवन को तमाम नए अर्थ दे दिए थे.
सुबह उठकर उसने खिड़की का पर्दा खोला तो सामने हिमालय की विराट चमकीली छवि देख कर भौंचक्का रह गया. उसे पिछली रात के अपने विचारों की स्मृति हो आई और उसने खुद को मदर टेरेसा और मार्टिन लूथर किंग का अवतार जाना. मॉर्निंग टी लेकर आए छोकरा बेयरे में उसे अपना सगा छोटा भाई दिखाई दिया. उसने टिप के तौर पर उसे पांच सौ रुपये थमाए और नाश्ते का ऑर्डर किया. नाश्ते के बाद वह जंगल वॉक पर निकलने का मन बना चुका था. रिसेप्शन पर मैनेजर ने उससे दिन के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो उसने निवेदन किया कि इलाके का भ्रमण करने को किसी आदमी की व्यवस्था कर दे जो उसे जंगल वॉक भी करवा सके और मकान बनाने लायक जमीन भी दिलवाने में सहायता कर दे.
मकान और जमीन का नाम सुनते ही भगवान मेहरा नामक उस होटल मैनेजर की देहभाषा बदल गयी और वह सिड के सामने “सर सर” करता किसी लोकल कुत्ते की भांति लपलपाता लोटने लगा. भगवान मेहरा सामने की पहाड़ी के एक नजदीक के गाँव का निवासी था. उसने प्लंबिंग में आईटीआई कर रखी थी और जयपुर-गौहाटी जैसी जगहों पर नौकरी करने के बाद वह तीन साल पहले वापस अपने गाँव आ गया था.
इसके बाद के लम्बे कथाक्रम के पहले चरण में सिड कपूर और भगवान मेहरा के बीच एक प्रेम-प्रसंग चला जिसकी परिणति सिड कपूर को बाजार दर से तीन गुनी कीमत पर बारह नाली जमीन दिलाये जाने, भगवान मेहरा के एक परिचित बच्चीसिंह को जमीन को समतल कराने, बाउंड्री वॉल और रीटेनिंग दीवारें बनाए जाने का ठेका दिलवाने में हुई.
दूसरे चरण में उसके और उसकी पत्नी के बीच सिड के इस आकस्मिक फैसले के कारण हुई शुरुआती अनबन, सुलह और बिड अर्थात बृंदा चटर्जी कपूर द्वारा प्रोजेक्ट रामगढ़-मुक्तेश्वर की अकाउंटिंग अपने हाथ में लेने जैसे प्रकरण आते हैं.
तीसरे और सबसे लम्बे चरण में इस कुछ करने की कथा में अनेक रंगबिरंगे पात्र तथा परिस्थितियाँ उद्घाटित होते हैं. अकाउंटेंसी की जानकार बृंदा चटर्जी कपूर ने शुरुआती कैलकुलेशन के बाद पाया कि भगवान मेहरा और बच्चीसिंह ने शुरुआती काम के दौरान ही करीब बारह लाख रुपये पर हाथ साफ़ कर दिया था. उन्हें काम से निकाल कर बृंदा ने अपनी दोस्त और सिग्मा हाउसेज नामक कंस्ट्रक्शन कंपनी चलने वाली सिमी उर्फ़ सिमरन गिल से अपने बंगले के बचे हुए निर्माण के लिए एक सुपरवाइजर मांगा. नरेन्दर सैनी नामक तर्रार महापुरुष की एंट्री के बाद समूचे रामगढ़-मुक्तेश्वर इलाके में एक कहावत मशहूर हुई – “जो नरुवा का हुआ शिकार, उसने फूंक दिया घरबार”.
नरुवा उर्फ़ नरेन्दर सैनी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था जिसे रईस क्लायंट्स के साथ काम करने का लंबा अनुभव था. उसने आते ही अपने एक दोस्त आर्कीटेक्ट से कह कर सिड कपूर के बनाए नक़्शे में ढेर सारे बदलाव किये, हल्द्वानी के चुनिन्दा ईंट-लकड़ी-पत्थर-सीमेंट-टाइल-फिटिंग सप्लायरों से संपर्क गांठा और उन्हें तीस परसेंट ज्यादा बिलिंग कर साठ परसेंट घटिया सामान सप्लाई करने पर सेट कर लिया.
जब तक नरेंदर सैनी की बेईमानी पकड़ में आती वह तीन करोड़ की अनुमानित लागत से बनने वाले मकान पर तब तक साढ़े चार करोड़ खर्च कर चुका था. भवन के रोड़ी-रेते और लक्कड़-पत्थर भर की हेराफेरी से उसने एक चमचमाती गाड़ी बना ली थी.
