Wednesday, June 16, 2021

ताबीज़ / कृष्णमेहता

 *आज का अमृत*


*नमन खमन अरु दीनता, सबका आदर भाव*

*कहे कबीर बही बड़ा, जाका बड़ा स्वभाव*


*प्रेरणादायक कहानी*

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सास-बहू की लड़ाई मिटाने वाला विलक्षण तावीज

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एक महात्मा थे। वे पैदल घूम-घूमकर सत्संग का प्रचार किया करते थे। वे एक गाँवमें जाते, कुछ दिन ठहरकर सत्संग करते और फिर वहाँ से दूसरे गाँव चल देते । लोग भी उन पर बड़ी श्रद्धा रखते थे और उनकी बात मानते थे । घूमते-घूमते वे एक गाँव में पहुँचे। गाँव में सब जगह प्रचार हो गया कि महाराज जी पधारे हैं, आज अमुक जगह सत्संग होगा। सत्संग के समय बहुत-से भाई-बहन इकट्ठे हुए। जब सत्संग पूरा हुआ, तब एक माताजी महाराजजी के पास जाकर बोलीं-'महाराजजी ! आप अमुक गाँव में जाया करते हो!'


महाराजजी- 'हाँ माई, जाया करता हूँ ।'

माताजी-'वहाँ आपका अमुक सेवक है। आप उनके घर भी जाया करते हो!'

महाराज जी-'हाँ, जाया करता हूँ।'

माताजी-'यह मेरी बहू उसी की बेटी है। यह मेरे से लड़ती है! मेरा कहना नहीं मानती है!

लोगों में महाराजजी का एक भय था। कोई गड़बड़ी करता तो कहते कि हम महाराज जी से कह देंगे। वह कहता कि भाई,

महाराजजी को मत कहना, तुम जैसा कहोगे, वैसा हम करेंगे। महाराज जी कोई राजा की तरह दण्ड नहीं देते थे। वे बड़े प्रेम से कहते थे कि भाई, तुम ऐसा क्यों करते हो ? लोग उनकी बात का आदर करते थे। प्रेमका जो शासन होता है, वह बड़ा विलक्षण होता है। राजा का शासन तो राजसी-तामसी होता है, पर सन्तों का

शासन सात्त्विक होता है। महाराजजी ने उस माताजी की बहू को बुलाया और उससे कहा कि 'बेटी! तू सास से क्यों लड़ती है?' महाराजजी ने ऐसा कहा तो उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लग गये! वह जब छोटी बच्ची थी, तब वह महाराजजी के सामने खेला करती थी। अब बड़ी हो गयी, विवाह हो गया तो ससुराल में आ गयी । उसके मन में महाराजजी के प्रति बाप-दादे की तरह पूज्य भाव था । अब उसने महाराजजी के सामने अपनी शिकायत सुनी तो वह घबरा गयी और रोने लग गयी। महाराजजी ने आश्वासन दिया तो वह

बोली-'महाराजजी! मैंने कोई कसूर तो किया नहीं। मैं सास को दुःख नहीं देती हूँ, फिर भी उनको मेरा काम पसन्द नहीं आता। मैं क्या करूँ ? सास बिना कारण मेरे से लड़ती है!" बहू तो कहती है कि सास लड़ती है और सास कहती है कि बहू लड़ती है! लड़ाई कम-से-कम दो आदमियों में होती है। अकेले में लड़ाई नहीं होती। सैकड़ों-हजारों आदमी मिलकर लड़ाई कर सकते हैं, पर अकेला आदमी लड़ाई नहीं कर सकता। दो आदमी लड़ते हैं तो एक कहता है कि वह लड़ाई करता है और दूसरा कहता है कि वह लड़ाई करता है। अपना