इसी तीसरे चरण के दौरान हर वीकेंड पर दिल्ली-मुक्तेश्वर करने को विवश सिड कपूर पर डिप्रेशन के दौरे पड़ना शुरू हुए और वह अपने तमाम दोस्तों से कैश उधार मांगने की आदत से ऐसा लाचार हुआ कि उसे पार्टियों में बुलाया जाना बंद हो गया. बृंदा चटर्जी कपूर के साथ उसके सम्बन्ध उस दिन से बहुत ज्यादा बिगड़े जब उसे बताये बिना सिड ने अपना नोएडा वाला फ़्लैट गिरवी रख कर बैंक से नया लोन उठाया. तीन-तीन पैग पीकर सिड और बृंदा अलबत्ता एकमत होकर कहते – “दिस हैज बीन अ फकिंग ब्लडी ब्लंडर मैन!”
नरेंदर सैनी के निकाले जाने के उपरान्त कथाक्रम में कैट और टिच्च जैसे विशेषणों से इलाके में नवाजी जा चुकी विजयश्री नाम की महिला की एंट्री हुई. केरल की रहने वाली बिंदास विजयश्री फोर्ड फाउंडेशन जैसी किसी रईस विदेशी संस्था की मदद से पास के गाँवों में एक एनजीओ चला रही थी.
बढ़िया सिंगल माल्ट की शौकीन, बाल डाई कराने में विश्वास न रखने वाली, आईआईएम से पढ़ी विजयश्री बुलेट मोटरसाइकिल से चलती थी. उसके एनजीओ में तीन हजार रुपया महीने पर गरीब महिलाएं एलोवेरा और हिमालयी जड़ीबूटियों की मदद से चाय, बॉडी-लोशन, एंटी-एजिंग क्रीम जैसे उत्पाद बनाती थीं जिन्हें विजयश्री दिल्ली में पैक करवा कर विदेशों में ‘आर्गेनिक कुमाऊँ हिमालया’ ब्रांड के नाम से बेचती थी. एनजीओ के परिसर में ग्रामीण बच्चों के लिए एक कमरे की पाठशाला थी जिसमें दुनिया भर के कॉमिक्स, क्रेयोन और किताबें ला कर धरे गए थे. बंबई-अहमदाबाद से यदा-कदा कुछ करने को लालायित विशेषज्ञ बच्चों को साउथपोल के प्रदूषण और डायनासोरों के बारे में बताने आते थे. बच्चों की दिलचस्पी इन अंग्रेजी लट-लहजे वाली हिन्दी बोलने वाले साहब लोगों में कम उनके द्वारा लाई जाने वाली चाकलेट-टाफियों में ज्यादा होती थी. ये मासूम देशभक्त विशेषज्ञ बच्चों से पूछते पाए जाते थे – “व्हाट इज अठत्तर बेटा?”
विजयश्री से हुई आकस्मिक मुलाक़ात ने सिड कपूर के मृतप्राय हो चुके सपने को नए जीवन से भर दिया. विजयश्री ने अहसान जताते हुए मकान पूरा करने का जिम्मा लिया और इसके एवज में कोई फीस नहीं ली. अपने एनजीओ के लिए भारी डोनेशन अलबत्ता जरूर ले लिया – “वीमेन एमपावरमेंट यू सी इज सो डैम वाइटल फॉर आर होपलेस कंट्री!”
विजयश्री दोनों के जीवन में बहार बन कर आ गयी थी और अब वे एकमत हो कर कहते थे – “इट्स नॉट सो बैड आफ्टरऑल! चीयर्स!”
विजयश्री द्वारा घेर लिए गए इस चौथे चरण में सिड के जीवन में नए प्रेम की आमद हुई. वे विजयश्री के एक सौ तेरहवें प्रेमी बने. सिड को प्रेम चाहिए था विजयश्री को फोकट सिंगल माल्ट की निर्बाध सप्लाई.
अंतरात्मा द्वारा किये गए टेलीफोन की तारीख के ढाई बरस बाद बंगला बन कर तैयार हुआ. बाथरूम-बिजली की फिटिंग्स से लेकर पौधे-फर्नीचर तक सारा कुछ विजयश्री के कहने पर विजयश्री द्वारा छांटा-खरीदा गया. एक केयरटेकर, दो माली, तीन नौकरानियां, एक आवारा कुतिया और उसके चार सद्यःजात पिल्ले घर के पहले बाशिंदे बने.
गृहप्रवेश की पार्टी की सारी व्यवस्था विजयश्री ने की. दिल्ली-गुडगाँव से सिड और बृंदा के चार-पांच दोस्त भी आये. चाकरों ने उम्दा खाना पकाया और सिड ने अंतरात्मा के टेलीफोन आने की रात से उस रात तक के तमाम किस्से सुनाये जिन्हें सुनकर मेहमान “ओ वाव! अनबिलीवेबल!” जैसे कमेन्ट करते दारू चूसते रहे.
देर रात तक चली इस पार्टी का अंत बहुत त्रासद और भीषण हुआ. रात के तीन बजे जब सभी लोग धुत्त हो कर सो चुके थे, सिड को बिस्तर से गायब देख कर बृंदा को भय हुआ कि कहीं उसे बाघ उठा कर न ले गया हो. घबराई हुई वह टॉर्च लेकर बाहर निकली तो सबसे पहली रोशनी घर के सामने खड़े बुरांश के पेड़ के तने पर पड़ी जिसके सहारे टिकी विजयश्री को सिड कपूर चूम रहा था.
दोस्तों और ड्राइवरों को उठाया गया, बृंदा ने अपना सामान पैक किया और एक संक्षिप्त किन्तु निर्णायक गालीगुप्ता और होहल्लाकरण कार्यक्रम के उपरांत तड़के चार बजे सभी दिल्ली वासी दिल्ली को रवाना हुए.
कथा का वर्तमान यानी अंतिम चरण आते-आते सिड और बृंदा तमाम गिले-शिकवों के साथ फिर एक दूसरे के साथ हैं. उस तारीखी रात के बाद उन्होंने कभी बिस्तर शेयर नहीं किया है. रहते वे गुड़गांव में ही हैं. रामगढ़-मुक्तेश्वर वाले घर में दो-दो चार-चार दिन रहने का नंबर साल में पांच-छः बार आता है. केयरटेकर जनार्दन जोशी हर हफ्ते फोन पर उनके सपनों के बंगले की रिपोर्ट देता रहता है. दीवारों से पलस्तर छूटने, बाथरूम की टाइलों के उखड़ने, बिजली के शार्ट सर्किट होने और बाघ द्वारा एक-एक कर चारों पिल्लों को उठा लिए जाने जैसी खबरें अब सिड को बहुत परेशान नहीं करतीं. वह जरूरत भर के पैसे जोशी के अकाउंट में ट्रांसफर कर देता है. विजयश्री का एनजीओ बंद हो गया है. बताते हैं वह शादी कर के सिंगापुर बस गयी है.
‘लिटल हैंड्स’ नामक एक नए एनजीओ ने उनके बंगले की ठीक बगल में अपना दफ्तर बना लिया है. पहाड़ के वंचित बच्चों के लिए कुछ करने के उद्देश्य से आई संस्था की मालकिन बत्तीस साल की खूबसूरत निकी उर्फ़ निहारिका पटेल जब “दीज रस्टिक किड्स आर सो अडोरेबल!” कहती हुई एक बच्चे की नाक को अपने पर्स से निकाले गए मुलायम गुलाबी टिश्यू से पोंछती है तो उसकी चमचम दन्तपंक्ति को देख कर सिड को अपने दिल में एक हूक सी जगती महसूस होती है लेकिन अगले ही पल बगल के कमरे में सोई बृंदा के खर्राटे सुनते ही उसके भीतर ऐसी सिहरन होती है कि वह भीगा घुघता बन कर आँखें मूंद लेता है और रजाई में घुस जाता है.
सिड कपूर और बृंदा चटर्जी कपूर का बंगला दूर-दूर से दिखाई देता है. स्थानीय जन से उसके मालिकों के बारे पूछिए तो वे कहते हैं – “दिल्ली के कोई पंजाबी हुए. बड़े रईस आदमी हैं बल. बताते हैं हर साल पैसा तो खूब भेजने वाले हुए गाँव के बच्चों के लिए ... लेकिन क्या है कि उस छम्मकछल्लो निक्की के हाथ से कुछ छिरे तब तो बच्चों के पास पहुंचे ना!”
पहाड़ का विकास होता रहता है और अंतरात्मा सिड कपूर को अब परेशान नहीं करती. उसने उसका जितना नुकसान करना था वह कर चुकी. कभी वह उसके कंधे पर चढ़ने का जतन करती भी है तो उसे धक्का मार कर नीचे गिरा दिया जाता है.
दोनों मियाँ-बीवी जब-जब अपने पहाड़ी बंगले में जाते हैं, सारे परिसर की लाइटें जलाई जाती हैं. उसके जैसी जगमग रोशनी इलाके भर में कहीं और नहीं दिखती. सामने की पहाड़ी पर भगवान मेहरा का घर है. बंगले का शुरुआती काम निबटाने के बाद अब वह पूरी तरह रिटायर हो चुका है. घोड़ा रम का आख़िरी पैग समझ कर, बंगले की रोशनी पर एक उचाट निगाह मार, सृष्टि के प्रारम्भ के बारे में कुमाऊँ की एक विख्यात लोकगाथा के दो नायकों को याद करता हुआ भगवान मेहरा बड़बड़ाता है – “हम पहाड़ियों के हमेशा दाहिने हो रहना हो सिदुवा-बिदुवा देवता!”
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