अवगुण अपने को नहीं दीखता।


महाराजजी ने कहा- ' बेटी ! तू घबरा मत। मैं एक ऐसा यन्त्र बनाकर देता हूँ, जिससे लड़ाई मिट जायगी।' वहाँ उसका देवर खड़ा था। उसको महाराजजी ने कागज, कलम, दवात और एक तावीज लाने के लिये कहा। वह जाकर चारों चीजें ले आया ।


महाराजजी ने कागज के एक टुकड़े पर कुछ लिख दिया और उसको समेटकर तावीज में बन्द कर दिया।


महाराजजी- 'बेटी ! यह तावीज तू बाँध ले। तेरे घर की लड़ाई मिट जायगी। परन्तु इसके साथ तेरे को मेरी बात माननी पड़ेगी।


बहू-' हाँ महाराज जी! आप जैसा कहोगे, वैसा ही करूँगी। "


महाराजजी-'दो बातें हैं। एक तो सास कोई बात कहे तो सामने मत बोलना और दूसरा, सास जो काम कहे, चट उठकर कर देना। इन दो बातों का तू पालन कर लेगी तो यह यन्त्र सिद्ध हो जायगा।


बहू-'महाराजजी! कितना दिन करना पड़ेगा ?'

महाराज जी- 'कम-से-कम बारह महीने पालन कर लिया तो सब काम ठीक हो जायगा। पर बीच में कभी भूल हो गयी

तो उसी दिन से फिर बारह महीने गिने जायँगे । उससे पहले जो दिन बीते, वे गिनती में नहीं आयेंगे।'


बहू-'ठीक है, आप जैसा कहते हैं, वैसा ही करूँगी ।' बहूने तावीज लेकर बाँध लिया। 


महाराजजी ने चार-पाँच दिन और सत्संग किया, फिर दूसरे गाँव में चले गये उनका कोई नियम नहीं था कि इतने ही दिन यहाँ रुकेंगे हमारे यहाँ पहले ऐसे सन्तों की परम्परा चलती थी और लोगों पर उनका धार्मिक शासन चलता था। उनके शासन से लोग प्रभावित होते थे । लोग उन सन्तों को बड़े पूज्यभाव से देखते थे और उनकी आज्ञा का पालन करते थे। इससे गाँवों में बड़ी शान्ति रहती थी। बहू महाराजजी के बताये नियमों का पालन करने लगी। सास

कोई काम कहती तो वह चट हाथ जोड़कर हाजिर हो जाती थी और सामने नहीं बोलती थी। सास ने मन में विचार किया कि महाराजजी का यन्त्र बड़ा विलक्षण है! देखो, एक दिन में ही बहू सुधर गयी! घर में बड़ी शान्ति हो गयी । घरवाले भी सब राजी हो गये। सास-बहू आपस में प्रेम से रहने लगीं। बहू आज्ञा माने तो वह सास को बेटी से भी अधिक प्यारी लगती है; क्योंकि बेटी तो थोड़े दिन घर पर रहती है, फिर अपने घर चली जाती है, पर बहू तो सदा ही पास में रहती है। खटपट तो तब होती है, जब वह सास के सामने बोल दे और उसका कहना नहीं करे। कुछ दिनों के बाद महाराजजी फिर आये तो उन्होंने पूछा- 'माताजी! ठीक है न ?' वह बोली - 'महाराज जी ! आपकी

कृपा से बहुत ठीक है! बहू सुधर गयी है।' बहू से पूछा बोली-'महाराज जी! एक दिन मेरे से गलती हो गयी, मैं सास के सामने बोल गयी!' महाराजजी ने कहा- महीने गिने जायँगे, पहले वाले दिन गिनती में नहीं आयेंगे।


एकादशी के दिन अन्न का एक दाना भी खा ले तो व्रत भंग हो जाता है!' बहू बोली-'ठीक है महाराज जी ! अब मैं ध्यान

रखूँगी।' इस तरह डेढ़-दो वर्षों में उसके बारह महीने पूरे हो गये।


सास-बहू में परस्पर बड़ा प्रेम हो गया।

दो-ढाई वर्ष बीतने पर महाराज जी फिर उस गाँव में आये और उनसे बोले कि 'एक दिन हम तुम्हारे घर भिक्षा करेंगे। ' वे बहुत

राजी हुए। महाराज जी बड़े त्यागी सन्त थे । वे दो-चार घरों से भिक्षा लेकर खाते थे। कपड़े फट जाते थे तो कोई ज्यादा आग्रह

करता तो कपड़ा ले लेते थे। रुपयों-पैसों का कोई काम ही नहीं था। जब वे उनके घर भिक्षा के लिये गये तो बहुत-से लोग इकट्ठा हो गये कि महाराज जी आये हैं, सत्संग सुनायेंगे महाराजजी ने भिक्षा की और सत्संग सुनाया। फिर कहा कि 'दूसरे घरों के जो लोग आये हैं, उनको भेज दो । केवल आपके घरवाले ही रहें, आपसे एक बात कहनी है ।' घरवालों ने हाथ जोड़कर सबसे कह दिया कि 'भाई, अब सत्संग हो गया, अब आप सब लोग जाओ ।' सब लोग चले गये। घरवाले महाराजजी के पास आकर बैठ गये। महाराजजी बोले कि 'मैंने जो तावीज बनाकर दी थी, उसको लाओ। उन्होंने तावीज लाकर महाराजजी के सामने रख

दी। महाराजजी ने कहा कि 'इसको खोलकर पढ़ो, इसमें क्या लिखा है?' उन्होंने तावीज के भीतर रखा कागज खोलकर पढ़ा। उसमें लिखा था-

'सास-बहू राजी तो साधु को क्या और सास-बहू नाराज तो साधु को क्या!'


महाराजजी बोले-'सास-बहू शान्ति से रहें तो हमें क्या मतलब और रोजाना आपसमें लड़ें तो हमें क्या मतलब ? हमारा मतलब तो यह है कि तुम्हारे घर में शान्ति, आनन्द रहे। यह शक्ति यन्त्र में नहीं है। यह शक्ति इस बातमें है कि सामने न बोले और जैसा कहे, वैसा कर दे। देखो, दूसरा कोई जन्तर-मन्तर की बात कहे कि हमें देवता सिद्ध है, हम तुम्हारे को ऐसा कर देंगे, वैसा कर देंगे तो डरना नहीं! इसीलिये तुमको यन्त्र खोलकर दिखाया है। जन्तर-मन्तर को मैं नहीं मानता । परन्तु तुम्हारे को मेरी बात पर विश्वास हो जाय, इसलिये यन्त्र बनाकर दिया है। बड़ों के सामने बोलना नहीं और उनकी आज्ञा का पालन करना-इन दो बातों का घर के सभी लोग पालन करें तो आपके लोक और परलोक दोनों सुधर जायँगे। कभी सास कोई ऐसा काम करने को कह दे, जिससे आगे नुकसान दीखता हो तो

हाथ जोड़कर खड़ी हो जाय । वह पूछे कि खड़ी क्यों है, तो कहे कि आपका काम तो मैं कर दूँगी, पर इससे बिगाड़ हो जायगा।

वह कहे कि 'नहीं-नहीं, यह काम करना है' तो वैसा कर दे। अगर काम बिगड़ जाय तो शेखी न बघारे कि देखो, मैंने तो पहले ही कह दिया था, पर आपने माना नहीं! प्रत्युत बड़ी नम्रता, सरलता, निरभिमानता रखे।' महाराजजीकी इन बातों का सब पर बड़ा असर पड़ा।


सब भाई-बहनों से प्रार्थना है कि आपलोग भी आज इस विलक्षण यन्त्र को धारण कर लें कि बड़ों के सामने नहीं बोलेंगे, उनका तिरस्कार, अपमान, अवहेलना नहीं करेंगे और वे जैसा कहेंगे, वैसा कर देंगे । फिर आपके घरों में भी शान्ति, आनन्द हो जायगा।

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